Friday, September 10, 2010

शायद ज़िन्दगी बदल रही है!!

शायद ज़िन्दगी बदल रही है!!
जब मैं छोटा था, शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी..
मुझे याद है मेरे घर से "स्कूल" तक का वो रास्ता, क्या क्या नहीं था
वहां, चाट के ठेले, जलेबी की दुकान, बर्फ के गोले, सब कुछ,
अब वहां "मोबाइल शॉप", "विडियो पार्लर" हैं, फिर भी सब सूना है..

शायद अब दुनिया सिमट रही है...

जब मैं छोटा था, शायद शामे बहुत लम्बी हुआ करती थी.
मैं हाथ में पतंग की डोर पकडे, घंटो उडा करता था,
वो लम्बी "साइकिल रेस", वो बचपन के खेल,
वो हर शाम थक के चूर हो जाना, अब शाम नहीं होती,
दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है.

शायद वक्त सिमट रहा है..

जब मैं छोटा था, शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी,
दिन भर वो हुज़ोम बनाकर खेलना, वो दोस्तों के घर का खाना,
वो लड़कियों की बातें, वो साथ रोना, अब भी मेरे कई दोस्त हैं,

पर दोस्ती जाने कहाँ है, जब भी "ट्रेफिक सिग्नल" पे मिलते हैं "हाई" करते हैं,
और अपने अपने रास्ते चल देते हैं, होली, दिवाली, जन्मदिन,
नए साल पर बस sms आ जाते हैं

शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं..

जब मैं छोटा था, तब खेल भी अजीब हुआ करते थे, छुपन छुपाई,
लंगडी टांग, पोषम पा, कट थे केक, टिप्पी टीपी टाप.
अब इन्टरनेट, ऑफिस, हिल्म्स, से फुर्सत ही नहीं मिलती..

शायद ज़िन्दगी बदल रही है.

जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है..
जो अक्सर कबरिस्तान के बाहर बोर्ड पर लिखा होता है.
"मंजिल तो यही थी, बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी यहाँ आते आते "

Source:
Ashok Kumar, punjabeco-crisis@googlegroups.com

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