Wednesday, September 15, 2010

बिहार में बन रहा नया समीकरण- अमर सिंह की रणनीति (चौथी दुनिया से)


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ठाकुर अमर सिंह अपनी नई पार्टी बना रहे हैं. बेहद पोशीदगी से सारे काम को अंजाम दिया जा रहा है. पार्टी के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. नई पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर अमर सिंह का नाम चुनाव आयोग में भेजा जा चुका है. उनके अलावा जो मुख्य भूमिका में होंगे, वे हैं पूर्व राज्यसभा सांसद एवं मुसलमानों में धर्म उपदेशक के रूप में गहरी पैठ बना चुके मौलाना ओबेदुल्ला खान आज़मी और लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल से सांसद रह चुके एवं अब कांग्रेस में शामिल एक बेहद दबंग यादव नेता. अमर सिंह की नई पार्टी मुसलमान, यादव और राजपूत जाति के समीकरण पर आधारित होगी. देश के राजनीतिक इतिहास में जातीय राजनीति का यह अपनी तरह का पहला प्रयोग होगा, जिसमें राजपूत नेताओं की गोलबंदी मुसलमान और यादव नेताओं के साथ होगी. ओबेदुल्ला खान आज़मी इन दिनों अपनी-अपनी पार्टियों के रवैये से नाराज़ बिहार एवं उत्तर प्रदेश के तमाम यादव, मुसलमान और राजपूत नेताओं से मिलकर उन्हें अमर सिंह की पार्टी में आने का न्यौता दे रहे हैं. ये वैसे नेता हैं, जिनकी समाज में खासी द़खल है. बिहार में ऐसे नेताओं को बटोरने का ज़िम्मा उसी दबंग यादव नेता को दिया गया है. वह जब लालू यादव की पार्टी राजद में थे तो बिहार में उनका सिक्का चलता था.बिहार के इस बाहुबली यादव नेता और मौलाना ओबेदुल्ला खान आज़मी के ज़ोर पर ठाकुर अमर सिंह फरवरी के आ़खिरी हफ़्ते में बिहार की राजधानी पटना में एक ज़ोरदार अधिवेशन करने की तैयारी में हैं. यह अधिवेशन एक तरह से अमर सिंह का शक्ति प्रदर्शन भी होगा, ताकि जब बिहार में अक्टूबर में विधानसभा चुनाव हों, उसके पहले उन्हें अपनी जोड़तोड़ की राजनीति का अंदाज़ा भलीभांति हो जाए. अमर सिंह की मंशा है कि उनकी पहली प्रयोगशाला बिहार हो. और, पहले ही वार में अमर सिंह बिहार का क़िला फतह करने का सपना भी देख रहे हैं. ठीक उसके बाद उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं. तब तक अमर सिंह अपनी सियासी रणनीतियों को ठोक बजा लेना चाहते हैं, ताकि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी का प्रदर्शन बेमिसाल हो सके और वह अपने पुराने हितैषियों और चाहने वालों को क़रारा जवाब दे सकें. अगले लोकसभा चुनाव तक अमर सिंह देश की सियासत में ध्रुवतारा की मा़फिक चमकने की हसरत रखते हैं.

राजपूत, मुसलमान और यादव का त्रिभुज बनाकर अमर सिंह हिंदुस्तान की राजनीति का रू़ख अपनी ओर करना चाहते हैं और इसकी शुरूआत उन्होंने बिहार से कर दी है. दलीय राजनीति से इतर बिहार के तमाम विक्षुब्ध नेता अमर सिंह का दामन थामने को बेक़रार हैं.

नई पार्टी के गठन में अमर सिंह पूरी सावधानी बरत रहे हैं. वह अपनी पार्टी के ज़रिए समाजवाद का एक नायाब उदाहरण पेश करना चाहते हैं. राजपूत, यादव और मुसलमानों की गोलबंदी की योजना तो चल ही रही है, साथ ही दलितों और पिछड़ों पर भी डोरे डाले जा रहे हैं. कभी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के खिला़फ आग उगलने वाले ठाकुर साहब अब उनकी तारी़फ में कसीदे का़ढ रहे हैं. बहन जी की क़ाबिलियत के वह कायल हो चुके हैं और यह कहने लगे हैं कि उन्होंने हर मुश्किल व़क्त में खुद को साबित किया है. आज सोनिया गांधी भी उनकी नज़र में महान हो चुकी हैं. मौलाना ओबेदुल्ला खान आज़मी अपनी मनमोहिनी मज़हबी तक़रीर के लिए खूब जाने जाते हैं. वह जब जलसों में बोलते हैं तो हज़ारों की तादाद में लोग उन्हें घंटों सुनते हैं. उनके भाषणों के कैसेट बाज़ारों में बिकते हैं. पहली बार मौलाना साहब को पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के कहने पर राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने राज्यसभा सांसद बनाया. फिर मौलाना आज़मी कांग्रेस में शामिल हो गए. कांग्रेस ने उन्हें मध्य प्रदेश से राज्यसभा में भेजा. दोबारा वहां गुंजाइश न देख मौलाना आज़मी ने मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर ली. लेकिन यहां उनकी दाल नहीं गली. सपा प्रमुख ने उन्हें घुमाया-टहलाया तो बहुत, पर उनकी ख्वाहिश पूरी नहीं की. उन्हें राज्यसभा का सांसद नहीं बनाया. लेकिन इस दरम्यान वह और पार्टी के तत्कालीन महासचिव अमर सिंह एक दूसरे के अजीज़ ज़रूर हो गए. अब जबकि दोनों को ही एक दूसरे की ज़रूरत थी, ऐसी सूरत में अमर सिंह के इस्ती़फे के बाद मौलाना साहब ने भी मुलायम सिंह का हाथ छोड़ा और अमर के साथ हो लिए. और, अब वह अमर सिंह के निर्देशों के मुताबिक़ पार्टी को श़क्ल देने में लगे हैं. वैसे भी पार्टी में उन्हें अमर सिंह ही लेकर आए थे. वह बिहार और उत्तर प्रदेश के विक्षुब्ध नेताओं के संपर्क में लगातार बने हुए हैं. चौथी दुनिया के पास जिन नेताओं के नाम आए हैं, उनमें प्रमुख हैं पूर्व सांसद एवं कांग्रेस नेता साधु यादव, पूर्व राजद सांसद पप्पू यादव, पूर्व जदयू सांसद प्रभुनाथ सिंह, राजद नेता गिरधारी यादव, राजद नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री तस्लीमुद्दीन. राजद छोड़कर समाजवादी पार्टी में शरण लेने वाले और अब खुद की पार्टी बनाकर राजनीति करने वाले बाहुबली विधायक ददन सिंह यादव, अनवारुल हक़, रमई राम इत्यादि नामों की बड़ी सूची है. इसके अलावा कांग्रेस के नाराज़ नेताओं से भी बातचीत चल रही है. लोजपा, जदयू और राजद के नेताओं से गुणा-भाग की राजनीति परवान पर है. मतलब यह कि सभी पार्टियों के चुनिंदा नेताओं को मिलाकर अमर सिंह की नई पार्टी म़ुकम्मल होगी.

अमर सिंह की चाल अगर अपना रंग दिखा जाती है तो अगले बिहार विधानसभा चुनाव के बाद अमर सिंह की पार्टी सरकार बनाने में अहम भूमिका निभा सकती है. बिहार के बाद उत्तर प्रदेश और फिर लोकसभा चुनाव उनका निशाना होगा.

अमर सिंह इन नेताओं से सामंजस्य बिठाने की अहम ज़िम्मेदारी कांग्रेस नेता साधु यादव को देना चाहते हैं. हालांकि साधु यादव इस खबर को बिल्कुल ग़लत क़रार दे रहे हैं. वह कांग्रेस के प्रति अपनी निष्ठा ज़ाहिर करते हैं, पर उनके मौजूदा आवास 15 जनपथ पर मौलाना ओबेदुल्ला आज़मी का आना-जाना बदस्तूर बना हुआ है. दरअसल साधु यादव बिहार में एक दबंग और जनाधार वाले यादव नेता के रूप में जाने जाते हैं. राजद अध्यक्ष लालू यादव के साले के तौर पर साधु ने अपना राजनीतिक स़फर शुरू किया, पर धीरे-धीरे साधु ने अपना अलग आधार बनाया. लालू के कंधे पर पैर रखकर छलांग लगाई और अनबन होने की सूरत में कांग्रेस में शामिल हो गए. लेकिन साधु का पार्टी बदलना उनके मतदाताओं को रास नहीं आया और वह लोकसभा चुनाव हार गए. हारने के बाद भी साधु यादव के साथ उनके समर्थकों की जो भीड़ है, उसमें यादव, मुसलमान, ब्राह्मण, भूमिहार और राजपूत युवकों की तादाद ज़्यादा है. इसके अलावा साधु ने अपना आधार दक्षिण भारत में भी बनाना शुरू कर दिया. वहां के यादवों का भी समर्थन साधु को मिलने लगा है. बिहार में लालू यादव से पंगा लेने या उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव से दो-दो हाथ करने में साधु यादव से बेहतर विकल्प अमर सिंह को दिखाई नहीं दे रहा है. हालांकि साधु यादव की छवि एक अपराधी और बाहुबली नेता की रही है, लेकिन यह छवि जातीय कारक से कहीं दब सी जा रही है.

नई पार्टी के गठन में अमर सिंह पूरी सावधानी बरत रहे हैं. वे अपनी पार्टी के ज़रिए समाजवाद का एक नायाब उदाहरण पेश करना चाहते हैं. राजपूत, यादव और मुसलमानों की गोलबंदी की योजना तो चल ही रही है, साथ ही दलितों और पिछड़ों पर भी डोरे डाले जा रहे हैं. कभी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के खिला़फ आग उगलने वाले ठाकुर साहब अब उनकी तारी़फ में कसीदे का़ढ रहे हैं.

अमर सिंह इस जुगत में हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर वह एक क्षत्रिय नेता के तौर पर स्थापित हों. मौलाना आजमी मुसलमान नेता और साधु यादव यादवों के नेता के रूप में अपनी धमक जगाएं. दलित वोटों को बटोरने के लिए उत्तर प्रदेश के एक बड़े दलित नेता से बातचीत अंतिम चरण में है. बिहार में राजपूत जाति का वोट लगभग 5 फीसदी, मुसलमानों का 11 फीसदी और यादवों को 18 फीसदी है. अमर की नजर इसी वोट बैंक पर है. अमर सिंह चाहते हैं कि देश की राजनीति की मुख्यधारा में राजपूतों का वर्चस्व हो, ताकि आने वाले दिनों में एक पार्टी के अध्यक्ष के तौर पर अमर सिंह की सामयिक महत्ता बनी रहे. इसके लिए वह पूर्व जदयू नेता एवं निर्दलीय सांसद दिग्विजय सिंह से अपनी गांठ जोड़ना चाहते हैं. लेकिन फिलहाल दिग्विजय सिंह संशय की स्थिति में हैं. उन्हें इस बात का डर है कि कहीं अमर सिंह का प्रयोग असफल रहा तो उनकी राजनीतिक साख को झटका लग सकता है.

अमर सिंह चाहते हैं कि देश की राजनीति की मुख्यधारा में राजपूतों का वर्चस्व हो, ताकि आने वाले दिनों में एक पार्टी के अध्यक्ष के तौर पर अमर सिंह की सामयिक महत्ता बनी रहे.

लेकिन इतना ज़रूर है कि अगर अमर सिंह की रणनीति बिहार में कामयाब रहती है और फरवरी के आ़खिरी या मार्च के शुरुआती हफ़्ते में पटना में होने वाला उनका अधिवेशन सफल रहता है तो दिग्विजय सिंह भी अमर सिंह के साथी बन सकते हैं. लेकिन, एक बात जो तय है, वह यह कि जदयू के बागी नेता प्रभुनाथ सिंह अमर सिंह की पार्टी में महत्वपूर्ण पद संभालने जा रहे हैं. प्रभुनाथ सिंह बिहार की राजनीति में खास मायने रखते हैं. वह राजपूत जाति के बेहद अहम नेता हैं. छपरा, सीवान, गोपालगंज, बेतिया, मोतिहारी, सासाराम सरी़खे भोजपुरी भाषी क्षेत्रों में प्रभुनाथ सिंह की पकड़ बेहद मज़बूत है. प्रभुनाथ सिंह पिछले लंबे समय से बिहार के मुख्यमंत्री से खासे खफा हैं. वह खुलेआम उन्हें ललकार रहे हैं. आर-पार की लड़ाई का न्यौता दे रहे हैं. अमर सिंह जानते हैं कि प्रभुनाथ सिंह नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू का कितना बड़ा नुक़सान कर सकते हैं. लिहाज़ा बिहार में अपनी नई पार्टी का पैर ज़माने के लिए वह प्रभुनाथ सिंह का इस्तेमाल ब़खूबी करेंगे. साथ में रमई राम सरीखे दलित नेताओं का साथ भी अमर सिंह की पार्टी को बड़ा फायदा पहुंचाएगा. अब यहां सवाल उठता है कि राजपूत, यादव और मुसलमान की अमर सिंह की यह तिकड़ी बिहार विधानसभा चुनाव में माई समीकरण के जनक लालू यादव या अन्य नेताओं को कितना नुक़सान पहुंचाएगी. खास तौर पर मुसलमान मतदाताओं का झुकाव किस ओर ज़्यादा होगा. राजद में मुस्लिम चेहरे के रूप में स़िर्फ अब्दुल बारी सिद्दीकी हैं. सिद्दीकी कहने को तो मुसलमान नेता हैं, पर उनकी पकड़ बिहार की मुसलमान बिरादरी पर उतनी गहरी नहीं, जो लालू यादव की नैया पार करा दे. लोजपा में इन दिनों वैसे भी स्थापित नेताओं का अकाल पड़ा है. इसलिए मुसलमान के नाम पर कोई जानी पहचानी शख्सियत पार्टी में मौजूद नहीं है. कांग्रेस अभी अपनी जड़ तलाशने में ही जुटी है. जदयू में कोई बड़ा नाम है नहीं. और भाजपा का वैसे भी मुसलमान नेताओं से वास्ता नहीं रहता. ऐसी हालत में मौलाना ओबेदुल्ला खान आज़मी निश्चित तौर पर मुसलमानों के बड़े नेता के तौर पर बिहार के साथ-साथ उत्तर प्रदेश में भी अमर सिंह की पार्टी को मज़बूत करेंगे. वैसे भी धर्मगुरु और उपदेशक होने के नाते मौलाना आज़मी मुसलमान बिरादरी में एक ऊंंचा स्थान रखते हैं. और, यह बात अमर सिंह की नई पार्टी के लिए संजीवनी का काम करेगी. मतलब यह कि राजपूत, मुसलमान, यादव समीकरण को आधार बनाकर अमर सिंह हरेक जाति में सेंध लगाएंगे और अपनी पार्टी की नींव मज़बूत करेंगे. इसकी खातिर ठाकुर अमर सिंह कोई कसर बाकी रखना नहीं चाहते. यही वजह है कि उन्होंने अपनी पार्टी का निर्माण नीचे से करने के बजाय ऊपर से करना शुरू किया है. यह बात भी दीगर है कि नई पार्टी के गठन में खर्च बेशुमार है. उसमें भी तब, जबकि पार्टी में जाने-माने बड़े नेताओं को शामिल होना है. अब पार्टी अध्यक्ष होने के नाते यह सारा इंतजाम करना तो ठाकुर साहब को ही है, पर उन्हें इस बात की कोई फिक्र नहीं. वह तमाम इंतजामात ब़खूबी कर रहे हैं. उनकी हरसंभव कोशिश यही है कि बिहार विधानसभा चुनाव के बाद बिहार में जो स्थितियां बनें, उनमें उनकी पार्टी के हाथ सरकार बनाने की चाबी हो. वह निर्णायक भूमिका में हों. बिहार में अगर उन्हें यह उपलब्धि हासिल हो गई तो अगले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी पुराने सखा मुलायम सिंह यादव के मुकाबले चुनावी अखा़डे में उतरने का दम भर सकती है. यक़ीनन इसका नतीजा अगले लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिलेगा, लेकिन फिलहाल तो यह देखना है कि अमर सिंह अपनी पार्टी के ज़रिए बिहार में जो नई राजनीतिक ताक़त पैदा करना चाह रहे हैं, वह किसका नुक़सान करेगी. लालू का? नीतीश का? या कांग्रेस का? इसके लिए कम से कम अमर सिंह की पार्टी के पहले अधिवेशन का इंतज़ार तो करना ही होगा.

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