Wednesday, September 15, 2010

बिहार में मुसलमान (चौथी दुनिया से )

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चुनावी साल में बिहार के दिग्गज नेताओं को एक बार फिर सूबे के डेढ़ करोड़ मुसलमानों का दर्द सताने लगा है. मुसलमानों की ग़रीबी, उनके बच्चों के न पढ़ पाने का दर्द और सत्ता में उनकी कम भागीदारी अचानक नेताओं के एजेंडे में ऊपर आ गई है. जगह-जगह रैलियों एवं सभाओं में मुसलमानों के सम्मान और कल्याण के लिए वादों की बौछार शुरू है. इन नेताओं की आंखों में अपना दर्द निहारने वाले मुसलमानों के हिस्से में क्या आएगा, यह तो समय बताएगा पर वोट की राजनीति करने वाले नेता यह गुना-भाग करने में मशगूल हैं कि उनकी पार्टी के हिस्से में मुसलमानों का ज़्यादा से ज़्यादा वोट कैसे आएगा. अनुमान के मुताबिक़ नए परिसीमन के बाद सूबे की तीन दर्ज़न सीटों पर चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला मुस्लिम वोटरों को ही करना है. सीमांचल के चार ज़िले किशनगंज, पूर्णिया, अररिया एवं कटिहार के अलावा सहरसा, सुपौल, दरभंगा, सीतामढ़ी, भागलपुर सहित कई और ज़िलों में कुछ विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां मुस्लिम वोटरों को दरकिनार कर कोई भी प्रत्याशी विधानसभा पहुंचने की सोच भी नहीं सकता है. यही वजह है कि नीतीश कुमार, रामविलास पासवान और लालू प्रसाद ने अभी से ही मुसलमानों को रिझाने के लिए कवायद शुरू कर दी है. मुस्लिम वोटों पर जहां लालू प्रसाद अपना स्वाभाविक दावा जताते हैं, वहीं नीतीश कुमार का कहना है कि मेरी सरकार ने अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए ढेर सारे काम किए हैं. रामविलास पासवान का तर्क है कि बातें तो बहुत हुईं, लेकिन मुसलमानों को उनका वाजिब हक़ नहीं मिल सका है. लोजपा की मुस्लिम रैली में पासवान ने कहा कि आज़ादी के 63 साल बाद भी देश का मुसलमान डरा हुआ है. वह अपने आप को दोयम दर्जे का नागरिक समझता है. मुसलमानों की चिंता जल्द ख़त्म करने का आश्वासन देते हुए पासवान ने रैली में चुनावी तड़का लगाना शुरू कर दिया. बहुचर्चित चाबी वाले अपने बयान से कुछ अलग हटते हुए उन्होंने कहा कि बिहार में नई सरकार की चाबी अकलियतों के हाथ में होगी और जिस दिन अकलियतों ने हमारे गठबंधन के पक्ष में मन बना लिया, सत्ता में आने से हमें कोई नहीं रोक सकता है. रैली में नीतीश पर हमला करने से भी पासवान नहीं चूके. उन्होंने कहा कि इस सरकार में इसी गांधी मैदान में तीन दिनों तक आरएसएस का सम्मेलन हुआ. उन्होंने कहा कि जब पश्चिम बंगाल सरकार ने रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफारिशों के आधार पर सरकारी नौकरियों में मुसलमानों के लिए दस फीसदी आरक्षण की व्यवस्था कर दी, तो फिर केंद्र और बिहार सरकार को ऐसा करने में क्या परहेज है. रैली में मौलाना कल्बे रुशैद रिज़वी ने मुसलामानों का दर्द बयां कर महफिल लूट ली. उन्होंने कहा कि मुस्लिम रैली के बाद पासवान की अकलियतों की प्रति ज़िम्मेदारी और भी बढ़ जाती है. चिलचिलाती धूप में बैठे मुसलमानों को हिंदुस्तान का सिपाही बताते हुए उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया यह समझ ले कि इस देश पर बुरी नज़र रखने वालों की आंखें निकालने में यहां का मुसलमान सबसे आगे रहेगा. सांसद साबिर अली ने भी मुसलमानों के साथ लगातार हो रही नाइंसा़फी का मुद्दा उठाया. कुल मिलाकर रैली के माध्यम से रामविलास पासवान ने मुसलमानों को यह संदेश देने की कोशिश की कि उन्हें ठगने वालों को लोजपा सबक सिखाएगी. अगर अकलियतों का वोट लोजपा के खाते में आ जाए तो उनके आंसू पोछने के लिए पार्टी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगी. दरअसल दलित वोटों में नीतीश कुमार ने सेंध लगाकर पासवान के होश उड़ा दिए हैं. दलित राजनीति करने का दंभ भरने वाले पासवान को लगता है कि नीतीश का महादलित कार्ड लोजपा के सारे गणित को फेल कर सकता है. इन वोटों की खानापूर्ति मुस्लिम वोटों से करने की रणनीति पर अमल करते हुए सारे नेताओं द्बारा मुसलमानों से ढेर सारे वादे किए जा रहे हैं.

मुस्लिम वोटों के लिए पासवान और नीतीश की तेज़ी को देखते हुए राजद खेमा भी सक्रिय हो गया है. मुस्लिम-यादव समीकरण के सहारे 15 सालों तक सत्ता में रहे राजद ने मुसलमानों को रिझाने के लिए एक और मोर्चा खोल दिया है. पार्टी की तऱफ से माइनरिटी वेलफेयर फ्रंट अब मुसलमानों के बीच जागरुकता अभियान चलाएगा. लालू के क़रीबी अनवर अहमद उसके प्रमुख हैं.

सत्ता में आने के बाद से ही नीतीश कुमार ने कोशिश शुरू कर दी थी कि भले ही भाजपा के साथ उनकी गठबंधन की सरकार है पर उनकी छवि धर्मनिरपेक्ष बनी रहे. मुस्लिम बहुल इलाक़ों में जब भी वह गए इस बात को दोहराना न भूले कि उनके कार्यकाल में एक भी दंगा नहीं हुआ. अल्पसंख्यकों की शिक्षा और रोज़गार के अलावा अन्य शुरू किए गए कल्याणकारी योजनाओं के बारे में नीतीश कुमार बताना नहीं भूलते. मुस्लिम रैली के माध्यम से जब पासवान अकलियतों के नज़दीक आने में जुटे तो नीतीश कुमार ने तुरंत पसमांदा मुसलमानों को आरक्षण देने का तीर चला दिया. जहानाबाद में मुस्लिम फलाही बेदारी कांफ्रेंस में नीतीश कुमार ने मुसलमानों के दर्द को सहलाते हुए कहा कि मुसलमानों की एक बड़ी आबादी ग़रीबी से त्रस्त है. इसलिए विकास में उनका विशेष हक़ होना चाहिए. उन्होंने कहा कि मैं पूरी ईमानदारी से चाहता हूं कि समाज का हर तबका विकास का स्वाद चखे. नीतीश कुमार ने कहा कि उनकी सरकार ने मुसलमानों की बेहतरी के लिए 19 कार्यक्रम चला रखे हैं. दरअसल जिन अगड़ी जातियों ने नीतीश को सत्ता की कुर्सी तक पहुंचाया था, उनका कितना साथ इस चुनाव में उन्हें मिलेगा यह दुविधा जदयू के लिए चिंता का विषय है. खासकर ललन प्रकरण के बाद यह चिंता कुछ ज़्यादा ही बढ़ गई है. इसलिए पार्टी के रणनीतिकार चाहते हैं कि जितना ज़्यादा से ज़्यादा हो सके मुस्लिम वोटों में सेंधमारी का अभियान तेज़ कर दिया जाए. पसमांदा मुसलमानों को आरक्षण की बात कहकर नीतीश ने बड़ा दांव खेला है. सूत्रों पर भरोसा करें तो अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि को और निखारने के लिए नीतीश आने वाले दिनों में कोई बड़ा राजनीतिक जोख़िम भी उठा सकते हैं.

मुस्लिम वोटों के लिए पासवान और नीतीश की तेज़ी को देखते हुए राजद खेमा भी सक्रिय हो गया है. मुस्लिम-यादव समीकरण के सहारे 15 सालों तक सत्ता में रहे राजद ने मुसलमानों को रिझाने के लिए एक और मोर्चा खोल दिया है. पार्टी की तऱफ से माइनरिटी वेलफेयर फ्रंट अब मुसलमानों के बीच जागरुकता अभियान चलाएगा. लालू के क़रीबी अनवर अहमद उसके प्रमुख हैं. अनवर राजधानी से लेकर पंचायत स्तर तक कार्यक्रम चलाकर मुसलमानों को उनके हक़ के बारे में बताएंगे. राजद का सा़फ कहना है कि नीतीश ने मुसलमानों के लिए जो योजनाएं चलाई हैं. वे बस काग़ज़ों पर हैं. बजट में करोड़ों रुपए का प्रावधान है पर अल्पसंख्यकों के हित में उसे ख़र्च नहीं किया जा रहा है. ख़तरा कांग्रेस की तऱफ से भी लग रहा है. इसलिए राजद ने पहले से ही सांप्रदायिकता के मुद्दे पर कांग्रेस को बेनकाब करने का अभियान चला रखा है. लोकसभा चुनाव में माय समीकरण के बिखराव से लगे झटके से लालू चौकन्ना हो गए हैं और चाहते हैं कि विधानसभा चुनाव में उनके माय समीकरण में कोई सेंध न लगे. बहरहाल मुसलमानों के वोट हासिल करने के लिए मची होड़ में कौन आगे निकलेगा यह तो आने वाला समय बताएगा पर इतना तो सा़फ है कि इस होड़ में जो आगे निकलेगा, सत्ता उसी के ज़्यादा क़रीब होगी.

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