Tuesday, January 31, 2012

पत्रकार अमरनाथ तिवारी पिटाई मामले में पुलिस पदाधिकारियों की निष्क्रियता और पक्षपात

अमरनाथ तिवारी पिटाई मामले में पुलिस पदाधिकारियों की निष्क्रियता और पक्षपात को लेकर पटना के वरिष्ठ पत्रकार मिले -मुख्यमंत्री से न्याय की गुहार को लेकर वरिष्ठ पत्रकारों का ड़ेलेगेसन मिलेगा

पटना ( रविवार २९ जनवरी) : वरिष्ठ पत्रकार अमरनाथ तिवारी पर जानलेवा हमले के मामले में पुलिस की निष्क्रियता और पक्षपात के सन्दर्भ में पटना के वरिष्ठ पत्रकारों की एक बैठक रविवार २९ जनवरी को फ्रेज़र रोड स्थित एन.डी.टी.वी के दफ्तर में हुई. इस मामले में पुलिस के दो पदाधिकारियों की पक्षपातपूर्ण भूमिका को लेकर सभी वरिष्ठ पत्रकारों ने गंभीर चिंता और आपत्ति दर्ज की.

मालूम हो कि विगत २७ जनवरी २०१२ को कदमकुआँ थाना अंतर्गत राजेंद्र नगर के चारमिनार अपार्टमेन्ट में अंग्रेजी दैनिक The Pioneer के पटना स्थित वरिष्ठ पत्रकार अमरनाथ तिवारी पर उसी अपार्टमेन्ट के निवासी भाजपा नेत्री मधु वर्मा और उनके पुत्र ऋतुराज के नेतृत्व में आये अन्य गुंडा-तत्वों के द्वारा जानलेवा प्राणघातक हमला किया गया था. इस सम्बन्ध में हमले के शिकार श्री तिवारी ने कदमकुआँ थाने में तत्काल प्रथम सूचना रिपोर्ट (ऍफ़. आइ.आर) दर्ज भी कराई थी.

पत्रकारों की इस बैठक में थानाध्यक्ष ज्योति प्रकाश और नगर पुलिस उपाधीक्षक रमाकांत प्रसाद द्वारा इस मामले में विहित कानूनी कार्रवाई करने की बजाय पक्षकार की भूमिका निभाने पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई. शायद इसलिए कि इस मामले में आरोपी भाजपा नेत्री और उनका पुत्र था. वरिष्ठ पत्रकारों ने महसूस किया की इन दोनों पुलिसअधिकारियों की इस पक्षपातपूर्ण कार्रवाई से बिहार का पूरा पत्रकार समुदाय न सिर्फ आश्चर्यचकित वरन निराश
और क्षुब्ध भी है.

बैठक में कहा गया कि जनता की तरह ही हम पत्रकार भी पुलिस और प्रशासन से निष्पक्षता की उम्मीद रखतेहैं मगर इस मामले में दोनों ही पुलिस पदाधिकारियों की भूमिका पत्रकार समुदाय को निसंदेह तौर पर संदिग्धदिखाई देती है. ऐसी परिस्थिति में और इन तथ्यों के आलोक में पत्रकारों की ओर से मांग किया गया कि पुलिस जाँच की निष्पक्षता बनाये रखने के लिए इन दोनों ही पुलिस पदाधिकारियो को पटना से बाहर कहीं अविलम्ब स्थानांतरित किया जाये ताकि वे अपने प्रभाव और पुलिस में होने की वजह से अपने परिचय का इस्तेमाल कर इस कांड की जाँच को आगे भी प्रभावित नहीं कर पायें.

बैठक में यह मांग की गयी कि इस कांड के जाँच की निष्पक्षता बनाये रखने की नीयत से यहाँ किन्ही अन्य दूसरे ऐसे पुलिस पदाधिकारियो को पदस्थापित किया जाये जिनकी ईमानदारी,निष्पक्षता और साथ साथ निर्भीकता भी संदेह के परे हो. पत्रकारों ने यह महसूस किया कि इन दोनों ही पदाधिकारियो को हटा कर इस काण्ड की जांच अन्य पदाधिकारियो को सौंपी जाये और आरोपी भाजपा नेत्री,उनके पुत्र सहित अन्य गुंडों को अविलम्ब जेल की सीखचों के अंदर भिजवाने की कार्रवाई की जाये.

बैठक में निर्णय लिया गया कि इस सन्दर्भ में इन मांगों को लेकर पत्रकारों का एक ड़ेलेगेसन बिहार के मुख्य मंत्री श्री नितीश कुमार जी से मिलेगा. पत्रकारों की इस बैठक में भाग लेनेवाले प्रमुख पत्रकारों में बिहार श्रमजीवी पत्रकार यूनियन महासचिव और प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया के सदस्य अरुण कुमार, गंगा प्रसाद (जनसत्ता), नलिन वर्मा (टेलेग्राफ) संतोष सिंह (इंडियन एक्सप्रेस), मनीष कुमार (एन.डी.टी.वी), अशोक मिश्र (इकोनोमिक टाइम्स), आनंद एस. टी. दास (एशियन एज) , सुरूर अहमद (वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार), एस.पी. सिन्हा (लोकमत), प्रियरंजन भारती (राजस्थान पत्रिका), अरुण कुमार (हिंदुस्तान टाइम्स), मनोज चौरसिया (स्टेट्समेन), अजमत जमील सिद्दीकी (आजाद हिंद), अजय कुमार (बिहार टाइम्स), मनोज पाठक (आइ. ए.एन.एस), पारसनाथ (स्वतंत्र फोटो जर्नलिस्ट), फैजान अहमद (टाइम्स ऑफ़ इंडिया) आदि थे.

Source:Arun Kumar

Saturday, January 28, 2012

मेधा पाटकर टाइम्स ऑफ़ इंडिया पटना कर्मियों के समर्थन में

आज टाइम्स ऑफ़ इंडिया के प्रिंटिंग प्रेस की बंदी के कारण हटाये गए ४४ कर्मचारी उस वक़्त हैरान रह गए जब पटना के फ्रेज़र रोड स्थित उनके धरनास्थल पर नर्मदा बचाओ आन्दोलन की नेत्री और टीम अन्ना की महत्वपूर्ण सदस्य और भारत में
अहिंसक जन - आंदोलनों की पहचान सी बन चुकी मशहूर शख्शियत बन चुकी मेधा पाटकर उनके धरना-स्थल पर अपने जनांदोलन के अन्य साथियों के साथ अचानक पहुँच गई.

मालूम हो कि लोकशक्ति अभियान की अपनी बिहार यात्रा के क्रम में वे बिहार में अररिया, फारबिसगंज, कोसी क्षेत्र से होती हुई मुजफ्फरपुर के मरवन में जहां के लोगों ने अपनी लड़ाई के बल पर बालमुकुन्द कम्पनी के एस्बेस्टस कारखाने को
हटाने और भगाने में सफलता प्राप्त की और कांटी थर्मल पॉवर स्टेशन के आस पास के लोगों ने पुलिस और प्रशासन के साथ दो-दो हाथ किये सहित गोपालगंज और सिवान की यात्रा और सभाओं के बाद आज पटना में उनको शहरी गरीबों की एक महत्ती सभा को संबोधीत करना था. इसी क्रम में फ्रेज़र रोड के रास्ते से गुजरते हुए उन्होंने जब धरना स्थल पर टाइम्स ऑफ़ इंडिया के नौकरी से हटाये गए कर्मियों को देखा तो वहां उनकी और उनकी टीम के अन्य साथियों की गाड़ियाँ हठात रुक गई.

मेधा पाटकर को वैसे तो पहले से ही इस धरने की पुरी जानकारी टाइम्स ऑफ़ इंडिया निउज्पेपर एम्प्लाइज यूनियन के अध्यक्ष, बिहार श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के महा-सचिव और भारतीय पत्रकार परिषद् के सदस्य,अरुण कुमार और यूनियन
के सचिव लाल रत्नाकर के माध्यम से थी मगर इस यात्रा के कार्यक्रम में उनका यहाँ धरने पर आना पूर्व-निर्धारित नहीं था.

नर्मदा नेत्री ने बताया कि शायद मीडिया में खबरों के नहीं छपने या विपरीत ख़बरें छपने की आशंका की वजह से ऐसा नहीं
किया गया हो मगर जब वे यहाँ से गुजर रही थीं तो उन्होंने निश्चय किया कि चाहे जो भी हो उन्हें धरना-स्थल पर रुकना ही है और पीड़ित मजदूर साथियों से बात करने और उनको संबोधीत करने के बाद ही आगे बढ़ना है. और इस तरह वे वहां धरने पर पहूँच गई.

मजदूरों से बातचीत के क्रम में जब उन्हें यह पता चला कि मनीसाना वेज बोर्ड के अनुसार पत्रकार और गैर पत्रकार कर्मियों के संघर्ष के क्रम में इलाज के अभाव में दो मजदूरों आनंद राम और यूनियन के अस्सिस्टेंट सेक्रेट्री दिनेश कुमार सिंह की मौत हो चुकी है, प्रेस की बंदी के बाद बेरोजगारी के तनाव से एक मजदूर साथी चंदू पागल होने के कगार पर है, कईयों के परिजनों का इलाज नहीं हो पा रहा है, बच्चों की पढाई बंद हो गई है, बेटियों की शादी रुकी पड़ी है और उनमे से कुछ की जिनकी शादियाँ ठीक हो भी गई हैं उनकी शादी में पैसे का अभाव आड़े आ रहा है यह जानकर मेधा पाटकर भावुक हो उठीं.

मेधा को प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया के सदस्य, साथी अरुण कुमार ने पूरे मामले की जानकारी दी और सभी मजदूर साथियों से परिचय कराया.एक-एक मजदूर से मेधा ने उनका दुःख दर्द सुना और बाद में उनको संबोधित भी किया.

अपने संबोधन में मेधा पाटकर ने मजदूरों को उनके धैर्य, साहस और अपने जुझारूपन के ज़ज्बे को बनाये रखने के लिए शाबाशी देते हुए अपने साथियों और अपने आन्दोलन की ओर से हर संभव समर्थन देने का आश्वासन भी दिया और बताया कि पहले से भी उनकी ओर से इस आन्दोलन को उनकी ओर से नैतिक और कानूनी सहायता के रूप में समर्थन मिल रहा है और आगे भी यह समर्थन और सहयोग जारी रहेगा.

मेधा के इस समर्थन से अभिभूत धरनार्थी मजदूर अपने बैनर के साथ मेधा के समर्थन में शहरी गरीबों की सभा में भी अपनी शिरकत की.

Friday, January 27, 2012

Medha Patkar criticises Bihar govt for creating displacement

Patna, Jan 27 (PTI) Narmada Bachao Andolan leader and social activist Medha Patekar today hit out at Nitish Kumar government in Bihar accusing it of increasing displacement in the name of development. "Displacement of people is increasing in the name of development in Bihar", Patekar alleged when she was stopped at Hartali Chowk while leading a delegation to meet Chief Minister Nitish Kumar.

She also castigated the NDA government in the state for its alleged faulty and discriminatory Bihar Slums Development Policy 2011 and accused the government of "overlooking" the displacement of the poor in urban areas. Patkar alleged that though she wanted to raise these issues during her meeting with the chief minister, she was denied an appointment on the plea that Kumar was preoccupied.

"I also wanted to raise the issues of exploitation, and atrocities taking place in Bihar during the meeting", she said. She alleged that the state government was "soft-pedalling" the issues like breach of embankment of Kosi river in 1998 causing unprecedented floods and Forbesganj police firing.

Patekar demanded that the state government take steps to speed up the inquiry into the twin issues. The social activist was addressing a crowd near Hartali Chowk after the delegation was stopped from meeting the chief minister.

January 27, 2012

Thursday, January 26, 2012

Medha Patkar speaks on Development, Democracy and People's Movement in Patna


Medha Patkar spoke on "Development, Democracy and People's Movement" at A N Sinha Institute of Social Studies, Patna. The other eminent speakers included Arvind Sinha, senior Communist leader, Prof. D M Diwakar, Alok Dhanwa, D N Gautam, Prof. N. K Choudhary and others.

Patkar criticized Nitish Kumar for not coming forward for dialogue. "It is my belief that Congress and socialists always try to avoid dialogue." Earlier, the entire gathering at the public meeting at Kargil chowk walked towards Chief Minister's residence but were stopped at Hartali chowk. Nitish Kumar got a message sent that he is not well. A delegation met S Siddharth, Secretary to the Chief Minister.

मैं बाबा नागार्जुन को खोज रहा हूँ...एक कविता

मुझे अजीब लगता है
ये सुनकर
कि पांच सितारा होटलों में हो रहा है
दुनिया भर के साहित्यकारों का सम्मलेन
क्या आप को भी अजीब नहीं लगता
कि साहित्यकार लिखने के बल पर
पी रहे हैं मिनरल वाटर
डकार रहे विदेशी शराब
कि जिनके कथा या उपन्यास पात्र
मीलों दूर से ढोकर ला रहे पानी
या गटर के पास बिछावन लगाकर
बिता रहे ज़िन्दगी के पल-छिन

टी वी पर दिखलाई जा रही तस्वीरें
कार्यक्रम में शामिल साहित्यकारों की
खाए-पिए अघाए साहित्यकारों की तस्वीरें
आधुनिक वेश-भूषा में खूबसूरत साहित्यकारों के बीच
मैं बाबा नागार्जुन को खोज रहा हूँ
मैं मुंशी प्रेमचंद को खोज रहा हूँ
मैं त्रिलोचन को खोज रहा हूँ
और साहित्यकारों के बारे में
अपने सीमित ज्ञान को
कोस रहा हूँ.........

अनवर सुहैल

बिहार में मेधा पाटकर, मुख्यमंत्री से मुलाक़ात की भी संभावना

२७ जनवरी को ४ बजे ए एन सिन्हा इंस्टिट्यूट, पटना मे ‘विकास, लोकतंत्र, जनांदोलन’ पर मेधा पाटकर का वक्तव्य. इससे पहले ११ बजे कारगिल चौक, पटना मे आम सभा का आयोजन.
उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश के दो चरणों के बाद लोकशक्ति अभियान का कार्यक्रम बिहार में जारी है. इसकी शुरुवात २३ जनवरी को टाउन हाल, अररिया में मनरेगा के मजदूरों का संघ के मुद्दे पर आम सभा से हुआ. आदिवासिओं के ज़मीनों का हस्तांतरण के ऊपर आम सभा इस्तान पब्लिक हॉल, इसलामपुर में, भजनपुर, फारबिसगंज में फारबिसगंज में हुए गोलीकांड के ऊपर आम सभा २४ जनवरी को हुआ.

२५ जनवरी को बीरपुर, सुपौल में कोसी बाढ़ के ऊपर आम सभा, काटी थर्मल पॉवर पलांट, मुज्ज़फ्फरपुर के मुद्दे पर आम सभा, मढ़वन, चैनपुर बिसुनपुर में एस्बेस्टोस फैक्ट्री के मुद्दे पर आम सभा और सीनेट हॉल, मुजफ्फरपुर में सभा हुआ.

गोपाल गंज में आम सभा, पंजवार कॉलेज, रघुनाथपुर के पास, सीवान में शहीद चंद्रशेखर के प्रतिमा का माल्यार्पण, बाबु ब्रज किशोर प्रसाद के मूर्ति का अनावरण एवं लोकतंत्र दिवस के अवसर पर झंडोतोलन २६ जनवरी को और पटना मे रात्री मे आगमन.

बिहार अभियान में मेधा पाटकर, राजेंद्र रवि, मधुरेश, सुनीता, आशु, अमर मिश्रा, राकेश रफ़ीक, जे पी सिंह और नागेश त्रिपाठी, रोशन लाल अग्रवाल, प्रसाद बागवे और अन्य जगह के सामजिक कार्यकर्ता साथी भी साथ है. मेधा और उनके साथियों ने बंगाल के रास्ते बिहार मे प्रवेश किया. नंदीग्राम डायरी के लेखक पुष्पराज पूरी यात्रा और बिहार के गैर जिम्मेदार मीडिया तबके के रवैये के साक्षी रहे. संविधान में निहित अधिकारों, कर्तव्यों और जनता का प्राकृतिक संसाधनों के ऊपर संरक्षण के लिए किया गया हर यात्रा अगर सत्तालोलुप नहीं हो तो वैसे ही स्वतः स्फूर्त जन सैलाब सजीव हो उठता है जैसा इस निस्वार्थ भाव से किये गए यात्रा के दौरान हुआ. इन सब के बीच राजधानी मे मुख्यमंत्री से मुलाक़ात की संभावना के कयास लगते रहे.

इस दौर मे जब संसद मे नुमाइन्दगी करते अधिकतर लोग जनता के प्रति वफादार नहीं रहे, इन यात्राओ का महत्व दूरगामी है. ये ऐसे नहीं जैसे जैसे मंच पर नकली व स्वार्थी और कंपनियों की दलाली य वकालत करते नेता और उनसे डरी सहमी-सी वोट बैंक बनी जनता कोशो दूर बैठ उन्हें बर्दाश्त भर कर लेती है. यह अच्छा ही है कि इस दौर मे सब कुछ रिकॉर्ड हो रहा है. नेताओ और फर्जी और बिकाऊ पत्रकारों का कुछ ही दिनों मे असलियत का खुलासा हो जायेगा. कम्पनियों के पालतू की तरह परवरिश को खुद्दारी की रोजी रोटी तो नहीं ही कहा जा सकता. ऐसे मे जब हर तरफ पतन हो रहा है भाषा के स्तर पर इसका असर दिख रहा है तो ज्यादा कठोर शब्द इस्तेमाल करने से भी क्या हासिल होगा. या तो मोटी होती त्वचा पर इसका असर ही न होगा या त्वचा मे इतनी चिकनाइ आ गयी होगी की अर्थ ही फिसल जाए. यात्रा प्रासंगिक है और मात्र बौधिक विलास न होकर एक कदम ताल है जो जड़ता को तोड़ता है और बर्फीली होती जा रही संवेदनशीलता पर चोट करने की दिशा मे दूरदर्शी प्रतीत होता है, अगर नहीं है तो उसे होना चाहिए.

Wednesday, January 25, 2012

प्रेतलीला का वक्‍त हो चला है: अरुंधती रॉय

प्रेतलीला का वक्‍त हो चला है: अरुंधती रॉय

अरुंधती रॉय
ये मकान है या घर? नए हिंदुस्‍तान का कोई तीर्थ है या फिर प्रेतों के रहने का गोदाम? मुंबई के आल्‍टामाउंट रोड पर जब से एंटिला बना है, अपने भीतर एक रहस्‍य और खतरे को छुपाए लगातार ये सवाल छोड़े हुए है। इसके आने के बाद से चीज़ें काफी कुछ बदल गई हैं यहां। मुझे यहां लाने वाला दोस्‍त कहता है, 'ये लो, आ गया। हमारे नए बादशाह को सलाम करो।'

एंटिला भारत के सबसे अमीर आदमी मुकेश अंबानी का घर है। मैं इसके बारे में पढ़ा करती थी कि ये अब तक का सबसे महंगा घर है, जिसमें 27 माले हैं, तीन हेलीपैड, नौ लिफ्ट, झूलते हुए बागीचे, बॉलरूम, वेदर रूम, जिम, छह फ्लोर की पार्किंग और 600 नौकर। लेकिन खड़े बागीचे की कल्‍पना तो मैंने कभी की ही नहीं थी- घास की एक विशाल दीवार जो धातु के विशालकाय जाल में अंटी हुई है। उसके कुछ हिस्‍सों में घास सूखी थी और तिनके नीचे गिरने से पहले ही एक आयताकार जाली में फंस जा रहे थे। कोई गंदगी नहीं। यहां ''ट्रिकल डाउन'' काम नहीं करता। हम वहां से निकलने लगे, तो मेरी नज़र पास की एक इमारत पर लटके बोर्ड पर पड़ी, उस पर लिखा था, ''बैंक ऑफ इंडिया''।

हां, यहां ''ट्रिकल डाउन'' तो बेकार है, लेकिन ''गश अप'' कारगर है। पेले जाओ। यही वजह है कि सवा अरब के देश में सबसे अमीर सौ लोगों का देश के एक-चौथाई सकल घरेलू उत्‍पाद पर कब्‍ज़ा है।

हिंदुस्‍तान में हमारे जैसे 30 करोड़ लोग, जो आर्थिक सुधारों से उपजे मध्‍यवर्ग यानी बाजार की पैदाइश हैं, उन ढाई लाख किसानों की प्रेतात्‍माओं के साथ रहते हैं, जिन्‍होंने कर्ज के बोझ तले अपनी जान दे दी। हमारे साथ चिपटे हैं उन 80 करोड़ लोगों के प्रेत, जिन्‍हें बेदखल कर डाला गया, जिनका सब कुछ छीन लिया गया, जो रोज़ाना 25 रुपए से भी कम पर जि़ंदा हैं ताकि हमारे लिए रास्‍ते बनाए जा सकें।

अकेले अंबानी की अपनी औकात 20 अरब डॉलर से भी ज्‍यादा की है। सैंतालीस अरब डॉलर की बाजार पूंजी वाली रिलायंस इंडस्‍ट्रीज़ लिमिटेड में उनकी मालिकाना हिस्‍सेदारी है। इसके अलावा दुनिया भर में इस कंपनी के कारोबारी हित फैले हैं। आरआईएल के पास इनफोटेल नाम की कंपनी का 95 फीसदी हिस्‍सा भी है, जिसने कुछ हफ्ते पहले ही एक मीडिया समूह में बड़ी हिस्‍सेदारी खरीदी थी। ये मीडिया समूह समाचार और मनोरंजन चैनल चलाता है। 4जी ब्रॉडबैंड का लाइसेंस अकेले इनफोटेल के पास है। इसके अलावा आरआईएल के पास अपनी एक क्रिकेट टीम भी है।

आरआईएल उन मुट्ठी भर कंपनियों में से एक है जो इस देश को चलाती हैं। इनमें कुछ खानदानी कारोबारी हैं। इसके अलावा दूसरी कंपनियों में टाटा, जिंदल, वेदांता, मित्‍तल, इनफोसिस, एस्‍सार और दूसरी वाली रिलायंस (एडीएजी) है जिसके मालिक मुकेश के भाई अनिल हैं। इन कंपनियों के बीच आगे बढ़ने की होड़ अब यूरोप, मध्‍य एशिया, अफ्रीका और लातिन अमेरिका तक फैल चुकी है।

मसलन, टाटा की अस्‍सी देशों में सौ से ज्‍यादा कंपनियां हैं। भारत में निजी क्षेत्र की बिजली कंपनियों में टाटा सबसे बड़ी है।

''गश अप'' का मंत्र किसी कारोबारी को दूसरे क्षेत्र के कारोबार में मालिकाना लेने से नहीं रोकता है, लिहाज़ा आपके पास जितना ज्‍यादा है, आप उतना ही ज्‍यादा और कमा सकते हैं। इस सिलसिले में हालांकि एक के बाद एक इतने दर्दनाक घपले-घोटाले सामने आए हैं जिनसे साफ हुआ है कि कॉरपोरेशन किस तरह नेताओं को, जजों को, नौकरशाहों और यहां तक कि मीडिया घरानों को खरीद लेते हैं, इस लोकतंत्र को खोखला कर देते हैं। बस, कुछ रवायतें बची रह जाती हैं। बॉक्‍साइट, आइरन ओर, तेल, गैस के बड़े-बड़े भंडार जिनकी कीमत खरबों डॉलर में है, कौडि़यों के मोल इन निगमों को बेच दिए गए हैं। ऐसा लगता है कि हाथ घुमाकर मुक्‍त बाज़ार का कान पकड़ने की शर्म तक नहीं बरती गई। भ्रष्‍ट नेताओं और निगमों के गिरोह ने इन भंडारों और इनके वास्‍तविक बाज़ार मूल्‍य को इतना कम कर के आंका कि जनता की अरबों की गाढ़ी कमाई इनकी जेब डकार गई है।

इससे जो असंतोष उपजा है, उससे निपटने के लिए इन निगमों ने अपने शातिर तरीके ईजाद किए हैं। अपने मुनाफे का एक छटांक वे अस्‍पतालों, शिक्षण संस्‍थानों और ट्रस्‍टों को चलाने में खर्च कर देते हैं। ये संस्‍थान बदले में एनजीओ, अकादमिकों, पत्रकारों, कलाकारों, फिल्‍मकारों, साहित्यिक आयोजनों और यहां तक कि विरोध प्रदर्शनों व आंदोलनों को फंडिंग करते हैं। ये दरअसल धर्मार्थ कार्य के बहाने समाज में राय कायम करने वाली ताकतों को अपने प्रभाव में लेने की कवायद है। इन्‍होंने रोज़मर्रा के हालात में इस तरह घुसपैठ बना ली है, सहज से सहज चीज़ों पर ऐसे कब्‍ज़ा कर लिया है कि इन्‍हें चुनौती देना दरअसल खुद ''यथार्थ'' को चुनौती देने जैसा अजीबोगरीब (या कहें रूमानी) लगता है। इसके बाद तो इनका रास्‍ता बेहद आसान हो जाता है, कह सकते हैं कि इनके अलावा कोई चारा ही नहीं रह जाता।

मसलन, देश के दो सबसे बड़े चैरिटेबल ट्रस्‍ट टाटा चलाता है (उसने पांच करोड़ डॉलर हारवर्ड बिज़नेस स्‍कूल को दान में दिया)। माइनिंग, मेटल और बिजली के क्षेत्र में बड़ी हिस्‍सेदारी रखने वाला जिंदल समूह जिंदल ग्‍लोबल लॉ स्‍कूल चलाता है। जल्‍दी ही ये समूह जिंदल स्‍कूल ऑफ गवर्नमेंट एंड पब्लिक पॉलिसी भी खोलेगा। सॉफ्टवेयर कंपनी इनफोसिस के मुनाफे से बना न्‍यू इंडिया फाउंडेशन सामाजिक विज्ञानियों को पुरस्‍कार और वजीफे देता है। अब ऐसा लगता है कि मार्क्‍स का क्रांतिकारी सर्वहारा पूंजीवाद की कब्र नहीं खोदेगा, बल्कि खुद पूंजीवाद के पगलाए महंत इस काम को करेंगे, जिन्‍होंने एक विचारधारा को आस्‍था में तब्‍दील कर डाला है। ऐसा लगता है कि उन्‍हें सच्‍चाई दिखाई ही नहीं देती, सही गलत में अंतर करने की ताकत ही नहीं रह गई। मसलन, क्‍लाइमेट चेंज को ही लें, कितना सीधा सा विज्ञान है कि पूंजीवाद (चीन वाली वेरायटी भी) इस धरती को नष्‍ट कर रहा है। उन्‍हें ये बात समझ ही नहीं आती। ''ट्रिकल डाउन'' तो बेकार हो ही चुका था। अब ''गश अप'' की बारी है। ये संकट में है।

मुंबई के गहराते काले आकाश पर जब सांध्‍य तारा उग रहा होता है, तभी एंटिला के भुतहे दरवाज़े पर लिनेन की करारी शर्ट में लकदक खड़खड़ाते वॉकी-टॉकी थामे दरबान नज़र आते हैं। आंखें चौंधियाने वाली बत्तियां भभक उठती हैं। शायद, प्रेतलीला का वक्‍त हो चला है।

(साभार: फाइनेंशियल टाइम्‍स)
(अनुवाद: अभिषेक श्रीवास्‍तव)

Sunday, January 8, 2012

प्रेस - आमंत्रण: आधार पर संसदीय समिति की रिपोर्ट व जनसँख्या रजिस्टर परियोजना का अर्थ

प्रेस - आमंत्रण
गोलमेज़ परिचर्चा
विषय: आधार पर संसदीय समिति की रिपोर्ट व जनसँख्या रजिस्टर परियोजना का अर्थ

दिनांक: १० जनवरी, २०१२, समय: १० बजे - ४ बजे तक
स्थान: ए न सिन्हा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल स्टडीज़, पटना
आयोजक:
ए न सिन्हा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल स्टडीज़, पटना, इंसाफ, सिटिज़न्स फोरम फॉर सिविल लिबर्टीस

Press Invite

Round Table

on

Report of Parliamentary Standing Committee on Finance & Its Meaning for Aadhaar (UID) project & National Population Register (NPR) for Multipurpose National Identity Cards (MNIC)



Date: January 10, 2012, Time: 10.30 am -4.00 pm

Venue: A N Sinha Institute of Social Studies, Patna


Organized by

A N Sinha Institute of Social Studies, Patna Indian Social Action Forum (INSAF), New Delhi, Citizens Forum for Civil Liberties (CFCL), New Delhi

Friday, January 6, 2012

Invitation for a Round Table in Patna on Aadhaar/UID/NPR/MNIC & Parliamentary Report

Invitation for a Round Table in Patna on Aadhaar/UID/NPR/MNIC & Parliamentary Report on January 10, 2012

Dear Madam/Sir,

We know that Parliamentary Standing Committee (PSC) on Finance on National Identification Authority of India (NIDAI) Bill, 2011 has questioned the legality and constitutionality of Government of India to introduce Unique Identification (UID) Number based on biometric data without legislative mandate.

As a follow up of the Round Table on Unique Identification (UID) Number & Bihar Govt's role on 3rd January, 2011, National Seminar on Idea of Unique Identitification (UID) Number Project on February 21, 2011 at AN Sinha Institute of Social Studies (ANISS), Patna and the PSC report, a Round Table is planned on PSC Report and its Meaning for Unique Identification (UID) Number & Union Home Ministry's National Population Register (NPR) for Multipurpose National Identity Cards (MNIC) on January 10 , 2012.

In the aftermath of this report of the PSC the ongoing collection of biometric data and the objection of some state governments without the passage of proposed Right to Privacy Bill, there is a need to rigorously examine its ramifications for the present and future generations of Bihar.

Many imminent intellectuals from cross section of the society had expressed their concerns towards its implications costing liberty of citizens and sovereignty of the country. The same has been vindicated by the PSC report.

In order to deliberate on these issues a "Round Table on PSC Report and its Meaning for Unique Identification (UID) Number & National Population Register (NPR) for Multipurpose National Identity Cards (MNIC)" is being organised jointly by A N Sinha Institute of Social Studies, Indian Social Action Forum (INSAF) and Citizen Forum for Civil Liberties (CFCL) on January 10 , 2012 from 10.30 am -4.00 pm.

Imminent scholars, leaders, experts and activists have been invited to participate in deliberations.

In view of your expertise and imminent concerns, we take this opportunity to invite you to participate in deliberations to reach an objective understanding on this subject, to make this Round Table successful and to adopt a resolution. Tentative programme is given below for your perusal.

warm regards
Gopal Krishna
on behalf of
Citizen Forum for Civil Liberties, New Delhi
A N Sinha Institute of Social Studies (ANSISS), Patna
Indian Social Action Forum (INSAF), New Delhi