इस चुनाव में देश की निगाह हम बनारसियों पर रहेगी। यह शहर न सिर्फ भगवान शिव के लिए
जाना जाता है अपितु महात्मा बुद्ध ,कबीर
एवं रैदास की कर्मस्थली रही है।
ऐसी दशा में अगले चुनाव में हमारा मतदान पूरे देश के लिये एक सन्देश होगा। इस चुनाव में मुख्य धारा के राजनैतिक दलों पर बहुत से सवाल तैर रहें हैं जिस पर काशीवासियों को गौर करना जरूरी
है |
*महंगाई
के मुद्दे पर लड़े जा रहे चुनाव में अबतक की सबसे सबसे महंगी रैलियां आयोजित हों रहीं
हैं। इस बात के पूरे संकेत हैं
कि बनारस में सभी प्रमुख उम्मीदवारों द्वारा करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाए जा रहे हैं। दलों द्वारा चुनाव
खर्च पर आज के कानून के तहत कोई भी सीमा
नहीं हैं। किसी भी दल ने इस सीमा के निर्धारण की बात नहीं उठाई है। इसके फलस्वरूप विदेशी कंपनियों, काले बाजारियों और देशी-विदेशी पूंजीपतियों का पैसा अबाध रूप से चुनाव में खर्च होता
है।
*पिछले २०
वर्षों में हुए सभी बड़े घोटालों की जड़ में सरकारी नियंत्रण समाप्त किए जाने, निजीकरण,उदारीकरण की नीतियां हैं। पिछले आठ सालों में चार सरकारों ने उद्योगपतियों को ३१९ खरब
रुपयों की छूट दी है। इसके अलावा राज्य सरकारों द्वारा सस्ती जमीन, बिजली, पानी, खनिज देना अलग। यह इस गरीब देश के खजाने की एक बड़ी लूट है। चुनाव लड़ रहे सभी दल या तो इसमें शामिल हैं
या इस पर चुप हैं ।
* जबरदस्त बेरोजगारी के कारण लाखों नौजवान अपना घर छोड़कर जाने को
मजबूर हो रहे हैं। निजीकरण-उदारीकरण
की नीतियों के कारण लाखों छोटे उद्योग,कुटीर उद्योग,करघे बन्द हुए हैं। इस रोजगारनाशी विकास को पलटने के लिए कौन तैयार है ?
पूर्वी उत्तर प्रदेश ,बिहार ,झारखण्ड और ओड़ीशा जैसे राज्यों के नौजवानों की श्रम-शक्ति से गुजरात-मुंबई में चकाचौंध पैदा की जाती है।इन प्रवासी श्रमिकों पर सिर पर मनसे -शिव सेना-भाजपा के द्वेष की तलवार लटकती रहती है ।
महात्मा गांधी के नाम पर चल रही मनरेगा का स्वरूप
दिल्ली से तय होता है जिसके
फलस्वरूप गड्ढ़ा खोदने और फिर उसे पाटने जैसा अनुत्पादक श्रम कराया जाता है। पूरे वर्ष काम की गारंटी मिलनी चाहिए। इस योजना में
चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के वेतन के बराबर मजदूरी क्यों न हो ? खेती के साथ साथ बुनकरी,शिल्पकारी एवं दस्तकारी तथा
अन्य छोटे उद्योगों के साथ इस योजना को जोड़ा जाना चाहिए। इस योजना को बनाने और क्रियान्वयन का अधिकार
पंचायत स्तर पर होना चाहिए।
*पड़ोसी स्कूल पर आधारित साझा स्कूल प्रणाली से ही पूरा देश शिक्षित हो सकेगा। आज शिक्षा के निजीकरण द्वारा शिक्षा आम आदमी की पहुंच के
बाहर हो गई है । शिक्षा में भेद- भाव समाप्त ए बगैर कथित 'शिक्षा का अधिकार' वैसा ही है मानो किसी भूखे को कागज के टुकड़े पर लिख कर दे दिया जाए - 'रोटी'!
* देश की ४० फीसदी रोजगार कृषि पर आधारित है लेकिन मुख्य राजनैतिक
दलों के एजेण्डे से खेती किसानी गायब है।
कृषि उपज के मूल्य निर्धारण की बाबत चुनाव लड़ रही
सभी पार्टियों में समझ का अभाव
है। पिछले १९ वर्षों में देश भर में तीन लाख से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं । देश के अन्नदाता की यह बदहाली क्यों? कथित विकास परियोजनाओं के लिए भूमि-अधिग्रहण
किसानों की सहमति और उनकी शर्तों को मंजूर किए बगैर नहीं होना चाहिए।
* देश की लगभग ५० फीसदी रोजगार खुदरा ब्यापार और लघु उद्योगों पर आधारित है
लेकिन मुख्य राजनैतिक दल इसको बचाने की कौन कहे
इसपर चुप्पी साधकर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के एजेंट बने हुए हैं।
मुख्य विपक्षी दल ने भले ही मल्टी ब्राण्ड खुदरा
व्यापार का कभी विरोध किया अब
उसकेका प्रधानमंत्री के उम्मीदवार विदेशी पत्रिकाओं के माध्यम से संदेश दे रहे हैं,'कि भारत के छोटे व्यापारियों को बड़े खिलाड़ियों से स्पर्धा के लिए तैयार रहना होगा।' यानि वाल मार्ट जैसी कम्पनियों को आश्वस्त कर रहे हैं।
* धार्मिक उन्माद के भरोसे चुनाव गंगा को पार करने वाली शक्तियां इस देश को
कब गृहयुद्ध में झोंक देंगी काशीवासियों को इस पर विचार करना होगा।
* बनारस की जनता ने 'काशी, मथुरा बाकी है' की बात को अहिल्याबाई होल्कर द्वारा विश्वनाथ मन्दिर के जीर्णोद्धार के समय ही खारिज कर दिया
था। ज्ञानवापी मस्जिद और
विश्वनाथ मन्दिर में जाने के मार्ग भी उसी समय काशी की विद्वत परिषद तथा आलिमों द्वारा निर्धारित कर दिए गए थे जिसके जरिए आज तक बिना विवाद लोग अपनी आस्था का पालन कर पा रहे हैं।
विधायिकाओं में महिला आरक्षण के मुद्दे पर
सभी दल मानो एक मत होकर चुप्पी साधे हुए हैं। भारतीय समाज में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चले आ रहे जातिगत भेदभाव और
एकाधिकार को तोड़ने का एक औजार आरक्षण
है। सिर्फ एक बार ही आरक्षण देने की मांग संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है।
* धर्म की राजनीति करने वाले राजनैतिक दलों द्वारा धर्म के अंदर की बुराइयों जैसे
जातीय एवं स्त्री के प्रति भेदभाव एवं गैरबराबरी , दहेज, अंधविश्वास तथा भ्रष्ट
तरीके से धनपशु बनें लोगों के सामाजिक बहिष्कार का कार्यक्रम न करके मात्र चुनाव के समय धर्म को कैश करने
की प्रवृत्ति पर काशीवासियों
को सवाल खड़ा करना होगा। स्त्रियों पर होने वाले अत्याचार की बाबत न्यायमूर्ति जस्टिस वर्मा की अधिकांश सिफारिशें
ठण्डे बस्ते में डाल दी गई हैं।
हम इन्हें पूरी तरह लागू करने की मांग करते हैं।
* बनारसी हैंडलूम पावरलूम से पिटने के कारण बुनकरो की बहुत बड़ी जनसंख्या
कृषि मजदूरी या अन्य मजदूरी करने
को बाध्य हो गयी है तथा बदहाल है ।
*हैण्डलूम और पावरलूम के बीच स्पर्धा न हो इसके लिए अंगूठा-काट
कपड़ा नीति को बदलना होगा। कपड़ा नीति बनाने में
बुनकरों के सही नुमाइन्दे शामिल करने होंगे,निर्यातकों को नहीं रखना
होगा। चीनी ,जापानी कम्प्यूटर-आधारित
मशीनों के कारण बुनकरों की बदहाली ,भुखमरी की स्थिति बनी है। ऐसी मशीनों पर तत्काल रोक लगाई जाए।
* गंगा को स्वक्छ और निर्मल बनाने के लिए राजनैतिक दलों द्वारा कौन
सी कार्ययोजना बनाई गयी है ? दुनिया की सबसे ज्यादा
प्रदूषित नदी दमन गंगा गुजरात में है यह हम न भूलें।
* बनारस में चुनाव मैदान में उतरे सभी दलों में व्यक्ति केन्द्रित संस्कृति हावी है। सारे फैसले शीर्ष पर लिए जाते हैं और नीचे थोपे जाते हैं।
* बनारस में चुनाव मैदान में उतरे सभी दलों में व्यक्ति केन्द्रित संस्कृति हावी है। सारे फैसले शीर्ष पर लिए जाते हैं और नीचे थोपे जाते हैं।
* हमारे राजनैतिक दल किसके चंदे से चहकते हैं इसकी जानकारी के लिए राजनैतिक
दलों को आर ० टी ० आई ० के दायरे
में लाए जाने के पक्ष में बनारस से चुनाव लड़ रहे राजनैतिक दल हैं या नहीं ? ठीक इसी प्रकार स्वयंसेवी संस्थाओं पर भी जनसूचना अधिकार लागू किया
जाना चाहिए।
* जनलोकपाल कानून के दाएरे में कॉर्पोरेट - भ्रष्टाचार को लाने के
अलावा औपनिवेशिक नौकरशाही के
ढांचे को बदलने के बात बनारस से चुनाव में लड़ने वाले किसी दल ने नहीं किया है।
*केन्द्र सरकार
द्वारा १२४(अ), UAPA,CSPA तथा AFSPA जैसे कानूनों की मदद से शान्तिपूर्ण जन आन्दोलनों के दबाने के प्रयोग किए जा रहे हैं। सबसे
लम्बे समय से अहिंसक प्रतिकार कर
रही लौह महिला इरोम शर्मिला की मांग का समर्थन करते हुए हम ऐसे कानूनों
की पुनर्विवेचना की उम्मीद करते हैं ।
साझा संस्कृति मंच वाराणसी के नागरिकों से आवाहन करता है कि अपने अमूल्य
मत का प्रयोग करने के पहले इन
मुद्दों पर विचार करें तथा वोट देने के बाद भी राजनीति पर निगरानी रखें और कारगर हस्तक्षेप जारी रखें।
निवेदक,
साझा संस्कृति मंच
लोकविद्या
जन आंदोलन, दिलीप कुमार 'दिली' 9452824380
प्रेरणा कला मंच, मुकेश झंझरवाला, 9580649797
विश्व ज्योति जन संचार केन्द्र, फादर आनन्द 9236613228
आशा ट्रस्ट, वल्लभाचार्य पाण्डे, 9415256848
फेरी-पटरी ठेला व्यवसायी समिति, प्रमोद निगम, 945114144
सूचना का अधिकार अभियान -उ.प्र , धनन्जय त्रिपाठी, 7376848410
विजन, जागृति राही, 9450015899
गांधी विद्या संस्थान, डॉ मुनीजा खान 9415301073
बनारस जरदोज फनकार यूनियन, सैय्यद मकसूद अली , 8601538560
नारी एकता , डॉ स्वाति, 9450823732
समाजवादी जनपरिषद, चंचल मुखर्जी, 8765811730
समाजवादी जनपरिषद, चंचल मुखर्जी, 8765811730
सर्वोदय विकास समिति, सतीश कुमार सिंह , 9415870286
बनारस पटरी व्यवसाई संगठन, काशीनाथ , 9415992284
लोक समिति , राजा तालाब, नन्दलाल
मास्टर , 9415300520
लोक चेतना समिति, डॉ नीति भाई , 2616289
अस्मिता , फादर दिलराज , 9451173472
काशी कौमी एकता मंच, सुरेन्द्र चरण एड. 9335472111
बावनी बुनकर पंचायत , अब्दुल्लाह अन्सारी 9453641094
सर्व सेवा संघ, अमरनाथ भाई 9389995502
मानवाधिकार जन निगरानी समिति, डॉ लेनिन रघुवंशी 9935599333
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