नरेन्द्र मोदी ने दावा किया है कि जिस तरह उन्होंने साबरमती नदी को ठीक
किया है उसी तरह वे गंगा को भी ठीक कर देंगे। यह दावा अहंकार से भरपूर है
और पूरी सच्चाई बयान नहीं करता।
साबरमती नदी गंगा की तुलना में बहुत छोटी नदी है। क्या साबरमती नदी पर जनसंख्या और गंदगी का इतना बोझ है जितना गंगा पर पड़ता है? दूसरा नरेन्द्र मोदी यह नहीं बता रहे हैं कि साबरमती में नर्मदा, जो एक बड़ी नदी है, का पानी डाला जाता है। नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकंटक है और इसके किनारे कोई बड़े कारखाने या जबलपुर को छोड़कर कोई बड़े शहर न होने के कारण यह नदी पहले से ही काफी साफ है। यदि सारी दुनिया अपने पाप धोने गंगा में नहाने आती है तो नर्मदा के इलाके में यह भी मान्यता है कि साल में एक दिन गंगा गाय का रूप धर कर नर्मदा में नहाने जाती हैं। एक साफ बड़ी नदी का पानी एक छोटी प्रदूषित नदी में डाल कर उसे साफ करने का दावा करना लोगों के साथ धोखा है। मोदी बताएं की गंगा को साफ करने के लिए इसमें किस नदी का पानी डालेंगे?
काषी हिन्दू वि.वि. के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के तीसरे वर्ष के छात्रों ने गंगा पर एक अध्ययन करते हुए पाया कि गंगा नदी के भौतिक गुण बहुत संतोषजनक नहीं हैं। डिसॉल्वड ऑक्सीजन (न्यूनतम 5 मिलीग्राम प्रति लीटर होना चाहिए) वाराणसी के राजघाट में 2.2 मि.ग्रा. प्रति लीटर और षिवालिक घाट में अधिकतम 9.8 मि.ग्रा. प्रति लीटर है। बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमाण्ड (अधिकतम 3 मिलीग्राम प्रति लीटर होना चाहिए) षिवालिक घाट में 1.9 मि.ग्रा. प्रति लीटर और राजघाट में 87.5 मि.ग्रा. प्रति लीटर है। केमिकल आक्सीजन डिमाण्ड (अधिकतम 3-4 मिलीग्राम प्रति लीटर होना चाहिए) षिवालिक घाट में 5.9 मि.ग्रा. प्रति लीटर और राजघाट में 170.5 मि.ग्रा. प्रति लीटर है।
वाराणसी में कुल कोलिफॉर्म (अधिकतम पीने के लिए 50 मोस्ट प्रॉबेबल नम्बर प्रति 100 मि.ली. और नहाने के पानी के लिए 500 मोस्ट प्रॉबेबल नम्बर प्रति 100 मि.ली. होनी चाहिए)। परन्तु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा पाया गया कि वाराणसी के अपस्ट्रीम में 8817 मोस्ट प्रॉबेबल नम्बर प्रति 100 मि.ली. तथा डाऊनस्ट्रीम में 49917 मोस्ट प्रॉबेबल नम्बर प्रति 100 मि.ली. है। यह प्रदूषण का स्तर इतना खतरनाक है कि इससे कैंसर, डायरिया, कॉलेरा, हेपाटाईटिस और डिसेण्टरी जैसी बिमारी हो सकती है। यहां का पानी नहाने लायक नहीं रह गया है।
वाराणसी में अब तक गंगा की सफाई पर 429 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं किंतु उपर्युक्त आंकड़ों से साफ है कि गंगा के प्रदूषण पर अभी कोई विशेष असर नहीं पड़ा है। जपान द्वारा दी गई 496.9 करोड़ रुपए की राषि से हाने वाले काम का सिर्फ 12 प्रतिषत ही हो पाया है।
अभी तक तो गंगा की सफाई के प्रयास विफल रहे हैं। नरेन्द्र मोदी कौन सा जादू करने वाले हैं? साबरमती रिवर फ्रंट बनाने के लिए नदी के किनारे से उजाड़े गए लोग कहां गए, उनका पुनर्वास किया गया अथवा नहीं यह किसी को नहीं मालूम। गंगा का विकास साबरमती की तर्ज पर होगा तो गंगा के किनारे रहने व व्यवसाय करने वाले लोग भी उजाड़े जाएंगे। मोदी यहां विकास करने आ रहे हैं अथवा विनाष ?
अपने अंदर यह अहंकार रखना कि हम मनुष्य तो क्या प्रकृति को भी नियंत्रित कर सकते हैं नरेन्द्र मोदी की समझ की सीमाओं को प्रदर्षित करता है।
संदीप पाण्डेय, उपाध्यक्ष, सोषलिस्ट पार्टी (इण्डिया) व विजिटिंग प्रोफेसर, केमिकल इंजीनियरिंग, आई.आई.टी., का.हि.वि.वि., वाराणसी
साबरमती नदी गंगा की तुलना में बहुत छोटी नदी है। क्या साबरमती नदी पर जनसंख्या और गंदगी का इतना बोझ है जितना गंगा पर पड़ता है? दूसरा नरेन्द्र मोदी यह नहीं बता रहे हैं कि साबरमती में नर्मदा, जो एक बड़ी नदी है, का पानी डाला जाता है। नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकंटक है और इसके किनारे कोई बड़े कारखाने या जबलपुर को छोड़कर कोई बड़े शहर न होने के कारण यह नदी पहले से ही काफी साफ है। यदि सारी दुनिया अपने पाप धोने गंगा में नहाने आती है तो नर्मदा के इलाके में यह भी मान्यता है कि साल में एक दिन गंगा गाय का रूप धर कर नर्मदा में नहाने जाती हैं। एक साफ बड़ी नदी का पानी एक छोटी प्रदूषित नदी में डाल कर उसे साफ करने का दावा करना लोगों के साथ धोखा है। मोदी बताएं की गंगा को साफ करने के लिए इसमें किस नदी का पानी डालेंगे?
काषी हिन्दू वि.वि. के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के तीसरे वर्ष के छात्रों ने गंगा पर एक अध्ययन करते हुए पाया कि गंगा नदी के भौतिक गुण बहुत संतोषजनक नहीं हैं। डिसॉल्वड ऑक्सीजन (न्यूनतम 5 मिलीग्राम प्रति लीटर होना चाहिए) वाराणसी के राजघाट में 2.2 मि.ग्रा. प्रति लीटर और षिवालिक घाट में अधिकतम 9.8 मि.ग्रा. प्रति लीटर है। बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमाण्ड (अधिकतम 3 मिलीग्राम प्रति लीटर होना चाहिए) षिवालिक घाट में 1.9 मि.ग्रा. प्रति लीटर और राजघाट में 87.5 मि.ग्रा. प्रति लीटर है। केमिकल आक्सीजन डिमाण्ड (अधिकतम 3-4 मिलीग्राम प्रति लीटर होना चाहिए) षिवालिक घाट में 5.9 मि.ग्रा. प्रति लीटर और राजघाट में 170.5 मि.ग्रा. प्रति लीटर है।
वाराणसी में कुल कोलिफॉर्म (अधिकतम पीने के लिए 50 मोस्ट प्रॉबेबल नम्बर प्रति 100 मि.ली. और नहाने के पानी के लिए 500 मोस्ट प्रॉबेबल नम्बर प्रति 100 मि.ली. होनी चाहिए)। परन्तु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा पाया गया कि वाराणसी के अपस्ट्रीम में 8817 मोस्ट प्रॉबेबल नम्बर प्रति 100 मि.ली. तथा डाऊनस्ट्रीम में 49917 मोस्ट प्रॉबेबल नम्बर प्रति 100 मि.ली. है। यह प्रदूषण का स्तर इतना खतरनाक है कि इससे कैंसर, डायरिया, कॉलेरा, हेपाटाईटिस और डिसेण्टरी जैसी बिमारी हो सकती है। यहां का पानी नहाने लायक नहीं रह गया है।
वाराणसी में अब तक गंगा की सफाई पर 429 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं किंतु उपर्युक्त आंकड़ों से साफ है कि गंगा के प्रदूषण पर अभी कोई विशेष असर नहीं पड़ा है। जपान द्वारा दी गई 496.9 करोड़ रुपए की राषि से हाने वाले काम का सिर्फ 12 प्रतिषत ही हो पाया है।
अभी तक तो गंगा की सफाई के प्रयास विफल रहे हैं। नरेन्द्र मोदी कौन सा जादू करने वाले हैं? साबरमती रिवर फ्रंट बनाने के लिए नदी के किनारे से उजाड़े गए लोग कहां गए, उनका पुनर्वास किया गया अथवा नहीं यह किसी को नहीं मालूम। गंगा का विकास साबरमती की तर्ज पर होगा तो गंगा के किनारे रहने व व्यवसाय करने वाले लोग भी उजाड़े जाएंगे। मोदी यहां विकास करने आ रहे हैं अथवा विनाष ?
अपने अंदर यह अहंकार रखना कि हम मनुष्य तो क्या प्रकृति को भी नियंत्रित कर सकते हैं नरेन्द्र मोदी की समझ की सीमाओं को प्रदर्षित करता है।
संदीप पाण्डेय, उपाध्यक्ष, सोषलिस्ट पार्टी (इण्डिया) व विजिटिंग प्रोफेसर, केमिकल इंजीनियरिंग, आई.आई.टी., का.हि.वि.वि., वाराणसी
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