Tuesday, November 3, 2015

लेखकों, इतिहासकारों, वैज्ञानिकों, साहित्यकारों की न सही, मूडीज़ की ही सुनिए मोदी जी अमलेन्दु उपाध्याय

लेखकों, इतिहासकारों, वैज्ञानिकों, साहित्यकारों की न सही, मूडीज़ की ही सुनिए मोदी जी

अमलेन्दु उपाध्याय

देश में बढ़ती असहिष्णुता की घटनाओं को लेकर पुरस्कार वापसी की मुहिम जहां और तेज हो गई है वहीं अपनी जिम्मेदारियों से बेपरवाह केंद्र सरकार न केवल असहिष्णुता पैलाने वाले राष्ट्रविरोधी तत्वों का संरक्षण कर रही है बल्कि इस राष्ट्रविरोधी कृत्य का विरोध करने वाले साहित्यकारों, लेखकों, इतिहासकारों के विरूद्ध मोर्चा खोल रही है। केंद्र सरकार ने इस पूरे घटनाक्रम को गहरी साजिश बताया है तो वहीं साहित्यकारों, फिल्मकारों और वैज्ञानिकों के बाद इतिहासकार भी केंद्र सरकार की इस नीति के विरोध में उतर आए हैं।

पुरस्कार लौटाए जाने के मुद्दे पर मोदी सरकार की ओर से दो बड़े केंद्रीय मंत्रियों के बयान सामने आए। पहले ब्लॉग लिखकर साहित्यकारों पर हमला बोल चुके वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि पुरस्कार वापस करने वालों में अधिकतर कट्टर भाजपा विरोधी तत्व हैं, आप उनके ट्वीट और विभिन्न सामाजिक एवं राजनीतिक मुद्दों के रुख को देखें। तो, गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि यह पूरी घटना राजनीतिक षड्यंत्र है।

प्रो. रोमिला थापर, इरफान हबीब, डी.एन झा, मृदुला मुखर्जी व नीलाद्रि भट्टाचार्य सहित देश के जाने-माने 53 इतिहासकारों ने एक संयुक्त बयान में कहा कि कभी किसी पुस्तक के लोकार्पण में चेहरे पर कालिख पोत दी जा रही है तो कहीं अफवाह पर हत्या हो रही है। इतिहासकारों ने अपने कड़े बयान में कहा है सरकार ऐसा माहौल बनाए कि कोई भी अपनी बात कह सके।

कलाकार व फिल्मकार भी देश में बढ़ रही असहिष्णुता के खिलाफ़ लगातार अपने सम्मान लौटा रहे हैं। दस फिल्मकारों ने पुणे फिल्म संस्थान के हड़ताल कर रहे छात्रों का समर्थन करते हुए अपने पुरस्कार लौटाए। इनमें मशहूर फिल्म निर्देशक दिबाकर बनर्जी और "राम के नाम""जय भीम" जैसे डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता आनंद पटवर्द्धन शामिल हैं।

अब इन लेखकों, साहित्यकारों, वैज्ञानिकों व इतिहासकारों के साथ-साथ राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी सरकार को फिर चेताया है, तो भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने भी असहिष्णुता को देश की तरक्की में बाधक बताया। राष्ट्रपति ने कहा कि भारत अपनी समावेशी और सहिष्णुता की ताकत के कारण ही फला-फूला है। उन्होंने कहा, "हमारा देश समावेशी शक्ति और सहिष्णुता के कारण फला-फूला है। हमारे बहुलतावादी चरित्र ने समय की कई परीक्षाएं पास की हैं।"

अब अगर सरकार के आरोपों की बात की जाए तो अभी तक साहित्यकार और लेखक ही वामपंथी और कांग्रेसी थे। क्या अब सरकार इनके साथ-साथ वैज्ञानिकों, और इतिहासकारों, राष्ट्रपति और रघुराम राजन को भी वामपंथी और कांग्रेसी कहकर खारिज कर देगी?

चलिए मान भी लिया जाए कि यह सब सरकार के खिलाफ षड़यंत्र है और यह मुहिम चलाने वाले वामपंथी व कांग्रेसी हैं। और जैसा कि भोपाल गैस त्रासदी की जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड, जो अब डाउ केमिकल्स हो चुकी है, के कॉरपोरेट वकील की ख्याति ऱखने वाले वित्त मंत्री अरुण जेटली कहते हैं कि ये अधिकतर कट्टर भाजपा विरोधी तत्व हैं, आप उनके ट्वीट और विभिन्न सामाजिक एवं राजनीतिक मुद्दों के रुख को देखें। तो जेटली जी से सवाल यह भी बनता है कि 90 सालों में संघ परिवार कोई भी लेखक, इतिहासकार, वैज्ञानिक, साहित्यकार पैदा क्यों नहीं कर पाया? ऐसा क्यों है कि जनता के सरोकारों और देशहित के महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी बात रखने वाले लेखक, इतिहासकार, वैज्ञानिक, साहित्यकार वामपंथी और कांग्रेसी हैं।

दरअसल ऐसा ऊल-जलूल तर्क देकर जेटली ने संघ परिवार की ही बखिया उधेड़ दी है। जाहिर है कि अपनी स्थापना से लेकर अब तक संघ परिवार ने अगर सिर्फ हिंसक दंगाई-बलवाई पैदा करने और धर्म का राजनीतिकरण हिन्दू धर्म को नुकसान पहुंचाने के कार्य न किए होते तो उसे आज दीनानाथ बत्रा टाइप के लोगों की शरण में न जाना पड़ता और अपने पास एक भी लेखक, इतिहासकार, वैज्ञानिक, साहित्यकार न होने के उसे लिए शर्मिंदा न होना पड़ता।

फिर क्या देशहित में अगर वामपंथी व कांग्रेसी लेखक, इतिहासकार, वैज्ञानिक, साहित्यकार कुछ कहेंगे तो अरुण जेटली और सरकार उसे इसलिए खारिज कर देंगे कि यह वामपंथी व कांग्रेसी हैं?

वरिष्ठ साहित्यकार अशोक वाजपेयी का कथन मीडिया में तैर रहा है, जिसमें उन्होंने कहा है कि इन दिनों अभिव्यक्ति पर हो रहे हमलों ने आपातकाल जैसे हालात पैदा कर दिए हैं। वर्ष 1975 के आपातकाल का भी लेखकों ने विरोध किया था, उनमें अज्ञे, निर्मल वर्मा, धर्मवीर भारती जैसे कई प्रसिद्ध साहित्यकार थे, कमलेश्वर व फणीश्वरनाथ रेणु तो जेल तक गए थे। वह आपातकाल तो घोषित तौर पर आपातकाल था, वह अपने आप में लोकतंत्र विरोधी था, मगर उसके पास कानून का संबल था, लेकिन वह अनैतिक था। यह तो अघोषित आपातकाल है।

दरअसल इस सारे प्रकरण के पीछे संघ गिरोह की हड़बड़ी और बेचैनी है। संघ भारत के लोकतंत्र की हत्या करके हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहता है और मनुस्मृति शासन थोपना चाहता है। संघ गिरोह के इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए राज्यसभा में बहुमत चाहिए। ये बहुमत हासिल करने के लिए उसे बिहार, बंगाल और उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव जीतना जरूरी है। संघ गिरोह के सामने समस्या यह भी है कि वह 2019 के लोकसभा चुनाव तक इंतजार करना भी नहीं चाहता और वह यह जान भी चुका है कि 2014 में कॉरपोरेट फंडिंग से चढ़ा मोदी बुखार अब उतार पर है। आने वाले दिनों में न तो काला धन वापस आना है, न अच्छे दिन आने हैं, ऐसे में उसके पास एक ही विकल्प है, सांप्रदायिक हिंसा कराओ, देश में तनाव का माहौल बनाए रखो और अल्पसंख्यकों व दलितों के प्रति घृणा फैलाओ। यही वे हथियार हैं जिनके बल पर उसका हिन्दू राष्ट्र का सपना साकार हो सकता है।

इसीलिए हिन्दुत्ववादी संगठन पूरे देश में गोमांस पर उपद्रव करके अफवाहें फैलाकर इस देश की साझी गंगा जुमना तहजीब को नष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं ताकि सरकार की गलत नीतियों व महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में बन रहे माहौल से जनता का ध्यान हटाया जा सके और येन-केन-प्रकारेण बिहार, उत्तर प्रदेश व बंगाल में सत्ता पर कब्जा करके हिन्दू राष्ट्र बनाने का मार्ग प्रशस्त किया जा सके।

केंद्र की मोदी सरकार संघ के इसी एजेंडे को पूरा करने के लिए देश भर में अराजक व देशद्रोही तत्वों का खुला संरक्षण कर रही है। और तो और स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बिहार चुनाव में जिस शब्दावली का प्रयोग किया, वह संघ के संरक्षण में पलने वाले हिंदुत्ववादी आतंकियों को प्रोत्साहन देने वाली ही थी।

लेकिन इस बीच जो महत्वपूर्ण बात हुई है वह है कि अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडीज ऐनेलिटिक्स ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आगाह किया है कि यदि वे अपनी पार्टी के सदस्यों पर लगाम नहीं लगाते तो देश घरेलू और वैश्विक स्तर पर विश्वसनीयता खो देंगा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मूडीज ऐनेलिटिक्स ने अपनी रिपोर्ट 'भारत का परिदृश्य: संभावनाओं की तलाश' में कहा कि देश वृद्धि की अपेक्षित संभावनाओं को हासिल करे, इसके लिए उसे उन सुधार कार्यक्रमों पर अमल करना होगा जिसका उसने वायदा किया है।

जाहिर है मूडीज ऐनेलिटिक्स अंतर्राष्ट्रीय कॉरपोरेट घरानों का प्रतिनिधित्व करती है और अरुण जेटली या सरकार इसे वामपंथी या कांग्रेसी कहकर खारिज नहीं कर सकते। संघ के जिस विध्वंसात्मक व देशविरोधी-मानवता विरोधी एजेंडे को सरकार प्रोत्साहन दे रही है, उसका विदेशी निवेश पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है। रघुराम राजन और मूडीज ऐनेलिटिक्स सरकार को यही समझा रहे हैं। सरकार बेशक लेखकों, साहित्यकारों, इतिहासकारों, वैज्ञानिकों व राष्ट्रपति को भी वामपंथी और कांग्रेसी कहकर सरकार के खिलाफ षडयंत्र बता सकती है, लेकिन कॉरपोरेट घरानों के हमदर्द मूडीज ऐनेलिटिक्स की बात ही समझ ले।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व हस्तक्षेप.कॉम के संपादक हैं।)

अमलेन्दु उपाध्याय

द्वारा एससीटी लिमिटेड,

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