देश के जो हलात हैं, उन्हें देखते हुए इस देश का कोई भी सजग नागरिक नहीं चाहेगा कि विदेश में रह रहे उसके बच्चे देश में वापस आयें. कारण : यहाँ हवा ही नहीं मानसिकता भी प्रदूषित हो गयी है. हर चीज में मिलावट. न दूध शुद्ध है न फल. हरी सब्जी भी घातक हो चुकी है. चिकित्सा मँहगी ही नहीं भरोसे की भी नहीं रही है. पुलिस नेताओं की नजर देख कर काम करती है. छोटे से छोटे पद के .लिए भी लाखों रुपये घूस देने की जरूरत पड़ने लगी है. शिक्षा अभिभावाकों की लूटने का धन्धा बन चुकी है. योग्यता या अर्हता शब्द असंवैधानिक हो गये हैं जाति के नाम पर हर जाति का सम्पन्न वर्ग मौज कर रहा है. दलित, अगड़े, पिछड़े सब अपने हाल पर हैं. अस्पताल मुर्दे को भी आइ.सी.यू. में रख कर उसके परिवारी जनों को लूटने से बाज नहीं आ रहे हैं.
बच्चे देश से बाहर हैं पर उन्हें हर चीज शुद्ध मिल रही है. पुलिस सजग हैं शिक्षा बच्चों का दम नहीं घोट रही है. चिकित्सा महँगी भले ही हो उसमें लूट का रंचमात्र नहीं है. चिकित्सक रोग देखते हैं रोगी की जेब नहीं------
फिर मेरे दोस्त! हम बातें कितनी ही क्यों न बना लें, स्वार्थ से बाहर दुनिया नहीं है. यह मैं नहीं कह रहा हूँ सैकड़ों साल पहले ऋषि याज्ञवल्क्य कह गये हैं आत्मनस्तु कामाय वै सर्वं प्रियं भवति. ( संसार में सब कुछ अपने हित के लिए ही प्रिय होता है.) परिवार इस लिए प्रिय होता है कि वह हमारे हित के लिए काम करता है. मकान इस लिए प्रिय होता है कि वह हमें सुरक्षा और आराम देता है. पर यदि परिवार ही समस्या बन जाय या मकान ही असुरक्षित हो तो? वही बात देश के बारे में भी है. और इसके लिए हमारी मातृभूमि जिम्मेदार नहीं है हमारा नेतृत्व जिम्मेदार है.
BiharWatch-Journal of Justice, Jurisprudence and Law is an initiative of Jurists Association (JA), East India Research Council (EIRC), Centre for Economic History and Accountability (CEHA) and MediaVigil. It publishes research on diverse notions of justice and the performance of just and unjust formal and informal anthropocentric institutions and their design crisis with reference to the first principle.
Wednesday, November 25, 2015
देश के जो हलात हैं, उन्हें देखते हुए इस देश का कोई भी सजग नागरिक नहीं चाहेगा कि विदेश में रह रहे उसके बच्चे देश में वापस आयें. कारण : यहाँ हवा ही नहीं मानसिकता भी प्रदूषित हो गयी है. हर चीज में मिलावट. न दूध शुद्ध है न फल. हरी सब्जी भी घातक हो चुकी है. चिकित्सा मँहगी ही नहीं भरोसे की भी नहीं रही है. पुलिस नेताओं की नजर देख कर काम करती है. छोटे से छोटे पद के .लिए भी लाखों रुपये घूस देने की जरूरत पड़ने लगी है. शिक्षा अभिभावाकों की लूटने का धन्धा बन चुकी है. योग्यता या अर्हता शब्द असंवैधानिक हो गये हैं जाति के नाम पर हर जाति का सम्पन्न वर्ग मौज कर रहा है. दलित, अगड़े, पिछड़े सब अपने हाल पर हैं. अस्पताल मुर्दे को भी आइ.सी.यू. में रख कर उसके परिवारी जनों को लूटने से बाज नहीं आ रहे हैं. बच्चे देश से बाहर हैं पर उन्हें हर चीज शुद्ध मिल रही है. पुलिस सजग हैं शिक्षा बच्चों का दम नहीं घोट रही है. चिकित्सा महँगी भले ही हो उसमें लूट का रंचमात्र नहीं है. चिकित्सक रोग देखते हैं रोगी की जेब नहीं------ फिर मेरे दोस्त! हम बातें कितनी ही क्यों न बना लें, स्वार्थ से बाहर दुनिया नहीं है. यह मैं नहीं कह रहा
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