Thursday, July 9, 2015

छुट्टा सांढ़ों को बैल बधिया बनाने का सही मौका! सलाम उन्हें जो नोएडा से बेखौफ दिल्ली को चल दिये पैदल जुल्मोसितम के खिलाफ! सलाम उन्हें भी जो महाजनी पूंजी के खिलाफ लामबंद डालर की बोलती बंद कर रहे! डटकर करें मुकाबला हकीकत का कि जेबकतरों, उठाईगिरों और जरायमपेशा गिरोहों से क्या डरना! घरों,दफ्तरों से बाहर सड़क पर उतरकर देखें तो तनिक कैसे तेज बदलती है दुनिया! पलाश विश्वास

छुट्टा सांढ़ों को बैल बधिया बनाने का सही मौका!

सलाम उन्हें जो नोएडा से बेखौफ दिल्ली को चल दिये पैदल जुल्मोसितम के खिलाफ!

सलाम उन्हें भी जो महाजनी पूंजी के खिलाफ लामबंद डालर की बोलती बंद कर रहे!

डटकर करें मुकाबला हकीकत का कि जेबकतरों, उठाईगिरों और जरायमपेशा गिरोहों से क्या डरना!

घरों,दफ्तरों से बाहर सड़क पर उतरकर देखें तो तनिक कैसे तेज बदलती है दुनिया!

पलाश विश्वास

कल शाम हस्तक्षेप पर नोएडा से दिल्ली तक के मार्च की रपट यशवंत और दूसरे साथियों की तस्वीर के साथ लगा दी थी अमलेंदु ने तो फौरन उसे फोन लगाया।फोन लगा नहीं।कई बार लगाने के बावजूद नहीं लगा।


हम अपने डाक्साब से कह ही रहे थे कि पट्ठे ने स्विच आफ कर दिया और तभी अपने य़शवंत का फोन आ गया।जोश से लबालब।


सबसे पहले उसने खबर की लच्छीपुर मलेथी की लड़ाई हम जीत गये हैं दादा।उसने कहा कि हम लड़ ही नहीं रहे हैं,हम जीत भी रहे हैं दादा।सच मानिये कि दिल बाग बाग हो गया।


हम उन तमाम साथियों का शुक्र अदा करते हैं जो दड़बों से सड़क पर निकल आये हैं और हम यशवंत का कहा फिर दोहराते हैं कि हम लड़ ही नहीं रहे हैं,हम जीत भी रहे हैं।


मजीठिया मंच से कितनी खलबली मची है,देख लीजिये।


जनता तक कब हम पहुंच पायेंगे,यकीनन नहीं बता सकते हैं,लेकिन हमारी पत्रकारी बिरादरी अगर जाग जाये तो समझ लीजिये कि हमने फतह हासिल कर ली।


क्योंकि यह सूचना की लड़ाई है।

सूचना का अधिकार है लेकिन सूचनाएं हैं नहीं।

जैसे कायदे कानून हैं,कानून का राज नहीं।

जैसे संविधान है,लोकतंत्र सिरे से गायब है।

जन सुनवाई नहीं है।

राजनीति है लेकिन जनता का कोई मंच नहीं है।

सबसे बड़ा मसला यही है कि जनता तक सुचनाएं पहुंच नहीं पा रही है।सूचनाओं पर पहरा है।विचार नियंत्रक तालिबान सेनाएं मुश्तैद हर कहीं कि भूल से कोई ख्वाब न देखें।कहीं किसी कबंध को कोई चेहरा लग न जाये और कहीं से न निकले कोई चीख।


अगर हम हकीकत के सामने खड़ा कर सकें हर आदमी को चो निवेशकों की पूंजी से बने सारे के सारे ताश महल ढह जायेंगे यकीनन और महाजनी सभ्यता के तिलस्मी मजहब के तालिबानी शिकंजे से निकलकर जनता सबकुछ बदल देगी यकीनन।


हमने कल यशवंत से पूछा भी कि जिस सांप ने डंसा तुम्हें,वह तो खैर मर गया,सांप के उस कुनबे को क्या हुआ जो हम सभी को कहीं न कहीं,कभी न कभी डंस रहा है।वह बदमाश हंसता रहा।


हमने उससे कहा कि सर्पदंश से जो जिंदगी मिली है तुम्हें,उसे अब आम जनता के नाम कर दो।उसने कहा कि दादा हमने ऐसा ही कर दिया है।


हमने उससे कहा कि जो भी जहां भी जनता के हकहकूक की बात कर रहा है,जो भी जहां भी जनता के हक हकूक की खातिर सड़क पर आ रहा है,उसे तन्हा हरगिज रहने नहीं देना है।कारवां बिखरे नहीं,अब जतन यही करना है।


दोस्तों,मदरिंडिया का गाना वह याद कीजियेः

दुनिया में हम आये हैं तो…

हकीकत से मुंह चुराने से मौसम हरगिज न बदलेगा और न थमेगा कोई जलजला।डटकर मुकाबला करें कि छुट्टा सांढ़ों को बैल बधिया बनाने का सही मौका।


Search Results

  1. Duniya Mein Hum Aaye Hain song - Mother India - YouTube

  2. Video for duniya mein hum aaye hain song - mother india lyrics▶ 3:49

  3. www.youtube.com/watch?v=RjYhUk6M0iM

  4. Jan 14, 2010 - Uploaded by Eros Now

  5. Check out the song "Duniya Men Hum Aaye Hain" from Mother India sung by ... performance of Madam ...

  6. Duniya Mein Hum Aaye hain-Mother India(1957)-Cover By ...

  7. Video for duniya mein hum aaye hain song - mother india lyrics▶ 4:26

  8. www.youtube.com/watch?v=Vo4yQHhUU7k

  9. May 19, 2014 - Uploaded by Sur Sangeeta

  10. Mother India is a 1957 Hindi epic melodrama film, directed by Mehboob Khan and starring ... Duniya Mein ...

कल यशवंत से कहा हमने कि सुबह टूटकर लिखता हूं..

मजा देखिये की सुबह से बत्ती गुल और जो हमने ढिबरी या मोमबत्ती की रोशनी में लिखना पढ़ना सीखा,अब कलम भी नहीं चलाते।उंगलियां चलाते हैं इन दिनों।उंगलियां भी बिन बिजली बेजान है।हम अब भी हालांकि पीसी सहारे हैं क्योंकि अब भी लैपचाप और स्मार्ट फोन से मुहब्बत हुई नहीं है।


हमारी मूसलाधार बमबारी से जिन्हें खास तकलीफ हैं कि हम कोई शौकिया लेखक कभी नहीं रहे हैं हालांकि बचपन के बछड़ा समय के भैंसोलाजी माहौल में हमने भी खुद को खूब लिखे हैं प्रेमपत्र।लेकिन जब अर्जियां,प्रेस बयान,परचे लिखने का सिलसिला शुरु हुआ,तब भी ठीक से दूध के दांत गिरे न थे।दुनियाभर के दरख्वास्त लिखने से ही लेखन की शुरुआत हुई हमारी और आज भी हम साहित्य नहीं,परचे ही लिख रहे है।जब भी जरुरी हुआ लिख दिया जाये परचा या निकाल दिया जाये बुलेटिन,हमारा लेखन कुल मिलाकर यही है।

कोई नया सिलसिला यह नहीं कि खूब लिख रहा हूं।फर्क इतना है कि छपता नहीं था सारा कुछ ,दीखता नहीं था।


राजीव गांधी की शुक्रिया कि उनने तकनीक की खिड़कियां और दरवज्जे खोल दिये।हमारी उंगलियां चलने लगीं।अब हम किसी संपादक,प्रकाशक या आलोचक की मर्जी और मिजाज के गुलाम नहीं हैं और न हम किसी के दरवज्जे मत्था टेकते हैं।जब भी हकीकत से जहां भी टकराने की गरज हुई,तो लिखा और पोस्ट कर दिया रीयल टाइम में।


जहर को जहर से ही काटा जा सकता है।

अपना यशवंत सर्पदंस के बाद दिल्ली में धमाल कर नहीं रहा होता अगर जहरमोहरा उसकी नसों में इंजेक्शन की तरह पहुंचा न होता।

मुक्त बाजार का अगर यह डिजिटल इंडिया है तो इसी डिजिटल तकनीक से इस मुक्तबाजार के खिलाफ जंग लड़ने की काबिलियत होनी चाहिए।


तकनीक अगर हमें गुलाम बनाये हुए हैं तो जहर से जहर मारने की तरह तकनीक से तकनीक का मुकाबला हमें करना है।


वे अगर एसौ पच्चीस करोड़ जनता को संबोधित कर सकते हैं हर भाषा में तो हमें भी वहीं करके दिखाना है।


पत्रकार बिरादरी तक सूचनाएं पहुंचने सो कोई सेंसरशिप रोक नहीं सकती और सत्ता इसीलिए इन दिनों हमारी बिरादरी पर मेहरबान है।अब हमें भी सीखना ही होगा कि जो हमारा इस्तेमाल कर रहे हैं,हम उनका भी जैसा चाहे खूब इस्तेमाल करें।


हमारी बिरादरी संप्रेषण के विशेषज्ञ हैं।विषयों के विशेषज्ञ भी हैं।जो जनता है,उसकी हम संतानें हैं।तो इस देश के खातिर,अपने मां बाप,भाई बहनों के खातिर,अपनी महबूबा के खातिर,उनके क्वाबों के लिए,उनके हक हकूक के लिए मरमर कर जीने से बेहतर है कि डंके की चोट पर हम लड़ें क्योंकि सूचनाओं की लड़ाई हमसे बेहतर दुनिया की कोई सत्ता लड़ ही नहीं सकती।


हम मानते हैं कि सचमुच हम सच बताना चाहें तो दुनिया की कोई ताकत हमें सच बताने से रोक नहीं सकती।


आज की लड़ाई गोला बारुद की लड़ाई नहीं है दोस्तों,कब्र में दफन कर दी जा रही सच को रोसन करने की लड़ाई है यह दोस्तों।


इस काम में हमारी बिरादरी के जो लोग लाशों में तब्दील हो रहे हैं,सड़क पर जुल्मोसितम के खिलाफ आवाज लगाना ही काफी नहीं है क्योंकि हम करने को तो बहुत कुछ कर सकते हैं।हमें न बाहुबल और न धन बल आजमाने की कोई जरुरत है।हममें सो जो भी जहां हो,हाथ बढ़ायें वहीं से कि हम सारे लोग साथ साथ हों तो हम जमाना बदल देंगे और बदले हुए मौसम को भी बदल देंगे।


कातिलों के बाजुओं में उतना दम होता नहीं है कि हर सरको कलम करते चला जाये।


हम चाहें तो यकीनन इस कयामत के मंजर को,इस बिगड़ती हई फिजां के रंग को बदल सकते हैं।


मेरे दिवंगत पिता की सीख रही है कि स्वजनों के हक हकूक के लिए जो भी करना है,हमें ही करना है और किसी बहाने हमें उस जिन्नमेदारी से निजात पाने की कोशिश नहीं करनी है।काबिलियत न हो तो काबिलियत पैदा करनी है,दक्षता नहीं है तो दक्ष होना है,तकनीक नहीं है तो तकनीक इंजेक्ट करना है और भाषाओं और सीमाओं,अस्मिताओं के सारे दायरे तहस नहस करके इंसानियत का मुकम्मल भूगाल तामीर करना है।


हमारा लेखन कुल मिलाकर यही है।हम प्रिंट में आपके सर पर सवार नहीं होते हैं और न हम पाठ्यक्रम में अनिवार्य या ऐच्चिक हैं,हम जहां हैं,वहां आप चाहे तो पढ़ें और न  चाहें तो न पढ़ें। चाहे तो खूब गरियायें और चाहे तो डिलीट या ब्लाक कर दें।


जो हमसे सहमत हैं,जो जनता के हकहकूक की लड़ाई में हमारे साथ हैं या हो सकते हैं,हम सिर्फ उन्हीको संबोधित करते हैं।


नैनीताल के उस खूबसूरत माहौल और मौसम की शुक्रिया।

प्रमाम हमारे गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी जी को जो आज भी हमारे कान उमेठने से परहेज नहीं करते और लिखने में आज भी वे उतने ही सक्रिय हैं जितने हम।


हम यूनान को भली भांति जाने हैं और इसीलिए बगुला अर्थशास्त्रियों के मनुस्मृति मुक्तबाजारी अर्थशास्त्र के मुकाबले हमारी भैंसोलाजी कहीं बेहतर है।


हम उत्पादकों और उत्पादन प्रणाली की अर्थ व्यवस्था और उत्पदक संबंधों के जरिये बनते समता और सामाजिक न्याय के वर्गविहीन वर्णविहीन समाज की बात करते हैं।


वे लंपट महाजनी सभ्यता के कारिंदे हैं।


उनकी पूंजी कोई उत्पादक पूंजी नहीं है और न इससे उत्पादन प्रणाली और उत्पादकों का भला होना है।


उनकी पूंजी निवेशकों की पूंजी है।महाजनी पूंजी है लंपट और उनकी आस्था और उनकी वफा निवेशकों की मर्जी है।


वे तमाम लोग मुहब्बत के खिलाफ हैं।


वे नफरत के कारोबारी हैं।

वे दुनियाभर में हत्याएं और बलात्कार कर रहे हैं।


वे आवाम को कंबंध बनाये हुए हैं।


उनकी अर्थव्यवस्था मुनाफा वसूली की है।


वे यूनान के संकट पर दहाड़े मारकर चीख रहे हैं क्योंकि उनके बाप महतारी डालर मइया की शामत है।


फिरभा उनका दावा है कि भारत को कोई खतरा नहीं है।


चीन की दीवारों तक पहुंचे यूनानी मानसून मूसलाधार देखकर हैजे के मरीज जैसे वे दीक्खे हैं।


अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत है तो शेयर बाजार इतना धड़ाम धड़ाम क्यों है,ये नहीं बता रहे हैं।


उत्पादन प्रणाली को तहसनहस करके, उत्पादकों के थोक कत्लेआम के बंदोबस्त के तहत दुनियाभर के हत्यारों मापियों,उठाईगिरों,जेबतकरों और जरायमपेशा गिरोह के साथ लामबंद वे जनता को बेशर्म झूठ बता रहे हैं कि निवेशक तनिको घबड़ाये हैं और बाकीर हमारी अर्थव्यवस्था विकास के बुलेट एक्स्पेस स्मार्च वे पर फटाफट दौड़े हैं।


इस दौड़ से कहां कहां कितनी खून की नदियां बहायी जा रही है,ऐसा वे कभी नहीं बताने वाले हैं।

शुक्र है कि हमने सुकरात,अरस्तू और प्लेटो की मूल रचनाओं के अनुवाद पढ़े नैनीताल में तो ग्लेडिएटर्स की लड़ाई भी देखते रहे हम।हमने बाहैसियत साहित्य के छात्र और रंगकर्मी ग्रीक त्रासदी को खूब पढ़ा है।


हमारे मुताबिक यह ग्रीक त्रासदी डालर के धंधे के लिए है।हर देश के सत्ता वर्ग के लिए है,शेयर बाजारों के लिए है।आम जनता के लिए यह डालर वर्चस्व और विश्वबैंकीय,मुद्राकोषीय,अमेरिकी इजरायली सुधार कार्यक्रमों के खिलाफ खुली बगावत है।


पहले जान लीजिये कि ग्रीत जनादेश का आशय क्या है जो छुपाया जा रहा है।


पहले जान लीजिये कि मुक्तबाजारी सुधारों की अनिवार्य शर्तों के खिलाफ और जायनी विश्वव्यवस्था के खिलाफ है यह ग्रीक जनादेश।


क्योंकि आर्थिक सुधारों के मुक्तबाजारी बंदोबस्त में सामाजिक सुरक्षा और लोककल्याण के सारे कार्यक्रमों के सफाये के वैस्विक इशारों को मानने से साफ इंकार कर दिया है यूनान की जनता ने।


होश में आइये दोस्तों,2008 की महामंदी ने भारतीय जनता का कुछ उखाड़ा नहीं है जो कृषि संकट है वह हरित क्रांति,अविराम बेदखली अभियान और सुधार अश्वमेधों का विशुद्ध कर्मफल है।


होश में आइये दोस्तों,2008 की महामंदी ने भारतीय जनता का कुछ उखाड़ा नहीं है क्योंकि सेनसेक्स और निफ्टी की अर्थव्यवस्था से आम जनता का कोई सरोकार तब नहीं था

इसलिए लातिन अमेरिका और खासतौर पर अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्थाओं के मुक्त बाजारी नियति के बारे में कोई खास चर्चा नहीं हुई।


यूनान का संकट कुल मिलाकर भारत का संकट भी है कि रेटिंग एजंसियों,विदेशी निवेशकों,विदेशी हितों और विश्वव्यवस्था के वित्तीयसंस्थानों विश्वबैंक,मुद्राकोष,विश्वव्यापर संगठन वगैरह वगैरह की शर्तों के मुताबिक कारपोरेट वकीलों के हवाले भारत में भी वे शर्तें अनिवार्य है,जो लातिन अमेरिका में लगायी गयी और सारे यूरोप में लगायी जा रही है और जिससे अफ्रिका में भुखमरी है।


सबकुछ डिजीटल इसलिए है कि सबकुछ शेयर बाजार से जोड़कर मुकम्मल महाजनी सभ्यता बहाल हो और मध्ययुगीन तालिबान राजकाज के मार्फत विशुद्धता के सौ फीसद मजहबी दंगों से रंगभेदी नस्ली जनसंहार का सिलसिला जारी रहे ताकि देश के सारे संसाधन विदेशी पूंजी और विदेशी हितों के हवाले हो और पूंजी की अवैध संतानों का सत्तावर्ग बिलियनर मिलियनर का वर्चस्व कायम रहे।कुल मिलाकर मुनाफावसूली का मतलबो यही है।


फ्रांस,जर्मनी और कुछ हद तक इंग्लैंड को छोड़कर महाजनी पूंजी का किय  धरा सारे लातिन अमेरिका,सारे अफ्रीका के बाद सारे यूरोप को अपने शिकंजे में कस चुका है।


यूनान की हालत जितनी बुरी है,उससे बेहतर नहीं है स्पेन,इटली और यूनान के देश जो पहले और दूसरे विश्वयुद्ध में पराजित जर्मनी का कर्ज माफ करते रहे हैं।


महाजनी पूंजी का कर्जा वही है जो सुखीलाला का राज है और मदर इंडिया को सचमुत अब फिर वहीं जहर पीना है।


गौर करें कि विकसित देश यूनान में अनिवार्य आर्थिक सुधारों के बाद भुखमरी की हालत है।


गौर करें कि विकसित देश यूनान में पेंशन आधी से कम कर दी गयी है।जिसे सिरे से खत्म करने का यूरोपीय समुदाय का और विश्व व्यवस्था का दबाव है।


गौर करें कि विकसित देश  यूनान में  तमाम कायदे कानून के साथ साथ मेहनतकशों के हक हकूक भी तमाम करने के मुक्तबाजीरी फतवे हैं और उत्पादन इकाइयों में छंटनी की बहार है।


गौर करें कि विकसित देश  यूनान में  सामाजिक सुरक्षा और लोक कल्याण बाजार के हवाले है।


खींसें में पैसे हों तो मौज करों,पेरिस हिल्टन के साथ सेल्फी दागो,व्यापमं से नौकरियां खरीदो और चियारियों चियारिनों के कैसिनों में मजे लूटो और पैसे न हो तो मरो।


मरने के अलावा मुक्तबाजार में कोई विकल्प नहीं हैै।


मुक्तबाजार के तालिबानी फतवे के खिलाफ यूनानी यह जनादेश है,जिसे यूनान का संकट बताया जा रहा है जो दरअसल महाजनी पूंजी और उसके कारिंदों का संकट है,जनता का संकट यकीनन नहीं।जिससे विस्वव्यवस्था की चूलें हिल गयी है।


हमारी असली लड़ाई तो इस नरमेध अभियान के खिलाफ है।


यूनान की राह पर अगर चल पड़े अफ्रीका ,लातिन अमेरिका और यूरोप के देश तमाम तो बंधुआ उपनिवेशों में भी मुक्तबाजारी डालर वर्चस्व तेल कुंओं की आग में स्वाहा हो जाना है।


यूनान और यूरोप के अनुभवों के आइने में देखें तो फासिज्म के हिंदू राष्ट्र में भी हूबहू वही हो रहा है जो अर्जेंटीना, यूनान, स्पेन, इटली,पुर्तगाल के अलावा तमाम विकासशील अविकसित देशों में हो चुका है।


छुट्टा सांढ़ों को बैल बधिया बनाने का सही मौका!

सलाम उन्हें जो नोएडा से बेखौफ दिल्ली को चल दिये पैदल जुल्मोसितम के खिलाफ!

सलाम उन्हें भी जो महाजनी पूंजी के खिलाफ लामबंद डालर की बोलती बंद कर रहे!

डटकर करें मुकाबला हकीकत का कि जेबकतरों, उठाईगिरों और जरायमपेशा गिरोहों से क्या डरना!

घरों,दफ्तरों से बाहर सड़क पर उतरकर देखें तो तनिक कैसे तेज बदलती है दुनिया!




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