Sunday, June 21, 2015

आज के 'जनसत्ता' में मदन कश्यप की मार्मिक कविता. "अदालत को अच्छी तरह पता था/ कि उसे कुछ नहीं पता था/ फकत तेरह साल लगे यह जानने में/ कि सब कुछ दरअसल कुछ नहीं था/ इतने ही साल लगे हाशिमपुरा में/ इतने या इससे कुछ अधिक बथानी टोला में". "क़ानून की धज्जियां उड़ा कर पैसे बटोरने वाले अधिवक्ताओ/ खुद पर फक्र करो/ तुमने किसी मुद्दई को नहीं मनुष्यता को पराजित किया है".


आज के 'जनसत्ता' में मदन कश्यप की मार्मिक कविता. "अदालत को अच्छी तरह पता था/ कि उसे कुछ नहीं पता था/ फकत तेरह साल लगे यह जानने में/ कि सब कुछ दरअसल कुछ नहीं था/ इतने ही साल लगे हाशिमपुरा में/ इतने या इससे कुछ अधिक बथानी टोला में". "क़ानून की धज्जियां उड़ा कर पैसे बटोरने वाले अधिवक्ताओ/ खुद पर फक्र करो/ तुमने किसी मुद्दई को नहीं मनुष्यता को पराजित किया है".

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