Tuesday, September 2, 2014

अमेरिका को रिझाने में इंदिरा नाकाम रहीं तो नाराज अमेरिका को मनाने के लिए मोदी क्या कुछ नहीं कर गुजरेंगे? पलाश विश्वास

अमेरिका को रिझाने में इंदिरा नाकाम रहीं तो नाराज अमेरिका को मनाने के लिए मोदी क्या कुछ नहीं कर गुजरेंगे?
पलाश विश्वास
জাপান থেকে প্রাপ্তি
• পরিকাঠামো, স্মার্ট সিটি-সহ বিভিন্ন প্রকল্পে ৩,৫০০ কোটি ডলার লগ্নি
• দ্বিগুণ হবে জাপানি সংস্থার বিনিয়োগও
• বুলেট ট্রেন চালু করতে আর্থিক ও প্রযুক্তিগত সহায়তা  
• গঙ্গা সাফাইয়ে সাহায্যের আশ্বাস  
• প্রতিরক্ষা, অপ্রচলিত শক্তি, হাইওয়ে, স্বাস্থ্য পরিষেবা-সহ বিভিন্ন বিষয়ে চুক্তি  
• পরিকাঠামো লগ্নি সংস্থা আইআইএফসিএল-কে ঋণ
• পণ্য ও শিল্প করিডরের কাজ দ্রুত শেষ করতে উদ্যোগ
কথা দিল ভারতও
• জাপানি লগ্নি প্রস্তাব দ্রুত খতিয়ে দেখে ছাড়পত্র দিতে প্রধানমন্ত্রীর দফতরের অধীনে বিশেষ টিম
• সেখানে থাকার আহ্বান দুই জাপানি প্রতিনিধিকেও

भारत की अर्थव्यवस्था को डालर से नत्थी करने का तर्क यह है कि अमेरिका,इजराइल और बाकी पश्चिम ने गोल्ड स्टैंडर्ड का परित्याग कर दिया है।

तर्क यह है कि अंबेडकर सिद्धांत के मुताबिक  डांवाडोल सोना के बराबर नोट छापने की बाध्यता पूंजीवादी व्यवस्था की नींव कमजोर कर देगी।

तर्क की खातिर मान लेते हैं कि गोल्ड स्टैंडर्ड से चौतरफा सत्यानाश है तो कृपया यह बताइये कि डालर के क्या सुर्खाव के पर हैं।

गौरतलब है कि दूसरे विश्वयुद्ध के बाद पश्चिम ने मार्क स्टैंडर्ट का खामियाजा भुगता है और अब समूचा यूरोप सोवियत पतन से पहले से, तेल युद्ध से भी पहले से  डालर से पीछा छुड़ाने के फिराक में है और इसीलिए यूरो का जन्म हो गया।

यूरोप का कभी उपनिवेश रहा होगा अमेरिका,लेकिन अमेरिका का उपनिवेश है यूरोप,अब लेकिन सत्य यही है। इसी सत्य का दूसरा पहलू है यूरो कायाकल्प।जो मुक्त बाजारी युद्धक अमेरिकी वर्चस्व के लिए शायद सबसे बड़ी चुनौती भी है,जिससे निपटने के लिए अमेरिका को तेल की आग में बार बार झुलसना पड़ रहा है और इस वक्त भी अमेरिकी सेना मरुाआंधी से जूझ रही है अरब वसंत के मध्य।

अब भी सद्दाम और ओसामा के प्रेतों से मुक्ति नहीं मिली है अमेरिका को और न निकटभविष्य में अमेरिकी प्रेत मुक्ति की कोई उज्ज्वल संभावना है।आतंक के विरुद्ध अमेरिका का युद्ध अमेरिका के पतन का सबब भी बन सकता है।


तेल कारोबार के लिए डालर को छोड़ यूरो मानक लागू करने के जिहाद छेड़ने के अपराध में अमेरिका,इजराइल और फिर अमेरिकी सहयोगी उसी यूरोप के हाथों कुत्ते से बदतर मौत सद्दाम के हिस्से में आई। लेकिन डालर और यूरो की लड़ाई खत्म नहीं हुई है।इतिहास के नियम से अमेरिकी साम्राज्यवाद का पतन तय है तो डालर नत्थी अर्थव्यवस्थाओं का सर्वनाश भी तय है।

मूल मुद्दा गोल्ड स्टैंडर्ड का हालांकि नहीं है।लेकिन यह समझना दिलचस्प होगा कि आजादी के बाद जो एक रुपया के बराबर था डालर,वह आज भारतीय अर्थव्यवस्था का नियंत्रक कैसे हो गया।इस पहेली को बूजे बिना मुक्त बाजारी तंत्र मंत्र यंत्र के साथ साथ मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विजन और उनके दांव समझना मुश्किल है।उनके हिंदुत्व एजंडे के साथ मुक्तबाजार और तकनीकी क्रांति के समीकरण को समझने के लिए उनकी वापसी के पहले,शिक्षक बनाम गुरु गोलवलकर दिवस पर भावी पीढियों को उनके राष्ट्रीय संहबोधन से पहले केसरिया कारपोरेट पर्यावरण मंत्री सीधे संघ पिरवार के गर्भनाल से नत्थी प्रकाश जावड़ेकर की तकनीकी क्रांतिकथा का वाचन दर्शन सहायक हो सकता है।तकनीकी क्रींति से पर्यावरण संरक्षण को जोड़ने का करतब तो कोऊ खांटी संघी ही कर सकता है।हालांकि उन्होंने तकनीकी क्रांति से औद्योगीकरण,श्रम और कृषि के संबंधं पर अपने उच्च विचार अभी बताये ही नहीं है।

बहरहाल,अगर मोदी अमेरिका पर निर्भरता की पहल कर रहे हैं,तो प्रधान स्वयंसेवक हैसियत के बावजूद उनकी तारीफ करनी ही होगी।लेकिन शायद मामला उतना सरल भी नहीं है।

यह ऐसा ही है कि जैसे सारे विशेषज्ञ एक सुर से मानते हैं कि भारतीय विदेशनीति और राजनय की दिशा दशा में एकध्रूवीय अमेरिकी वैश्विक व्यवस्था और सोवियत संघ के पतन की वजह से अमेरिकीपरस्ती का स्थाई भाव शाश्वत।

थोड़ा घूमकर देखें, अमेरिकापरस्त विरोधियों के मुकाबले इंदिरा देवरस संबंध को,संघ इंदिरा समीकरण को और संघ का बिना शर्त राजीव गांधी को समर्थन को।

यही काफी नहीं है,मंडल कमंडल मध्ये नाना प्रकार के उत्पात सहकारे राजीलव गांधी का अयोध्या के कथित राममंदिर का ताला खुलवाने से लेकर बाबरी विध्वंस तक का कथाक्रम को नये सिरे से बांच लें तो पता चलेगा कि  कैसे कैसे यरूशलम दखल के ड्रेस रिहर्सल बाबरी विध्वंस क्यों है और कैसे खाड़ी युद्ध और सोवियत पतन से भी ज्यादा सक्रिय कारक हिंदुत्व का पुनरूत्थान है।

हिंदुत्व के पुनरूत्थान के तहत ही तेल पर अरब राजनय निर्भर भारत आंतरिक सुरक्षा मामेले में भी अब इजराइल पर निर्भर हो गया और शाही राजकाज मार्फते तो अपनी गायपट्टी जिसे आप सनातन आर्यावर्त भी कह सकते हैं,सीधे फिलीस्तीन और गाजा पट्टी में तब्दील है,जहां मुसलमानों की कोई खैरियत है ही नहीं और वहां भी सत्ता में समाजवीदी पिछड़े हैं तो केंद्र पिछड़ा केसरिया।

लेकिन पिछड़ा कामन है और इन्हीं पिछड़ों के नेतृत्व में कारसेवकों की यात्रा अयोध्या से गुजरात होकर सारे देश में अविराम है।बाबरी विध्वंस पर भारतीय न्याय प्रणाली में न्याय नहीं है तो यह अच्छा ही है कि गाजा पट्टी में अविराम नरसंहार का कोई विरोध भारत राष्ट्र ने नहीं किया और न ही भारतीय संसद ने।

यरूशलम से अगर इजराइल की विदेशनीति की दिशा बनती है तो आठवें दशक से राम मंदिर का ताला खोलने से लेकर बाबरी विध्वंस और गुजरात नरसंहार तक बदलती हुई
विदेशनीति और कथायात्रा का नया पाठ अनिवार्य है।

इसी भागवत कथा नायक का महानायक हैं मानीय प्रधान स्वयसेवक भारत के पंत प्रधान।अटल यात्रा में जैसे भारत इजराइल का बेड पार्टनर बना वैसे ही यह लव इन टोक्यो है।भरातीय राजनय के बेडरुम में एक और पार्टनर।जापान।

भारत अमेरिकी परमाणु संधि की पहल तो अटल ने की थी,जिसे भाजपा के विरोध के बावजूद मनमोहन ने अंजाम तक पहुंचाया।भारत जापान परमाणु संधि की पहल अमेरिका ने कर दी है,दस्तखत कब होंगे,कौन करेगा,ऐसे निमित्त का महत्व है नहीं।

मुद्दे की बात है कि तकनीकी क्रांति ही विकासकामसूत्र का अब  बीजमंत्र है और इसके लिए अमेरिका से भी पंगा ले लिया है महाबलि नरेंद्र मोदी ने।भारत के इतिहास में न सही,संघ परिवार के इतिहास में सिर्फ इसलिए मोदी का नाम प्रधान स्वयंसेवक बाहैसियत स्वर्णाक्षरों से लिखा जायेगा।

इसकी अनिवार्य परिणति लेकिन न अखंड भारत है और न अगला महाशक्ति के रुप में भारत का उत्थान है,यह तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजंडे हिंदी हिंदू हिंदुस्तान का एजंडे का बायप्रोडक्ट है।

सिख और बौद्धधर्म अनुयायी हुंदुत्व के भूगोल में जैनियों की तरह सहज स्वाभाविक ढंग से समाहित होंगे या नहीं,इसे समझने के लिए पंजाब के हाल के इतिहास को जाना शायद बहुत सहायक हो सकता है।

सारे बौद्ध भी धर्मांतरित उदितराज नहीं हैं।

सिखों को अकाली राजनीति ने भरमाया जरुर है,लेकिन हिंदू साम्राज्यवाद के एकाधिकार वादी हमलों से जख्मी सिखी के घाव अभी भरे नहीं हैं।

अब भी सिखों के मनोजगत में दंगों के कत्लेआम से ज्यादा लहू का रिसाव आपरेशन ब्लू स्टार से हा रहा है।

जी हां,इंदिरा ने देश विदेश की चुनौतियों के लिए यह किया था।

जापान और अमेरिका,पूंजी और तकनीक के दोराहों पर खड़े मोदी क्या क्या कर गुजरते हैं प्रधान स्वयंसेवक नरेंद्र मोदी और कैसे अपने को इंदिरा और नेहरु से भी समर्थ प्रधानमंत्री बनाते हुए प्रधान स्वयंसेवक भी बने रहते हैं,भविष्य यह तय करेगा।

लेकिन एकमुश्त जो जापानी कंपनियों की बहार हो गयी जो जापानी पूंजीअमेरिकी वर्चस्व को तोड़ने लगी है और जो जयजय जय हे तकनीकी क्रांति है,उससे तो कंप्यूटरों के भी कबाड़ बन जाने की आशंका है,श्रमिकों,कर्मचारियों, किसानों,वणिकों की क्या कहें।

जापान के इस सफर से बुलेट ट्रेन और स्मार्ट सिटी की उपलब्दि ही नहीं होगी एकमुश्त,फ्री में रोबोटिक्स भी आयेगा और फ्री में मिलेगा परमाणु विकिरण भी।

नेहरु इंदिरा के समाजवाद को स्वर्णयुग मानने की सबसे बड़ी पहेली लेकिन अनसुलझी है कि स्वर्ण मानक को छोड़कर समाजवादी कांग्रेस ने आखिर किस लिए डालर से रुपये के साथ साथ भारतीय अर्थव्यवस्था को नत्थी कर दिया।

नेहरु के सत्तारोहण के पीछे किसी अमेरिकी भूमिका के बारे में अभी कुछ उजागर हुआ नहीं है।लेकिन यह सर्वविदित है कि अमेरिका समर्थक सिंडिकेट ने ही गूंगी गुड़िया को भारत की सर्वकालीन स्रवश्रेष्ठ प्रधानमंत्री बनाने में अहम भूमिका अपनायी थी।

फिर समाजवादी माडल के तहत इंदिरा ने जो प्रिवी पर्स खत्म कर दिये और राष्ट्रीयकरण अभियान चलाया तो अमेरिकी तत्व मय सिंडिकेट इंदिरा के सबसे कट्टर दुश्मन हो गये।

निर्गुट आंदोलन के मंच से नेहरु ने अमेरिका सोवियत शीतयुद्ध के भूगोल से तीसरी दुनिया के देशों को बाहर रखने की रणनीति बनायी थी,जिसे मृत्युपर्यंत अंजाम देती रही इंदिरा गांधी।इसी चुनौती के लइ ए भी अमेरिका के लिए वह सद्दाम हुसैन और ओसामा बिन लादेने से भी बड़ी चुनौती थी।

उनके अंत के बिना भारत को जो अमेरिका बनना न था।उनके अंत के बद ही आहिस्ते आहिस्ते भारत अमेरिका बन गया तो अब नरेंद्र मोदी इसे जापान बनाने का योगाभ्यास शुरु कर ही चुके हैं।

फिरभी,सोवियत माडल,समाजवाद और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के बावजूद नेहरु और इंदिरा को अमेरिकी पूंजी की दरकार हुई।सोवियत माडल की पंचवर्षीय परियोजनाओं के लेिए नेहरु इंदिरा जमाने में पूंजी की आवक लेकिन अमेरिका से होती रही।

हरित क्रांति इस राजनय की सबसे बड़ी उपलब्धि कही जानी चाहिए,जिसकी नींव पर मौजूदा यह नवउदारवादी मुक्तबाजारी अर्थव्यवस्था है।

तो केसरिया क्रांति के लिए प्रधानस्वयंसेवक को अमेरिकी पूंजी और जापानी तकनीक दोनो चाहिए,चाहे नाराज हो जाये चीन या अमेरिका भी,इसकी परवाह मोदी को नहीं है,वे तो हाल तक अमेरिका में अवांछित ही रहे हैं।

अब फिर अवांछित हो तोभी संघ परिवार का एजंडा उनके लिए सर्वोपरि है और भारत में उनका यह शासन काल दरअसल गुरु पर्व ही है।

इंदिरा के राज्याभिषेक के पुरोहितों ने ही जयप्रकाश नारायण और समाजवादियों के कंधे पर बंदूक रखकर गैरकांग्रेसवाद के नाम पर सोवियत माडल का बंटाधार के लिए संपूर्ण क्रांति का उद्घोष किया और भारत देखते देखते अमेरिकी उपनिवेश बन गया।

यह हमारे वक्तव्य का संक्षिप्त मुखबंध है।चूंकि हम न इतिहासकार हैं और न अर्थशास्त्री,विशुद्ध बाहैसियत एक अदना पत्रकार मेरा यह आकलन है,जिसमें दोषत्रूटि गुंंजाइश प्रचुर होंगी।

विद्वतजनों से आग्रह है कि हमारी गलतियां सुधारने में पहल अवश्य करें।

इसमें शायद दो राय नहीं होनी चाहिए कि पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली में पूंजी के साथ साथ श्रम की भी केंद्रीय भूमिका थी, जिसकी उत्पादन,मुनाफा और अधिशेष में महती भूमिका थी।इसीके साथ इसी पूंजीवादी व्यवस्था में उत्पादन संबंधों के वर्गीय ध्रूवीकरण की संभावना भी सबसे ज्यादा थी,जो राज्यतंत्र में परिवर्तन की अनिवार्य शर्त है तो सामाजिक समरसता,समता और न्याय में भी इन बदलते संबंधों की निर्णायक भूमिका रही है।

किसी स्त्री की कोख निकालने पर  जो होता है,मुक्तबाजार में उत्पादन प्रणाली का भी वही हाल है,जिसमें श्रम और स्रम से जुड़े समुदायों यानी समूचा कृषि समाज के साथ साथ श्रम निर्भर व्यवसाय वाणिज्य का भी अनिवार्य अवसान है।जिसमें अर्थव्यवस्था का प्रस्थानबिंदू लेकिन सेवा क्षेत्र है,उत्पादन नहीं।

कृषि और औद्योगिक विकास दर के शून्यसत्र पर पहुंच जाने का कुल रहस्या यही है।

श्रम विहीन श्रमिक कृषक वणिक विहीन अर्थव्यवस्था के लिए तकनीक बड़ी काम की चीज है।

अमेरिकी पूंजी प्रवाह  की निरंतरता से नेहरु इंदिरा जमाने में जो अमेरिका को साध लेने की राजनय थी,उसमें वास्तविक संकट भारत  के बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम में सैन्य हस्तक्षेप भूमि सुधार जनविद्रोह के जोर पकड़ते रहने के मध्य उत्पन्न हुआ,जिसकी परिणति हिंद महासागर में अमेरिका का सातवां नौसैनिक बेड़ा,भारत सोवियत मैत्री संबंध और स्वतंत्र बांग्लादेश का जन्म है।

इस त्रिशुल ने हरित क्रांति और पीएल 480 का अमेरिकी समीकरण तहस नहस कर दिया और अमेरिका ने भारत को उभरते हुए क्षेत्रीय महाशक्ति बतौर चिन्हित कर लिया।

बाकी इतिहास आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों और इंदिरा राजीव हत्याकांड,भोपाल गैस त्रासदी,आपरेशन ब्लू स्टार,बाबरी विध्वंस और गुजरात नरसंहार का है।इस कथाक्रम में गुजरात नरसंहार अंतिम मीलफलक है,जहां मोदी शाही पुराण का शुभारंभ है।

भारत सोवियत मैत्री और भारत के परमाणु परीक्षण के नतीजतन भारतीय रक्षा क्षेत्र से बाहर हो गया अमेरिका और आज की तारीख में भी भारत अमेरिकी परमाणु संधि हो जाने के बाद भी,अमेरिका के युद्ध में भारत के इजराइले के साथ अन्यतम साझेदार बन जाने को बाद भी टूटे हुए सोवियत के अधिशेष रूस भारत का सबसे बड़ा सैन्य सहयोगी है।

अमेरिका से जूझने के लिए,अमेरिका को साधने के लिए आपात काल की पराजय झेल चुकी इंदिरा ने दृश्य माध्यम से देश को नेटवर्किंग के जरिये जोढ़कर अपनी तानाशाही का सिलसिला जारी रखने की कोशिश की तो उनके बाद उन्हींके चरण चिन्हों पर चलकर तकनीकी क्रांति को भारत का भविष्य बनाने की शुरुआत की दिवंगत राजीवगांधी ने।इसीके बाद डा.मनमोहन सिंहा का अध्याय जोड़ लें।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दरअसल भारत के प्रधानमंत्री की हैसियत से जापान गये हैं या नहीं,यह तय करने में मुझे बेहद कठिनाई हो रही है।लालकिले की प्राचीर से राष्ट्र को अपने पहले संबोधन में जैसे वे प्रधानमंत्री के बजाय प्रधान स्वयंसेवक ही थे,वैसे ही बौद्धमय भूगोलमध्ये उनका कृष्णावतार फिर वही प्रधान स्वयंसेवक  है, प्रधानमंत्री नहीं,ऐसा मुझे लग रहा है।आपको कैसा लगा,आप जाने।

शिक्षक दिवस को गुरु दिवस में बदलने और छात्रों को अनिवार्य मोदी संबोधन का फतवा आपातकाल की आहट सी लग रही है मुझे और स्वयंसेवी प्रधानमंत्री के चेहरे पर एक साथ गुरु गोलवलकर और इंदिरा गांधी की झांकियां एक के बाद एक  नजर आ रही है मुझे।

गुरु गोलवलकर के हिसाब से स्वयसेवक की हैसियत से खांटी सोना साबित हो रहे हैं मोदी।अखंड महाशक्ति हिंदू राष्ट्र हिंदू हिंदी हिंदुस्तान के एजंडे के मुताबिक उनका यह जापान का सफर मील का पत्थर कहा जाना चाहिए,जिसके तहत उन्होंने हूबहू इंदिरा गांधी की तरह अमेरिका को चुनौती देते हुए अमेरिका और इजराइल के रणनीतिक सहयोगी भारत को जापान का भी स्ट्रैटेजिक पार्टनर बना दिया।

अब बुनियादी सवाल है कि अमेरिका को रिझाने में इंदिरा नाकाम रहीं तो नाराज अमेरिका को मनाने के लिए मोदी क्या कुछ नहीं कर गुजरेंगे।हमारी चिंता बस यही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापान के सम्राट अकीहितो को अपनी तरफ से पवित्र हिंदू धर्म-ग्रंथ 'भगवद्गीता' की एक प्रति तोहफे के तौर पर देने को लेकर आज अपने 'धर्मनिरपेक्ष मित्रों' पर चुटकी ली और कहा कि हो सकता है कि इससे हंगामा खड़ा हो जाए और और टीवी पर बहस होने लगें।

द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने के लिए अपनी पांच दिवसीय जापान यात्रा के चौथे दिन तोक्यो इंपीरियल पैलेस में मोदी ने सम्राट अकीहितो से मुलाकात की।

यहां एक समारोह में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए मोदी ने अपनी जापान यात्रा में गीता की एक प्रति लेकर आने की बात कही ताकि उसे सम्राट को तोहफे के तौर पर दिया जा सके।

प्रधानमंत्री ने कहा, 'तोहफे में देने के लिए मैं गीता की एक प्रति अपने साथ लाया। मैं नहीं जानता कि इसके बाद भारत में क्या होगा। इस पर टीवी बहसें भी हो सकती हैं।'

मोदी ने कहा, 'हमारे धर्मनिरपेक्ष मित्र इस पर एक तूफान खड़ा कर देंगे कि मोदी अपने आप को समझते क्या हैं? वह अपने साथ गीता ले गए, जिसका मतलब यह है कि उन्होंने इसे भी सांप्रदायिक बना दिया।'

मोदी को सुन रहे लोगों ने जब उनके इस बयान पर तालियां बजाईं तो उन्होंने आगे कहा, 'कोई बात नहीं, उनकी भी रोजी-रोटी चलनी चाहिए और अगर वहां मैं नहीं रहूंगा तो वे अपनी आजीविका कैसे चलाएंगे?'

प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें हैरत होती है कि आजकल छोटी-छोटी चीजें विवाद पैदा कर देती हैं। उन्होंने कहा, 'मैं नहीं समझता कि क्यों, पर लोग आजकल ऐसी तुच्छ चीजों पर भी विवाद पैदा कर देते हैं। पर मेरा अपना समर्पण और संकल्प है कि अगर मैं दुनिया के किसी महान व्यक्ति से मिलूं तो उसे गीता भेंट करूं और इस वजह से मैं इसे यहां लेकर आया।'

परमाणु अप्रसार संधि पर भारत के हस्ताक्षर न करने की वजह से अंतरराष्ट्रीय समुदाय में व्याप्त चिंता को दूर करने की कोशिश करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज कहा कि शांति और अहिंसा के लिए देश की प्रतिबद्धता ‘‘भारतीय समाज के डीएनए’’ में रची बसी है जो किसी भी अंतरराष्ट्रीय संधि या प्रक्रियाओं से बहुत उच्च्पर है।

   मोदी ने तोक्यो में सैक्रेड हार्ट यूनिवर्सिटी में एक छात्र के प्रश्न के जवाब में कहा, ‘‘भारत भगवान बुद्ध की धरती है। बुद्ध शांति के लिए जिये और हमेशा शांति का पैगाम दिया तथा यह संदेश भारत में गहराई तक व्याप्त है।’’
   संवाद के दौरान उनसे पूछा गया था कि परमाणु अप्रसार संधि पर अपना रूख बदले बिना भारत अंतरराष्ट्रीय समुदाय का विश्वास कैसे हासिल करेगा। परमाणु हथियार रखने के बावजूद भारत इस संधि पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर चुका है ।
   जापान दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां परमाणु बम गिराया गया था। फिलहाल जापान की यात्रा पर यहां आए मोदी ने इस अवसर का उपयोग करते हुए तोक्यो के साथ असैन्य परमाणु करार करने के प्रयासों के बीच इस मुद्दे पर अपना यह संदेश दिया।
   भारत ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया है क्योंकि वह इसे खामीयुक्त मानता है।
   प्रधानमंत्री ने कहा कि अहिंसा के लिए भारत की पूर्ण प्रतिबद्धता है और यह ‘‘भारतीय समाज के डीएनए में रची बसी है तथा यह किसी भी अंतरराष्ट्रीय संधि से बहुत ऊपर है।’’
   उनका संदर्भ भारत के, परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने से इनकार की ओर था।
 मोदी ने संधियों से ऊपर उठने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा, ‘‘अंतरराष्ट्रीय मामलों में, कुछ प्रक्रियाएं होती हैं। लेकिन समाज की प्रतिबद्धता सबसे ऊपर है।’’
   अपनी बात पर बल देते हुए प्रधानमंत्री ने बताया कि महात्मा गांधी के नेतृत्व में पूरे समाज के साथ अहिंसा के लिए प्रतिबद्ध रहते हुए भारत ने इस तरह स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया कि पूरी दुनिया आश्चर्यचकित रह गई।
   उन्होंने कहा कि हजारों साल से भारत की आस्था सूत्र वाक्य ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’’ (पूरी दुनिया एक परिवार है) में रही है। ‘‘जब हम पूरी दुनिया को एक परिवार मानते हैं तो हम ऐसा कुछ करने की कैसे सोच सकते हैं जिससे किसी को नुकसान हो।’’
   भारत ने हाल ही में आईएईए के साथ हस्ताक्षरित ‘‘सुरक्षा करार पर अतिरिक्त प्रोटोकॉल’’ (एडीशनल प्रोटोकॉल ऑन सैफेगार्ड्स एग्रीमेंट) की अभिपुष्टि की है। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री से पूछा गया था कि क्या भारत परमाणु निगरानी एजेंसी के निरीक्षकों को भारत के असैन्य परमाणु संयंत्रों की आसानी से निगरानी की अनुमति देगा।
   संवाद सत्र के दौरान, एक अन्य छात्र ने मोदी से पूछा कि चीन के ‘‘विस्तारवादी’’ प्रयासों के बावजूद एशिया में शांति कैसे रह सकती है।
   इस पर मोदी ने कहा, ‘‘ऐसा लगता है कि आप चीन से परेशान हैं।’’ हालांकि छात्रों को संबोधित कर रहे मोदी की राय थी कि छात्र पत्रकारों की तरह सवाल पूछ रहे थे।
  चीन के संदर्भ में पूछे गए सवाल का सीधा जवाब सावधानीपूर्वक टालते हुए मोदी ने कहा, ‘‘भारत एक लोकतांत्रिक देश है। इसी तरह, जापान भी एक लोकतांत्रिक देश है। अगर भारत और जापान मिल कर शांति और सकारात्मक बातों के बारे में सोचें तो हम दुनिया को लोकतंत्र की ताकत का अहसास करा सकते हैं।’’
   उन्होंने कहा, ‘‘हमें दूसरों के बजाय अपना ध्यान प्रगति और विकास पर केंद्रित करना चाहिए। अगर हम अपनी स्थिति पर ध्यान देंगे तो हमारी स्थिति अच्छी होगी।’’
   मोदी ने एक काल्पनिक कहानी सुनाई, ‘‘कल्पना कीजिये, कमरे में पूरी तरह अंधेरा है। इस अंधेरे को दूर करने के लिए एक व्यक्ति झाÞड़ू लेकर कमरे में जाता है लेकिन वह गिर जाएगा। दूसरा व्यक्ति तलवार लेकर अंधेरा दूर करने अंदर जाता है। वह भी गिर जाएगा। एक अन्य व्यक्ति कंबल ले कर अंधेरा दूर करने के लिए अंदर जाता है किंतु वह भी गिर जाएगा। तब एक चतुर आदमी छोटा सा दीपक लेकर अंदर जाता है और फिर-फिर अंधेरा दूर हो जाता है । शांति, समृद्धि और लोकतंत्र का दीपक कभी भी अंधेरे से नहीं डरेगा।’’
   मोदी ने छात्रों को जलवायु पर लिखी ‘‘कन्वीनिएन्ट एक्शन’’ किताब पढ़ने का सुझाव दिया ।
   इससे पहले उन्होंने लड़कियों की एक गोष्ठी में भारत में महिलाओं की स्थिति के बारे में बताते हुए कहा कि उन्हें विभिन्न रूपों में देवी की तरह पूजा जाता है।
   प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां ईश्वर देवी के रूप में हैं।’’ एक मंत्रिमंडल का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि शिक्षा का संबंध देवी सरस्वती से, वित्त का संबंधी देवी लक्ष्मी से, गृह संबंधी मामलों का सरोकार देवी महाकाली से और खाद्य सुरक्षा का संबंध देवी अन्नपूर्णा से है।
   उन्होंने यह भी कहा कि भारत में स्थानीय निकायों में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण प्राप्त है।
   मोदी ने लड़कियों की शिक्षा के प्रति अपने निजी रूझान के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि जब वह प्रधानमंत्री बने तो गुजरात छोड़ते समय उन्होंने, अपने 14 साल के मुख्यमंत्रित्व काल में मिले सभी उपहारों की नीलामी की। इस नीलामी से 78 करोड़ रूपये एकत्र हुए और वह राशि लड़कियों की शिक्षा के लिए उपयोग की खातिर सरकारी कोष में जमा कर दी गई।
   विश्वविद्यालय में मोदी ने उन्हें देख कर रोमांचित हुए भारतीयों के एक समूह के साथ ‘सेल्फी’ के लिए पोज़ भी दिया।


आज उन्होंने जापान की राजधानी टोक्यो में सैक्रेड हार्ट यूनिवर्सिटी के छात्रों से मुलाक़ात की और उन्हें संबोधित किया।

अपने संबोधन में उन्होंने महिला सशक्तिकरण पर ज़ोर देते हुए कहा कि व्यक्तिगत रूप से हमेशा मैं नारी शिक्षा का मज़बूत पक्षधर रहा हूं और बतौर गुजरात के सीएम नारी शिक्षा के प्रति ख़ुद को समर्पित कर दिया।

पीएम मोदी ने डिसीज़न मेकिंग में महिलाओं की भूमिका को महत्व दिए जाने की बात कही। उन्होंने अपनी कैबिनेट में 25 प्रतिशत महिला मंत्रियों के होने की बात भी छात्रों के साथ साझा की और कहा कि हमारी विदेशमंत्री भी एक महिला ही हैं।

चीन के प्रश्न पर प्रधानमंत्री ने कहा कि पूरा विश्व एक परिवार है और हम इसी में विश्वास करते हैं। उन्होंने कहा कि भारत और जापान दोनों ही लोकतांत्रिक देश हैं और इसी के सहारे आगे बढ़ा जा सकता है। इसलिए दूसरों के बारे में सोचने की बजाय दोनों देशों को ख़ुद के बारे में सोचना चाहिए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज न्यू कोमेटो के प्रमुख नत्सूओम यामागुची से मुलाक़ात की।

जापान में नरेंद्र मोदी का एक और टैलेंट सामने आया है। मोदी ने अपनी जापान यात्रा के चौथे दिन टोक्यो में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस के कार्यक्रम में ड्रम बजाकर लोगों को हैरान कर दिया।कूटनीति, कारोबार और अर्थव्यवस्था के गंभीर मुद्दों पर समझौते कर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी जापान यात्रा के दौरान एक दूसरे अवतार में भी दिख रहे हैं। इस अवतार में वो जापानी संस्कृति और शिक्षा व्यवस्था में काफी दिलचस्पी लेते दिखे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जापान यात्रा के तीसरे दिन की शुरुआत बच्चों की किलकारियों और बांसुरी की तान के साथ हुई। सोमवार को नरेंद्र मोदी ने टोक्यो के तेईमेई एलिमेंट्री स्कूल का दौरा किया, मकसद था जापान की प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था की बारीकियां जानना। और, वहां वो बच्चों की क्लासरूम में पहुंच गए, जहां बच्चों का साथ पाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भीतर का बच्चा जाग उठा। यही नहीं, म्यूजिक क्लास में पहुंचे मोदी ने बच्चों को बांसुरी बजाकर भी सुनाई।

इसके बाद नरेंद्र मोदी टोक्यो के अकासाका पैलेस पहुंचे, जहां जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने उनका औपचारिक स्वागत किया। और स्वागत में उन्हें जापान की पारंपरिक चाय भी पिलाई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पूरे उत्साह के साथ पारंपरिक अंदाज में हर्बल चाय का लुत्फ उठाया।

टोक्यो आने से पहले प्रधानमंत्री मोदी जापान के शहर क्योटो में थे। जहां उन्होंने तोजी और किंकाकुजी मंदिरों के दर्शन किए। मोदी जहां जहां गए उनसे मिलने, बात करने, उनसे हाथ मिलाने और फोटो खिंचाने के लिए लोगों में होड़ दिखी।

किंकाकुजी मंदिर में मोदी अलग ही अंदाज में नजर आए। उन्होंने यहां मौजूद लोगों और सैलानियों से हाथ मिलाया और फोटो भी खिंचवाई। और, जब एक छोटा बच्चा प्रधानमंत्री से मिलने पहुंचा तो उन्होंने प्यार से उसके कान उमेठे। प्रधानमंत्री के साथ ये छोटा बच्चा भी पूरी मस्ती के मूड में नजर आ रहा था यानी, जापान दौरे पर नरेंद्र मोदी गंभीर बहस-मुबाहिसे के बीच भी हल्के फुल्के पल का पूरा लुत्फ उठा रहे हैं।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जापान दौरे का मंगलवार को चौथा दिन है। इस दौरान टोक्यो में आज एक खास नज़ारा देखने को मिला, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिल्कुल अलग अंदाज में नज़र आए। मोदी टोक्यो में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस के कार्यक्रम में शरीक हुए।

टेक्नोलॉजी एंड कल्चरल एकेडमी के उद्घाटन समारोह के मौके पर पीएम मोदी ने ड्रम बजाकर सबका ध्यान खींचा।

दरअसल, मोदी को जापानी परंपरा के अनुसार टीसीएस सांस्कृतिक अकादमी के प्रतिनिधिमंडल को रवाना करने की रस्म की शुरुआत ढोल बजाकर करना था। वो कुछ देर तक दो स्थानीय कलाकारों को ढोल बजाते देखते रहे। उसके बाद उन्होंने एक कलाकार का ढोल बजाना शुरू कर दिया। मोदी के इस अनोखे अंदाज को देखकर लोग तालियां बजाने से अपने आप को रोक नहीं पाए। मोदी ने करीब एक मिनट तक ढोल बजाया।

भारत को मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स के लिए एक अच्छे स्थान के रूप में पेश करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापानी निवेशकों को आज भारत आने का न्योता दिया। मोदी ने कहा कि भारत में व्यवसाय के लिए कायदे कानून आसान कर लालफीताशाही खत्म कर दी गई है और उसकी जगह निवेशकों के स्वागत में लाल कालीन का दौर आ चुका है।

निक्की और जापान की व्यापार संवर्धन संस्था जेट्रो द्वारा यहां आयोजित व्यावसायिक गोष्ठी में निवेशकों को संबोधित करते हुए उन्होंने भारत में मैन्युफैक्चरिंग कारोबार को बढ़ाने के लिए अपने मेड इन इंडिया नारे की चर्चा की। प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार के पहले 100 दिन के कार्यकाल में देश में कारोबार करने वालों के लिए रास्ते आसान करने के लिए किए गए कई फैसलों का भी जिक्र किया।

मोदी ने अपनी यात्रा के चौथे दिन कहा कि भारत की तरह कोई भी अन्य देश ऐसा मौका प्रदान नहीं करता, क्योंकि देश में लोकतंत्र है, युवा आबादी है और मांग है। इससे पहले कल उन्होंने एक अन्य समारोह में निवेशकों को संबोधित किया था।

प्रधानमंत्री ने उद्योगपतियों से कहा कि वे भारत निवेश कर अपनी किस्मत भाग्य आजमाएं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि भारत में निवेश करने वाले कम लागत वाले मैन्युफैक्चरिंग (विनिर्माण) के जरिए लाभ के लिहाज से चमत्कार कर सकते हैं।

उन्होंने कहा 'विनिर्माताओं को क्या चाहिए? वे विनिर्माण की लागत में कमी चाहते हैं। वे उच्च लागत वाला विनिर्माण नहीं चाहते। सस्ता श्रम, कुशल श्रमशक्ति, आसान कारोबार प्रक्रिया और उदार माहौल। फिर यह भातर में व्यावहारिक हो जाता है।' उन्होंने कहा 'भारत में अरबों-खरबों डॉलर के निवेश की जरूरत है। इलेक्ट्रानिक बाजार विशेष तौर पर मोबाइल हैंडसेट क्षेत्र संभावनाओं वाला बड़ा बाजार है।' सरकार ने 125 करोड़ लोगों के लिए डिजिटल इंडिया नाम से एक योजना बनाई है जो मिशन मोड में चलाई जाएगी।

जाहिर है कि देश के उद्योग जगत ने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जारी जापान यात्रा की सराहना की है। फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) के अध्यक्ष सिद्धार्थ बिड़ला ने यहां एक बयान जारी कर कहा, ‘यह यात्रा हमारे रिश्ते को पारिभाषित करने वाला है और यह दोनों देशों के अदान-प्रदान को एक नए स्तर पर ले जाने वाली यात्रा के तौर पर इतिहास में दर्ज होगा।’

उन्होंने कहा, ‘हम जापान-भारत निवेश संवर्धन साझेदारी से खासे उत्साहित हैं। इसके तहत दोनों पक्षों ने अगले पांच साल में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्रवाह तथा जापानी कंपनियों की संख्या को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है।’

फिक्की ने कहा कि जापान ने अगले पांच साल में स्मार्ट शहर, परिवहन प्रणाली और स्वच्छ ऊर्जा जैसी परियोजनाओं में कुल 3,500 अरब युआन (2,020 अरब रुपये) वित्तीय प्रवाह बनाने का वादा किया है। 2013-14 के आखिर में दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार 16.31 अरब डॉलर था।

पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के मुताबिक मोदी-आबे प्रभाव के कारण 2019-20 तक द्विपक्षीय व्यापार बढ़कर 50 अरब डॉलर हो सकता है। पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने कहा, ‘हमारा अनुमान है कि भविष्य में भारत और जापान का रिश्ता और मजबूत होगा और इसके कारण अगले पांच साल में जापानी कंपनियों की संख्या भारत में 1,000 से बढ़कर 1,500 हो जाएगी।’ अभी करीब एक हजार जपानी कंपनियां देश में करीब 70 अधोसंरचनाओं में काम कर रही हैं।


100 दिन में बढ़ा लोगों का विश्वास: जावड़ेकर

पर्यावरण से जुड़े कानूनों की होगी समीक्षा, सरकार ने बनाई कमेटी


नई दिल्ली। सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है कि एनडीए सरकार ने अपने 100 दिन के कार्यकाल में कुछ ऐसे फैसले किए हैं जिनसे लोगों में विश्वास पैदा हुआ है और उनके नजरिए में बदलाव आया है। जावड़ेकर ने आज अपने प्रभार वाले वन एवं पर्यावरण, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के 100 दिन के कामकाज का ब्योरा देने के लिए आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कहा कि इस सरकार को वैसे तो पांच साल का जनादेश मिला है। लेकिन पहले तीन महीनों में हमने निर्णय लेकर तीन ऐसे बड़े कदम उठाए हैं, जिनसे देश और दुनिया में भारत सरकार के प्रति लोगों के नजरिए में बदलाव आया है।
उन्होंने कहा कि यूपीए सरकार के शासन में निर्णय नहीं लिए जा रहे थे, जिससे देश में निराशा का माहौल बन गया था। एनडीए सरकार ने कई रूके हुए बड़े निर्णय लिए हैं, जिससे सरकार के प्रति लोगों का विश्वास बहाल हुआ है। दूसरा जनहित के लिए ऐसी योजना शुरू की हैं और छोटे-छोटे फैसले किए हैं, जिनसे आम आदमी का जीवन सरल सुगम और सुविधाजनक बना है। प्रधानमंत्री जन धन योजना, प्रमाण पत्रों और हलफनामे का स्व सत्यापन ऐसे ही कदम हैं।
र्यावरण से जुड़े कानूनों की समीक्षा के लिए सरकार ने चार सदस्यों की कमेटी बनाने का ऐलान किया है। इस कमेटी के अध्यक्ष पूर्व कैबिनेट सेक्रेटरी टीएसआर सुब्रह्मण्यम होंगे। ये कमेटी पर्यावरण संरक्षण कानून-1986, वन्य जीव कानून-1972  और वन संरक्षण कानून-1980 के साथ-साथ जल और वायु प्रदूषण से जुड़े कानूनों की भी समीक्षा करेगी। कमेटी को अपनी रिपोर्ट दो महीने में देनी है।

केंद्र सरकार पहले ही पिछले 100 दिनों में पर्यावरण से जुड़े कई नियमों में बदलाव कर चुकी है। माना जा रहा है कि इस कमेटी के बनने से वन और पर्यावरण कानूनों में फेरबदल कर उद्योगों के लिए राह 'आसान' बनाने की कोशिश होगी।

सरकार लगातार कह रही है कि वह पर्यावरण मंत्रालय की छवि को बदलना चाहती है। मंगलवार को ही पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने एक बार फिर कहा कि जल्द ही सरकार उद्योगों को मिलने वाली हरी झंडी की रफ्तार तेज़ करने के लिए एक नई नीति लाएगी।
केंद्रीय मंत्री के इस बयान से साफ है कि इस कमेटी से सुझावों के मिलने के बाद केंद्र पर्यावरण कानूनों में बड़े बदलाव कर सकता है।

नरेंद्र मोदी सरकार पर्यावरण से जुड़े ऐसे दो कानूनों में ढील देने की तैयारी में है जिनके कारण पूर्व में कई अहम औद्योगिक परियोजनाएं अटक गईं। सूत्रों के अनुसार, ऐसा करने के पीछे सरकार की मंशा हरित नियमों में ढील देकर अर्थव्यवस्था को गति देना है।

‘नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एक्ट’ और ‘फॉरेस्ट राइट एक्ट’ यूपीए शासनकाल के दौरान लागू किए गए थे। पर्यावरण मंत्रलय चाहता है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल सीधे निर्देश देने की जगह सरकार को सिर्फ सिफारिशें भेजे। मंत्रालय यह भी चाहता है कि परियोजनाओं की मंजूरी को खारिज करने का अधिकार सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के पास हो।

सूत्रों के अनुसार, आदिवासी मामलों के मंत्री जुएल ओराम से वन्य कानूनों में  संशोधन करने के लिए कहा जा चुका है। संसद के शीत सत्र में इन संशोधनों को पेश किया जा सकता है। पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने हालांकि कानूनों को कमजोर करने की बात खारिज की है। उन्होंने कहा, ‘हम इन कानूनों को मजबूत करने के लिए इनकी समीक्षा कर रहे हैं। बदलावों से क्रियान्वयन बेहतर होगा और लोगों की हितों की रक्षा भी होगी।’

गौरतलब है कि ग्रीन ट्रिब्यूनल एक्ट न्यायाधिकरण को परियोजना की मंजूरी को खारिज करने या उसकी समीक्षा का अधिकार देता है। वहीं, फॉरेस्ट एक्ट के तहत उद्योगों के लिए संबंधित वन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों से परियोजना पर पूर्व सहमति लेना अनिवार्य होता है।

सेंसेक्स 27000 के पार, अब आगे क्या करें

प्रकाशित Tue, सितम्बर 02, 2014 पर 13:38  |  स्रोत : CNBC-Awaaz
बाजार ने ऊंचाई के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं और सेंसेक्स पहली बार 27,000 के पार पहुंच चुका है। ऐसे उछाल भरे बाजार में निवेशकों को क्या रणनीति अपनानी चाहिए, इस पर जगदीश मल्कानी की राय।

एनएसई के सदस्य जगदीश मल्कानी का कहना है कि बाजार में इस समय कोई घबराहट नहीं है और माहौल काफी तेजी का है। बाजार में अलग-अलग कारणों से तेजी आ रही है। अगर अंतर्राष्ट्रीय बाजार से कोई खराब खबर नहीं आती है तो बाजार में उछाल जारी रहेगा। कच्चे तेल के भाव नीचे आना, नरेंद्र मोदी की जापान यात्रा सफल होना, जीडीपी के अच्छे आंकड़ें, ऑटो बिक्री के अच्छे आंकड़ें और मानसून के अंत में अच्छी बारिश जैसे कारणों से बाजार में अच्छा माहौल बना हुआ है।

जगदीश मल्कानी के मुताबिक इस समय लार्जकैप में निवेश करना चाहिए। हालांकि मिडकैप में भी काफी तेजी आ चुकी है लेकिन इस समय उनमें रिटर्न के साथ जोखिम भी है। बाजार में अगर गिरावट आती भी है तो भी लार्जकैप में ज्यादा गिरावट नहीं आएगी। इस समय निजी बैंकों में निवेश की सलाह है। लार्जकैप में एचडीएफसी बैंक के साथ कुछ छोटे बैंक जैसे सिटी यूनियन बैंक और दक्षिण के बैंक जैसे करूर वैश्य बैंक, साउथ इंडियन बैंक में खरीदारी के जरिए अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।

फार्मा शेयरों में भी चुनिंदा शेयरों में निवेश किया जा सकता है। छोटे फार्मा शेयरों में इप्का लैब में निवेश किया जा सकता है। खराब खबरों के चलते शेयर पिटा था लेकिन अब इसमें तेजी आ सकती है। वहीं कुछ चुनिंदा एफएमसीजी शेयरों में भी खरीदारी की जा सकती है।

वहीं रजतकेबोस डॉट कॉम के रजत बोस का कहना है कि आगे निफ्टी में मौजूदा स्तरों से और 200-300 अंकों की तेजी आने में कोई दिक्कत नजर नहीं आ रही है। लिहाजा आने वाले दिनों में निफ्टी में 8300-8500 के स्तर संभव हैं। निफ्टी के 8300-8500 पर पहुंचने के बाद ही करेक्शन संभव है। वहीं निफ्टी के लिए 7980-7950 पर अहम स्टॉपलॉस होगा।

जानकार बाजार की तेजी को लेकर काफी बुलिश हैं। मॉर्गन स्टैनली के रिधम देसाई कह रहे हैं कि तेजी ऐसे ही जारी रही तो अगले साल जून तक सेंसेक्स 33,900तक पहुंच जाएगा।

रिधम देसाई के मुताबिक बाजार में बुल रन जारी रहेगा और जून 2015 तक सेंसेक्स का लक्ष्य 28,500 है। इसके अलावा बुल रन में जून 2015 तक सेंसेक्स 33,900 तक भी जा सकता है। उनके मुताबिक सरकार के फैसलों के दम पर बाजार में तेजी जारी रहेगी और अमेरिका में फेडरल रिजर्व के फैसले भी अहम रहेंगे।

निफ्टी भागेगा लगातार, ये शेयर बनेंगे दमदार

प्रकाशित Tue, सितम्बर 02, 2014 पर 10:11  |  स्रोत : CNBC-Awaaz
किम एंग सिक्योरिटीज के हेड ऑफ रिसर्च जिगर शाह का कहना है कि दिसंबर 2014 तक निफ्टी में 8355 का स्तर आने का अनुमान है। वहीं बाजार की इस तेजी में निफ्टी कंपनियों के अलावा दूसरी कंपनियों में निवेश का ज्यादा बेहतर मौका है। काफी सारे चुनिंदा शेयरों के वैल्युएशन बेहद आकर्षक लग रहे हैं।

जिगर शाह के मुताबिक आईटी सेक्टर के मिडकैप शेयरों में निवेश का मौका है। लेकिन फार्मा शेयरों में हाल में जमकर तेजी हुई और अब कोई भी खराब खबर आने या कमजोरी होने पर बड़ी गिरावट की संभावना है।

जिगर शाह को सीमेंट शेयरों में एसीसी, अंबुजा सीमेंट और अल्ट्राटेक सीमेंट पसंद है। जिगर शाह का मानना है कि मिडकैप सीमेंट शेयरों में जेपी एसोसिएट्स के वैल्यूएशन बेहद आकर्षक हैं। जिगर शाह के रियल एस्टेट सेक्टर मेंडीएलएफ, पूर्वांकरा और महिंद्रा लाइफ पसंदीदा शेयर हैं। जिगर शाह को ऑयल एंड गैस सेक्टर में बीपीसीएल पंसद है और उनका कहना है कि अगर सब्सिडी का बोझ न बढ़ा तो शेयर में बड़ी तेजी संभव है।

मोदी सरकार में निवेश का माहौल सुधरा

प्रकाशित Tue, अगस्त 26, 2014 पर 10:23  |  स्रोत : CNBC-Awaaz
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के सीईओ (इंस्टीट्यूशन इक्विटी) नवीन अग्रवाल का कहना है कि मोदी सरकार पर निवेशकों का भरोसा बढ़ा है। साथ ही नई सरकार में निवेश का माहौल भी बदला है। एफआईआई निवेशकों का बाजार पर भरोसा लगातार बना हुआ है। आर्थिक हालात में सुधार के संकेत हैं और जीडीपी बढ़ने से कंपनियों की आमदनी बढ़ेगी। वित्त वर्ष 2016 में 20 फीसदी आमदनी बढ़ने की उम्मीद है।

वहीं मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के ज्वाइंट एमडी रामदेव अग्रवाल का कहना है कि यूपीए सरकार के कार्यकाल में टेलीकॉम सेक्टर को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। साथ ही पावर सेक्टर में भी काफी समस्याएं देखने को मिली। लेकिन मोदी सरकार के काम से निवेशक खुश हैं और पावर सेक्टर में सबसे पहले सुधार के संकेत हैं।

रामदेव अग्रवाल ने कोल ब्लॉक आवंटन पर फैसले को चिंताजनक बताया है। रामदेव अग्रवाल के मुताबिक कोल ब्लॉक को नियमित करने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से निवेशकों का भरोसा डगमगाया है, ऐसे में सरकार को निवेशकों को भरोसा देना होगा। दुनिया में पैसों की कमी नहीं है लेकिन देश की छवि खराब हो रही है। लिहाजा सरकार को निवेश के लिए माहौल बनाना होगा। पीपीपी मॉडल आसान और पारदर्शी बनाने की जरूरत है।

वहीं नवीन अग्रवाल का कहना है कि बाजार में पैसा लगाने के लिए निवेशक तैयार हैं और बाजार में मौजूदा लिक्विडिटी जारी रहने वाली है। मई, जून और जुलाई में रिकॉर्ड रिटेल निवेश हुआ है। दरअसल कंपनियों की आमदनी बढ़ने से बाजार में और तेजी संभव है। साथ ही आगे बाजार में घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) का निवेश बढ़ेगा।

नवीन अग्रवाल के मुताबिक फार्मा शेयरों में आगे तेजी संभव है। भारतीय बाजार में काफी तेजी बाकी है और अगले 5 साल में बाजार से 20 फीसदी रिटर्न संभव है। फार्मा शेयरों के साथ आईटी शेयरों में भी तेजी जारी रहेगी। बैंकिंग और फाइनेंशियल शेयरों में भी निवेश के अच्छे मौके हैं। इंडस्ट्रियल और कैपिटल गुड्स शेयरों में भी तेजी संभव है। निवेशकों को कंज्यूमर से जुड़े शेयरों पर भी नजर रखनी चाहिए।

জলে-জমিতে আগ্রাসন, মোদী জাপানে বসেই বিঁধলেন চিনকে

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চায়ে পে চর্চা। প্রথা মেনে চা-কেক চাখলেন মোদী। সঙ্গে শিনজো আবে (ডান দিকে)। ছবি: রয়টার্স

জাপান সফরে গিয়ে কিছুটা অপ্রত্যাশিত ভাবেই চিন সম্পর্কে মন্তব্য করে আলোড়ন ফেলে দিলেন প্রধানমন্ত্রী নরেন্দ্র মোদী।
টোকিওতে পৌঁছে ভারত- জাপান বাণিজ্য সংক্রান্ত গুরুত্বপূর্ণ পদক্ষেপের মধ্যেই মোদী এ দিন টেনে এনেছেন চিনের আগ্রাসী মনোভাবের কথা। বিশেষ কোনও দেশের নাম না করেই মোদী বলেছেন, “কোনও কোনও দেশের অষ্টাদশ শতকের

মানসিকতা রয়েছে। অন্যের জমি দখল আর সমুদ্রের অধিকার নিতে আগ্রাসী মনোভাব দেখায় তারা।” এর সঙ্গেই তাঁর মন্তব্য, “সবাই বলে একবিংশ শতাব্দী হবে এশিয়ার। তবে ভারত আর জাপানের সম্পর্ক কতটা দৃঢ় হবে, তার উপরেই সব সাফল্য নির্ভর করবে।” এক দিকে অরুণাচল নিয়ে চিনের সঙ্গে ভারতের সংঘাত, অন্য দিকে পূর্ব চিন সাগরে গ্যাসের উত্তোলন নিয়ে চিন ও জাপানের বিরোধের পরিপ্রেক্ষিতেই মোদীর আজকের মন্তব্যকে ব্যাখ্যা করা হচ্ছে। চিনকে নিশানা করে মোদী বলেছেন, আমাদের বেছে নিতে হবে আমরা ‘বিকাশ বাদ’ নাকি ‘বিস্তার বাদ’-এর কথা ভাবব। যারা বুদ্ধের রাস্তায় চলেন, তাঁদের বিশ্বাস বিকাশের কাজে। আর অন্যের জমি আর সমুদ্রের অধিকার নিয়ে আগ্রাসী মনোভাব দেখিয়ে কেউ কেউ ‘বিস্তার বাদ’- এ বিশ্বাস রাখেন।
জাপান সফরের ভিতরে প্রধানমন্ত্রীর হঠাৎ এমন মন্তব্য স্বাভাবিক ভাবেই আলোড়ন তুলেছে। এ মাসের তৃতীয় সপ্তাহে চিনা প্রেসিডেন্ট সি জিনপিংয়ের নয়াদিল্লি সফর করার কথা। তার আগে বিদেশের মাটিতে বসে মোদী এমন কথা বললেন কেন, তা নিয়েও প্রশ্ন উঠছে। তবে নয়াদিল্লির কূটনীতিকদের বক্তব্য, নরেন্দ্র মোদী সরকার জাপান ও চিনের ভিতরে ভারসাম্য রেখেই চলতে চায়। দেশের উন্নয়নে জাপানি বিনিয়োগের বিষয়কে সর্বোচ্চ গুরুত্ব দিতে চাইছেন মোদী। একই সঙ্গে চিনের বিরাট বাজারের দিকেও লক্ষ্য রয়েছে তাঁর। চিনের সঙ্গে বাণিজ্য বাড়াতে বাণিজ্যমন্ত্রী নির্মলা সীতারমনকে সে দেশে পাঠিয়েছেন তিনি। এই মুহূর্তে নির্মলা চিনে রয়েছেন। দু’দেশের বাণিজ্যের রাস্তা প্রশস্ত করতে সে দেশের বাণিজ্যমন্ত্রীর সঙ্গে তিনি বৈঠক করবেন। আবার এই সময়েই জাপানে গিয়ে মোদী চিন সম্পর্কে অনেকটাই কট্টরবাদী অবস্থান নিলেন। এ নিয়ে মোদীর ঘনিষ্ঠ মহলের বক্তব্য, যে কোনও দেশের সঙ্গেই প্রধানমন্ত্রী সুসম্পর্ক চান। কিন্তু মাথা নিচু করে সম্পর্ক স্থাপন করতে রাজি নন তিনি। তাই অরুণাচলের প্রকৃত নিয়ন্ত্রণরেখা বরাবর চিনা সেনার আগ্রাসী মনোভাবের নিয়ে লোকসভা ভোটের প্রচারের সময়েই প্রতিবাদে সরব হয়েছেন তিনি। জাপানেও চিনের নাম না করে আগ্রাসী মানসিকতার কথা তুলে ধরলেন মোদী।
যদিও বিদেশের মাটিতে কেন তৃতীয় কোনও দেশ সম্পর্কে বলতে গেলেন প্রধানমন্ত্রী, তা নিয়েও প্রশ্ন উঠেছে। কূটনীতিকদের কেউ কেউ বলছেন, জাপানের সঙ্গে মোদীর সম্পর্ক মুখ্যমন্ত্রী থাকার সময় থেকেই। আর ভারত ও জাপান দু’দেশের সঙ্গেই চিনের জমি ও সমুদ্রের অধিকার নিয়ে সংঘাত রয়েছে। ফলে আজকের মন্তব্যের পিছনে আবেগ কাজ করেছে। তবে মোদীর মন্তব্য নিয়ে সতর্ক প্রতিক্রিয়া জানিয়েছে চিন। সে দেশের বিদেশ মন্ত্রকের মুখপাত্র কিন গ্যাং মন্তব্য করেছেন, “প্রধানমন্ত্রী নরেন্দ্র মোদী কোনও দেশের নাম করেননি। তাই আমরাও বুঝতে পারছি না উনি কাদের কথা বলতে চেয়েছেন।” এর সঙ্গেই চিন সম্পর্কে কিছু দিন আগে করা মোদীর মন্তব্যকে তুলে ধরেছেন তিনি। যেখানে প্রধানমন্ত্রী বলেছেন, “উন্নয়নের দিকে তাকিয়ে ভারত চিনের সঙ্গে বন্ধুত্বপূর্ণ সম্পর্কে আগ্রহী। দুই পড়শির সম্পর্কের মধ্য দিয়েই গোটা বিশ্বে বিকাশের পথ প্রশস্ত হবে।” তবে চিনের সরকারি মুখপত্র ‘গ্লোবাল টাইমস’-এ অভিযোগ করা হয়েছে, জাপানের প্রধানমন্ত্রী শিনজো আবে ভারত ও চিনের ভিতরের সম্পর্ককে নষ্ট করছেন।
এ দিকে, ১৯৯৮-এ পোখরানে পরমাণু শক্তির পরীক্ষার পরে ‘হ্যাল’- সহ যে ছ’টি ভারতীয় সংস্থাকে জাপান  নিষিদ্ধ করেছিল, তাদের উপর থেকে নিষেধাজ্ঞা তুলে নেওয়া হয়েছে। এর ফলে জাপানের সংস্থাগুলির সঙ্গে তাদের যৌথ ভাবে কাজ করার সম্ভাবনার সৃষ্টি হবে। তবে দু’দেশের ভিতরে অসামরিক পরমাণু চুক্তি যদিও এ বার স্বাক্ষরিত হয়নি। তবে এই বিষয়কে নিয়ে দ্রুত এগিয়ে নিয়ে যেতে জোর দেওয়া হয়েছে।

পরিকাঠামোয় বিপুল লগ্নির প্রতিশ্রুতি

সংবাদ সংস্থা


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হাতে হাত। সৌজন্য বিনিময়ে দু’দেশের প্রধানমন্ত্রী। নরেন্দ্র মোদী এবং জাপানের শিনজো আবে। ছবি: পিটিআই

পাঁচ বছরে ৩,৫০০ কোটি ডলার।
ভারতের পরিকাঠামো ক্ষেত্রে বিপুল বিনিয়োগের প্রতিশ্রুতি দিল জাপান। কথা দিল, নরেন্দ্র মোদীর স্বপ্নের বুলেট ট্রেন প্রকল্পে আর্থিক এবং প্রযুক্তিগত সহায়তার। প্রতিরক্ষা, হাইওয়ে, স্বাস্থ্য পরিষেবা-সহ বিভিন্ন ক্ষেত্রে চুক্তি সই করল দুই দেশ। প্রধানমন্ত্রী হিসেবে সূর্যোদয়ের দেশে প্রথম সফরে মোদীও জানিয়ে এলেন, সেখানকার লগ্নি প্রস্তাবকে দ্রুত ছাড়পত্র দিতে বিশেষ টিম গড়বেন তিনি। যার উপর সরাসরি নজরদারি থাকবে তাঁর দফতরের।
এর আগে গুজরাতের মুখ্যমন্ত্রী হিসেবে জাপানে একাধিক বার এসেছেন মোদী। সে দেশের প্রধানমন্ত্রী শিনজো আবের সঙ্গে তাঁর ব্যক্তিগত সম্পর্কও যথেষ্ট উষ্ণ। এই পরিস্থিতিতে এ দিন অন্তত লগ্নি প্রস্তাবে মোদীর ঝুলি ভরে দিয়েছে জাপান। বৈঠকের পর শিনজো আবের দেশ জানিয়েছে, আগামী পাঁচ বছরে ভারতে মূলত পরিকাঠামো উন্নয়নে ৩,৫০০ কোটি ডলার ঢালবে তারা। যার একটা বড় অংশ আসবে তাদের বিদেশি উন্নয়ন সহায়তা (ওভারসিজ ডেভেলপমেন্ট অ্যাসিস্ট্যান্স) তহবিল থেকে। পাঁচ বছরে এ দেশে দ্বিগুণ হবে জাপানি সংস্থাগুলির বিনিয়োগের অঙ্কও।
আবে জানিয়েছেন, ভারতে উন্নত প্রযুক্তির পরিকাঠামো, স্মার্ট সিটি নির্মাণ, গঙ্গা-সহ বিভিন্ন নদীর সাফাই অভিযান ইত্যাদি প্রকল্পে টাকা ঢালবে তাঁর দেশ। এ ছাড়াও জাপানি লগ্নি যেতে পারে বিভিন্ন সরকারি-বেসরকারি যৌথ উদ্যোগ, উৎপাদন শিল্প, অপ্রচলিত শক্তি, কর্মী-দক্ষতা বৃদ্ধি, কৃষি ও খাদ্যপ্রক্রিয়াকরণ শিল্প, হিমঘর, গ্রামোন্নয়ন ইত্যাদি ক্ষেত্রে। তা ছাড়া, আমদাবাদ-মুম্বইয়ের মধ্যে অতি দ্রুত গতির বুলেট ট্রেন চালানোর সম্ভাব্যতা খতিয়ে দেখার কাজ দ্রুত শেষ করতে চায় দুই দেশ। তাড়াতাড়ি মিটিয়ে ফেলতে চায় পশ্চিম পণ্য করিডর, দিল্লি-মুম্বই শিল্প করিডর এবং চেন্নাই-বেঙ্গালুরু শিল্প করিডরের কাজও। যে কারণে বৈঠক শেষে টোকিও-ঘোষণায় বলা হয়েছে, উৎপাদন শিল্প এবং পরিকাঠামোকে দ্রুত ঢেলে সেজে সকলের জন্য উন্নয়নের যে সাহসী স্বপ্ন মোদী দেখছেন, তাকে আরও ব্যাপক এবং পোক্ত সমর্থন দিতে চান আবে।
জাপানে এসে দু’দেশের কূটনৈতিক সম্পর্ক আরও পোক্ত করতে মোদী মন্দির কিংবা বৌদ্ধ মঠে গিয়েছেন ঠিকই। কিন্তু পাখির চোখ করেছেন পরিকাঠামোয় বিপুল জাপানি বিনিয়োগকেই। যে কারণে এই সফরে আদানি গোষ্ঠীর চেয়ারম্যান গৌতম আদানি, ভারত ফোর্জের সিএমডি বাবা কল্যাণী, এয়ারটেল কর্ণধার সুনীল মিত্তল, আইসিআইসিআই ব্যাঙ্কের এমডি-সিইও ছন্দা কোছর, আদি গোদরেজের মতো শিল্পপতিদের সঙ্গে নিয়েছেন তিনি। আর এ দিন জাপানে লগ্নির সম্ভাবনাময় গন্তব্য হিসেবে ভারতকে তুলে ধরেছেন পুরোদস্তুর বিপণনের ঢঙে।
মোদীর দাবি, খারাপ সময় কাটিয়ে ইতিমধ্যেই ঘুরে দাঁড়াতে শুরু করেছে ভারতের অর্থনীতি। যার ইঙ্গিত স্পষ্ট চলতি অর্থবর্ষের প্রথম ত্রৈমাসিকে বৃদ্ধি ৫.৭ শতাংশে পৌঁছে যাওয়ার মধ্যে। তিনি বোঝাতে চেষ্টা করেছেন, ক্ষমতায় এসে মাত্র ১০০ দিনের মধ্যে কী ভাবে একটি গতিশীল, চিন্তাশীল এবং সংস্কারমুখী প্রশাসন তৈরি করতে চেষ্টা করেছেন তাঁরা। এর উদাহরণ হিসেবে তিনি বলেছেন রেলে ১০০% বিদেশি লগ্নির দরজা খুলে দেওয়ার কথা। টেনে এনেছেন, বিমা ও প্রতিরক্ষায় বিদেশি লগ্নির ঊর্ধ্বসীমা বৃদ্ধির প্রসঙ্গ। জাপানি শিল্পপতিদের সামনে জানিয়েছেন, কী ভাবে বিভিন্ন বিনিয়োগ-প্রস্তাব দ্রুত খতিয়ে দেখে তাকে ছাড়পত্র দিতে এক-জানালা ব্যবস্থার উপর জোর দিচ্ছেন তিনি। তাঁর কথায়, “শিল্প ও সরকারের তালমিল থাকা যে কত জরুরি, তা খুব ভাল ভাবে বুঝতে পারি আমি।” আর তার পরেই তাঁর প্রতিশ্রুতি, জাপানি লগ্নি প্রস্তাব দ্রুত খতিয়ে দেখতে বিশেষ টিম তৈরি করার।
এমনিতেই এ দেশে অন্যতম বৃহৎ অঙ্কের বিদেশি বিনিয়োগ আসে সূর্যোদয়ের দেশ থেকে। তার উপর সেই গুজরাতের মুখ্যমন্ত্রী থাকার সময় থেকেই সে দেশে মোদীর ভাবমূর্তি উজ্জ্বল। এই পরিস্থিতিতে দিল্লির মসনদে বসার পর মোদীর প্রথম বিদেশ সফরের গন্তব্য হওয়ার কথা ছিল জাপানই। কিন্তু তখন পিছিয়ে গিয়েছিল সেই সফর। অনেকের মতে, মোদী তখন মনে করেছিলেন, পরিস্থিতি কিছুটা গুছিয়ে নেওয়ার পর সেখানে গেলে, সাফল্যের দিক থেকে ঐতিহাসিক উচ্চতায় পৌঁছতে পারে জাপান সফর। উৎপাদন শিল্প ও পরিকাঠামোয় মোটা অঙ্কের জাপানি লগ্নি টানাকে প্রথম থেকেই পাখির চোখ করেছিলেন তিনি। শিল্পমহলের এক বড় অংশের মতে, সেই কাজে তিনি যথেষ্ট সফল। যেমন, ছন্দা কোছরই বলছেন, আগামী দিনে বাড়তি কয়েকশো কোটি ডলার জাপানি বিনিয়োগ ভারতে আসার সম্ভাবনা।
এই বিপুল লগ্নি প্রতিশ্রুতির কতটা সত্যিই কতটা বাস্তবায়িত হবে? এর উত্তর দেবে সময়ই।
Sep 02 2014 : The Economic Times (Kolkata)
ET EXCLUSIVE Q&A - We Look at Cultural Identity of Country in Particular Way
RAM MADHAV BJP GENERAL SECRETARY



Sarsanghchalakji has not said anything new: Madhav while defending Bhagwat
How do you look at the controversy which erupted after RSS chief Mohan Bhagwat said that all Indians were in essence Hindus, following which Najma Heptullah's comments created a similar controversy.
I have said this before and I say it again, Sarsanghchalakji (Mohan Bhagwat) has not said anything new; it has been the position of RSS from the beginning. We look at the cultural identity of the country in a particular way. It is not about religion, but about the civilizational and cultural identity.My simple point is: one may or may not agree with him, but one should be clear that he was not talking about any religious identity, nor is he talking about obliterating any religious identity. One has to be clear, one should not misrepresent what he has to say. One can have disagreements. As for what Najma Heptullahji said, I look at the controversy emanating from it as an attempt to distort her statements.
This is the first time that BJP has got a clear majority on its won in the Lok Sabha. What are the possibilities of this mandate?
We have not only got a majority but we stand as the only national party having garnered seats from most states. In places where we are not traditionally strong, we have got a good share of the vote percentage. Our priority is to strengthen the party organisation in the south and the east: there's immense scope for expansion there.
While your move to BJP from RSS has been part of a long tradition of people being on loan to the party.How does this switch to pure political work pan out in your case?
I have been asked to work in the party by RSS. It is a new environment, and yes, the work culture in the party is different from that of RSS. Political activity is different from non-political social activity undertaken by RSS. I'm getting used to it and undoubtedly enjoying.
Your entry into the party has also coincided with party elders like LK Advani and MM Joshi being moved to what's seen as a non-operational body of the margdarshak mandal...It was only after consulting these elders, certain decisions were taken. It was seen as being in the interest of the party, and the elders themselves will, I'm sure, extend all co-operation and support to the party leadership.
How do you explain dip in BJP's electoral fortunes in the bypolls?
Ganging up against BJP in an unholy alliance, all parties coming together with the sole purpose of stalling BJP, yet failing to stall it, how can you con sider this a victory? Nitish Kumar has seen his party become a junior partner to RJD with two seats; Congress is left with one seat, and in return, allowing the return of Lalu Prasad into political prominence again. How can this be considered a victory?
Do you consider it Lalu's victory?
It's an unholy alliance which worked because of certain arithmetic. Even in that, individually we are bigger than the parties which make the alliance.
-Interviewed by Nistula Hebbar



Sep 02 2014 : The Times of India (Ahmedabad)
TOI-IPSOS SURVEY - Cities cheer Modi's first 100, say he can be matchwinner

TIMES NEWS NETWORK


Inflation Main Concern, Poor Least Enthusiastic About Govt
So far, so good. That, in a nutshell, seems to be the popular assessment in big Indian cities about the performance of Prime Minister Narendra Modi and his government in the first 100 days in office. They believe that the government has got its priorities largely right and holds promise for the future, but are not too enthused by its tackling of inflation.Modi's own style is seen as a mix of decisive and dictatorial. These are among the findings of an exclusive poll done for TOI in Delhi, Mumbai, Kolkata, Chennai, Bangalore, Hyderabad, Pune and Ahmedabad. Interestingly, there were relatively minor differences in responses of different genders, age groups and socio-economic strata, but huge variations among cities.
Chennai and Kolkata emerged as the cities most sceptical of the new government's performance while Pune, Ahmedabad, Hyderabad and Bangalore seem most in awe of Brand Modi. The scepticism of Chennai and Kolkata would seem to reflect the BJP's electoral performance in the respective states and the presence of strong re gional parties themselves riding popularity waves.Overall, 16% of respondents rated the performance of the government as `excellent' and another 42% rated it as `good', which means a majority approve Modi government.About a third thought it was `average' and roughly a 12th characterised the performance as `poor' or `very poor'.
As in the responses to several other questions, the lowest socio-economic strata, SEC D, was less enthusiastic about Modi sarkar than the top one, SEC A. In the top bracket, only one in 20 said the performance was poor or very poor, while in SEC D that proportion was about one in eight. The more sharp variation was among cities, with just 12% in Chennai describing the government's performance as excellent or good against 86% in Pune and 76% in Ahmedabad.
Asked whether the government had got its priorities right, 36% said it had them absolutely right and 53% said they were more or less right.Once again, while 58% in Pune thought the priorities were on the dot, only 5% in Chennai and 24% in Kolkata thought so. Modi's style was seen as decisive by 51%, dictatorial by 19%, and both dictatorial and decisive by 25%, though these proportions varied significantly across cities. So, Modi was viewed as a leader well in control. On the price front, the government's performance was seen to be not so good. Only 11% felt it had done an excellent job on this front and 37% said it had done a good job, while 40% said it was average and the rest said it was either poor or very poor. Mumbai was the most critical with just 20% saying the government had done a good or excellent job versus 33% who said it had done a poor or very poor job of reining in prices.
The poll was conducted by leading research agency IPSOS and covered over 2,000 people in the ages 20-60, split equally between male and female and between SECs A to D.







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