Monday, September 1, 2014

विकलांगकता मुक्ति महोत्सव जापान सहयोगे परमाणु संधि मर्फते पलाश विश्वास

विकलांगकता मुक्ति महोत्सव जापान सहयोगे परमाणु संधि मर्फते
पलाश विश्वास
बुलेट ट्रेन चलाने के मोदी के सपने को पूरा करेगा जापान, भारत में करेगा 2 लाख करोड़ रुपए निवेश
फोटो: मोदी के सम्‍मान में आबे ने चाय का स्‍पेशल कार्यक्रम आयोजित किया था।

कारपोरेट वकील एवं केसरिया हिंदू राष्ट्र के एकाधार एकाधिकारी वित्त प्रतिरक्षा मंत्री अरुण जेटली का बयान कि राष्ट्र अब मुकम्मल तौर पर नीतिगत विकलांगकता यानि पालिसी पैरालिसिस से मुक्त है,का जश्न तोक्यों में मानया जा रहा है।

हिटलर और मुसोलिनी के सहयोगी जापान तकनीकी क्रांति में अमेरिका से दो कदम आगे है और तकनीकी क्राति का सीधा मतलब है विनियंत्रण, विनिवेश, विनियमन, श्रम हत्या, उत्पादन प्रणाली का अंत,कृषि और कृषि समाज का सफाया,देश में विदेश का मजा,हैव और हैव नाट्स का वर्गीकरण,आटोमेशन और छंटनी।

नीतिगत विकलांगकता दूर करने से वित्तीय प्रतिरक्षा मंत्री का आशय यही है।

इसी तरह रघुपति राजन रिजर्वबैंक के अवस्थान से घोषणा कर चुके हैं कि बैंकों के खराब लोन की हालत आशंकाजनक नहीं है।

नायक कमिटी की सिफारिशें लागू करने और सरकारी बैंकों के बेसरकारीकरण अभियान के बरअक्श रिजर्व बैंक के गवर्नर का यह बयान रोमहर्षक है जबकि वित्तीयसमावेश के नाम समस्त देशवासियों का बैंकखाता खुलवाकर उन्हें आधार डेबिट कार्ड धरवाने में सिर्फ सरकारी  बैंक खाते से जो पचहत्तर करोड़ रुपये का न्यारा वारा हो रहा है त्योहारी सांढ़ संस्कृति की अंधी दौड़,बाजार में नकदी प्रवाह जारी रखने के लिए,उसकी रिकवरी का दूर दूर तक कोई अंदेशा नहीं है।

इस नकदी प्रवाह को समताल रखने की मौद्रिक कवायद ही भारतीय वित्तीय प्रणाली की एकमेव गतिविधि है बाकी रेटिंग और कारपोरेट लाबिइंग की महिमा अपरंपार।

वैसी भारत की वित्तीय व्यवस्था वित्त मंत्रालय,सेबी और रिजर्वबैंक के साझे चूल्हे पर पकने वाली तंदूरी है जो महामहिम संप्रदाय के लिए भले ही शिक कबाब हो,लेकिन आम जनता के लिए महज ख्याली पुलाव है।वैसे बाजार में बुल रन थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। आज तो बाजार ने जादूई स्तरों को भी पार कर लिया। निफ्टी पहली बार जहां 8000 के पार निकला, वहीं दिन के कारोबार में सेंसेक्स ने 26900.3 का नया रिकॉर्ड ऊपरी स्तर बनाया। निफ्टी ने भी आज 8035 का नया रिकॉर्ड ऊपरी स्तर बनाया।

भारत में ख्याली पुलाव का पक्का इंतजाम करके नीतिगत विकलांगकता दूर करने के लिए हिटलर मुसोलिनी और आफसा सलवाजुड़ुम शासक तबके के केसरिया कारपोरेट पंत प्रधान दूसरे चरण के आर्थिक सुधारों के पौराहित्य के लिए जापानी साम्राज्यवाद को न्यौतन गये है।इसी सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को प्रधानमंत्री कार्यालय में जापान के लिए विशेष दल बनाने की घोषणा की। अपनी पांच दिवसीय जापान यात्रा के तीसरे दिन सोमवार को मोदी ने कहा कि औद्योगिक कामकाज देखने वाली दो सदस्यीय टीम में अब जापान के दो सदस्य भी होंगे। ये दोनों जापानी सदस्य भारतीय सदस्यों के साथ स्थाई रूप से बैठेंगे और निर्णय निर्माण प्रक्रिया का हिस्सा होंगे। यह टीम प्रधानमंत्री कार्यालय का हिस्सा होगी। प्रधानमंत्री ने कहा कि व्यवसाय को सहज बनाने की तरह ही यह पहल जापान के लिए सहज होगा।

जाहिर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जापान यात्रा इंडस्ट्री को काफी पसंद आ रही है। टोक्यो में बायोकॉन की सीएमडी किरण मजूमदार शॉ ने कहा कि भारत और जापान का साथ आना, दोनों ही देशों के लिए फायदेमंद होगा।

किरण मजूमदार शॉ के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडस्ट्री को चुनौतियों में मदद करने का भरोसा दिलाया है। देश के व्यापार के लिए जापान एक अहम पार्टनर साबित होगा। भारत के साथ हाथ मिलाने से जापान का निवेश बढ़ेगा। जापान का साथ आने से इंफ्रा, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में फायदा मिलेगा।

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को कहा कि निराशा का माहौल खत्म हो गया और उन्होंने जापानी कारोबारियों को भारत के विकास की पहल में हाथ मिलाने के लिए आमंत्रित किया। साथ ही उन्होंने बगैर भेद-भाव के और तेजी से मंजूरी देने का वादा किया और जापानी कंपनियों को मदद करने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय के तहत विशेष प्रबंधन दल की स्थापना की घोषणा की।

गौरतलब है कि टोक्यो में आयोजित जापान और भारत के शीर्ष उद्योगपतियों के सम्मेलन में मोदी ने रेलवे में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की नीति को उदार बनाने का जिक्र किया और कहा कि भारत में नियम और कानून बदले जा रहे हैं जिसका नतीजा निकट भविष्य में दिखेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जापान यात्रा कारगर साबित होने लगी है। जापान ने भारत में 2 लाख करोड़ रुपये के निवेश का ऐलान किया है। जापान ये निवेश 5 साल के अंदर करेगा।

इस निवेश का इस्तेमाल अलग-अलग सेक्टर्स में किया जाएगा। जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करना, कनेक्टिविटी बढ़ाना, स्मार्ट सिटी का निर्माण। इसके अलावा मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को आगे बढ़ाने के लिए और गंगा की सफाई के साथ अन्य नदियों की सफाई के लिए भी इस निवेश का इस्तेमाल होगा। जापान मैन्युफैक्चरिंग और क्लीन एनर्जी के लिए भारत में निवेश करेगा।

इसके अलावा जापान ने प्रधानमंत्री के फ्लैगशिप प्रोजेक्ट बुलेट ट्रेन को भी हकीकत बनाने का भरोसा दिलाया है। जापान का कहना है कि वो बुलेट ट्रेन को आर्थिक और तकनीकी सहयोग देने के लिए तैयार है।

जापीनी तकनीकती क्रांति के आयात के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को भारत में कौशल विकास के लिए जापान से मदद मांगी। अपनी पांच दिवसीय यात्रा के तीसरे दिन सोमवार को मोदी ने यहां कहा कि भारत दुनिया का सबसे अधिक युवा देश है और यहां के युवाओं की बड़ी संख्या दुनिया में श्रम बल की आवश्यकता की पूर्ति कर सकता है।

मोदी ने कहा कि वह चाहते हैं कि जापान भारत को कौशल विकास में मदद दे। जापान 'वास्तव में इस दिशा में हमारी मदद कर सकता है।'

इसी के साथ देश के शेयर बाजार में सोमवार को दोपहर के कारोबार में प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स और निफ्टी अपने अब तक के जीवन काल के ऐतिहासिक ऊपरी स्तर पर कारोबार करते देखे गए। इस दौरान निफ्टी अपने जीवन काल में पहली बार 8,000 की मनोवैज्ञानिक सीमा के ऊपर पहुंच गया।


कोरिया और चीन में जापानी साम्राज्यवाद ने जो गुल खिलाये,उससे शायद स्वदेशी सूरमाओं को खास एतराज नहीं है।जैसे उन्हें एफडीआई राज,प्रोमोटर बिल्डर माफिया राज से कोई परहेज नहीं है और भष्टाचारविरोधी अभियान को इस्लामविरोधी इजराइल अमेरिकापरस्त आरक्षणविरोधी संविधान विरोधी नागरक और लोकतंत्र विरोधी संविधानविरोधी अति देशभक्त अभियान में बदलने में और तमाम जनांदोलन, सामाजिक कार्यकलापों को रस्मी हिंदुत्व में तब्दील करने में उनकी कोई सानी नहीं है।

पश्चिम के बाजार में जो जापानी तकनीक की धूम है,उसमें अपने महा गौरवान्वित निराधार आधार आईटी कंपनियों का हश्र क्या होगा,गाडी और इलेक्ट्रानिक सेक्टर में जापानी वर्चस्व के बावजूद,पड़ोस में बांग्लादेशी अर्थव्यवस्था पर जापानी शिकंजे की वास्तविकता के बावजूद केसरिया अर्थशास्त्रियों और मीडिया महारथियोम के साथ कृपाप्रार्थी विद्वतजनों को इसकी खास परवाह जाहिर है, नहीं है।

गौरतलब है कि अगस्त महीने में मारुति सुजुकी की बिक्री में जबर्दस्त बढ़त देखने को मिली है। साल दर साल आधार पर अगस्त में मारुति सुजुकी की बिक्री 26 फीसदी बढ़ गई है। अगस्त में मारुति सुजुकी ने कुल 1.10 लाख गाड़ियां बेची हैं। वहीं पिछले साल अगस्त में मारुति सुजुकी ने 87323 गाड़ियां बेची थी।

इंफ्रा बूम बूम,बुलेट चतुर्भुज और स्मार्ट सेज महासेज विदेश स्वदेश से किन कंपनियों का भला होने वाला है,यह सर्वविदित हैं चाहे उनके आका राजनीतिक बवाल की आशंका से तोक्यो में फिलवक्त बिजनेस फ्रेंडली प्रधानमंत्री के साथ नहीं हैं।

नीतिगत विकलांगकता से पार पाने के लिए अब भारत जापान शिखर वार्ता में असैन्य परमाणु संधे और रक्षा सहयोग पर भी निर्णायक समझौते हो रहे हैं।

रिसते परमाणु संयंत्रों की आवक से देश की अर्थव्यवस्था की जा बिकवाली होनी है सो तो होगी ही,भोपाल गैस त्रासदी की बारंबारता भी सुनिश्चित होगी और इसी के तहत वित्तीयघाटा पाटा जायेगा और वृद्धिदर भी तेज होगी।

इस परमानंददायक चरमोपलब्धि के बाद स्वदेश लौटकर राष्ट्रीयशिक्षक मोदी महाराज शिक्षक दिवस पर एकमुश्त पूरे देश के छात्रो को भागवत कथा विकास कामसूत्र का पाठदेंगे,ऐसा बंगाल की आपत्ति के बावजूद बाकी गैर केसरिया राज् सरकारों की सहमति से इंतजाम है।

गौरतलब है कि शिक्षक दिवस पर टेलीविजन, रेडियो और इंटरनेट के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के देश के प्रत्येक छात्र तक पहुंचने की पहल से दिल्ली के निजी स्कूल असहज महसूस कर रहे हैं और इनका मानना है कि इसके लिए व्यवस्था करने को मजबूर करने से अन्य क्रार्यक्रम प्रभावित होंगे। दिल्ली सरकार के शिक्षा महानिदेशालय (डीओई) ने अधिसूचना जारी करके सभी निजी और सरकारी स्कूलों को प्रधानमंत्री के संबोधन का और छात्रों से प्रश्न उत्तर सत्र का सीधा प्रसारण 5 सितंबर को शाम 3 बजे से 4 बजकर 45 मिनट तक करने का निर्देश दिया था।

गौरतलब है कि इस हिटलरशाही  निर्देश में कहा गया है कि इसमें किसी तरह की लपरवाही को गंभीरता से लिया जाएगा।

डीओई का निर्देश इस बारे में मानव संसाधन विकास मंत्रालय की पहल के बाद सामने आया जिसमें देश के सभी स्कूलों में प्रधानमंत्री के संबोधन को दिखाने की व्यवस्था करने को कहा गया था।मजबूरन  काफी स्कूलों ने इस पहल को सकारात्मक और अच्छा बताया है लेकिन वह महसूस करते हैं कि इसे प्रदर्शित करने के लिए जरूरी व्यवस्था करने के लिए उन पर काफी भार पड़ेगा और वह दिवस को ठीक ढंग ने नहीं मना पाएंगे।

मजे की बात तो यह है कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर बिखरे अस्मिताबद्ध गैर भाजपा शासित राज्यों समेत पूरे देश के राज्य स्कूली छात्रों को शिक्षक दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन सुनाने व उनसे संवाद की व्यवस्था करने में सभी तरह की मदद कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, झारखंड और आंध्र प्रदेश ने कहा कि वे प्रधानमंत्री का संबोधन प्रसारित करने के लिए सभी तरह की व्यवस्था कर रहे हैं जिसमें स्कूलों में टीवी सेट की व्यवस्था करना शामिल हैं।
बहरहाल पश्चिम बंगाल ने कुछ असहमति के स्वर व्यक्त करते हुए कहा कि कई स्कूलों में ऐसी व्यवस्था करने के लिए आधारभूत ढांचा नहीं है। राज्य के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा, ‘ अगर वे (केंद्र) ऐसा निर्देश देते हैं, तब इसकी व्यवस्था करने के लिए पर्याप्त समय नहीं है। स्कूलों में आधारभूत ढांचा कहां हैं।’


इसे विकलांगता मुक्ति महोत्सव का चरमोत्कर्ष समझा जा रहा है,हालांकि हिंदूकरण और मनुस्मृति शिक्षा के इस विपुल आयोजन पर तीन दिन हुए खबर फटने पर भी धर्म निरपेक्ष खेमे पर हंगामा कोई बरपा नहीं है।

वित्त मंत्रालय से रक्षा समझौते हो रहे हैं।वित्त मंत्रालय से पर्यवरण प्रकृति मनुष्य के लिए विनाश कारी परियोजनाओं को हरी झंडी दी जा रही है,तो उसे वित्तीय प्रबंधन की दाद देनी पड़ेगी।

सीबीआई दबिश से परेशान दीदी को अपने ही वध्य वाम के अवाम की परवाह सबसे ज्यादा है तो शिकंजे में हैं पोंजी नेटवर्क में सबसे शातिराना रोल प्ले करने वाले स्टार सुपरस्टार रिजर्व बैंक और सेबी के अफसरान जो फर्जी शोयरों के गोऱख धंधा बजरिये पोंजी पद्धति से देश की अर्थव्यवस्था साधते हैं शेषनाग की तरह।

देश में दसों दिशाओं में कालाधन की जय जयकार है,विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के लिए मुक्तांचलों मसलन मारीशस और हांगकांग सिंगापरु होकर वही कालाधन अबाध पूंजी प्रवाह है और कालाधन निकालने के लिए केसरिया कारपोरेट सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है और यही फिलवक्त इकानामिक्स है।

मुश्किल यह है के वैज्ञानिक दृष्टि और इतिहासबोध के तरोताजा केसरिया विशेषज्ञ अफगानिस्तान,गंधार,चीन से लेकर श्रीलंका,सुमात्रा, जावा,बाली , कंपुचिया, सिंगापुर, म्यांमार तक को अखंढ सनातन भारत का उपनिवेश बताते अघाते नहीं है।केसरिया सत्ता गुरु गोवलकर की तर्ज पर सिख,बौद्ध और जैन भूगोल को हिंदू राष्ट्र के भूगोल में समाहित करने के माहन एजंडे पर काम कर रहे हैंं और नमो महाराज की बुद्धं शरणं गच्चामि बनारस स्मार्ट सिटी संकल्प के साथ इसी एजंडे के तहत है।लेकिन भारतीय महाद्वीप को एक आर्थिक,राजनीतिक ऐतिहासिक भौगोलिक ईकाई की तरह देखन की कोई दृष्टि नहीं है।

पाकिस्तान में गृहयुद्ध का सा नजारा शत्रुदेश का मामला है हमारे लिए ,मध्यपूर्व के तेलक्षेत्र के दखल युद्ध का वसंदत वज्र निर्घोष नहीं है।मुक्ताबाजारी साम्राज्यवाद जो निशाने साध रहा है,उस चांदमारी में हम खुद को कवचकुंडलधारी कर्ण मानकर चल रहे हैं।

पाकिस्तान में लोकतंत्र कमजोर पड़ने के बाद सैन्य वर्चस्व की अनिवार्य परिणति भारत पाक युद्ध है,जो साम्राज्यवादी रणनीति तो है ही,उससे बड़ी आकांक्ष है सीमाओं के आर पार सत्ता वर्ग की,क्योंकि मुनाफावसूली के लिए युद्ध से बेहतर कोई दूसरा साधन नहीं है।

शैतानी राकफेलर और राथ्सचाइल्ड घरानों का सदियों का इतिहास यही है,जिनके जिम्मे बारत में मुक्तबाजारी सुधारों को अंजाम देने का एजंडा है।

बहरहाल पाकिस्तान में सरकार के खिलाफ जारी प्रदर्शन को लेकर संकट और तकरार बढ़ने के बीच सेना प्रमुख राहिल शरीफ और प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच मुलाकात जारी है।मीटिंग में तहरीक-ए-इंसाफ़ पार्टी के नेता इमरान खान और मौलवी ताहिरुल कादरी के समर्थकों को उग्र प्रदर्शनों के मद्देनजर देश की आंतरिक स्थिति पर चर्चा होने की संभावना है।  सुबह प्रदर्शनकारी पहले सचिवालय और उसके बाद सरकारी टीवी चैनल पीटीवी के दफ्तर में घुस गए थे। प्रदर्शनकारियों ने पीटीवी का प्रसारण भी बंद करवा दिया था।

इसी बीच बाजार विश्लेषकों के मुताबिक इकोनॉमी के अच्छे दिन लौट आए हैं। इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में इकोनॉमी में शानदार रिकवरी देखने को मिली है और जीडीपी 5.7 फीसदी पर पहुंच गई है जो 2.5 साल की सबसे तेज रफ्तार है।

साल दर साल आधार पर वित्त वर्ष 2015 की अप्रैल-जून तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 4.7 फीसदी से बढ़कर 5.7 फीसदी पर पहुंच गई है। अप्रैल-जून तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 10 तिमाहियों में सबसे ज्यादा रही है।

सालाना आधार पर वित्त वर्ष 2015 की पहली तिमाही में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ -1.2 फीसदी से बढ़कर 3.5 फीसदी पर पहुंच गई है। हालांकि सालाना आधार पर अप्रैल-जून तिमाही में कृषि सेक्टर की ग्रोथ 4 फीसदी से घटकर 3.8 फीसदी रही।

सालाना आधार पर वित्त वर्ष 2015 की पहली तिमाही में माइनिंग सेक्टर की ग्रोथ -3.9 फीसदी से बढ़कर 2.1 फीसदी पर पहुंच गई है। सालाना आधार पर अप्रैल-जून तिमाही में इलेक्ट्रिसिटी सेक्टर की ग्रोथ 3.8 फीसदी से बढ़कर 10.2 फीसदी पर पहुंच गई है।

सालाना आधार पर वित्त वर्ष 2015 की पहली तिमाही में कंस्ट्रक्शन सेक्टर की ग्रोथ 1.1 फीसदी से बढ़कर 4.8 फीसदी पर पहुंच गई है। सालाना आधार पर अप्रैल-जून तिमाही में ट्रेड, होटल सेक्टर की ग्रोथ 1.6 फीसदी से बढ़कर 2.8 फीसदी पर पहुंच गई है।


प्रधानमंत्री जापान दौरे पर निवेशकों का भरोसा जीतने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं। जापान यात्रा के तीसरे दिन आज वो जापान की राजधानी टोक्यो में हैं। जहां उन्होंनें ऊर्जा क्षेत्र में जापान की मदद लेने का ऐलान किया और जापानी कारोबारियों को भारत के विकास की यात्रा में भागीदार बनने का भी न्यौता दिया। उन्होंने कहा कि जापानी कारोबारियों की सहूलियत के लिए पीएमओ के तहत एक स्पेशल मैनेजमेंट टीम भी बनाई जाएगी। कारोबार को आसान बनाना सरकार की प्राथमिकताओं में से एक है।

टोक्यो में भारत और जापान के बड़े उद्योगपतियों को संबोधित करते हुए उन्होंने रेलवे, रक्षा और इंश्योरेंस में एफडीआई की नीति में ढील देने का भी हवाला दिया। प्रधानमंत्री ने एशिया के विकास के लिए भारत और जापान के मिलकर काम करने पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि क्वॉलिटी, जीरो डिफेक्ट और सिस्टम के मामले में भारत, जापान के रास्ते पर चलना चाहता है। चीन पर निशाना साधते हुए मोदी ने कहा कि भारत विस्तारवाद नहीं बल्कि विकासवाद के रास्ते पर चलना चाहता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापान की राजधानी टोक्यो में जापानी उद्योगपतियों के सम्मेलन में अपने काम की जमकर तारीफ की। इस दौरान पूर्ववर्ती यूपीए सरकार पर निशाना साधने से भी वो नहीं चूके। नरेंद्र मोदी ने कहा कि हमारे 100 दिनों के कामों का असर दिखना शुरू हो गया है और देश से 10 साल का निराशा का मौहाल खत्म हुआ। जून तिमाही में 5.7 फीसदी ग्रोथ पर उत्साहित होते हुए मोदी ने कहा कि इससे आत्मविश्वास बढ़ा है।

उन्होंने कहा कि 21 वीं सदी को एशिया की सदी बनाने के लिए भारत और जापान को साथ आना होगा। उद्योग जगत को भरोसा देते हुए मोदी ने कहा कि सरकार ने निवेश का माहौल सुधारने और कारोबार को आसान बनाने के लिए कई काम किए और आगे भी ये काम जारी रहेगा। दोनों देशों में लंबे अर्से के बाद स्थिर सरकार आई है और इससे जापान भारत के बीच संबंध बढ़ेंगे। विस्तारवादी नीति से मानव जाति का कल्याण नहीं होगा और भारत-जापान के संबंध पर एशिया का विकास निर्भर करेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापान में अपनी सरकार का एजेंडा सामने रखते हुए कहा कि स्वच्छ ऊर्जा हमारी सबसे बड़ी जरूरत है और इसके लिए विकास और पर्यावरण साथ-साथ चलें तो ही अच्छा रहेगा। भारत स्वच्छ ऊर्जा के लिए जापान की मदद लेगा। अपने बजट में सरकार ने इंफ्रा सेक्टर के लिए कई फैसले लिए हैं और डिफेंस सेक्टर में 49 फीसदी एफडीआई की मंजूरी दी है। सरकार इंफ्रा सेक्टर में 100 फीसदी एफडीआई पर भी काम कर रही है और हर सेक्टर के सुधार के लिए कदम उठा रही हैं। देश में ग्रोथ के लिए जरूरी हर कदम उठाए जाएंगे।


जापान ने भारत में बुलेट ट्रेन चलाने के लिए मदद देने पर सहमति जताई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पांच दिवसीय जापान यात्रा के तीसरे दिन सोमवार को जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ शिखर वार्ता में इस पर सहमति बनी। जापान ने अगले पांच साल के भीतर भारत में दो लाख करोड़ रुपए से ज्‍यादा का निवेश करने की भी बात कही है। दोनों देशों के बीच बातचीत में आतंकवाद, महिला सशक्‍तीकरण, कारोबार और शिक्षा के अलावा दूसरे तमाम मुद्दे उठे। शिखर वार्ता से पहले मोदी ने जापानी कारोबारियों को संबोधित किया था और उनसे भारत में निवेश करने की बात कही थी। मोदी ने तोक्‍यो स्थित 135 साल पुराने एक स्‍कूल का दौरा कर जापानी शिक्षा व्‍यवस्‍था का भी जायजा लिया था।
बुलेट ट्रेन में सहयोग देगा जापान
जापान ने अपने देश के बुलेट ट्रेन नेटवर्क शिंकाशेन की तर्ज पर भारत में इस सेवा को शुरू करने के लिए वित्‍तीय, तकनीकी और परिचालन संबंधी मदद देने पर सहमति जताई है। इसके अलावा जापान ने भारत-जापान निवेश प्रचार साझेदारी के तहत भारत को अगले पांच साल के भीतर 3.5 ट्रिलियन येन (203000 करोड़ रुपए) का निजी और सार्वजनिक निवेश करने की बात कही है। इस दौरान मोदी ने आबे से कहा कि भारत के इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर को आधुनिक बनाने में जापान ने जितना सहयोग दिया है, उतना सहयोग और किसी देश ने नहीं दिया।
आतंकवादियों के खात्‍मे पर बात
दोनों देशों के बीच बातचीत में आतंकवादियों और उनके सुरक्षित ठिकानों को खत्‍म करने पर भी सहमति बनी। इसके अलावा मोदी और आबे ने एक-दूसरे के देशों में जाने वाले स्‍टूडेंट्स की तादाद बढ़ाने पर भी बात की। भारत ने अपने यहां जापानी भाषा की शिक्षा को बढ़ावा देने पर सहमति जताई है। दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच बातचीत में महिला सशक्‍तीकरण का मुद्दा भी उठा। मोदी और आबे ने महिला शक्ति और देश के निर्माण और विकास में उनकी भूमिका की चर्चा की।
100 दिन के कामकाज का जिक्र
मोदी ने जापानी कारोबारियों से कहा था कि पिछले 100 दिनों के दौरान उनकी सरकार ने जो कदम उठाए हैं, उसका सकारात्‍मक असर हुआ है। उन्‍होंने कहा था, "हमने जो कदम उठाए हैं, उसके नतीजे साफ और सकारात्‍मक हैं। हमने प्रधानमंत्री कार्यालय को ज्‍यादा कुशल और उपयोगी बनाया है। हमने अपने बजट और रक्षा एवं रेलवे के क्षेत्र में कई नए पहल किए हैं।" अपने संबोधन में उन्‍होंने जापान से सहयोग बढ़ाने की भी वकालत की थी। उन्‍होंने कहा था, "ग्रीन एनर्जी और क्लीन एनर्जी के लिए जापान से सहयोग लेंगे और उन्हें सहयोग करेंगे। स्किल डेवलपमेंट की दिशा में भारत जापान के साथ मिलकर काम करना चाहता है। पूरी दुनिया यह मानती है कि 21वीं सदी एशिया की है। इस सदी का खाका तैयार करने के लिए भारत और जापान के बीच सहयोग बहुत जरूरी है।" भारत में निवेश को लेकर मोदी ने जापानी कारोबारियों को भरोसा दिया था कि गुड गवर्नेंस उनकी प्राथमिकता है। पीएम ने कहा था कि पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) में 'जापान प्लस' नाम की एक टीम बनेगी जो जापान से जुड़े मुद्दों को देखेगी। मोदी ने इस दौरान भारत में जापानी बैंक की अनुमति भी दी।
टोक्‍यो में शिक्षक बने मोदी
जापान की राजधानी पहुंचने के बाद प्रधानमंत्री ने 135 साल पुराने एक स्‍कूल का दौरा किया था। यहां उन्‍होंने बच्‍चों से बातचीत की और उनके संग बांसुरी भी बजाई थी। दरअसल, वह टोक्‍यो की शिक्षा व्‍यवस्‍था देखने पहुंचे थे और उन्‍होंने इसकी खूब तारीफ भी की। मोदी ने इस दौरान कहा कि भारत जापानी भाषा सीखने को उत्‍सुक है। उन्‍होंने जापानी शिक्षकों को भारत आने का न्‍योता भी दिया।
दैनिक भास्कर के मुताबिक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जोकि‍ पांच दि‍न की जापान यात्रा पर हैं वह जापान के उद्योगपत्‍ति‍यों को भारत में नि‍वेश के लि‍ए आकर्षि‍त करने के लि‍ए कई कदम उठाने की बात कही हैं। भारत को इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर डेवलपमेंट और रोजगार के लि‍ए बड़े पैमाने पर वि‍देशी नि‍वेश की जरूरत है और जापना इस फंड की कमी को पूरा कर सकता है। आइए जानते हैं मोदी जापान की कंपनि‍यों को लुभावने के लि‍ए क्‍या कर रहे हैं।  
1 नि‍वेश को फास्‍ट ट्रैक के लि‍ए पीएमओ की स्‍पेशल टीम
नरेंद्र मोदी ने जापान के कारोबारियों को संबोधित करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में जापानियों को निवेश में मदद के लिए एक विशेष टीम 'जापान प्लस' गठित की जाएगी। उन्होंने चीन का नाम लिए बिना '21वीं सदी के एशिया' के लिए भारत और जापान को स्वाभाविक साझेदार बताकर इशारों-इशारों में अपनी मंशा भी जता दी। मोदी ने कहा, ‘हमारी सरकार ने पि‍छले 100 दि‍नों में जो भी कदम उठाए हैं उसके परि‍णाम नजर आने लगे हैं और प्रोजेक्‍ट्स के लि‍ए सिंगल विंडो क्‍लीयरेंस भी अच्‍छे प्रशासन का हि‍स्‍सा है।’
2 जापान के स्‍कि‍ल डेवलपमेंट मॉडल को अपनाएंगे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि‍ वह भारत भी स्‍कि‍ल डेवलपमेंट एंड रि‍सर्च के जापान मॉडल को अपनाना चाहता है ताकि‍ 2020 तक ग्‍लोबल वर्कफोर्स की जरूरत को पूरा कि‍या जा सके।
3 जबावदेही और अच्‍छे प्रशासन का वादा
मोदी ने नि‍वेशकों को रि‍झाने के लि‍ए देश में कारोबार के लि‍ए केंद्र सरकार की जबावदेही और अच्‍छे प्रशासन का वादा किया है। उन्‍होंने कहा है कि‍ गुजरात के अनुभव को देखते हुए मैं यह जानता हूं कि‍ सरकार और उद्योग के बीच तालमेल बेहद महत्‍वपूर्ण है।   
4 चीन से ज्‍यादा जापान को तव्‍वजो
मोदी ने जापान और भारत के बीच ज्‍यादा गहरे और मजबूत तालमेल के लि‍ए ‘वि‍स्‍तार वाद’ की जगह ‘वि‍कास वाद’ पर तव्‍वजो दी। उन्‍होंने कहा है कि‍ जो बुद्ध को मानते हैं उनका विकास वाद में वि‍श्‍वास रहता है जो आगे बढ़ते हैं। लेकि‍न हम यह देख रहे हैं कि‍ लोग जमीन पर कब्‍जा करने का काम कर रहे हैं।   
5 भारतीय टीम में जापान के बि‍जनेस प्रति‍नि‍धि‍
मोदी ने कहा है कि‍ भारतीय टीम में दो जापानी बि‍जनेस प्रति‍नि‍धि‍ भी मौजूद हो सकते हैं जो बि‍जनेस प्रस्‍तावों पर फैसला ले सकते हैं। वह स्‍थायी रूप से फैसला लेने वाली टीम में शामि‍ल हो सकते हैं।

मजबूत जीडीपी से बाजार जोरदार बढ़त के साथ बंद

मजबूत जीडीपी से बाजार जोरदार बढ़त के साथ बंद
  • सेक्स और निफ्टी ऊच्चतम स्तर पर बंद
  • निफ्टी 8000 के पार बंद
  • निफ्टी के 50 में से 42 शेयर बढ़त के साथ बंद
  • सेंसेक्स 229 अंको की तेजी के साथ बंद
  • मिडकैप इंडेक्स 3.09 फीसदी की बढ़त के साथ बंद
  • स्मॉलकैप शेयर एक फीसदी की तेजी के साथ बंद
  • एफएमसीजी इंडेक्स को छोड़ सभी इंडेक्स हरे निशान में बंद
  • रियल्टी, सरकारी बैंक, इंफ्रा और मीडिया के शेयर दो फीसदी से ज्यादा की बढ़त पर बंद
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एबीपी आनंद की लाइव रपट देखेंः
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके जापानी समकक्ष शिंजो आबे के बीच आज होने वाली अहम शिखर वार्ता के दौरान भारत और जापान 'टू प्लस टू' नाम के एक सुरक्षा परामर्श ढांचे को शुरू करने पर राजी हो सकते हैं जिसमें दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्रियों को शामिल किया जाएगा.
ऐतिहासिक शहर क्योटो में अपने दौरे का दो दिन गुजराने के बाद मोदी रविवार की शाम टोक्यो पहुंचे.  मोदी ने क्योटो में आबे के साथ दो प्राचीन बौद्ध मंदिरों में दर्शन किए.
अपनी पांच दिवसीय जापान यात्रा के दूसरे दिन क्योटो में मोदी ने जानलेवा बीमारी सिकल सेल एनीमिया से मुकाबले के लिए जापानी मदद मांगी. भारत में आदिवासियों में यह बीमारी बड़े पैमाने पर पाई जाती है. मोदी ने क्योटो विश्वविद्यालय की स्टेम सेल रिसर्च फैसिलिटी के दौरे के दौरान यह मदद मांगी और उन्हें सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली.
सौहार्दपूर्ण संबंध रखने वाले 63 साल के मोदी और 59 साल के आबे का साथ क्योटो में काफी अच्छा रहा और अब आज दोनों नेताओं के बीच शिखर वार्ता होनी है.
किन-किन मुद्दों पर हो सकती है बात
भारत और जापान के संबंधों में उस वक्त एक नया अध्याय शुरू होने की संभावना है जब दोनों नेता रक्षा एवं आधारभूत संरचना के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर ध्यान देंगे और साथ ही व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने पर भी उनका जोर रहेगा.
उम्मीद है कि दोनों देश एक ऐसे सुरक्षा परामर्श ढांचा शुरू करने पर राजी हो सकते हैं जिनमें उनके विदेश और रक्षा मंत्री शामिल होंगे. दोनों देश ‘रेयर अर्थ’ के सह-उत्पादन से जुड़ा समझौता भी कर सकते हैं जिन्हें जापान निर्यात किया जाएगा.
दोनों नेता सामरिक और वैश्विक साझेदारी को एक नई उंचाई तक ले जाने के तौर-तरीकों पर भी चर्चा कर सकते हैं. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, रूस और फ्रांस के साथ जापान का पहले से ही एक सुरक्षा परामर्श ढांचा तैयार है.
माजा जा रहा है कि आज दोनों देशों के बातचीत के दौरान बुलेट ट्रेन पर भी चर्चा हो सकती है.
यात्रा से पहले मोदी ने जापानी मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, ‘‘रक्षा एवं सुरक्षा के क्षेत्र में मैं मानता हूं कि हमारे लिए वह वक्त आ गया है कि हम अपने रिश्तों को उंचाइयों तक ले जाएं . जापान की रक्षा निर्यात नीतियों और विनियमनों में हमने हाल में बदलाव देखे हैं और यह अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी और उपकरण के क्षेत्र में सहयोग के एक नए युग की संभावना है.’’
असैन्य परमाणु सहयोग के साथ-साथ भारत की आधारभूत संरचना, खासकर रेलवे और गंगा नदी की साफ-सफाई, पर भी चर्चा होने की संभावना है.
अपनी यात्रा के दूसरे दिन सफेद कुर्ता-पायजामा, बिना बांह वाली जैकेट और सफेद सैंडल पहने मोदी ने क्योतो के तोजी और किनकाकुजी नाम के बौद्ध मंदिरों दर्शन किए.
मोदी पहले तोजी मंदिर गए जो हिंदू दर्शन के ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की त्रिमूर्ति से प्रेरित है और एक विश्व धरोहर स्थल है. वह करीब आधे घंटे तक मंदिर परिसर में रहे जिस दौरान उन्होंने आठवीं सदी के बौद्ध पैगोडा के इतिहास के बारे में जानकारी हासिल की.
मंदिर परिसर से जाते वक्त मोदी ने अपने साथ मंदिर आने और वक्त बिताने के लिए आबे का शुक्रिया अदा किया. आबे ने मोदी से कहा कि वह सिर्फ दूसरी दफा तोजी मंदिर आए हैं. इससे पहले आबे अपने छात्र जीवन के दौरान इस मंदिर में आए थे.
जापानी प्रधानमंत्री खास तौर पर मोदी से मुलाकात की खातिर तोक्यो से क्योतो आए और उनके साथ वक्त बिताया. जापानी प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राजधानी के बाहर कभी-कभार ही विदेशी नेताओं से मिलने जाते हैं.
किनकाकुजी में मोदी ने पर्यटकों एवं श्रद्धालुओं से बातचीत की, उनसे हाथ मिलाए और एक बच्चे के कान खींचे. उन्होंने कई लोगों के साथ तस्वीरें भी खिंचवाई.
उन्होंने कहा, ‘‘पर मोदी सरकार बनने के बाद दुनिया ने धारणा बदल ली है . अब हम कमजारे देश नहीं समझे जाते. हम कमजोर नहीं हैं. हम में करारा जवाब देने की पूरी क्षमता है.’’
मोदी जापान यात्रा पर एक बड़े एजेंडा के साथ आए हैं और उन्हें उम्मीद है कि इस यात्रा से भारत जापान द्विपक्षीय संबंधों का ‘एक नया अध्याय’ लिखा जाएगा और दोनों देशों की रणनीतिक व वैश्विक साझीदारी को एक नयी उंचाई हासिल होगी. मोदी ने जापान यात्रा के लिए निकलने से पहले कहा था, ‘‘मैं अपने अच्छे मित्र प्रधानमंत्री शिंजो एबे के निमंत्रण पर भारत और जापान के बीच वाषिर्क शिखर सम्मेलन के लिए जापान यात्रा को लेकर बहुत उत्सुक हूं.’’ आर्थिक मोर्चे पर आबे जापान की शिंकानसेन बुलेट ट्रेन प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल की वकालत कर सकते हैं क्योंकि भारत मुंबई और अहमदाबाद के बीच एक ट्रेन नेटवर्क शुरू करने की योजना बना रहा है .
कल होने वाली औपचारिक शिखर वार्ता की तैयारियों के तहत मोदी और आबे ने कल रात रात्रिभोज किया. इस रात्रिभोज का आयोजन आबे ने किया था. दोनों नेताओं ने इस दौरान द्विपक्षीय संबंधों के लिए एक ‘‘मजबूत और ताकतवर भविष्य’’ की बात की.
मोदी ने उम्मीद जताई कि दोनों पक्ष अगले पांच साल में उन उपलब्धियों को पूरा करने की कोशिश करेंगे जो पिछले पांच दशक में पूरे नहीं हो पाए .

खबरों के मुताबिकः
जापान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सोमवार को औपचारिक तौर पर स्वागत किया गया, जिसके बाद दोनों देशों के बीच शिखर वार्ता शुरू हुई। जापान की पांच दिवसीय यात्रा के तीसरे दिन सोमवार को जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे ने टोक्यो स्थित जापान के दो अतिथि गृहों में से एक असाका पैलेस में मोदी का औपचारिक तौर पर स्वागत किया। यहां मोदी को गार्ड ऑफ ऑनर भी दिया गया। मोदी के इस रस्मी स्वागत के बाद दोनों देशों के बीच शिखर वार्ता शुरू हुई। इसके बाद दोनों देशों के बीच कुछ समझौतों पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद है, जिन पर पहले ही निर्णय लिया जा चुका है।
इससे पहले देश की प्राथमिक शिक्षा में नैतिक मूल्यों, आधुनिकता और अनुशासन को समाहित करने की अपनी योजना को लागू करने के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज जापानी शिक्षा प्रणाली को अच्छी तरह से समझने का प्रयास किया और भारत के बच्चों को जापानी भाषा सिखाने में मदद का आग्रह किया।
मोदी ने आज 136 वर्ष पुराने ताईमेई प्राथमिक स्कूल में एक छात्र के रूप में जापानी शिक्षा व्यवस्था के बारे में बारीकी से जानकारी ली। उन्होंने विशेष रूप से जाना कि यहां के बच्चों में नैतिक मूल्यों के साथ साथ आधुनिक और अनुशासन कैसे भरा जाता है। उन्होंने सवाल किया कि क्या यहां के बच्चों को अनुशासित करने के लिये दंडित भी किया जाता है। प्रधानमंत्री ने अपनी मंशा जताई कि वह भारत की प्राथमिक शिक्षा में नैतिक मूल्यों, अनुशासन और आधुनिकता का समावेश करना चाहते हैं और यही समझने के लिये वह इस पुराने स्कूल में आये हैं।
मोदी ने भारतीय बच्चों को जापानी भाषा सिखाने में यहां के शिक्षा विभाग से सहयोग का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि पूरा विश्व जानता है कि 21वीं सदी एशिया की होगी, लेकिन इसके लिये जरूरी है कि एशियाई देश आस पड़ोस की भाषा को सीखें और सामाजिक मूल्यों को समझें। यह इसलिये भी जरूरी है कि 21वीं सदी न केवल एशियाई देशों की बनें बल्कि पूरे मानव जाति के कल्याण में काम आये।
उन्होंने कहा कि इसी के तहत भारतीय स्कूलों में जापानी भाषा को सिखाने की शुरुआत की गई है, लेकिन जापानी शिक्षकों की कमी है। उन्होंने जापान से इसमें मदद करने का आग्रह करते हुये कहा कि दोनों देश मिलकर इसके लिये कार्यक्रम बना सकते हैं और ऑनलाइन भाषा सिखाने का काम भी किया जा सकता है। इससे दोनों  देशों के छात्र एक दूसरे की भाषा सीख सकेंगे और चुनौतियों का मुकाबला करने के लिये तैयार हो सकेंगें। इससे पहले जापान के उप शिक्षा मंत्री मईकावा कीहेई ने जापान की प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा प्रणाली के बारे में मोदी को विस्तार से जानकारी दी और उनके सवालों के जवाब भी दिये।
सामने आने लगे 100 दिन में उठाए गए कदमों के परिणाम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को कहा कि उनकी सरकार ने पिछले 100 दिनों में जो कदम उठाए हैं, उसके परिणाम सामने आने लगे हैं। अपनी पांच दिवसीय जापान यात्रा के तीसरे दिन टोक्यो में मोदी ने कहा कि पिछले 100 दिन भीतर मैंने जो पहल किए, जो कदम उठाए, उसके परिणाम स्पष्ट हैं। मोदी ने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय को 'अधिक प्रभावी, अधिक उपयोगी' बनाया है।
भारतीय स्कूलों में जापानी भाषा पढ़ाना चाहते हैं प्रधानमंत्री मोदी
भारत और जापान के बीच भाषाई संबंध पर जोर देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को जापानी शिक्षकों से मुलाकात की और उनसे भारत में लोगों को जापानी भाषा सिखाने के लिए कहा। जापान की पांच दिवसीय यात्रा पर शनिवार को यहां पहुंचे मोदी ने सोमवार को ताईमेई प्राथमिक स्कूल में शिक्षकों से मुखातिब होते हुए कहा कि हम अपने स्कूलों में जापानी भाषा सिखाने की कोशिश कर रहे हैं। हमें इसके लिए शिक्षकों की आवश्यकता है। मैं आप सभी को भारत आने और वहां लोगों को जापानी भाषा सिखाने का न्यौता देता हूं।
मोदी ने यह भी कहा कि एशियाई देशों को शिक्षा के क्षेत्र में अधिक तैयार होने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि दुनिया ने स्वीकार किया है कि 21वीं सदी एशिया की शताब्दी है, लेकिन हमें इसके लिए तैयार रहना होगा। करीब 136 साल पुराना ताईमेई प्राथमिक स्कूल वर्ष 2011 में आए भूकंप के कारण नष्ट हो गया था, जिसका बाद में पुनर्निर्माण किया गया। मोदी ने इस अवसर पर गुजरात में 2001 में आए भूकंप के दौरान भुज शहर को हुए नुकसान का भी जिक्र किया। भुज का जिक्र करते हुए मोदी भावुक हो उठे। मोदी ने बाद में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे से भी बातचीत की।
जापानी व्यवसायियों को लुभाने के लिए गुजरात का दिया उदाहरण
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापान के व्यवसायियों को लुभाने के लिए सोमवार को गुजरात का उदाहरण सामने रखा। अपनी पांच दिवसीय यात्रा के तीसरे दिन सोमवार को प्रधानमंत्री मोदी ने यहां जापान के व्यवसायियों को संबोधित करते हुए कहा कि यदि गुजरात का अनुभव मानदंड है तो भारत में उन्हें 'वही प्रतिक्रिया, वही गति' मिलेगी। मोदी ने यह भी कहा कि जापान गुणवत्ता, प्रभावशीलता एवं अनुशासन के लिए जाना जाता है।
नरेंद्र मोदी ने कौशल विकास के लिए मांगी जापान की मदद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को भारत में कौशल विकास के लिए जापान से मदद मांगी। अपनी पांच दिवसीय यात्रा के तीसरे दिन सोमवार को मोदी ने यहां कहा कि भारत दुनिया का सबसे अधिक युवा देश है और यहां के युवाओं की बड़ी संख्या दुनिया में श्रम बल की आवश्यकता की पूर्ति कर सकता है। मोदी ने कहा कि वह चाहते हैं कि जापान भारत को कौशल विकास में मदद दे। जापान 'वास्तव में इस दिशा में हमारी मदद कर सकता है।'
प्रधानमंत्री कार्यालय में जापान के लिए बनेगा विशेष दल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को प्रधानमंत्री कार्यालय में जापान के लिए विशेष दल बनाने की घोषणा की। अपनी पांच दिवसीय जापान यात्रा के तीसरे दिन सोमवार को मोदी ने कहा कि औद्योगिक कामकाज देखने वाली दो सदस्यीय टीम में अब जापान के दो सदस्य भी होंगे। ये दोनों जापानी सदस्य भारतीय सदस्यों के साथ स्थाई रूप से बैठेंगे और निर्णय निर्माण प्रक्रिया का हिस्सा होंगे। यह टीम प्रधानमंत्री कार्यालय का हिस्सा होगी। प्रधानमंत्री ने कहा कि व्यवसाय को सहज बनाने की तरह ही यह पहल जापान के लिए सहज होगा।
'सरकार-निवेशकों में समन्वय की आवश्यकता समझता हूं'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को जापानी निवेशकों को भारत आकर्षित करते हुए कहा कि वह विकास के लिए निवेशकों एवं सरकार के बीच समन्वय की आवश्यकता को समझते हैं। जापानी चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री और जापान-भारत बिजनेस को-ऑपरेशन कमेटी की ओर से आयोजित कार्यक्रम में मोदी ने हिन्दी में कहा, ''गुजरात में काम कर चुके जापानी लोगों को विकास के गुजरात मॉडल के बारे में मुझसे अधिक अच्छी तरह मालूम है।''
केंद्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के 100 दिन पूरे होने के संदर्भ में मोदी ने कहा कि इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय को अधिक प्रभावशाली बनाया। उन्होंने कहा कि मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 5.7 प्रतिशत विकास दर इसे दर्शाता है।


हमारे दैनिक जागरण के मेरठ दौर के पुरातन मित्र  अनिल बंसल ने आज जनसत्ता में एक अद्भुत रपट लिखी है केसरिया हुए दलितजनप्रतिनिधियों के बारे में जो अवश्य पाठ्य है पढ़ेः
नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के दलित नेताओं को अपने अच्छे दिनों का उत्सुकता से इंतजार है। अनुसूचित जाति और जनजाति के पार्टी नेता नरेंद्र मोदी से भी ज्यादा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत का मुंह ताक रहे हैं। जो सामाजिक समरसता और व्यापक हिंदू एकता की दुहाई देते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में दलितों ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनवाने के प्रति अगड़ों और पिछड़ों जैसा ही उत्साह दिखाया था। लेकिन मोदी सरकार ने उनके साथ कतई इंसाफ नहीं किया है।
उत्तर प्रदेश जैसे मायावती के प्रभुत्व वाले सूबेकी सभी 17 आरक्षित लोकसभा सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार जीते थे। लेकिन मोदी सरकार में इनमें से किसी को भी मंत्री पद नहीं मिला। मोदी मंत्रिमंडल में केवल दो दलितों को ही मंत्री बनाया गया है। एक थावरचंद गहलोत (मध्यप्रदेश) कैबिनेट मंत्री हैं तो दूसरे निहालचंद मेघवाल (राजस्थान) राज्यमंत्री यानी अधूरे मंत्री हैं। मोदी सरकार अब तक दस राज्यों में नए राज्यपाल नियुक्त कर चुकी है। लेकिन एक भी दलित नेता को यह ओहदा देना न मोदी ने जरूरी समझा और न मोहन भागवत ने ही दलितों की सुध ली। जबकि अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने तीन दलितों सूरज भान (उत्तर प्रदेश), बाबू परमानंद (बिहार) और न्यायमूर्ति ओपी वर्मा (पंजाब) को राज्यपाल बनाया था।
भाजपा दलितों की हितैषी होने का दम तो खूब भरती है। यहां तक कि पार्टी ने इस तबके के लिए अपना एक अलग अनुसूचित जाति-जनजाति मोर्चा भी बना रखा है। पर इस मोर्चे को पार्टी का शिखर नेतृत्व ‘अछूत’ ही मानता है। मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय पासवान और शीर्ष पदाधिकारियों आत्माराम परमार, सुरेश राठौड़ और रमेश रावत चारों में से एक को भी लोकसभा टिकट न देकर पार्टी नेतृत्व ने अपने नजरिए का सबूत दिया था। जबकि संजय पासवान बिहार से लोकसभा सांसद भी रहे हैं और वाजपेयी सरकार में मंत्री भी। वाजपेयी सरकार में एक साथ चार दलित मंत्री थे। सत्यनारायण जटिया, अशोक प्रधान, संजय पासवान और संघप्रिय गौतम। लेकिन इस समय ज्यादा दलित सांसदों के भाजपा टिकट पर जीतने के बावजूद उनकी संख्या बढ़ने के बजाए आधी रह गई।
दलितों के प्रति भाजपा का उपेक्षापूर्ण रवैया और भी कई तथ्यों से साबित होता है। मसलन, इस समय पार्टी की सरकारें राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात और गोवा में हैं। लेकिन कहीं भी दलित मुख्यमंत्री नहीं है। मुख्यमंत्री होना तो दूर की बात है, पार्टी ने एक भी राज्य में किसी दलित को विधायक दल का नेता तक नहीं बनाया है। सत्ता में इस तरह की हिस्सेदारी न देने के पार्टी अपने तर्क गिना सकती है पर दलितों को तो संगठन में भी तरजीह नहीं दी जा रही। मसलन, एक भी राज्य का भाजपा अध्यक्ष इस तबके का नहीं है। अलबत्ता दलितों को अहमियत देने का पाखंड करने में पार्टी पीछे नहीं है। इसके लिए उसका नेतृत्व अपने संविधान की दुहाई देता है, जिसमें प्रावधान है कि हर कमेटी में कोई न कोई महिला और दलित जरूर शामिल किया जाएगा।
एक तरफ गरीबों का हिमायती होने का दावा करने वाले मोदी को ख्याल नहीं आया कि किसी दलित को राज्यपाल बनाते तो दूसरी तरफ कांग्रेस इस तबके को खूब अहमियत देती रही है। लोकसभा में उसने अपना नेता भी एक दलित मल्लिकार्जुन खड़गे को बना रखा है। कई राज्यों के पार्टी अध्यक्ष तो इस तबके के हैं ही। इसी उपेक्षा से आहत होकर पार्टी के कद्दावर दलित नेता अशोक प्रधान लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे।
उत्तर प्रदेश में इसी महीने विधानसभा की बारह सीटों और लोकसभा की एक सीट का उपचुनाव होगा। मायावती ने उपचुनाव में अपने उम्मीदवार न उतारने का एलान कर दिया है। ऐसी सूरत में सूबे के उपेक्षित दलित कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं। लेकिन न अमित शाह को इसकी परवाह है और न नरेंद्र मोदी को। पार्टी के एक वरिष्ठ दलित नेता ने कहा कि विजय सोनकर शास्त्री जैसे वरिष्ठ पार्टी नेता को भी लोकसभा टिकट से वंचित करने का दलितों में नकारात्मक संदेश गया है। शास्त्री लोकसभा सदस्य और अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष रह चुके हैं। उनके आंसू पोंछने के लिए फिलहाल उन्हें पार्टी में प्रवक्ता बना दिया गया है।

आगे आज के जनसत्ता में इस पर भी जरा गौर करेंः

पुण्य प्रसून वाजपेयी
अब यह सवाल नागपुर में आंबेडकरवादियों से लेकर यूपी के मायावती समर्थक दलित वर्ग में भी उठने लगा है कि मोदी के बौद्ध प्रेम के पीछे की कहानी, बौद्ध धर्म से प्रभावित देशों के साथ भारत के रिश्तों को नया आयाम देना है या फिर संघ परिवार के विस्तार के लिए गुरु गोलवरकर के दौर की वह सीख है जिसे राजनीतिक जमीन पर मोदी उतारना चाह रहे हैं। संघ के पन्नों को पलटें तो 1972 में सरसंघचालक गुरु गोलवरकर ने ठाणे में पांडुरंग शास्त्री आठवले के निवास पर दस दिन की चिंतन बैठक में इस बात पर जोर दिया था कि संघ परिवार के विस्तार के लिए जातपात, संप्रदाय व भाषा से ऊपर उठकर सभी को साथ लेना जरूरी है। असर इसका यह हुआ कि केरल के दलित चिंतक श्री रंगाहरि आरएसएस के बौद्धिक प्रमुख के पद पर हाल के दिनों तक रहे और इसी कड़ी में विश्व हिंदु परिषद के बालकृष्ण नाईक लंबे समय से दुनिया भर में बौद्ध धर्म को मानने वाले देशों के साथ संपर्क बनाए हुए हैं।
संघ परिवार के संबंध भूटान, नेपाल, श्रीलंका व जापान समेत दर्जन भर देशों के बौद्ध धर्मावलंबियों के साथ बने हुए हैं लेकिन आजादी के बाद पहली बार संघ परिवार यह महसूस कर रहा है कि अपने बूते भाजपा की सरकार बनी है तो संघ की हर उस धारणा को साकार किया जाए जिसकी कल्पना इससे पहले की जरूर गई लेकिन उसे लागू कैसे किया जाए यह सवाल अनसुलझा ही रहा। चंूकि आरएसएस का प्रचारक रहते हुए मोदी ने भी गोलवरकर का यह पाठ पढ़ा ही होगा कि तो सियासत साधने के लिए वे भी गोलवरकर के मंत्र को राजनीतिक जमीन पर उतारने से चूकेंगे नहीं। यानी महाराष्ट्र में रिपब्लिक पार्टी के नाम पर सियासत करने वाले आंबेडकरवादी हों या आंबेडकर का नाम लेकर दलित राजनीति करने वाली मायवती हों। खतरे की घंटी दोनों के लिए है।
पहली नजर में लग सकता है कि मायावती की समूची सियासत ही आज शून्य पर आ खड़ी हुई है तो वे प्रधानमंत्री मोदी को निशाने पर लेने के लिए जन-धन योजना पर वार करने से चूक नहीं रही हैं। लेकिन मोदी जिस सियासत को साधने के लिए कई कदम आगे बढ़ चुके हैं, उसके सामने अब मायावती या मुलायम के वार कोई मायने रखेंगे नहीं। क्योंकि राष्ट्रीयता की बिसात पर संघ की उसी सोच को आजमाया जा रहा है जिस दिशा में किसी दूसरे राजनीतिक दल ने काम किया नहीं और आरएसएस अपने जन्म के साथ ही इस काम में लग गया।
वनवासी कल्याण आश्रम जिन क्षेत्रों में सक्रिय है और उस समाज की पिछड़ी जातियों के जितना करीब होकर काम कर रहा है, क्या किसी राजनीतिक दल ने कभी उस समाज में काम किया है? पुराने स्वयंसेवकों से मिलिए तो वे आज भी कहते मिलेंगे कि जेपी के कंधे से राजनीतिक प्रयोग करने वाले बालासाहेब देवरस इंदिरा गांधी के
बाद मोरारजी देसाई को नहीं जगजीवन राम को प्रधानमंत्री बनवाना चाहते थे। सिर्फ दलित ही नहीं बल्कि जिस हिंदू शब्द को लेकर सियासी बवाल देश में लगातार बढ़ रहा है उसकी नींव भी कोई आज की नहीं है। जिन मोदी को हिंदुत्व शब्द के कटघरे में खड़ा किया जा रहा है और अटल बिहारी वाजपेयी का हवाला देकर जिस उदारवादी चेहरे का जिक्र किया जा रहा है, क्या 1974 में लोकसभा में वाजपेयी का दिया भाषण - अब हिंदू मार नहीं खाएगा - किसी को याद नहीं है। संघ परिवार ने तो वाजपेयी के इस भाषण की करोड़ो कापियां छपवाकर देश भर में बंटवाई थीं। यह अलग सवाल है कि 1977 में विदेश मंत्री बनने के बाद वाजपेयी ने कभी हिंदू शब्द का जिक्र सियासी तौर पर नहीं किया। लेकिन संघ के भीतर का सच यह भी है कि देवरस हों या उससे पहले गोलवरकर या फिर देवरस के बाद में रज्जू भैया। सभी ने वाजपेयी को नेहरू की तर्ज पर देश में सर्वसम्मति का रास्ता तैयार करने को कहा भी और दिशा भी दिखाई।
क्योंकि हिंदू शब्द तो संघ के जन्म के साथ ही जुड़ा है। हेडगेवार ने खुले तौर पर हिंदू होने की वकालत की। तो गोलवरकर ने तो हेडगेवार के दौर से संघ के प्रतिष्ठित स्वयंसेवक एकनाथ रानाडे को 1971-72 में तब प्रतिनिधि सभा से अलग कर दिया जब उन्होंने विवेकानंद शिला स्मारक पर काम करते वक्त विवेकानंद को इंदिरा गांधी के कहने पर हिंदू संस्कृति की जगह भारतीय संस्कृति का प्रतीक बताया। उस वक्त गोलवरकर यह कहने से नहीं चूके कि राजनीतिक वजहों से अगर हिंदू शब्द को दरकिनार करना पडेÞ तो फिर संघ का अस्तित्व ही संकट में है और इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। गुरु गोलवरकर के जीवित रहते हुए रानाडे कभी प्रतिनिधि सभा का हिस्सा नहीं बन पाए। लेकिन देवरस ने अपने दौर में राजनीतिक वजहों से ही हिंदू शब्द पर समझौता किया। जनता पार्टी के अध्यक्ष के तौर पर जब चंद्रशेखर और मधु लिमये ने देवरस को समझाया कि हिंदू शब्द पर खामोशी बरतनी चाहिए क्योंकि यह राजनीतिक जरूरत है तो उस वक्त आरएसएस में बाकायदा निर्देश जारी हुआ कि कोई हिंदू शब्द नहीं बोले।
संघ परिवार के भीतर हर तबके को साथ जोड़ने की कुलबुलाहट कैसे तेज हुई और कैसे समझौते भी किए गए, यह बुद्ध को लेकर संघ की अपनी समझ के बदलने से भी समझा जा सकता है। एक वक्त आरएसएस ने बुद्ध को विष्णु का अवतार कहा। लेकिन आपत्ति होने पर बुद्ध घर्म को अलग से मान्यता भी दी। लेकिन जैसे ही हिंदू शब्द पर सियासत मुश्किल हुई, वैसे ही राष्ट्रीय तत्त्व की लकीर आरएसएस ने खींचनी शुरू की। असर इसी का है कि संघ के हर संगठन के साथ राष्ट्रीय शब्द जुड़ा। खुद हेडगेवार ने भी हिंदु स्वयसेवक संघ नहीं बनाया बल्कि राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ नाम दिया और हिंदू शब्द को सावरकर के हिंदू महासभा से जोड़कर यह बहस कराई कि सावरकर के हिंदू शब्द में मुसलिम या ईसाई के लिए जगह नहीं है। लेकिन आरएसएस के हिंदू शब्द में राष्ट्रीयता का भाव है और इसमें हर धर्म-संप्रदाय के  लिए जगह है।
मोदी ने क्योतो के जरिए इस रास्ते को पकड़ा है लेकिन यह रास्ता सियासी तौर पर कैसे दलित राजनीति करने वालों का डिब्बा गोल करेगा और भाजपा को कितना विस्तार देगा, इसका इंतजार करना होगा।
समयांतर में प्रकाशित यह आलेख भी मौजूदा प्रसंग को समझने में सहायक हो सकता हैः

भारतीय पत्रकारिता में वर्ष 2014 हमेशा याद किया जाएगा। इसे याद करने के दो प्रमुख कारण हैं। पहला, लोकसभा चुनाव में मुख्यधारा के अधिकांश मीडिया द्वारा गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी (अब प्रधानमंत्री) के पक्ष में माहौल बनाने के लिए और दूसरा, देश के प्रमुख उद्योगपति मुकेश अंबानी द्वारा भारतीय मीडिया के बड़े हिस्से का अधिग्रहण करने के लिए। अहम बात यह कि चुनाव में मोदी की छवि गढ़ने के लिए मीडिया की इस भूमिका पर खूब सवाल उठे। लगातार उसकी लानत-मलामत की जाती रही, लेकिन चुनाव परिणाम आते ही अंबानी के स्वामित्व वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज लि. (आरआईएल) द्वारा नेटवर्क-18 मीडिया एंड इन्वेस्टमेंट्स लि. तथा उसकी सहायक कंपनी टीवी-18 ब्रॉडकास्ट लि. का नियंत्रण हासिल करने पर इक्का-दुक्का ही सवाल उठे। जबकि कॉरपोरेट घरानों की ओर से मीडिया पर कब्जा करने की परिपाटी डालना पत्रकारिता जगत और स्वस्थ लोकतंत्र दोनों के लिए खतरनाक है। अमेरिका और ब्रिटेन समेत अनेक विकसित देशों में इसके घातक परिणाम सामने आ चुके हैं। कमोबेश वही हालात भारत में भी बनते जा रहे हैं।
अंबानी परिवार का मीडिया व्यवसाय में आना कोई नई बात नहीं है। इससे पहले 1980 के दशक के अंतिम वर्षों में उसने ‘बिजनेस एण्ड पॉलिटिकल ऑब्जर्वर’ नामक पत्र का प्रकाशन शुरू किया था। पहली बार पत्रकारों को लुभावने पैकेज पर किसी पत्र में रखा गया था, लेकिन कतिपय कारणों से वह पत्र अधिक दिन चल नहीं सका। इसके बावजूद अंबानी परिवार की मीडिया में दिलचस्पी कम नहीं हुई। ‘बिजनेस एण्ड पॉलिटिकल ऑब्जर्वर’ पत्र बंद होने के बाद उसने किसी पत्र-पत्रिका या न्यूज चैनल में सीधे पैसा लगाने के बजाय बैकडोर से उसे नियंत्रित करने का काम किया। कहा जाता है कि इसी रणनीति के तहत देश के अनेक समाचार पत्रों और न्यूज चैनलों में उनका पैसा लगा है। हालांकि अस्सी के दशक और आज के समय में काफी अंतर आ गया है। इक्कीसवीं सदी में मीडिया और पीआर का व्यवसाय सबसे तेजी के साथ उछाल मार रहा है। यही वजह है कि पिछले कुछ वर्षों से कॉरपोरेट घरानों में मीडिया और पीआर कंपनियों में शेयर हासिल करने की होड़ सी लगी है।
इस बात के मद्देनजर मुकेश अंबानी के स्वामित्व वाली आरआईएल ने मीडिया पर नियंत्रण हासिल करने की योजना बनाई। इसी के तहत 2012 में आरआईएल की सहायक कंपनी इंडिपेंडेंट मीडिया ट्रस्ट (आईएमटी) ने नेटवर्क-18 और टीवी-18 में 1700 करोड़ रुपए का निवेश किया। रिलायंस से मिली इस रकम से नेटवर्क-18 और टीवी-18 ने इनाडु समूह के सभी क्षेत्रीय न्यूज चैनलों को पूरी तरह और मनोरंजन चैनलों में बड़ी हिस्सेदारी खरीद ली। इस तरह रिलायंस का दो मीडिया समूहों के चैनलों पर काफी हद तक नियंत्रण हो गया। इस हिस्सेदारी को हासिल करने के साथ ही मुकेश अंबानी का मीडिया और मनोरंजन उद्योग में एक बड़े खिलाड़ी के रूप में पदार्पण हो गया। मीडिया में उनके आने के पीछे अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन बताया जाता है, जिसमें उनकी कंपनियों पर लगातार हमला बोला गया था।
अगली कड़ी में अन्ना हजारे के आंदोलन से जन्मी आम आदमी पार्टी (आप) के नेता अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली में रिलायंस को दी जाने वाली गैस की कीमतों पर हमला बोला, जिसमें सरकारी तंत्र से मिलीभगत कर रिलायंस ने कीमतों में मनमाना इजाफा किया और चांदी काटी। कॉरपोरेट मीडिया अरविन्द केजरीवाल की ओर से उठाए गए इस मसले को न चाहते हुए भी प्रकाशित और प्रसारित करने को मजबूर हुआ। गैस की कीमतों को लेकर रिलायंस की होने वाली लानत-मलामत के दौरान ही शायद मुकेश अंबानी ने मीडिया पर नियंत्रण हासिल करने के लिए विचार किया। इस घटना के कुछ समय पहले तक यूपीए सरकार के साथ गलबहियां करने वाले एवं कांग्रेस को अपनी दुकान बताने वाले मुकेश अंबानी आहिस्ता-आहिस्ता नरेंद्र मोदी के पाले में चले गए।
‘वाइब्रेंट गुजरात 2011Ó में उन्होंने कहा, ‘गुजरात एक स्वर्ण दीपक की भांति जगमगा रहा है और इसकी वजह नरेंद्र मोदी की दूरदृष्टि है।‘ मुकेश अंबानी ही नहीं, यूपीए सरकार से ज्यादा से ज्यादा लाभ लेने वाला लगभग समूचा कॉरपोरेट जगत माहौल भांपकर यूपीए से छिटककर मोदी के पाले में खड़ा हो गया। उसने मोदी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए सारे धतकरम किए। मुकेश के सामने समस्या यह थी कि जिस शेयरधारी मीडिया समूह का वह प्रतिनिधित्व करते थे, उसके न्यूज चैनल आईबीएन-7 के एडिटर-इन-चीफ राजदीप सरदेसाई और सीएनएन-आईबीएन की डिप्टी एडिटर सागरिका घोष गुजरात दंगों और उसके कथित विकास को लेकर मोदी के लिए आलोचनात्मक रुख अपनाए थे। हालांकि तटस्थ रूप से सोचने वाला हर व्यक्ति अथवा लेखक/पत्रकार भी कुछ इसी तरह से सोचते हैं, लेकिन मुकेश को अपने संपादकों की यह भूमिका शायद रास नहीं आ रही थी। उन्हें मोदीगान में यह कुछ व्यावधान जैसा लग रहा था। यही कारण था कि जब आरआईएल ने ऐलान किया कि उसकी सहायक कंपनी इंडिपेंडेंट मीडिया ट्रस्ट (आईएमटी) जल्द ही नेटवर्क-18 और टीवी-18 का अधिग्रहण चार हजार करोड़ रुपए में करने जा रही है, तो इसके कुछ समय बाद ही राजदीप सरदेसाई और सागरिका घोष छुट्टी पर चले गए। तत्पश्चात जुलाई के प्रथम सप्ताह में उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया।
इसी तरह सीएनएन-आईबीएन पर ‘द लास्ट वर्ल्ड’ नामक शो करने वाले करण थापर भी हेडलाइन्स टुडे का रुख कर चुके हैं। इन दो घटनाओं से मुकेश के मीडिया साम्राज्य में यह संदेश भी चला गया कि मोदी की आलोचना किसी कीमत पर सहन नहीं की जाएगी। सारी पत्रकारिता व्यवसाय के हित को केन्द्र में रखकर और सत्ता से मधुर संबंध बनाए रखने के दायरे में होगी। कॉरपोरेट घरानों की ओर से आसन्न खतरे को देखते हुए ही कुलदीप नैयर ने लिखा, ‘असली खतरा कॉरपोरेट जगत की तरफ से है, जो यह तय करने की कोशिश कर रहा है कि कौन कॉलम लिखेगा और क्या लिखेगा। जैसा कि किसी दिलजले ने एक बार चुटकी लेते हुए कहा था, खबरें विज्ञापनों की पीठ पर लिखी जाती हैं। यह सच्चाई नीरा राडिया कांड से भी सामने आ चुकी है, जिसमें कुछ पत्रकार मंत्रियों और उच्च अधिकारियों के साथ रतन टाटा और मुकेश अंबानी जैसे बड़े उद्योगपतियों के लिए ‘लॉबिंग’ करते पाए गए हैं (एक जिन्दगी काफी नहीं)।
रिलायंस के एक मीडिया समूह पर नियंत्रण करने से पहले तक कॉरपोरेट घराने मीडिया कंपनियों में निवेश के जरिए अपने हित साधते थे, पर रिलायंस के इस सौदे ने एक नई परिपाटी को जन्म दिया है। इस बदलाव के तहत कॉरपोरेट की दिलचस्पी अब केवल इस बात में नहीं रहेगी कि मीडिया कंपनियों में कुछ हिस्सेदारी खरीदकर अपने खिलाफ चलने वाली खबरें रोकी जाएं, वह नई रणनीति पर काम करते हुए चाहेगा कि मीडिया उसके व्यवसाय का हिस्सा बने। उसके व्यवसाय में हानि-लाभ को केन्द्र में रखकर घटनाओं को कवर करे। अगर जरूरत पड़े तो उन घटनाओं को सिरे से गायब कर दे। इस तेजी के साथ मीडिया के बढ़ते कॉरपोरेटीकरण के कारण न्यूज चैनलों व पत्र-पत्रिकाओं के हित और संबंध सत्ता एवं कॉरपोरेट जगत से इतने प्रगाढ़ हो गए हैं कि वह सार्वजनिक संपत्ति की लूट की खबरें मिलने के बावजूद उसे प्रसारित/प्रकाशित करने से कन्नी काटते हैं। उदाहरण के रूप में नीरा राडिया प्रकरण, राबर्ट वाड्रा प्रकरण, रिलायंस की गैस कीमतों का मामला, कॉमनवेल्थ घोटाला आदि के नाम गिनाए जा सकते हैं। इन सभी मसलों में तथ्य बिखरे पड़े थे। इसके बाद भी मुख्यधारा का मीडिया इसे नजरअंदाज करता रहा, लेकिन वैकल्पिक मीडिया के दबाव में आकर आखिरकार वह इन मसलों को उठाने पर मजबूर हुआ।
इतना ही नहीं, अनेक राज्यों में खासकर झारखण्ड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, कर्नाटक और गोवा में खनिज संपदा की लूट मची रही, लेकिन मीडिया में इस कॉरपोरेट लूट के खुलासे की सामग्री कम ही देखने को मिली। इसकी बड़ी वजह यह है कि अनेक मीडिया समूह भी खनन के धंधे में लगे हैं। कोयला आवंटन मामले में जिन मीडिया समूहों के नाम सामने आए, उनमें दैनिक भास्कर-डीबी कार्प लिमिटेड, प्रभात खबर-ऊषा मार्टिन लिमिटेड, लोकमत समाचार समूह, टीवी टुडे समूह के हिस्सेदार आदित्य बिड़ला समूह शामिल हैं। यही नहीं अवैध खनन से पैसा बनाने वाले कुछ कारोबारी तक अपने न्यूज चैनल चला रहे हैं। ऐसा वह मीडिया से बचने के लिए करते हैं, क्योंकि मीडिया कंपनियों के बीच एक अघोषित संधि काम करती है कि वह एक-दूसरे के गलत-सही धंधों के बारे में कुछ नहीं प्रसारित/प्रकाशित करेंगे।
एक-आध अपवाद को छोड़कर कॉरपोरेट मीडिया इस सीमारेखा को नहीं लांघता है। गंभीर मामलों में मीडिया की इस चुप्पी का लाभ सत्ताधारी नेताओं, कॉरपोरेट घरानों व मीडिया कंपनियों को मिलता है। असल में कुछ मीडिया कंपनियां खुद कॉरपोरेट घरानों से ताल्लुक रखती हैं। मीडिया के अलावा उनके दूसरे भी व्यवसाय हैं। इस व्यवसाय को बढ़ाने व विस्तार देने में सत्ताधारी लोगों के साथ निकटता जरूरी है। इसी के जरिए कॉरपोरेट घराने अपने व्यावसायिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए मीडिया का इस्तेमाल कर रहे हैं। बात केवल कॉरपोरेट घरानों तक ही सीमित नहीं है। पिछले वर्षों में अनेक राज्यों में राजनीतिक दलों और उनके नेताओं ने भी मीडिया के बढ़ते महत्व को देखकर परोक्ष-अपरोक्ष रूप से उसमें निवेश किया है। इसमें पंजाब, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र आदि राज्य शामिल हैं। पहले के तीन राज्यों में तो शासक दलों ने केबल उद्योग पर कब्जा जमा रखा है। वह उसके जरिए न्यूज चैनलों पर शिकंजा कसे रहते हैं और अपने फायदे वाली सामग्री का प्रसारण करने का दबाव बनाए रहते हैं।
कॉरपोरेट मीडिया का यह चरित्र दीपा भाटिया की डॉक्यूमेंट्री ‘नीरोज गेस्ट्सÓ में बेहतरीन तरीके से दिखाया गया है, जिसमें पी. साईनाथ ने इतिहासकार टैसीटस के हवाले से बताया है कि जब रोम जल रहा था तो लोगों का ध्यान बंटाने के लिए नीरो ने अपने बाग में एक बड़ी पार्टी रखी, लेकिन समस्या रात में रोशनी के अभाव की थी। नीरो ने रोम के कैदियों और गरीब लोगों को बाग के इर्द-गिर्द इक_ा किया और उन्हें जिन्दा जला दिया। इधर रोम के कैदी और गरीब जिंदा जल रहे थे और उधर इसके प्रकाश में नीरो की ‘शानदार पार्टी’ आगे बढ़ रही थी, जिसमें शरीक नीरो के मेहमान थे-व्यापारी, कवि, पुजारी, दार्शनिक, नौकरशाह आदि। ….यहां समस्या नीरो नहीं है। वह तो ऐसा ही था। समस्या नीरो के मेहमान थे, जिनमें से किसी ने भी इस पर आपत्ति नहीं की। इस कहानी को आज के भारत से जोड़ते हुए साईनाथ उन लाखों-करोड़ों लोगों के दुख-दर्द को शिद्दत से बयान करते हैं, जो आज नीरो और उनके मेहमानों के लिए ‘जिंदा जलने’ को बाध्य हैं। डॉक्यूमेंट्री विदर्भ के किसानों की आत्महत्या और भारत में बढ़ती असमानता पर है। इस पूरे मामले में मीडिया नीरो के मेहमानों की तरह ही काम कर रहा है। वैसे किसान और गांव ही नहीं, आज देश और समाज के हर मसले पर कॉरपोरेट मीडिया का यही रुख हो गया है।
मीडिया के पूरी तरह कॉरपोरेट के हाथों में चले जाने का खतरा यह है कि उसकी सहायक कंपनियों के हित सत्ता के साथ इतने गहरे तक जुड़ जाएंगे कि अमूमन सत्ताधारी नेताओं के हर सही-गलत कदम का वह पैरोकार बन जाएगा। अपने हितों के अनुकूल नीतियों में बदलाव करने की लॉबिंग करेगा। इस हालात में विरोधी अथवा वैकल्पिक स्वरों के लिए नाममात्र की भी जगह नहीं रह जाएगी। दरअसल, कॉरपोरेट जगत एक तरह से सत्ताधारी नेताओं के पक्ष में जनमत बनाने से लेकर अपने आर्थिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए मीडिया का बेशर्मी की हद तक इस्तेमाल करता है। ज्यादा दिन नहीं बीते हैं, महज दो महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में यह देखने को भी मिला है। एक तरह से वह सत्ता विरोधी सामग्री को लोगों तक पहुंचने ही नहीं देता है।
इन कॉरपोरेट मीडिया समूहों में काम करने वाले अधिकतर पत्रकारों और संपादकों को मालिकों के कारोबारी हितों को आगे बढ़ाने के लिए दलाली तक करनी पड़ती है। यहां संपादक से लेकर बड़े पदों तक पहुंचने की सबसे बड़ी योग्यता सत्ताधारी दल के साथ नजदीकी मानी जाती है। उदाहरण के लिए सहारा समूह का नाम लिया जा सकता है, जहां सत्ताधारी नेताओं से काम कराने की कुव्वत रखने वाले पत्रकार ही संपादक और समूह संपादक आदि पदों पर बिठाए और हटाए जाते हैं। वैसे अब यह काम दबे-छुपे अन्य मीडिया समूहों में भी होने लगा है। सत्ता और प्रशासन से काम कराने के लिए ही मुकेश अंबानी के ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में बड़े-बड़े पत्रकारों को नियुक्त किया जाता है। अनेक नौकरशाह भी सेवानिवृत्त होने के बाद यहीं आसरा पाते हैं। समय आने पर ये सभी रिलायंस और उसकी सहायक कंपनियों के हित में इस्तेमाल किए जाते हैं।
‘द हिंदू’ के पत्रकार रहे पी. साईनाथ ने लिखा है, ‘कई दशक पूर्व अमेरिका के एक अटार्नी ने न्याय दिलाने के मामले में अमेरिकी अखबारों की भूमिका पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि ये अखबार समाज की कमजोरी का संकेत देने में विफल रहे। निश्चय ही एक अच्छे प्रेस जगत के न्यूनतम कर्तव्य की यह सबसे अच्छी परिभाषा है। उसे समाज की कमजोरियों का संकेत देने योग्य होना चाहिए। यह एक ऐसा कर्तव्य है जिसको पूरा करने में भारतीय प्रेस पूरी तरह विफल रहा है (तीसरी फसल)।‘ हालांकि अब हालात इससे भी आगे निकल गए हैं। भारतीय प्रेस समाज की कमजोरियों को इंगित करने का नहीं, बल्कि उन्हें उभारने का काम कर रहा है। उदाहरण के लिए न्यूज मीडिया में परोसा जा रहा धार्मिक पाखंड, जादू-टोना, ब्राह्मणवादी सामंती व्यवस्था में रचे-पगे पुरातनपंथी तीज-त्योहार सब जीवित कर दिए गए हैं।
रिलायंस की तरह पिछले सालों में अन्य कॉरपोरेट समूहों ने भी मीडिया समूहों में हिस्सेदारी खरीदने का प्रयास किया, जिसमें वह काफी हद तक सफल भी हुए। इस कड़ी में कुमार मंगलम बिड़ला के आदित्य बिड़ला समूह ने टीवी टुडे समूह में 27 फीसदी का मालिकाना हक हासिल किया, तो ओसवाल समूह ने एनडीटीवी गु्रप में 15 फीसदी शेयर खरीदे। अनिल अंबानी के अनेक मीडिया कंपनियों में पांच से लेकर 20 फीसदी तक शेयर हैं। एनडीटीवी के शेयरों में इस साल का सबसे अधिक 20 फीसदी उछाल आने के कारण मीडिया जगत में तरह-तरह की चर्चाएं चल रही हैं। इस बीच रिलायंस द्वारा एक मीडिया समूह पर कब्जा करने के बाद यह खबरें भी आ रही हैं कि कॉरपोरेट घराने कुछ और मीडिया समूहों पर अपना नियंत्रण हासिल करने के प्रयास में हैं।
मीडिया कंपनियों और बड़े कॉरपोरेट समूहों के बीच बढ़ते गठजोड़ का एक बड़ा प्रमाण यह भी है कि सभी प्रमुख मीडिया कंपनियों के निदेशक मंडल में बड़े कॉरपोरेट घरानों से जुड़े लोग रखे जा रहे हैं। आरआईएल ने भी एचडीएफसी के चेयरमैन दीपक पारेख और मैकिंसे के वरिष्ठ सलाहकार आदिल जैनुलभाई को नई कंपनी के बोर्ड में स्वतंत्र निदेशक बनाया है, तो राघव बहल को नेटवर्क-18 के बोर्ड का नॉन एक्जीक्यूटिव निदेशक बनाया गया है। असल में दुनिया के अनेक विकसित देशों में बड़ी पूंजी के साथ गहरे तक जुड़े कॉरपोरेट मीडिया की ताकत के आगे वहां की सरकारें भी घुटने टेक चुकी हैं। इसकी वजह से देश की नीतियां तय करने से लेकर प्रमुख फैसलों तक में मीडिया का हस्तक्षेप बढ़ा है। हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि मीडिया ही सरकारों का एजेंडा तय करने लगा है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण कुछ समय पहले ब्रिटेन में रूपर्ट मर्डोक के मीडिया साम्राज्य व उसके राजनीतिक प्रभाव का प्रकरण है।
भारत को केन्द्र में रखकर अगर बात की जाए तो आजादी के बाद से ही बिड़ला समूह और जूट प्रेस अपने व्यावसायिक हितों को बढ़ाने के लिए सरकार और राजनीति का इस्तेमाल करता रहा है। इसलिए यह कहना ज्यादा सही होगा कि मुकेश अंबानी मीडिया व मनोरंजन उद्योग में महज कारोबार करने के लिए नहीं आए हैं। मीडिया समूह उन्हें अपने विशाल औद्योगिक साम्राज्य के हितों की रक्षा करने और उसे आगे बढ़ाने का माध्यम दिख रहा है। भारत में कॉरपोरेट घरानों की ओर से मीडिया कंपनियों पर नियंत्रण करना एक खतरनाक परिपाटी है, पर अनेक विकसित देशों में बड़ी मीडिया कंपनियां कॉरपोरेट घरानों की एक अंग मात्र हैं।
मीडिया विश्लेषक आनंद प्रधान लिखते हैं, ‘दुनिया की सबसे बड़ी मीडिया कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक (जी.ई) है, जिसके मीडिया कारोबार के दर्जनों चैनल और अन्य मीडिया उत्पाद हैं लेकिन यह उसका मुख्य कारोबार नहीं है। वह अमेरिका की छठी सबसे बड़ी कंपनी है और उसका मुख्य कारोबार ऊर्जा, टेक्नोलॉजी इंफ्रास्ट्रक्चर, वित्त, उपभोक्ता सामान आदि क्षेत्रों में है। ऐसे कई और उदाहरण हैं। दूसरी ओर, दुनिया की कई ऐसी बड़ी बहुराष्ट्रीय मीडिया कंपनियां हैं जिन्होंने पिछले दो-ढाई दशकों में दर्जनों छोटी और मंझोली मीडिया कंपनियों को अधिग्रहण या समावेशन के जरिए गड़प कर लिया है। असल में यह पूंजीवाद का सहज चरित्र है, जिसमें बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है। इसी तरह बड़ी पूंजी धीरे-धीरे छोटी और मंझोली पूंजी को निगलती और बड़ी होती जाती है। अमेरिका में यह प्रक्रिया 70 के दशक के मध्य में शुरू हुई और 80 और 90 के दशक में आकर पूरी हो गई, जहां आज सिर्फ छह बड़ी मीडिया कंपनियों का पूरे अमेरिकी मीडिया और मनोरंजन उद्योग पर एकछत्र राज है, जबकि 1983 तक वहां लगभग 50 बड़ी मीडिया कंपनियां थीं (कथादेश फरवरी 2013)।
इसकी वजह से अमेरिका में मीडिया संकेन्द्रण के घातक परिणाम भी सामने आ रहे हैं। राष्ट्रपति चुनाव से लेकर सरकारी नीतियां तय करने तक में वह हस्तक्षेप कर रहा है। आने वाले समय में भारत में भी कमोबेश इसी तरह के हालात पैदा होने के संकेत मिल रहे हैं। फिलहाल इसकी शुरुआत 2014 के लोकसभा चुनाव से हो चुकी है।
मुकेश अंबानी ने भारतीय मीडिया के बड़े हिस्से पर नियंत्रण हासिल कर जिस परिपाटी की नींव डाली है, जाहिर सी बात है कि उनकी इस परिपाटी से दूसरे कॉरपोरेट घराने भी प्रेरणा लेंगे। वह भी मीडिया पर नियंत्रण के जरिए अपने व्यावसायिक हित साधने का प्रयास करेंगे। मौजूदा समय में अगर न्यूज चैनलों की बात की जाए, तो अधिकतर चैनल घाटे में चल रहे हैं। सवाल उठता है कि अगर उन्हें एकमुश्त बड़ी रकम मिलेगी, तो वह अपने समूह को क्यों नहीं बेचेंगे? नो प्रोफिट-नो लॉस वाले अथवा लाभ वाले चैनल भी मौका पाकर बड़ी रकम लेकर निकलने में हिचकेंगे नहीं। इसकी वजह यह है कि बड़ी रकम वाली कंपनियों का मुकाबला करना उनके लिए काफी मुश्किल हो जाएगा।
अगर ऐसे हालात बने तो अमेरिका और ब्रिटेन की तरह भारत में भी मीडिया संकेन्द्रण का खतरा उत्पन्न हो जाएगा। यानी कुछ बड़ी कंपनियों के और बड़ी होते जाने और छोटी कंपनियों के खत्म होने की प्रवृत्ति तेजी के साथ जोर पकड़ेगी। इसका परिणाम यह होगा कि पाठकों/दर्शकों को सूचनाओं और विचारों के लिए चंद मीडिया समूहों के सहारे रहना पड़ेगा। इसमें यह संभव है कि अनेक पत्र-पत्रिकाएं और चैनल उपलब्ध हों, लेकिन सामग्री के लिहाज से सब एक जैसे हों। इसकी वजह यह कि एक ही घराने के अनेक चैनल और पत्र-पत्रिकाएं होंगी। जाहिर सी बात है कि उन सभी का सुर एक होगा। फिलहाल इसकी शुरुआत काफी पहले हो चुकी थी, लेकिन रिलायंस ने एक और खतरनाक परिपाटी डाली है। रिलायंस ने इस मीडिया समूह में ’13 न्यूज चैनल, 22 मनोरंजन चैनल व 18 वेबसाइट्स का साम्राज्य खड़ा कर लिया है। ये सभी चैनल और वेबसाइट 11 भाषाओं में काम कर रही हैं (आउटलुक, 14 जुलाई 2014)।
उसके इस सौदे से मीडिया की विविधता और बहुलता कम होगी, जो पहले से ही चिंताजनक स्थिति में है। कॉरपोरेट घरानों की ओर से मीडिया को नियंत्रित करने के यह प्रयास किसी भी गतिशील लोकतंत्र के लिए घातक होंगे। सबसे ज्यादा चकित करने वाली बात इस गंभीर मसले पर भी राजनीतिक दलों, पत्रकार संगठनों और जागरूक समाज का चुप होना है। जरूरत है इन सभी के जागने की और यह समझने की कि लोकतंत्र के लिए मीडिया पर कॉरपोरेट के इस बढ़ते नियंत्रण के खतरनाक नतीजे निकलेंगे।
अब दैनिक भास्कर की यह रपटभी पढ़ लेंः

सरकार के सौ दिन: 'ए' ग्रेड से पास हुई मोदी सरकार, काला धन पर मिली बेहद खराब ग्रेडिंग


पाठकों ने महंगाई, रोजगार, पाकिस्तान, भ्रष्टाचार, विकास, काला धन और गवर्नेंस जैसे मुद्दों पर मोदी के वादों और सरकार द्वारा अब तक उठाए गए कदमों के आधार पर मोदी सरकार को अपनी ग्रेडिंग दी। उनसे अलग-अलग दिन इन अलग-अलग मुद्दे पर मोदी सरकार के कामकाज का आकलन करने के लिए कहा गया था। इनमें से ज्‍यादातर मुद्दों पर लगभग आधी जनता सरकार के कामकाज से संतुष्‍ट दिखी, लेकिन विदेश में जमा काला धन वापस लाने के मोदी सरकार के वादे के मामले में 75 फीसदी जनता ने निराशा जाहिर की। इस मामले में उनकी संतुष्‍ट का स्‍तर 20 फीसदी से भी कम रहा। 25 फीसदी जनता ने इस मसले पर 40 से 60 फीसदी के बीच संतुष्टि जाहिर करते हुए सरकार को सी ग्रेड दिया।
संतुष्टि के आधार पर पाठकों द्वारा अलग-अलग मुद्दों पर दी गई ग्रेडिंग के आधार पर तैयार रिपोर्ट कार्ड के मुताबिक, 58 फीसदी लोगों ने केंद्र सरकार को 'ए' ग्रेड दिया है। ए ग्रेड देने का मतलब है कि सर्वे में शामिल इन पाठकों ने मोदी सरकार के अब तक के कामकाज से 80 से 100 फीसदी के बीच संतुष्टि जाहिर की। 14 फीसदी पाठकों ने 60-80% के बीच संतुष्ट होने पर केंद्र को 'बी' ग्रेड, 6 फीसदी पाठकों ने 40-60% के बीच आंकने पर 'सी' ग्रेड, 5 फीसदीपाठकों ने 20-40 फीसदी के बीच संतुष्ट होने की वजह से 'डी' ग्रेड और 17 फीसदी पाठकों ने मोदी सरकार के कामकाज पर 20 फीसदी या उससे भी कम संतुष्टि जाहिर करते हुए 'ई' ग्रेड दिया। रिपोर्ट कार्ड रविवार दोपहर 12 बजे तक मिले वोट के आधार पर तैयार की गई है।

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