व्यापम के चचा शिवराज के भी पूर्वज थे चाचा नेहरू
आजादी के बाद नेहरू सच्चे अर्थ में भारतीय जनगण-मन के अधिनायक थे और एक अर्थ में पहले भाग्य विधाता भी। इस देश ने नेहरू को जितना प्यार दिया, उतना शायद ही किसी नेता को मिल सके। वे किसी भी दिशा में देश को ले जा सकते थे। देश को उन्होंने बहुत कुछ दिया भी। दुनिया भर के झगड़ों से उसे दूर रखने के लिए विदेश नीति को गुट निरपेक्षता का मंत्र दिया। भावी भारत का स्वप्न देखते हुए अनेक महान योजनाओं का समारंभ किया, पर अपने भ्रष्ट साथियों को हर हाल में बचाने की प्रवृत्ति ने जो परंपरा डाली उसका दुष्प्रभाव पीढि़यों तक भारतीय संतति को भोगना पडे़गा। कितने घोटालों की ओर से उन्होंने आँख मूँदी, कितने घोटालों में उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की भी अवमानना की यह छिपा हुआ नहीं है। आजादी के एक साल बाद ही उनके परम मित्र कृष्णा मैनन ने सेना के लिए जीपों की खरीद में घोटाला किया। अनन्तशयनम आयंगर समिति द्वारा न्यायिक जाँच की संस्तुति के बाद भी नेहरू ने इस प्रकरण को बन्द कर, मैनन को मंत्रिमंडल में विना विभाग के मंत्री का पुरस्कार दे दिया। पंजाब के मुख्यमंत्री प्रतापसिंह कैरो के बारे में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गयी प्रतिकूल टिप्पणी के बारे में प्रतिपक्ष द्वारा मुख्यमंत्री के त्यागपत्र की माँग के संदर्भ में तो नेहरू ने साफ कह दिया कि जब तक मुख्यमंत्री को विधान मंडल के बहुमत का समर्थन प्राप्त है, सर्वोच्च न्यायालय या भगवान भी कहे तो उन्हें हटाने का सवाल ही पैदा नहीं होता।
1950 में ही भारत सरकार द्वारा प्रशासनिक सुधार के लिए संस्तुति देने हेतु नियुक्त ए.डी गोरेवाला ने टिप्पणी की थी कि "सब जानते हैं कि नेहरू मंत्रिमंडल के बहुत से सदस्य भ्रष्ट हैं पर ऐसे मंत्रियों को संरक्षण देने में सरकार ने अपनी सीमा का भी उल्लंघन किया है ।"
आजादी के बाद नेहरू सच्चे अर्थ में भारतीय जनगण-मन के अधिनायक थे और एक अर्थ में पहले भाग्य विधाता भी। इस देश ने नेहरू को जितना प्यार दिया, उतना शायद ही किसी नेता को मिल सके। वे किसी भी दिशा में देश को ले जा सकते थे। देश को उन्होंने बहुत कुछ दिया भी। दुनिया भर के झगड़ों से उसे दूर रखने के लिए विदेश नीति को गुट निरपेक्षता का मंत्र दिया। भावी भारत का स्वप्न देखते हुए अनेक महान योजनाओं का समारंभ किया, पर अपने भ्रष्ट साथियों को हर हाल में बचाने की प्रवृत्ति ने जो परंपरा डाली उसका दुष्प्रभाव पीढि़यों तक भारतीय संतति को भोगना पडे़गा। कितने घोटालों की ओर से उन्होंने आँख मूँदी, कितने घोटालों में उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की भी अवमानना की यह छिपा हुआ नहीं है। आजादी के एक साल बाद ही उनके परम मित्र कृष्णा मैनन ने सेना के लिए जीपों की खरीद में घोटाला किया। अनन्तशयनम आयंगर समिति द्वारा न्यायिक जाँच की संस्तुति के बाद भी नेहरू ने इस प्रकरण को बन्द कर, मैनन को मंत्रिमंडल में विना विभाग के मंत्री का पुरस्कार दे दिया। पंजाब के मुख्यमंत्री प्रतापसिंह कैरो के बारे में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गयी प्रतिकूल टिप्पणी के बारे में प्रतिपक्ष द्वारा मुख्यमंत्री के त्यागपत्र की माँग के संदर्भ में तो नेहरू ने साफ कह दिया कि जब तक मुख्यमंत्री को विधान मंडल के बहुमत का समर्थन प्राप्त है, सर्वोच्च न्यायालय या भगवान भी कहे तो उन्हें हटाने का सवाल ही पैदा नहीं होता।
1950 में ही भारत सरकार द्वारा प्रशासनिक सुधार के लिए संस्तुति देने हेतु नियुक्त ए.डी गोरेवाला ने टिप्पणी की थी कि "सब जानते हैं कि नेहरू मंत्रिमंडल के बहुत से सदस्य भ्रष्ट हैं पर ऐसे मंत्रियों को संरक्षण देने में सरकार ने अपनी सीमा का भी उल्लंघन किया है ।"
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