Sunday, October 18, 2015

वेदों के अनुसार जायज़ है अखलाक की हत्या: पांचजन्य दादरी के गांव में गोमांस खाने की अफवाह के चलते पीट पीट कर मारे गए अखलाक का संदर्भ देते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र पांचजन्य के एक लेख...

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वेदों के अनुसार जायज़ है अखलाक की हत्या: पांचजन्य

दादरी के गांव में गोमांस खाने की अफवाह के चलते पीट पीट कर मारे गए अखलाक का संदर्भ देते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र पांचजन्य के एक लेख...

Authorनई दिल्ली | October 18, 2015 19:38 pm
अखलाक के साथ सही हुआ, गो हत्या करने वालों के प्राण हर लोः RSS लेख 'पांचजन्य
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-मुखपत्र में 'इस उत्पात के उसपार' शीर्षक से लेख में आरोप लगाया गया है कि मदरसे और मुस्लिम नेता युवा मुसलमानों को देश की परंपराओं से नफरत करना सिखाते हैं। अखलाक भी इन्हीं बुरी हिदायतों के चलते शायद गाय की कुरबानी कर बैठा। लेख के अनुसार, वेद में कहा गया है कि गौ हत्या करने वालों को मौत की सजा दी जाए। हममें से बहुतों के लिए यह जीवन मरण का प्रश्न है। गौ हत्या हिन्दुओं के लिए मान बिन्दु है। इसमें कहा गया है कि सामाजिक सद्भाव के लिए यह जरूरी है कि हम एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करें। इसमें कहा गया है कि निश्चित तौर पर भारत में न्याय प्रणाली है और किसी को कानून हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। लेकिन बहुसंख्यक समाज की मनोदशा की चिंता भी हो। पांचजन्य के एक अन्य लेख में हाल के दिनों में देश में कथित रूप से 'असहिष्णुता' के विरोध में लेखकों के एक वर्ग द्वारा सम्मान लौटाए जाने के संदर्भ में कहा गया है कि यह वर्तमान राजग सरकार के तहत देश को विकास की ओर बढ़ता देख भारत के खिलाफ कोई बड़ी साजिश है और ये कलमकार उसकी कठपुतली बने हैं। संघ के मुखपत्र 'पांचजन्य' का नवीन अंक मुख्यत: इसी विषय पर केंद्रित है। इसमें ''कहां बचा सम्मान'' शीर्षक से बहुत सारे लेख और उपलेख प्रकाशित हुए हैं। इसमें कहा गया कि साहित्य के क्षेत्र में कुछ नाम आजकल सुर्खियां बनने की होड़ में हैं। एक खास बिरादरी के अगुआ कहलाने वाले इन साहित्यकारों ने चुनिंदा घटनाओं की आड़ लेकर पुरस्कार लौटाने की शुरुआत तो की लेकिन बाकी मामलों पर चुप्पी के चलते घिर गए। लेख के अनुसार, ''सोनिया-मनमोहन शासन के दौरान मारे गए तर्कवादी दाभोलकर पर खामोश लेकिन अखलाक की मौत के बहाने सरकार पर निशाना लगाने की सेकुलर मुहिम भेड़चाल का रंग लेती, इससे पहले ही इसकी असलियत खुलने लगी।'' अपने तर्को को बढ़ाते हुए लेख में दावा किया गया कि जुलाई 2013 में मेरठ के पास नागलमल स्थान पर एक मंदिर में लाउडस्पीकर पर भजन बजने के विरुद्ध कथित रूप से स्थानीय मुसलमानों की भीड़ ने भक्तों को पीटा जिसमें 12 लोग मारे गए और दर्जनों घायल हुए। ''लेकिन तब सेकुलर साहित्यकार का मन न आहत होना था और न हुआ।'' एक अन्य घटना का उल्लेख करते हुए लेख में कहा गया कि बेंगलूरू में कांग्रेस के राज में 2014 में गोवध के विरोध में पुस्तक बांट रहे एक हिन्दू कार्यकर्ता को कथित रूप से उन्मादी भीड़ ने घेर कर पीटा। ''लेकिन तब भी सेकुलर खामोशी बरकरार रही।'' पांचजन्य के लेख में 'सेकुलर साहित्यकारों' को आड़े हाथों लेते हुए कहा गया कि सितंबर 2014 में मध्यप्रदेश में जब कुछ मुस्लिम महिलाएं मांस रहित ईद मनाने का अभियान चला रही थीं तब मुसलमानों की भीड़ ने उन पर पत्थर बरसाये लेकिन ''सेकुलर जुबान तब तालू से चिपकी'' रही। इसमें कहा गया, ''सवाल है, इन 'कलमवीरों' की आह में इतनी राजनीतिक पक्षधरता क्यों है? ऐसे लोगों के बारे में एक वर्ग में यह आशंका भी है कि कहीं वर्तमान राजग सरकार के नेतृत्व में देश को विकास पथ पर बढ़ता देख भारत के खिलाफ कोई बड़ी साजिश तो नहीं रची गई है, जिसकी कठपुतली बनकर ये लोग अपने ही देश की छवि बिगाड़ने की चालें चल रहे हैं।'' मुखपत्र के संपादकीय में भी सवाल किया गया, ''क्या सेकुलर प्रगतिशील नजरों में भारतीय नागरिक सिर्फ भारतीय नहीं हो सकता? क्या उसे हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई में बांटे और सुविधानुसार छांटे बिना काम नहीं चल सकता?'' संपादकीय में कहा गया, ''सामूहिक हत्याकांडों पर चुप्पी और चुनिंदा हत्याओं पर हाहाकार वाली इस गंभीर साहित्यिक मु्द्रा को भी लोग समझना चाहते हैं। समाज की सहनशीलता घटी है या असहिष्णु साहित्यकारों को छांह देने वाली छतरी हटी है? लोग व्यथित साहित्यिक मन की थाह पाना चाहते हैं।'' पांचजन्य के लेख में कहा गया है कि आप लेखकों को अखलाक की ओर से गौ की कुरबानी नहीं दिखी? मीडिया में किसी ने दादरी मामले में अखलाक से किसी की निजी शत्रुता का जिक्र नहीं किया। दादरी में कभी साम्प्रदायिक तनाव नहीं देखा गया लेकिन हमारे समक्ष न्यूटन का नियम है कि हर क्रिया की विपरीत और समान प्रतिक्रिया होती है। लेख में कहा गया है कि अखलाक समेत सभी मुस्लिम कई पीढ़ियों पहले हिन्दू रहे हैं। अखलाक के पूर्वज भी गौ संरक्षक रहे हैं। ऐसे गौ संरक्षक कैसे गौ हत्यारे हो सकते हैं? पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर ने इस लेख से अपने को अलग करते हुए इसे लेखक के निजी विचार बताया। शंकर ने कहा, ''हम किसी हिंसक घटना का समर्थन नहीं करते हैं। लेखक ने अपने विचार व्यक्त किये हैं। यह संपादकीय मत नहीं है। दादरी घटना की जांच होनी चाहिए।'' - See more at: http://www.jansatta.com/national/rss-mouthpiece-defends-dadri-vedas-order-killing-of-sinners-who-kill-cows/44785/#sthash.H8YQtrZm.dpuf

सविता बाबू पूछती हैं कि बवंडर क्यों मचा है जबकि सरहदो के आर पार साझा चूल्हा अब भी सुलग रहा है।?


मजहब भले अलग हो,हमारे दिल एक है।बंटवारा हुआ है ,दिलों का बंटवारा नहीं हुआ है।दिलों का बंटवारा नामुमकिन है।


हवा एक है।मिट्टी एक है।आसमान एक है।नदियां एक सी हैं। हिमालय इकलौता है।समुंदर भी एक सा है।


गोमांस को लेकर यह बवंडर क्यों और लोग बंटवारा पर क्यों आमादा है?


मिट्टी का रंग एक सा है।मिट्टी नहीं बदलती कंटीली तारों के बावजूद।पाकिस्तानी ड्रामा में भी फिर वही अखंड भारत।दिलों का बंटवारा हुआ तो कुछ नहीं बचेगा।इंसानियत तबाह हो जायेगी।


मेरठ दंगों के ठीक बाद,नौचंदी मेले के दंगाइयोें के फूंक देने के बाद,मलियाना और हाशिमपुरा नरसंहारों के बाद  भाईचारा  का माहौल जो किसान आंदोलन में देखा,जो मसुलमान और हिंदू किसानों का साझा चूल्हे से पकी रोटियों और सब्जियों का जायका वे लेती रही हैं,वह जायका हर हर महदेव और अल्लाहो अकबर की धर्मोन्मादी गूंज के आर पार वे सरहद के आर पार सबसे साझा कर रही हैं।


https://youtu.be/SOlq6RFwl3s


Sabita Babu speaks from the Heart of the India,where Dilon kaa Bantwara naa huaa hai naa Hoga.Please share as much as you can to save India!The Real India,the greatest pilgrimage of humanity merging so many streams of humanity!

মন্ত্রহীন,ব্রাত্য,জাতিহারা রবীন্দ্রনাথ,রবীন্দ্র সঙ্গীতঃ দীনহীনে কেহ চাহে না, তুমি তারে রাখিবে জানি গো।

https://youtu.be/SOlq6RFwl3s


Why should the Executive at the Centre become Almighty?

Why should he behave above the constitution,kill the Polity?

Let Me Speak Human!Let Me support Kejriwal for his demand to control Delhi Police!



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