आईपीएल की गंदगी इतनी सर्वव्यापी विशुद्धता है जैसा हिंदुत्व का यह राजकाज।दागी धर लिये जायेंगे,सारे सबूत हाथ कंगन आरसी होंगे,मगर किसी को छुआ नहीं जायेगा।बलि के बकरे इफरात होंगे लेकिन हाई प्रोफाइल चियारियों,चियारिनों के जलवे कार्निवाल सेल्फी में कोई किसीतरह काफर्क नहीं होगा।
देश की अर्थव्यवस्था जुआ घर है तो राजनीति विशुद्ध आस्था।निवेशक महाजनी पूंजी में आस्था।गटर और गू से निकलेगी पूंजी तो उसे कंडोम सुंगध धारीदार की बहार बना देंगे।धर्मस्थलों को हानीमून स्पाट बना देंगे।हर शहर हर गांव में दंगा कर देंगे।
नंगे जो खुद ब खुद हैं,उन्हें देखकर शरमायेंगे नहीं यकीनन क्योंकि जब राजधर्म नंगेपन का है,जब राजा नंगा है,दरबारी भी नंगे हैं और सत्ता के गलियारे में हर कोई नंगा है हम्माम में तो गंगा सफाई अभियान से स्वच्छता अभियान से न भ्रष्टाचार मिटा है और न काला धन वापस होगा और न बुरेदिनों की इस फिजां में दस्तक देंगे कभी अच्छे दिन।
ख्वाबों का पुलाव पकाने के जो कारीगर हैं,वही हैं हुक्मरान और किसी को नहीं मालूम कब कहां जहर की मिलावट हो रही है।
नफरत में जीने वालों का राजकाज वैसा ही है जैसा आईपीएल।
सबकुछ फिक्सिंग।
सबकुछ मिक्सिंग।
सबकुछ बेटिंग।
हर गेंद पर छक्का।
हर गेद पर विकेट।
धुरंधर खिलाड़ी सारे दागी हैं।
जनता उन्ही के पीछे भागी है।
चमचमाते वे सितारे सारे के सारे भारतरत्न हैं
जो भोपाल गैस त्रासदी की खाते हैं सिखों के नरसंहार
दंगों का कारोबार और गुजरात में कत्लेआम
सबकुछ आईपीएल है
मंदिर मस्जिद का झगड़ा भी आईपीएल है
ङर कत्ल की मैच फिक्सिंग है
हर कत्लेआम पर बेटिंग है
हर बलात्कार पर चीयर्स है
हर मंकी बात शीत्कार है
भयंकर अश्लील
मंच पर जो भी सितारा है
वह सर से पांव तक नंगा है
जब मारे जा रहे हों लोग
जब हो रहे हों बलात्कार
और खामोश हो कला और साहित्य
तो उस गंदगी का क्या कीजिये
फिर सारे हसीन ख्वाब अश्लील हैं
सारी नैतिकता,आदर्श
और मूल्यबोध विशुद्ध
कंडोम कारोबार है
जैसा कुंभमेला हो एडस का
और संसद हो जापानी तेल का
राजनीति से यौनकर्म भी बेहतर है
धर्म से बेहतर है अनास्था
धर्म में जो गंदगी है हर कहीं
वही दरअसल आईपीएल है
सबकुछ,सबकुछ आईपीएल है
फासिज्म का राजकाज
और शेयर बाजार में सांढ़
तमामो तमाम आईपीएल है
फुरसत में गपशप में बेशर्म कहते हैं
जायका क्या बाकी होगा
जैसा आदमी और औरत का खून होगा
हड्डियों और खून से लथपथ
बच्चों का कबाब होगा
वैदिकी हिंसा कोई हिंसा नहीं होती
कोई अश्वमेध जनसंहार नहीं होता
जनता निमित्तमात्र हैं
बकी सारा कर्मफल है
मारे जाने को नियतिबद्ध
कुरुक्षेत्र सजाने वालों की बुराई क्या कीजिये
सबकुछ आईपीएल है
धर्म को खतरा है धर्म के ठेकेदारों से।
पलाश विश्वास
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