Tuesday, July 14, 2015

रणवीर सेना और बिहार के अखबार बिहार के पत्रकारों की सामाजिक पृष्ठभूमि का असर 'समाचारों’ की पक्षधरता पर स्पष्ट रूप से दिखलाई देता है।


ब्रह्मेश्‍वर मुखिया की हत्या के बाद दलित लेखक कंवल भारती ने लिखा था, ''मुखिया दलितों का हत्यारा था और हत्यारे की हत्या पर दलितों को कोई दुख नहीं है। जिस व्यक्ति ने दलित मजदूरों के दमन के लिए रणवीर सेना बनायी हो, उनकी बस्ती पर धावा बोलकर उन्हें गोलियों से भून दिया हो, दुधमुंही बच्ची को हवा में उछाल कर उसे बंदूक से उड़ा दिया हो और गर्भवती स्त्री का पेट फाड़कर भ्रूण को तलवार से काट डाला हो, उस दरिन्दे की हत्या पर कोई दरिन्दा ही शोक मना सकता है।''

उसी मुखिया की हत्या का तीसरा 'शहादत दिवस' पटना में उसके पुत्र इंद्रभूषण सिंह ने गत 1 जून को मानाया। इस आयोजन को बिहार के मीडिया ने मुखिया के महिमामंडन के एक और मौके के रूप में लिया। 'दैनिक जागरण' को छोड़कर सभी हिंदी अखबारों ने इस आयोजन को 'ब्रह्मेश्वर मुखिया जी' का 'शहादत दिवस' दिवस कहा। महज इस शब्दावली के अंतर से आप समझ सकते हैं कि बिहार में खबर बनाने वाले लोगों की पक्षधरता क्या है।

समय हो तो पढिए यह लेख :

बिहार के पत्रकारों की सामाजिक पृष्ठभूमि का असर 'समाचारों' की पक्षधरता पर स्पष्ट रूप से दिखलाई देता है। बिहार के अखाबार और समाचार चैनल प्राय: हर उस शक्ति के विरुद्ध खड़े होते हैं, जो इन तबकों की आवा...

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