Wednesday, June 17, 2015

JPC संयुक्त संसदीय समिति के समक्ष भूमि अधिकार आंदोलन के प्रतिनिधि मंडल द्वारा भू अधिग्रहण विधेयक पर प्रस्तुति की रिपोर्ट

JPC संयुक्त संसदीय समिति के समक्ष भूमि अधिकार आंदोलन के प्रतिनिधि मंडल द्वारा भू अधिग्रहण विधेयक पर प्रस्तुति की रिपोर्ट
भूमि अधिकार आंदोलन 
के प्रतिनिधि मंडल द्वारा भू अधिग्रहण विधेयक  को बनाने के लिए गठित 
संयुक्त संसदीय समिति के  समक्ष १६ जून २०१५ को की गई प्रस्तुति की रिपोर्ट 


     16 जून 2015 को ''भूमि अधिकार आंदोलन'' के सात सदस्यीय प्रतिनिधि मंड़ल द्वारा भू अधिग्रहण बिल के उपर गठित संयुक्त संसदीय समिति के समक्ष भू अधिग्रहण विधेयक पर अपनी आपत्तियों की पेशकश की। इस समिति में  पाठा दलित अधिकार  उ0प्र0  से मातादयाल, कनहर बचाओ आंदोलन उ0प्र0 से शिवप्रसाद खरवार, अखिल भारतीय किसान सभा से वीजू, दिल्ली समर्थक समूह से श्वेता और संजीव, आल इंडि़या कृषक खेत मज़दूर संगठन हरियाणा से सत्यवान व अखिल भारतीय वनजन श्रमजीवी यूनियन से रोमा,मौजूद थे। यह सभी संगठन '' भूमि अधिकार आंदोलन'' जिसे दिल्ली के संसद मार्ग में भू अधिग्रहण अध्यादेश के विरोध में आयोजित कार्यक्रम में देश के कई जनसंगठन, वाम दलों से जुड़े किसान संगठन व कई नागरिक सगठनों द्वारा गठित किया गया था। संयुक्त सदस्यीय समिति द्वारा भूमि अधिकार आंदोलन के प्रतिनिधि मंड़ल को सुबह 11 बजे आंमत्रित कर अपने विचार प्रस्तुत करने का मौका दिया गया। 

समिति के समक्ष प्रस्तुति की पहल करते हुए श्वेता त्रिपाठी ने कहा कि भूमि अधिकार आंदोलन द्वारा भू अधिग्रहण विधेयक 2015 में कई महत्वपूर्ण प्रावधानों पर विषय वार दो दस्तावेज़ तैयार किए गए हैं जिसे समिति को सौंपा गया। विस्तृत रूप से कानून के आपत्तिजनक प्रावधानों को विजू कृष्णन ने बिन्दुवार प्रस्तुत किया। विजू द्वारा भू अध्यादेश को सरकार द्वारा तीसरी बार पेश करने के सम्बन्ध में विरोध किया गया जिस पर अध्यक्ष एस0एस आहलूवालिया की त्वरित टिप्पणी थी कि अध्यादेश सरकार द्वारा लाया जा रहा है जिससे संयुक्त संसदीय समिति का कोई लेना देना नहीं है कहा कि टिप्पणी केवल विधेयक के अंदर आपत्तियों को लेकर होनी चाहिए। 

भू विधेयक 2015 को लेकर सामाजिक आंकलन, भूमि अधिग्रहित कर पांच वर्ष तक उपयोग न करने की स्थिति में भू मालिक को लौटाने सम्बन्धित, 13 विभिन्न कानूनों को इस कानून के दायरे में लाने, भू मालिकों की भू अर्जन की सहमति को 70 फीसदी से घटाने के मामले को लेकर काफी विस्तारपूर्वक प्रस्तुति विजू कृष्णन द्वारा की गई। औद्योगिक गलियारों जैसी महापरियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहित में खाद्य सुरक्षा, पर्यावरण व सामाजिक सांस्कृतिक ताने बाने में संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता  को नए कानून द्वारा पूर्ण रूप से नजरअंदाज किया गया है। बहुफसली भूमि के बचाने के लिए कानून में किसी प्रकार के प्रावधान नहीं है। इन औद्योगिक गलियारों के लिए सार्वजनिक-निजी साझेदारी के तहत भूमि अधिग्रहित करना जिसमें सहमति एवं सामाजिक प्रभाव आंकलन की कोई मान्यता नहीं है इस पर काफी चिंता जताई। खेत मज़दूर परिवार के एक ही सदस्य को अनिवार्य रूप से रोज़गार मुहैया कराने सम्बन्धी प्रावधान जनविरोधी है जबकि किसी भी परियोजना को लगाए जाने पर परिवार के सभी सदस्यों को रोज़गार व पुर्नवासन के प्रावधान किए जाने चाहिए। व प्रभावित लोगों के रोज़गार के अवसर बढ़ाये जाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए तथा न्यूनतम वेतन बढ़ती हुई महगाई को ध्यान में रखते हुए व जीवन जीने योग्य वेतन के मुताबिक होना चाहिए। लेकिन 2015 कानून में यह प्रावधान नहीं दिए गए हैं। विजू द्वारा देश में पास्को में चल रहे गैरकानूनी भूमि अधिग्रहण से उपजे जनप्रतिरोध को समिति के संज्ञान में लाया गया। श्वेता द्वारा वन एवं राजस्व भूमि में लाखों हैक्टर के विवादों का निपटारा अभी तक नहीं किए जाने वाले सवाल को भी उठाया। 

सत्यवान द्वारा श्रीमति सुमित्रा महाजन की अध्यक्षता वाली ग्रामीण विकास संसदीय स्थायी समिति की सिफारिशों तथा भूमि अधिग्रहण् पुनर्वास एवं पुनस्थापन हेतू निष्पक्ष क्षतिपूर्ति एवं पारदर्शिता अधिकार अधिनियम 2013 के पिारित होने से पहले संसद में हुई चर्चाओ पर समिति को विचार करने का अनुरोध किया। 

रोमा द्वारा अपनी प्रस्तुति में भू अधिग्रहण अध्यादेश को सरकार द्वारा पारित करने पर ही आपत्ति जताई गई कि पूरे देश में किसानों द्वारा आत्महत्याए व गंभीर संकट है तो आखिर सरकार को इस अध्यादेश को पारित करने की क्या आपातकालीन जरूरत थी? उन्होंने कहा अध्यादेश को सरकार द्वारा बिना किसी आपातकालीन स्थिति के तीन बार पेश करना अपने आप में गैरसंवैधानिक एवं गैरसंसदीय परम्परा है। भूमि अधिकार आंदोलन संसद एवं संविधान की अवमामना का घौर विरोध करता है।  देश के भूमि रिकार्ड आज़ादी से लेकर अभी तक दूरस्त नहीं किए गए है ऐसे में जो भी अधिग्रहण हो रहा है वह किसी भी मायने में वैधानिक नहीं है। आज़ादी के समय दिए गए नारे '' लैड़ टू टिलर'' को अभी तक देश में सही मायने में लागू नहीं है भूमि सुधार के मुददे अभी तक उनसुलझे हैं व भूमिहीनों को अभी तक भूमि वितरण नहीं की गई, भूमिहीनता जबकि बड़े पैमाने में दस गुना हो चुकी है ऐसे में भूमि अधिग्रहण कानून को ही बार बार बहस करना न्यायोचित नहीं है। देश के 67 साल बीतने पर भी सिवाय आज़ादी के समय जमींदारी उन्मूलन व भूमि सुधार कानून के अभी तक आज़ाद देश की सरकारों ने भूमि अधिेकार के उपर एक भी कानून नहीं बनाया ऐसे में भूमि अधिग्रहण पर ही कानून बनाने का आखिर क्या औचित्य है? 

रोमा ने अपने वक्तवय में कहा कि यू0पी0ए सरकार द्वारा 2013 के कानून ने राज्य के एकाधिकार ऐमिनेंट डोमेन को पहली बार चुनौती जरूर दी गई लेकिन उस कानून को लागू करने की राजनैतिक इच्छा नहीं दिखाई गई। देश में ज्यादहतर अधिग्रहण बिना कानून के हो रहे है भूमि रिकार्ड दुरस्त नहीं है, वनक्षेत्र एवं परती भूमि आदि में आदिवासी समुदाय के अधिकार अभी भी अभिलिखित नहीं है, 2006 का वनाधिकार कानून अभी तक प्रभावी रूप से  लागू नहीं है व केवल व्यक्तिगत अधिकारों के लिए लागू किया जा रहा है, ऐसे में दबंगई व दमन से भूमि को  लूटने का अभियान राज्यों में ज़ारी है। 


समिति के अध्यक्ष श्री एस0एस आहलूवालिया द्वारा कई बार प्रतिनिधि मंड़ल के सदस्यों को बीच में टोका गया व उन्हें अपनी बात को समाप्त करने की बात तक कही गई। रोमा द्वारा कहा गया कि दूर दराज़ के इलाकों से चलकर आए प्रतिनिधि सदस्यों को बोलने से रोकना ठीक नहीं है। रोमा ने कहा कि हम अपनी बात पूरी कर के ही जाएगें। उ0प्र0 के सोनभद्र जिले में कनहर बांध के लिए किए जा रहे अवैध भू अधिग्रहण के सवाल उठाते हुए रोमा ने समिति को सवाल किया कि अभी तो संशोधित कानून पारित ही नहीं हुआ है तो राज्यों में गोली चल रही है जब यह कानून पारित हो जाएगा तब जबरदस्ती भू अधिग्रहण के लिए तो लगता है कि तोप चलाई जाएगी। 

प्रतिनिधि मंड़ल ने इस विधेयक को पूर्ण रूप से आमान्य करते हुए कहा कि इस भू अध्यादेश को फौरन रदद किया जाना चाहिए अन्यथा  इस मुददे पर देश के अंदर एक वृहद जनांदोलन होगा। कनहर बचाओ आंदोलन की तरफ से शिवप्रसाद खरवार द्वारा समिति के 30 सांसदों को कनहर गोली कांड़ के संदर्भ में एक दस्तावेज़ भी सौंपा।  

समिति के अध्यक्ष द्वारा समुदाय से उपस्थित सदस्यों शिवपं्रसाद खरवार जो कि सोनभद्र उ0प्र0 के कनहर बांध निर्माण में किए जा रहे अवैध भू अधिग्रहण में पुलिसीया हिंसा, दमन व गोलीकांड़ के शिकार हैं व बुदेलख्ंाड़ म0प्र0 से प्रतिनिधित्व कर रहे मातादयाल को सुनवाई का मौका नहीं दिया गया। इस पर प्रतिनिधि मंड़ल सदस्या रोमा ने समिति को यह अवगत कराया गया कि समिति में समक्ष वैसे ही 2 लोगों को प्रस्तुति करने की अनुमति दी गई थी लेकिन काफी मशक्कत के बाद सात प्रतिनिधियों को समिति के समक्ष उपस्थित होने की अनुमति मिली। ऐसे में प्रतिनिधियों को बोलने का मौका न दिया जाना काफी निराशाजनक है। समिति से अनुरोध किया गया कि जहां जहां पर भू अधिग्रहण को लेकर संघर्ष चल रहे है समिति के सदस्य सांसदों को उन क्षेत्र में जा कर जनसुनवाई का आयोजन किया जाना चाहिए। 
ं 
प्रतिनिधि मंड़ल को यह महसूस हुआ कि समिति के अध्यक्ष ज्यादा विरोध सुनने के पक्ष में नहीं थे जबकि विपक्ष सदस्यों द्वारा प्रतिनिधि मंड़ल द्वारा उठाए गए सवालों पर गौर से सुना गया व महत्वपूर्ण बिन्दुओं को नोट किया गया। 

जे0पी0सी के अध्यक्ष का जोर था कि केवल कानूनों के संशोधनो पर ही बोला जाए न कि भू अधिग्रहण के राजनैतिक पृष्ठभूमि पर। इस लिए जब भी प्रतिनिधि मंडल द्वारा कानून के राजनैतिक परिपेक्ष्य पर बोलने की कोशिश की गई तब उनके द्वारा प्रतिनिधि मंड़ल के सदस्यों को बीच में टोका गया।  जबकि भूमि अधिकार आंदोलन का मानना है कि संयुक्त संसदीय समिति सांसदों की है जो कि राजनैतिक लोगों की समिति है इसलिए राजनैतिक बिन्दुओं को प्रकाश में  लाना बेहद ही जरूरी है। लेकिन अध्यक्ष द्वारा प्रतिनिधि मंडल की प्रस्तुति को कानून के शब्दावलीयों में संशोधनों के दायरे तक ही सीमित रखने की कोशिश की जा रही थी जबकि संशोधनों को भू अधिग्रहण के राजनैतिक परिपेक्ष्य में देखना चाहिए। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे यह राजनैतिक समिति नहीं बल्कि केवल कानून के शब्दावलीयों में संशोधनो तक ही सीमित समिति है, कानून के सारवस्तु यानि कनटेंट में कोई संशोधन नहीं चाहती। जबकि हम सब जानते हैं कि इन संशोधनों को लाने के पीछे कई राजनैतिक कारण है जिसमें सबसे बड़ी वजह कारपोरिटी हितों के लिए भू अधिग्रहण करना मुख्य मकसद है। इस अध्यादेश को बार बार पारित करने से देश में काफी गंभीर राजनैतिक प्रभाव भी पड़ रहा है। स्मरण रहे कि वनाधिकार कानून को बनाने के लिए जो संयुक्त संसदीय समिति श्री किशोर चंद्र देव की अध्यक्षता में गठित हुई थी उस समिति ने कानून के पहले ड्राफट था जिसमें केवल अनुसूचित जनजाति के अधिकारों को मान्यता दी गई थी उसे जनांदोलनों के मांग पर बदल कर सारतत्व में बदल कर केवल अनु0 जनजाति के लिए नहीं बल्कि तमाम वनाश्रित समुदाय के लिए पारित किया गया था। जो आज एक ऐतिहासिक कानून के रूप में संसद द्वारा पारित किया गया है। 
 
संयुक्त संसदीय  समिति को गठित करने की एक मुख्य वजह देश में व संसद र्माग पर हो रहे किसानों व मज़दूरों के हो रहे प्रतिरोध भी था। 2015 के भूअधिग्रहण कानून को लेकर देश में साफ तौर पर एक राजनैतिक उथलपुथल हो रही है लेकिन समिति के अध्यक्ष द्वारा इस महत्वपूर्ण राजनैतिक सच्चाई को  नज़रअंदाज किया जाना काफी चिंता की बात है। साफ ज़ाहिर है कि सत्ता पक्ष कुछ बचाना चाह रही है तथा वो राजनैतिक बहस के लिए तैयार नहीं हैं। यह मसहला बुनियादी रूप से राजनैतिक है जिसमें करोड़ों खेतीहर और ग़रीब किसानों की आसित्तव का सवाल है। इसलिए भविष्य में भूमि अधिकार आंदोलन को  राजनैतिक पक्ष को मजबूत करना होगा चूंकि यह कानूनी शब्दावली के दावपेच की लड़ाई नहीं है । भूमि अधिकार आंदोलन के कई महत्वपूर्ण घटक संगठनों ने अलग से अपनी प्रतिवेदन दिए हैं और दे रहे हैं, उम्मीद है कि सभी संगठन संशोधन के राजनैतिक पक्ष को मजबूती से उठाएगें।  ताकि भविष्य में भूमि अधिकार आंदोलन एक सशक्त जन राजनैतिक आंदोलन के रूप से उभर सके जिसकी पहल भूमिहीन और दलित आदिवासी किसानो व उनके साथ जुड़े हुए संगठनों के द्वारा होगी जोकि देश के सामने एक वैक्लिपक भूमि व्यवस्था का स्वरूप भी प्रस्तुत करेगें। गौर तलब है कि 17 जून की एक अंग्रेज़ी के मुख्य दैनिक अख़बार द हिन्दु में संयुक्त संसदीय समिति के समक्ष हुई तमाम प्रस्तुतियों की एक विस्तृत रिपोर्ट है जिसमें कहा गया है कि अभी तक समिति के समक्ष 400 प्रतिवेदन आए हैं और यह सभी प्रतिवेदन नए भूमि विधेयक के खिलाफ हैं। 

यह रिपोर्ट नीचे संलग्न है। 

 

Panel seeks States' views on land Bill - The Hindu 17june2015

 

Anna Hazare, Sangh outfits to depose next week

The Joint Committee on the Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Bill has written to the State governments seeking their views on the contentious legislation.

The letter was sent by the chairman of the committee, S.S. Ahluwalia, at the insistence of the Opposition members who were of the view that the State governments should be roped in since their reservations about the 2013 "land acquisition law" has been repeatedly used by the Modi government to justify the amendments to the Act.

When the issue of inviting the State governments' views was raised by the Opposition members at the first meeting of the committee, Mr. Ahluwalia had said that by rules, this could be done only with the Speaker's permission.

Meanwhile, members claimed that practically all the 400 written representations received by the committee on the Bill were against the amendments proposed by the government.

Likewise, most of the organisations that have deposed before the committee over the last four sittings, including Tuesday, have spoken against the changes, especially dropping the social impact assessment and the consent clause.

Activist Anna Hazare and organisations from the Sangh Parivar are likely to articulate their position on the Bill next week when the committee meets again.

The Opposition members were keen that Sangh Parivar views be enlisted since sections in the RSS are said to be opposed to the Bill. When they make their presentations before the committee, what they have to say will become a part of public record, members said.

At Tuesday's meeting, there were some arguments over a managing director of a private company making a submission before the committee.

As he began speaking in support of the Bill, Opposition members questioned his presence, pointing out that it was one thing for an association of businessmen to depose before the committee but such an avenue cannot be given to any one private company.

 

 






-- 
Delhi Contact : c/o NTUI, B - 137, Dayanand Colony, Lajpat Nr. Ph IV, NewDelhi - 110024, Ph -9868217276, 9868857723,011-26214538
Lucknow contact : 222, Vidhayak Awas, Aish Bagh Road, Rajinder Nagar, Lucknow, UP
Dehradun Contact : c/o Mahila Manch, E block,Saraswati Vihar, Near Homeguard off, Kargi, Dehrdun, Uttarakhand. ph- 09412348071



-- 
Ms. Roma ( Adv)
Dy. Gen Sec, All India Union of Forest Working People(AIUFWP) /
Secretary, New Trade Union Initiative (NTUI)
Coordinator, Human Rights Law Center
c/o Sh. Vinod Kesari, Near Sarita Printing Press,
Tagore Nagar
Robertsganj, 
District Sonbhadra 231216
Uttar Pradesh
Tel : 91-9415233583, 
Email : romasnb@gmail.com
http://jansangarsh.blogspot.com

Delhi off - C/o NTUI, B-137, Dayanand Colony, Lajpat Nr. Phase 4, NewDelhi - 110024, Ph - 011-26214538

No comments: