Wednesday, June 3, 2015

पिंजड़े में कैद परिंदों के डैनों में होती नही कोई उड़ान। सारा महाभारत इसी मनुस्मृति राज को बनाये रखने के लिए भरतक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे धर्मक्षेत्रे रथी महारथी तमाम दलितों के तमामों हनुमान बन चुके राम हैं और पैदल सेनाएं बहुजन बजरंगी जाहिर है कि मुक्ति कामी जनता का मोक्ष हिंदुत्व के इस नर्क में नहीं है और न बदलाव के पक्ष के जनपक्षधर लोगों का कोई रिश्ता इन समान रुप में जनसंहारी वर्गीय वर्णवर्चस्वी नस्ली कारपोरेट राजकाज और राजकरण के रंग बिरंगे झंडेवरदारों में होना चाहिए।बल्कि मुक्ति का पथ तो अस्मिताओं के इस महातिलिस्म को तोड़कर ही बनाना होगा और इसके लिए राष्ट्रशक्ति से टकराने से पहले इस कारपोरेट मीडिया के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी गुरिल्ला युद्ध अनिवार्य है। पलाश विश्वास

पिंजड़े में कैद परिंदों के डैनों में होती नही कोई उड़ान।

सारा महाभारत इसी मनुस्मृति राज को बनाये रखने के लिए

भरतक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे धर्मक्षेत्रे रथी महारथी तमाम दलितों के तमामों हनुमान बन चुके राम हैं और पैदल सेनाएं बहुजन बजरंगी

जाहिर है कि मुक्ति कामी जनता का मोक्ष हिंदुत्व के इस नर्क में नहीं है और न बदलाव के पक्ष के जनपक्षधर लोगों का कोई रिश्ता इन समान रुप में जनसंहारी वर्गीय वर्णवर्चस्वी नस्ली कारपोरेट राजकाज और राजकरण के रंग बिरंगे झंडेवरदारों में होना चाहिए।बल्कि मुक्ति का पथ तो अस्मिताओं के इस महातिलिस्म को तोड़कर ही बनाना होगा और इसके लिए राष्ट्रशक्ति से टकराने से पहले इस कारपोरेट मीडिया के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी गुरिल्ला युद्ध अनिवार्य है।

पलाश विश्वास


कयामत हो न हो ,कंबंधों को कुछ फर्क नहीं पड़ता।

देश रहे,या बेच दिया जाये,कंबंधों को कोई फर्क नहीं पड़ता।

कंबंधों का जश्न है यह लोकतंत्र।जिसमें जिंदगी की कोई सांस बाकी नहीं।

पिंजड़े में कैद परिंदों के डैनों में होती नही कोई उड़ान।


Bhanwar Meghwanshi

2 hrs ·

मंदिरों से तो सुलभ शौचालय अच्छे है,जहां मनुष्य मात्र प्रवेश के पात्र है !


Gangadin Lohar with Abhinav Sinha and 19 others

12 mins ·

हम क्यों जनतंत्र और जनता के ख़िलाफ़ हैं ?

यदि लोगों से लगातार आजीविका के साधन छीने जाएँ ( जल, जंगल, ज़मीन, परंपरागत कौशल, छोटो-मोटी पूंजी आदि) और उनको खुद को बेचने के लिए मजबूर कर दिया जाए ( करियर, नौकरी, बेगार और दिहाड़ी ) तो क्या वे बदहवास जानवरों की तरह जंगल में हांका पड़ने पर उन्हीं शिकारियों की तरफ नहीं भागेंगे जो पहले से छुप के उनका इंतज़ार कर रहे हैं ? कितनी भी जनतांत्रिक वह व्यवस्था हो ( विकेंद्रीकरण और स्वराजवाली हो या केंद्रवादी क्रन्तिकारी सत्ता हो , सबसे नयी टेक्नोलॉजी पर आधारित हो या कोई प्राचीन स्वशासन या दोनों का एक नया संतुलित मिश्रण हो !) या कितनी भी जनता की असली आवाज़ पर आधारित हो यह जनता और जीवन के उत्सव के नाम पर ही जनता और जीवन दोनों की मृत्यु है । और कुछ नहीं। हमें जनता और जीवन की आवाज़ होने से पहले अपने मज़दूर, बदहवास और जनता -- ये सबकुछ एकसाथ -- होने के ख़िलाफ़ ही आवाज़ उठानी चाहिए। न कि अन्य किसी सवाल पर ध्यान देना चाहिए।




कल रात फिर डा.आनंद तेलतुंबड़े से लंबी बातचीत हुई है।आनंद कह रहे थे कि राहुल गांधी ने भी अपनी दलित फौज तैयार कर ली है और अंबेडकर पर कांग्रेस का पुराना कब्जा वापस करने के लिए अपने सिपाहसालार और मनसबदार बना रहे हैं,जिनमें से अनेक महू में उनके साथ थे।


इस बातचीत का कुल निष्कर्ष यह है कि जाहिर है कि मुक्ति कामी जनता का मोक्ष हिंदुत्व के इस नर्क में नहीं है और न बदलाव के पक्ष के जनपक्षधर लोगों का कोई रिश्ता इन समान रुप में जनसंहारी वर्गीय वर्णवर्चस्वी नस्ली कारपोरेट राजकाज और राजकरण के रंग बिरंगे झंडेवरदारों में होना चाहिए।बल्कि मुक्ति का पथ तो अस्मिताओं के इस महातिलिस्म को तोड़कर ही बनाना होगा और इसके लिए राष्ट्रशक्ति से टकराने से पहले इस कारपोरेट मीडिया के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी गुरिल्ला युद्ध अनिवार्य है।


इस बातचीत का कुल निष्कर्ष यह है कि हम सिलसिलेवार अब निजीकरण उदारीकरण और ग्लोबीकरण में आरक्षण लागू करने का सच का खुलासा करेंगे।अंग्रेजी में जो शोध और डैटा तैयार हैं,उसे सिलसिलेवार सार्वजनिक करने जा रहे हैं हम।यथासंभव इस धारावाहिक रपट का दूसरी भाषाओं में भी अनुवाद जारी करेंगे हम और साथ साथ लगातार संवाद बहस का सिलसिला भी जारी रखेंगे हस्तक्षेप और दूसरे जनसुनवाई मंचों पर।


जाति उन्मूलन के एजंडे पर लौटे बिना ,गौतम बुद्ध की रक्तहीन क्रांति और उसकी प्रतिक्रिया में धाराप्रवाह प्रतिक्रांतियों के अनंत सिलसिले बतौर इस मनुस्मृति राज काज और राजकरण के खिलाफ मोर्चा खोले बिना मुफ्त में  देश जोड़ना असंभव है तो जाति को वैधता देकर स्थाई बंदोबस्त में बदलने की पुणे करार की गुलामी के तंत्र को भी सिलसिलेवार समझना जरुरी है।


हांलाकि सच यह भी है कि सच्चर कमिटी की रपट से साफ साफ मुसलमानों के सामने उनके साथ किये जा रहे फर्जीवाडा़ के पर्दाफस का नतीजा सिर्फ यह निकला कि बंगाल में वाम शासन के बदले बाजार का पीपीपी गुजराती माडल की सरकार आ गयी और केंद्र और राज्यरकारों को बनाने और बिगाड़ने में अब भी मुसलमान सारी ताकत आजमा रहे हैं।


फेक इन इंडिया नहीं है ‪#‎MakeInIndia‬ का लोगो, सरकार का दावा

स्विस बैंक से कॉपी है मेक इन इंडिया का लोगो? सरकार का दावा फेक नहीं है लोगो

स्विस बैंक से कॉपी है मेक इन इंडिया का लोगो? सरकार का दावा फेक नहीं है लोगो. मेक इन इंडिया का लोगो मेड इन इंडिया नहीं है ये एक स्विस बैंक से कॉपी किया है, प्रकाशित होने के बाद सरकार...

HASTAKSHEP.COM




बहुजनों बहुसंख्य निनानब्वे फीसद प्रजाजनों को आजादी से परहेज है हजारों साल से और गुलामी की जंजीरों की चमक फीकी पड़ने पर उनके प्राण पखेरु उड़ जाते हैं।


पिंजड़े में कैद परिंदों के डैनों में होती नही कोई उड़ान।


इस देश की जनता को सत्तावर्ग ने इस कदर असहाय कर दिया है,इस हद तक गुलाम बनाकर रखा है,ऐसे उनके हाथ पांव और सर तक कलम कर दिये हैं कि भारतीय लोकतंत्र अब एक मुकम्मल अंतहीन कंबंधों के जुलूस के अलावा कुछ है ही नहीं है।


कयामत हो न हो ,कंबंधों को कुछ फर्क नहीं पड़ता।

देश रहे,या बेच दिया जाये,कंबंधों को कोई फर्क नहीं पड़ता।

कंबंधों का जश्न है यह लोकतंत्र।जिसमें जिंदगी की कोई सांस बाकी नहीं।

Gopal Rathi

15 hrs ·

साभार - अफलातून

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सच का समाना करने को कोई तैयार नहीं है।


झूठ का सारा कारोबार की पूंजी छुपाये जाने वाला सच है।


इसीलिए मित्रों,एफडीआईखोर विदेशी पूंजी और विदेशी हितों के कारपोरेट मीडिया के खिलाफ अब गुरिल्ला युद्ध अनिवार्य है।


जो भी सच जहां से भी सामने आता है,उसे देशभर में सीधे जनता तक लेकर जाने की चुनौती है।


अलग अलग संस्करणों के परस्परविरोधी अस्मिता सच के बवंडर के मुकाबले सच की सुनामी रचने से  ही रुकेगी कारपोरेट केसरिया सुनामी यह।


हजारों करोड़ के चमचमाते मीडिया की हमें कोई जरुरत नहीं है।



बाजार के शिकंजे में फंसे बिना जनता की ताकत से जनता के मोर्चे से जनता के लिए जनता का मीडिया खड़ा करना हमारा सबसे अहम कार्यक्रम होना चाहिये जो बाजार के नियमों और व्याकरण और सत्तावर्ग के नस्ली सौंदर्यबोध के मुताबिक नहीं,सीधे इतिहासबोध और वैज्ञानिक सोच के मुताबिक जनसरोकारों से लैस जनसुनवाई का राष्ट्रीय मंच होगा।


चियारिनों के जलवे के बीच अपना चेहरा चियारने के बजाय सच को लाइक और शेयर करने से ही रक्तबीज की तरह फैलेगा हमारा सच जो उनके तमाम किलों और मोर्चों को तहस नहस कर देगा।


तकनीक का इस्तेमाल सत्तावर्ग कर रहा है तो हम भी करें।


सच को रकतबीज बनाकर इस देश में जल जंगल जमीन के हर टुकड़े पर चस्पां करने की जिम्मेदारी वैकल्पिक मीडिया की है।


शास्त्रीय साहित्य का विशुद्ध कलाकौशल समृद्ध देश विदेश सत्ता सुख बटोरने वाले महामहिम जाहिर है कि यह काम कर नहीं सकते क्योंकि बाजार,सत्ता,पूंजी और दुस्समय के खिलाफ खड़े होने की लिए ऐसी रीढ़ की हड्डी चाहिए जो कैंसर से जराजीर्ण होते रहने के बावजूद तनी हुई रहे।


अब हमें हाथोंहाथ परचा और बुलेटिन पहुंचाने वाले गुरिल्लों की सख्त जरुरत है जो ये परचे और बुलेटिन लिख और छाप सकें,सर्कुलेट कर सकें और उपलब्ध तकनीक से इस तंत्र मंत्र यंत्र का कारपोरेट मीडिया के उनके प्राकाशन प्रसारण के मुकाबले रात दिन सातों दिन चौबीसों घंटे बरस दर बरस व्यूह चक्रव्यूह तहस नहस करके वर्गीय शासन के खिलाफ देश जोड़कर देश और आवाम को देशद्रोही धर्मोन्मादी मुक्तबाजारी प्रभुवर्ग के खिलाफ लामबंद करें।



जाहिर है कि बाबासाहेब के 125वीं जयंती पर बाबासाहेब की समूची विरासत पर दखल के लिए फिर कुरुक्षेत्र का मैदान सारा भारत महाभारत है और यह महाभारत हिंदू साम्राज्यवाद का मनुस्मृति शासन जारी रखने के लिए है।अंबेडकरी आंदोलन के मसीहावृंद भी इस मनुस्मृति राज को बहाल करने के लिए जाति युद्ध तेज करने में जाहिर है कि कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।


तालाब में सड़ेला पानी में जीने को अभ्यस्त मछलियां लहरों से डरती हैं और बड़ा सा जाल उन्हें गिरफ्त में लोने को चाकचबंद है,इसका आभास भी मछलियों को नहीं हैं कि मुर्गियों की महा पंचायतें चल रही हैं इस विकल्प पर फैसले के लिए कि उनकी गरदनें रेंती जायें या झटके उतार दी जाये उनकी गरदनें।


वध के लिए चुनी हुई वध्य जनता राजसूय यज्ञस्थल पर बेसब्री से इस इंतजार में सिर्फ यह जानने के लिए बेताब है कि उनके कबंध का अंतिम प्रबंध क्या होना है,उनका शिक कबाबा बनेगा की हड़िया में उबाल कर हैदराबादी बिरयानी का इंतजाम होगा।


यही है प्रजाजनों का लोक परलोक जन्म जन्मांतर का कर्मफल पाप पुण्य और पुरुषार्थ के मसालों से बना धर्म का रसायन,जो अब नूडल और शीतल पेय की तरह मुक्त बाजार की बेहतरीन रेसिपी है।जह र है तो क्या,नाम बदल जायेगा,मुलम्मा बदल दिया जायेगा,जायका बदल दिया जायेगा,विज्ञापन बदल दिया जायेगा,एक ब्रांड के बदले दूसरा ब्रांड बदल दिया जायेगा,लेकिन फिर वही मृत्यु रसायन में हमारा परमार्थ है।


फिर वही जाति में सीमाबद्ध हमारा वजूद है और फिरभी हम जाति उन्मूलन के महायोद्धा,संपूर्ण मनुष्यता के एकच मसीहा बाबासाहेब का नाम जापते हुए उनके हत्यारों की फौज के सिपाहसालार नहीं,मनसबदार नहीं तो कमसकम सिपाहिया या कि हवलदार बनने को गुड़ वाली मक्खियों की तरह भिनभिनाने वाले बहुसंख्य बहुजन निनानब्वे फीसद कबंध प्रजाजन हैं।


हमें मालूम हैं और हम उन चेहरों को बखूब जानते हैं जो राज दरबार में या तो परदे के सामने हैं या फिर परदे के पीछे हैं।हम उनके अरबों डालर के उद्यम के बारे में कोई चर्चा नहीं करना चाहेगे क्योंकि यह हमारा मुद्दा है ही नहीं।


दरबारियों का यह रागदरबारी नरसंहार संस्कृति का शाश्वत संगीत है,जो वैदिकी हिंसा की विशुद्ध वैधता का चामत्कारिक रसायन है हमारे भोजन और पेय में मिले हरित क्राति के बहुराष्ट्रीय जहर के लिए क्योंकि मृत्यु उत्सव का प्रस्थान बिंदू न भोपाल गैस त्रासदी है,न सिखों का नरसंहार ,न बाबरी विध्वंस और न गुजरात से कल्कि अवतार का अभ्युत्थान,यह दो हजार साल के करीब पुराना वाकया प्रतिक्रांति का है,जो गौतम बुद्ध की वर्णव्यवस्था के खिलाफ की गयी समता और न्याय की रक्तहीन क्रांति के खिलाफ प्रवाहमान प्रतिक्रांति है और तबसे खंड खंड खंडित जातियों में बंटा यह अखंड भारतीय समाज आत्मध्वंस के लिए नस्ली वर्णवर्चस्वी प्रभुजनों के हिंदुत्व के नर्क के प्रजाजन हैं।


अंबेडकर के अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल करने के सौवें वर्ष के मौके पर राहुल बाबा ने महू पहुंचकर बाबासाहेब की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करके अंबेडकर की 125वीं जयंती के अवसर पर होने वाले कार्यक्रमों की शुरुआत  की।


जाहिर है कि संघ परिवार के दोनों धड़ों,गरम हिंदुत्व वाली धर्मोन्मादी भाजपा और नरम हिंदुत्व वाली कांग्रेस की सारी दिलचस्पी मनुस्मृति शासन जारी रखने में हैं और सारा महाभारत इसी मनुस्मृति राज को बनाये रखने के लिए हैं।


भरतक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे धर्मक्षेत्रे रथी महारथी तमाम दलितों के तमामों हनुमान बन चुके राम हैं और पैदल सेनाएं बहुजन बजरंगी हैं।


जाहिर है कि मुक्ति कामी जनता का मोक्ष हिंदुत्व के इस नर्क में नहीं है और न बदलाव के पक्ष के जनपक्षधर लोगों का कोई रिश्ता इन समान रुप में जनसंहारी वर्गीय वर्णवर्चस्वी नस्ली कारपोरेट राजकाज और राजकरण के रंग बिरंगे झंडेवरदारों में होना चाहिए।बल्कि मुक्ति का पथ तो अस्मिताओं के इस महातिलिस्म को तोड़कर ही बनाना होगा और इसके लिए राष्ट्रशक्ति से टकराने से पहले इस कारपोरेटमीडिया के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी गुरिल्ला युद्ध अनिवार्य है।



Ak Pankaj

17 hrs ·

लोहार बाबुलाल

जोहार बाबुलाल

पत्थर तोड़ते हुए हथौड़े की

नींव चिनते हुए करनी की

खेत जोतते हुए फाल की याद

जिस तरह से आती है

उसी तरह बाबुलाल

मानसून सत्र के दौरान

राज्यों या केन्द्र में जब कोई

जनकल्याण और विकास पर भाषण देता है

तुम्हारी याद आती है

और जब लोग पूछते हैं

कौन सा बाबुलाल

तब जवाब देती है जनता

आमार बाबुलाल तोमार बाबुलाल

नक्सलबाड़िर पोएला सहीद गुरिल्ला

बाबुलाल बाबुलाल

बाबुलाल बिस्वकर्माकर

जंगल जंगल

जंगल संथाल था

और बस्ती बस्ती तुम

घर घर में थीं

सुकरा लोहारिन और सुनीति बिस्वकर्माकर

और था साथ

जोसेफ उरांव, बड़का मांझी,

केशव, कानू, चारू और खोखन दा का

पर बाबुलाल बिस्वकर्माकर

होचाइमल्लिकजोत गांव में

7 सितंबर 1967 को तुम ही भिड़े पहली बार

शासक वर्ग की पेड सेना से

और शहीद हुए

हालांकि तुम भी बचा सकते थे जान

जी सकते थे और कुछ दिन

फूलमनी और बच्चों के साथ

अपने मां-बाबा के साथ

जिन्होंने लड़ा था तेभागा

पर बाबुलाल तुमने निभाया लोहे का फर्ज

और बचा ली आठ साथियो की जान

सिर्फ एक लोहे के बल पर

क्योंकि तुम्हारे ही पास था लोहा

क्योंकि तुम ही जानते थे लोहे को

लोहार बाबुलाल

जोहार बाबुलाल

तुम आज भी दे रहे हो

सृजनरत देश के लोहे को सान

किसी सरकारी लौह पुरुष से नहीं

अगर लोहे का मान आन

अब भी कहीं है

तो वह तुम्हीं हो बाबुलाल

लोहार बाबुलाल

जोहार बाबुलाल

(बाबुलाल बिस्वकर्माकर की स्मृति में बिरसिंगजोत गांव (नक्सलबाड़ी) में स्थापित स्मारक.

फोटो 'द फर्स्ट नक्सल' किताब के सौजन्य से.)

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Sanjeev Chandan added 4 new photos.

22 hrs ·

' ही' और 'शी' क्या फर्क पड़ता है !

ईश्वर के 'पुरुष' और स्त्री होने की बहस के बीच हमारे यहाँ गर्व ( !) करने के लिए देवियाँ हैं , ब्रह्माणी है , शिव की शक्ति है. शाक्त परम्परा में देवियाँ देवो पर भी प्रभावी हैं- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते तो हर गले का कंठहार है - कहीं देवियों के स्तन की पूजा होती है (मंगलागौरी ) तो कहीं योनि की ( कामरूप कामख्या ) देवी की योनि के रक्तस्राव के प्रतीक को हम प्रसाद स्वरूप खाते भी हैं. इन कथाओं के साथ कथायें और भी हैं , लगभग सारे देवता बलात्कारी हैं, देवी सरस्वती का बलात्कार हुआ और ' चुप्पी' के प्रसाद स्वरूप उन्हें ज्ञान की देवी बना दिया गया. यानी भाव जगत में कुछ और तथा यथार्थ में कुछ और- स्त्रियों का सभी संसाधनों से वंचन और पुरुषों /देवताओं की अधिनास्थता के लिए अनुकूलन .

' भाव जगत और यथार्थ' का यह फर्क आपको हिन्दू धर्म के महान रक्षकों (संघियों) की अपनी पार्टी के आरूढ़ होने के बाद भी दिख रहा होगा, ऐसा होना स्वाभाविक है क्योंकि इनके पुरखे यही करते रहे हैं- वे डा. आम्बेडकर को अपनाने के प्रयास में हैं , सम्राट अशोक की जाति बता रहे हैं , बाबा चुहड़मल की जयन्ती मना रहे हैं - इन्हीं दिनों दलितों पर अत्याचार बढ़ा है , बोलने वाले आम्बेडकर-पेरियारवादी संगठनों पर प्रतिबन्ध लगाया जा रहा है . जिस जाति के अशोक को खोज निकाला गया है , उसी जाति के बिहार के पढ़े -लिखे प्रभावी नेता के ऊपर फर्जी डिग्रियों की दावेदारी वाली इरानी जी को बैठा दिया गया है . यह जमात दिनकर और चुहड़मल की जाति को एक साथ साधने में लगी है.

खैर , अपना क्या - अपना तो न ' देव चिंतन' से कोई सरोकार है , न ' देवी चिंतन' से. ईश्वर के न ' ही' होने से फर्क पड़ता है न ' शी' होने से . ' ही और 'शी' के इस फर्जी विमर्श से ज्यादा जरूरी चिंतायें और भी है. अब तो इस 'ही' ' शी' वाले फर्जी विमर्श की तरह ही स्मृति इरानी आदि की ओर से ' सेक्सिस्ट पत्रकारिता' , 'सेक्सिस्ट सवाल' आदि के विमर्श भी छेड़े जा रहे हैं ताकि ' मैडम' को उसी स्त्रीवाद की ढाल दे दी जाय, जिसके समग्र प्रभाव से इनकी जमात ही ज्यादा चिंतित होने लगती है - घर , परिवार और राष्ट्र की चिंता में उबलने लगती है - हाँ' राष्ट्र' की ही चिंता में क्योंकि ' भारत माता' तो उनका भाव जगत है , राष्ट्र , जिसका सही रूप' हाई कास्ट हिन्दू मेल' है , वही उनके लिए यथार्थ है ... !

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सोमनाथ मन्दिर ट्रस्ट जिसमें भारत के प्रधानमन्त्री मोदी, और लालकृष्ण आडवाणी शामिल हैं, ने सोमनाथ मन्दिर में 'गैर हिंदुओं' के प्रवेश पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। गौरतलब है कि इस मन्दिर का पुनर्निर्माण आज़ाद भारत की सरकार के पैसे से हुआ था जिसका उदघाट्न तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने किया था।

सोमनाथ मंदिर में गैर हिंदुओं की एंट्री पर रोक

Source: अमर उजाला- - (3 Jun) प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मंदिर में गैर हिंदुओं के जाने पर रोक लगा दी गई है। ये फैसला सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट ने लिया है। इस मुद्दे पर मंदिर प्रशासन ने एक नोटिस मंदिर में लगवाया है। जिसमें ल

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अगर आप इंटरनेट पर टॉप क्रिमिनल्स के नाम डालकर सर्च करें तो कुछ स्वाभाविक नामों के साथ पीएम मोदी का नाम भी आता है। पढ़ें खबर...

गूगल सर्च में टॉप 10 'अपराधियों' की लिस्ट में मोदी का नाम!

गूगल सर्च में मोदी का नाम अपराधियों की लिस्ट में दिखाए जाने के बाद टि्वटर पर भी यह युद्ध छिड़ गया...

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Ganesh Tiwari

14 hrs ·

सरकार की औकात ही नहीं कि नेस्ले पर हाथ डाले...

खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के इस बयान से मोदी सरकार के निकम्मे होने का सबूत मिलता है कि "लाइसेंस लेने के बाद अगर कोई गड़बड़ी करता है और उपभोक्ता को गुमराह करते हैं तो एफएसएसएआई इसके लिए जिम्मेदार कैसे हो सकता है. पासवान ने कहा कि सरकार केवल लिखित शिकायतों पर ही कार्रवाई करती है."

मतलब यह कि कोई जहर खिलाता रहे सरकार और उसके तंत्र को कोई लेना देना नहीं है. कंपनी के विरुद्ध कार्रवाई के मामले पर जांच का हवाला देकर पल्ला झाड़ लिया. सही बात तो यह है कि सरकार की औकात ही नहीं है कि नेस्ले पर हाथ डाले.




ਧਾਰਮਿਕ ਸਮਾਜਿਕ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਰਾਜਨੀਤਕ ਬਦਲਾਅ ਵੱਲ ਸੇਧਿਤ ਹੋਣ

ਸ਼ੋਸ਼ਿਤ ਸਮਾਜ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਨਾਲ ਚੱਲਣ ਵਾਲੇ ਧਾਰਮਿਕ, ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ, ਸਮਾਜਿਕ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮਾਂ ਦਾ ਸਮਾਜ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਫਾਇਦਾ ਤਾਂ ਹੀ ਜੇਕਰ ਇਹ ਸਭ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਰਾਜਨੀਤਕ ਤੌਰ 'ਤੇ ਬਦਲਾਅ ਵੱਲ ਨੂੰ ਸੇਧਿਤ ਹਨ ਜਾਂ ਇਸਦੇ ਲਈ ਯਤਨਸ਼ੀਲ ਹਨ। ਜੇਕਰ ਇਨ•ਾਂ ਦਾ ਇਹ ਉਦੇਸ਼ ਨਹੀਂ ਹੈ ਤਾਂ ਇਹ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਜਿੰਦਗੀ ਵਿਚ ਕੁਝ ਵੀ ਬਦਲਾਅ ਲਿਆਉਣ ਵਾਲੇ ਨਹੀਂ ਹੈ ਤੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਤੇ ਪੈਸੇ ਦੀ ਬਰਬਾਦੀ ਹੈ। ਸਾਡਾ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਕੇਂਦਰ ਤੇ ਸੂਬੇ ਵਿਚ ਸੱਤ•ਾ ਤੇ ਕਾਬਜ ਹਨ ਤੇ ਸਰਕਾਰੀ ਮਸ਼ੀਨਰੀ ਰਾਹੀਂ ਦਵਾਈਆਂ, ਖਾਣ ਦੀਆਂ ਚੀਜਾਂ, ਥਾਣਿਆਂ ਤੋਂ ਨਿਆਂ ਰੋਕ ਕੇ ਸਾਡੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਭੁੱਖਮਰੀ, ਬੇਕਾਰੀ, ਅਤਿਆਚਾਰ, ਬੀਮਾਰੀਆਂ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਬਣਾਇਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਜੇਕਰ ਅਸੀਂ ਇਨ•ਾਂ ਨੂੰ ਸੱਤ•ਾ ਤੋਂ ਲਾਉਣ ਲਈ ਯਤਨਸ਼ੀਲ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ ਤਾਂ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਹਾਲਾਤ ਮਾੜੇ ਬਣੇ ਰਹਿਣਗੇ। ਇਸ ਲਈ ਜਰੂਰੀ ਹੈ ਕਿ ਸਾਡੇ ਧਾਰਮਿਕ ਸਮਾਜਿਕ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਸਾਡੇ ਰਾਜਨੀਤਕ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਨਾਲ ਜੁੜਦੇ ਹੋਏ ਉਸਦੇ ਰਾਹੀਂ ਸੱਤ•ਾ ਵਿਚ ਬਦਲਾਅ ਵੱਲ ਨੂੰ ਸੇਧਿਤ ਹੋਣ। ਇਸ ਨਾਲ ਹੀ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਹਾਲਤ ਬਦਲ ਸਕਦੇ ਹਨ।

Balwinder Kumar Ambedkar's photo.

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  • P.c. Nakodre पॉलिटिक्स को अगर धर्म के साथ रलगढ़ करोगे तो सिवाए निराशा के कुझ भी हाथ पल्ले नहीं पड़ने को , अम्बेडकर को कितने लोग मानते हो ? किआ है उन की पॉलिटिक्स ? उसके लिए साहिब कांशी राम जी की लिखी किताब > चमचा ऐज जरुर पड़ें __ डॉ . अम्बेडकर ने जो पोलिटिकल पॉवर पर कब्जा जमाने का निर्देश दिया था __ वहाँ तक कोई सीधी सड़क नहीं जाती ||

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  • Balwinder Kumar Ambedkar politics is super structure and it stands on social or cultural base

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  • Balwinder Kumar Ambedkar if our social or cultural movement is not oriented toward our politics we will not get success

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CPI activists burning an effigy of Union Government in protest against Land Acquisition Bill and hike in Service Tax in Patna on Tuesday.

Ganesh Tiwari's photo.

Ganesh Tiwari's photo.

Hriyana ymunangar.......bhagedari or hissedari... 2/6/2015

Vidya Gautam's photo.

Vidya Gautam's photo.



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