Sunday, June 21, 2015

मुम्बई में 53 लोगों की मौत का जिम्मेदार कौन?'दारूकांडा'तील बळींची संख्या 87 वर

'दारूकांडा'तील बळींची संख्या 87 वर

34 जणांवर उपचार सुरूच; आणखी दोघांना अटक, 26 पर्यंत कोठडी 
मुंबई - मालाड-मालवणीतील विषारी दारूकांडातील मृतांचा आकडा वाढतच चालला आहे. बळींची संख्या 87 वर पोहोचली आहे. 34 जणांवर उपचार सुरू आहेत. दरम्यान, शनिवारी (ता. 20) दोन आरोपींना अटक करण्यात आली आहे. फ्रॅन्सिस डिमेलो आणि सलीम शेख अशी त्यांची नावे आहेत. या प्रकरणातील पाचही आरोपींना न्यायालयाने 26 जूनपर्यंत पोलिस कोठडी सुनावली आहे. 

पालिका आणि सरकारी रुग्णालयात उपचार सुरू असलेल्या 34 जणांपैकी काहींची प्रकृती चिंताजनक आहे. धक्कादायक बाब म्हणजे, दारूकांडानंतर अनेक जण उपचाराकरिता रुग्णालयांत येत आहेत. शनिवारी सकाळी 6 ते 9 या वेळेत तिघांना कांदिवलीतील शताब्दी रुग्णालयात दाखल करण्यात आले. त्यापैकी एकाचा रुग्णालयात नेताना मृत्यू झाला. दोघांपैकी एकाची दृष्टी कमी होऊ लागल्याचे तेथील डॉक्‍टरांचे म्हणणे आहे. शताब्दी रुग्णालयात एकूण 119 रुग्ण आले होते. त्यापैकी 17 जागीच मृत्यू; तर 39 जणांचा उपचारादरम्यान मृत्यू झाल्याची नोंद आहे. दारूमुळे रुग्णांना मूत्रपिंडाचा त्रास होत आहे. सध्या रुग्णालयात आठ डायलिसिस मशीन्स आहेत; पण ती रुग्णालयात उपचार घेत असलेल्या रुग्णांकरिता वापरली जातात, पण या दारूकांडातील रुग्णांना अधिक उपचाराकरिता सरकारी आणि खासगी रुग्णालयात नेले जात आहे. 31 रुग्णांना अन्य रुग्णालयात दाखल करण्यात आल्याचे वरिष्ठ डॉक्‍टरांनी सांगितले. सध्या 7 रुग्ण अतिदक्षता विभागात; तर 17 रुग्णांवर मेडिसीन विभागात उपचार सुरू आहेत. पुढील 48 तास त्यांना डॉक्‍टरांच्या देखरेखीखाली ठेवले जाणार आहे. 

दारूकांडानंतर पोलिसांनी गावठी दारूच्या गुत्त्यांवर कारवाईला सुरुवात केली आहे. गुन्हे शाखेच्या पोलिसांनी शनिवारी फ्रान्सिस आणि सलीम या दोघांना मालवणी परिसरातून अटक केली. ते दोघे मालवणी परिसरात दारू पुरवायचे. आतापर्यंत पोलिसांनी याप्रकरणी पाच जणांना अटक केली आहे. या सर्वांना शनिवारी न्यायालयात हजर करण्यात आले. न्यायालयाने त्यांना 26 जूनपर्यंत पोलिस कोठडी सुनावली. 

खासदारांचा मदतीचा हात 
दारूकांडाच्या घटनेनंतर शनिवारी खासदार गोपाळ शेट्टी यांनी शताब्दी रुग्णालयात जाऊन पीडितांची चौकशी केली. तसेच त्यांना पाच हजार रुपयांची मदत केली. झोपडपट्ट्यांमध्ये पाणी कमी आणि दारू जास्त मिळते, अशी खंत शेट्टी यांनी व्यक्त केली.

'डीवायएफआय', कॉंग्रेसची निदर्शने 
मालाड - विविध राजकारणी आणि विविध पक्षांनी आता विषारी दारूकांडांच्या विरोधात रस्त्यावर उतरायला सुरुवात केली आहे. "डीवायएफआय'ने शनिवारी (ता. 20) सर्वात प्रथम मालवणी पोलिस ठाण्यासमोर निदर्शन करून संताप व्यक्त केला आणि मृतांच्या नातेवाइकांना सरकारने आर्थिक मदत जाहीर करावी, अशी मागणी केली. 

मुख्य आरोपींना अटक करून त्यांच्यावर कडक कारवाई करावी आणि मृतांच्या नातेवाइकांना न्याय मिळवून द्यावा, यासाठी निदर्शने केल्याची माहिती प्रीती शेखर यांनी दिली. या वेळी निदर्शकांच्या शिष्टमंडळाने अतिरिक्त पोलिस आयुक्त फत्तेहसिंग पाटील यांना निवदेन दिले. कॉंग्रेसच्या वतीने माजी खासदार आणि मुंबई कॉंग्रेसचे अध्यक्ष संजय निरुपम यांच्या नेतृत्वाखाली धरणे धरण्यात आले. या प्रकरणी संबंधित पोलिसांची चौकशी करून कारवाई करावी, अशी मागणी कॉंग्रेसने केली आहे. 

मालवणीत स्मशानशांतता 
एकापाठोपाठ एक अशा रुग्णवाहिका स्मशानाच्या दिशेने जात असताना त्यांच्या आवाजाने रहिवाशांच्या अंगावर काटा येत होता. मालवणीतील स्मशानभूमीत शवदहनासाठी रांगेत प्रेतांना नेण्यात येत होते. त्यामुळे संपूर्ण मालवणीत स्मशानशांतता जाणवत होती. काही घरांमध्ये चूलही पेटली नाही, तर काही घरांतील कमावता विषारी दारूमुळे गेल्याने हंबरडे आणि हुंदक्‍यांनी शहारे आणले.


मुम्बई में 53 लोगों की मौत का जिम्मेदार कौन?

विराट

Source: Express Photo by Dilip Kagda)

Source: Express Photo by Dilip Kagda)

मुम्बई के मालाड़ पश्चिम के एक झुग्गी इलाके में बुधवार की सुबह से लेकर अब तक जहरीली शराब के कारण 53 लोगों की जान जा चुकी है। पूरा प्रशासन कल से अफरा-तफरी में है, 3 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और 8 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड किया गया है। एक के बाद एक जहरीली शराब की चपेट में आए लोग सरकारी अस्पतालों में दम तोड़ते जा रहे हैं। लगभग सभी मारे गये व अभी भी जिन्दगी और मौत के बीच जूझते लोग कड़ी मेहनत-मशक्कत करके गुज़र-बसर करने वाले लोग हैं। पूरी बस्ती में मौत का सन्नाटा पसरा हुआ है।

क्या यह कोई पहला ऐसा मामला है जब जहरीली शराब पीने के कारण बड़ी संख्या में लोगों की जानें गयी हैं? रोज़-ब-रोज़ होने वाली मौतों को अगर छोड़ भी दिया जाये तो यह पहली ऐसी घटना नहीं है जब जहरीली शराब पीने से इतनी बड़ी संख्या में गरीबों की जान गयी है। मुम्बई के ही विक्रोली में 2004 में 100 से अधिक लोगों की, उत्तरप्रदेश में पहले सितंबर 2009 और फिर इसी साल जनवरी में दोनों बार को मिलाकर 70 से अधिक लोगों की इस तरह से मौत हुई, 2011 में पश्चिम बंगाल में लगभग 170, 2009 में गुजरात में 100 से अधिक लोगों की जहरीली शराब पीने से मौतें हुईं। हर बार प्रशासन का रुख एक जैसा ही रहा है; घटना के बाद कुछ लोगों को गिरफ्तार किया जाता है, कुछ अफसरों का तबादला और निलम्बन होता है और थोड़े ही समय बाद घटना विस्मृति के अंधेरे में खो जाती है।

सवाल यह उठता है कि आखिर इन सभी बेगुनाहों की मौत का असली जिम्मेदार कौन है। क्या इन मौतों के लिए महज़ कुछ व्यक्ति ज़िम्मेदार होते हैं जिनको कि गिरफ्तार कर लिया जाता है? क्या कुछ अफसरों के निलम्बन या तबादले से इन घटनाओं पर अंकुश लग सकता है? इन घटनाओं की बारम्बारता चीख-चीख कर किस ओर संकेत कर रही है? सच्चाई यह है कि इन घटनाओं के लिए यह मानवद्रोही व्यवस्था जिम्मेदार है जिसमें गरीब मज़दूरों की जिन्दगी की कीमत बेहद सस्ती होती है, जहाँ मनुष्य को मुनाफा कमाने के लिए मशीन के एक पुर्जे़ से अधिक कुछ नहीं समझा जाता।

क्या प्रशासन को खतरनाक शराब बनाने वालों के बारे में पता नहीं होता है? झुग्गी बस्तियों में पुलिस की मोटरसाईकिले व गाड़ि‍यां रात-दिन चक्कर लगाती रहती हैं। ये पुलिसवाले यहाँ व्यवस्था बनाने के लिए चक्कर नहीं लगाते हैं बल्कि स्‍थानीय छोटे कारोबारियों और कारखानादारों के लिए गुण्डा फोर्स का काम करते हैं। सारे अपराध, सभी गै़र-कानूनी काम पुलिस की आँखों के सामने होते हैं और सभी काम पुलिसवालों, विधायकों आदि की जेबें गर्म करके उनकी सहमति के बाद ही होते हैं। शक की गुंजाइश के बिना यह कहा जा सकता है कि इस तरह की शराब बनाने के बारे में भी प्रशासन को पूरी जानकारी रहती है। शराब को और अधिक नशीला बनाने के लिए उसमें मेथानोल और यहाँ तक कि पेस्टीसाइड का भी इस्तेमाल होता है। चूंकि यह शराब लैबोरेटरी में टेस्ट करके नहीं बनती और इसकी गुणवत्ता के कोई मानक भी नहीं होते हैं तो ऐसे में जहरीले पदार्थों की मात्रा कम-ज्यादा होती रहती है। इस शराब में अगर जहरीले पदार्थों की मात्रा कम भी रहे तो भी लम्बे सेवन से आँखे खराब होने आदि का खतरा तो बना ही रहता है। जहरीले पदार्थों की मात्रा यदि अधिक हो जाती है तो उसके जो परिणाम होते हैं वो इस घटना के रूप में हमारे सामने हैं।

यह भी हमारे समाज की एक कड़वी सच्चाई है कि जब एक मज़दूर को दिन भर हाड़-तोड़ मेहनत करनी पड़ती है तो उसका साथ ही साथ उसका अमानवीकरण भी होता है और शराब व अन्य व्यसन उसके लिए शौक नहीं बल्कि जिन्दगी की भयंकर कठिनाइयों को भुलाने और दुखते शरीर को क्षणिक राहत देने के साधन बन जाते हैं। ऐसे मूर्खों की हमारे समाज में कमी नहीं है जो कहते हैं कि मज़दूरों की समस्याओं का कारण यह है कि वे बचत नहीं करते और सारी कमाई को व्यसनों में उड़ा देते हैं। असल में बात इसके बिल्कुल उलट होती है और वे व्यसन इसलिए करते हैं कि उनकी जिन्दगी में पहले ही असंख्य समस्याएँ है। जो लोग कहते हैं कि बचत न करना गरीबों-मजदूरों की सभी परेशानियों का कारण होता है उनसे पूछा जाना चाहिए कि जो आदमी 5000-8000 रुपये की कुल आय से कितना बचा सकता है। क्या जो 1000-1500 रुपये वे व्यसन में उड़ा देते हैं उसकी बचत करने से वे सम्पन्नता का जीवन बिता सकेंगे? यहाँ व्यसनों की अनिवार्यता या फिर उन्हें प्रोत्साहन देने की बात नहीं की जा रही है बल्कि समाज की इस सच्चाई पर ध्यान दिलाया जा रहा है कि एक मानवद्रोही समाज में किस तरह से गरीबों के लिए व्यसन दुखों से क्षणिक राहत पाने का साधन बन जाते हैं। इस व्यवस्था में जहाँ हरेक वस्तु को माल बना दिया जाता है वहाँ जिन्दगी की मार झेल रहे गरीबों के व्यसन की जरूरत को भी माल बना दिया जाता है। गरीब मज़दूर बस्तियों में सस्ती शराबों का पूरा कारोबार इस जरूरत से मुनाफा कमाने पर ही टिका है। इस मुनाफे की हवस का शिकार भी हर-हमेशा गरीब मजदूर ही बनते हैं। यह घटना कोई अनोखी नहीं है और मुनाफे के लिए की गई हत्याओं के सिलसिले की ही एक और कड़ी है।

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