Saturday, July 18, 2015

ईद मुबारक,बावजूद इसके कि हमारे हिस्से का काश्मीर जल रहा है और जमीन पर जो जन्नत है मुकम्मल हम उससे बेदखल होते जा रहे हैं अरब दुनिया की त्रासदी को गले लगा रहे हैं हम पलाश विश्वास


ईद मुबारक,बावजूद इसके कि हमारे हिस्से का काश्मीर जल रहा है

और जमीन पर जो जन्नत है मुकम्मल हम उससे बेदखल होते जा रहे हैं अरब दुनिया की त्रासदी को गले लगा रहे हैं हम

पलाश विश्वास

इस महादेश की जमीन की खुशबू और फिजां में महमहाती मुहब्बत की सुनहली फसल को महसूस करना हो तो आज के दिन मुंशी प्रेमचंद की कहानी ईदगाह जरुर पढ़ लें।हमीद का बचपन न जाने किस जमाने में कत्म हो गया होगा और प्रेमचंद बिना जानें कि साहित्य में दरअसल उनकी हैसियत क्या है,अलविदा हो गये।यह तो खैर होना ही था।वक्त ठहरता नही है।कच्चू के पत्ते पर फिसलते मूसलाधार पानी की तरह यादें फिर भी रह जाती हैं जो मौसम के बदलाव पर कभी कभार हिमपात में तब्दील भी हो जाते हैं।आज फिर वही हिमपात है कि जैसे अपने पहाड़ में अपने लोगों के दरम्यान फिर टहलने लगा हूं और हमारे सामने सच यह है कि हमारा हिमालय जैसे किरचों में बिखरने लगा है अविराम आपदाओं के सिलसिले में,उसी तरह हमारा यह महादेश जो पहले से विभाजन की त्रासदी का शिकार है,फिर बड़े पैमाने में टूट फूट की दहलीज पर है।


ईद मुबारक,बावजूद इसके कि हमारे हिस्से का काश्मीर जल रहा है।

और जमीन पर जो जन्नत है मुकम्मल हम उससे बेदखल होते जा रहे हैं।

अरब दुनिया की त्रासदी को गले लगा रहे हैं हम।


अपने अपने बचपन में फिर हर कोई हमीद है।फिर वह दिल और वह दिल सिरे से लापता हैं।पिर कहां से लाये ढूंढकर वह दिल,फिर कहां से लायें ढूंढकर वह दिमाग,जाने अनजाने इसी जद्दोजहद में जमाना बीत जाता है।कापिला गुजर जाता है और हम गुबार देखते रह जाते हैं।पेट में तितलियों की उढ़ान हो न हो,जुबान पर ताला लगा रहता है और हाथ में जितने भी गुब्बारे होते हैं या तो पट जाते हैंं या उड़ जाते हैं।


हम लोग भी बचपन में तीज त्योहार मनाते रहे हैं और आहिस्ते आहिस्ते वह जमाना निकल गया है और अब हम किसी को किसी धार्मिक रस्म या त्योहार की बधाई नहीं देते क्योंकि किसी रब को देखा नहीं हैं हमने और न किसी रब से मुहब्बत है हमें।जिस जिसको रब मानता रहा है दिल,वह सड़क के हर मोड़ पर गायब हो गया और दिमाग में सारे मसले ऐसे गड़बड़ होते रहे जैसे भारी भूस्खलन या भूकंप या हिमस्खलन या बाढ़ में घाटियां आबादी के साथ जिंदा दफन हुआ करै हैं।


फिर भी कल और आज हमने ईदमुबारक कहा है।

आज अपने सहकर्मी शंकर जालान को ईदी के नये कपड़े में सजा धजा देखकर उसे भी कह दिया ईदमुबारक।


जनम से लेकिन हिंदू हूं।हिंदू होने के बावजूद इबादत का कोई फतवा है नहीं।हिंदू बने रहने का सबसे बड़ा कारण शायद यही है कि हिंदुत्व साबित करने की कोई चीज नहीं रही है आज तक और किसी को ईद मुबारक कहने से कोई मुसलमान हो नहीं जाता।किसी पवित्र नदी में न नहाने या किसी धर्मस्थल पर सर न नवाने की वजह से कोई हमें हिंदुत्व से खारिज करने का फतवा जारी नहीं कर सकता।वरना मुसलमान की औलाद,जात कुजात,अछूत,बांग्लादेशी,पाकिस्तान चले जाओ की गालियां खाकर भी हम हिंदू बने नहीं रहते।


हिंदुत्व ब्रिगेड के आक्रामक राष्ट्रवाद,अंध देशभक्ति के नाम उग्र हिंदुत्ववाद और निरंतर जारी वर्ण वर्ग वर्चस्व आधिपात्य के मनुस्मृति शासन और वैदिकी नरसंहार के मुक्तबाजारी जलवे के बावजूद आस्था अनास्था का विशेषाधिकार हर हिंदू के पास है।नास्तिक और धर्मनिरपेक्ष हो जाने से कोई किसी संत,साध्वी या शंकराचार्य से कमतर हिंदू नहीं हो जाता।


फिरभी आज तक हम ईद मुबारक नहीं कहते रहे जैसे दिवाली या दशहरे की शुभकामनाएं जारी नहीं करते रहे हम।


पहलीबार हम ईद मुबारक जब कह रहे हैं तो कश्मीर में ईद के दिन पाकिस्तानी झंडे लहरा रहे हैं और वहां इस्लामिक स्टेट के समर्थक छुट्टा घूम रहे हैं।बादल फटने से लोग मर रहे हैं कश्मीर में।झेलम कगारे तोड़कर बहने लगी है और शायद चिनार पर भी आग लगी है और शायद गुलमर्ग के नीचे भी कोई ज्वालामुखी फटने को है।


क्योंकि शत प्रतिशत हिंदुत्व के एजंडे के तहत इजराइल जैसे बंदोबस्त के तहत काश्मीरी पंडितों के लिए एक गाजा पट्टी बनाने का इंतजाम घाटी में हो रहा है हिंदुत्व के नाम।ऐसी गाजा पट्टियां देशभर में बनायी जा रही है और हम उस हिंदुत्व की पैदल सेना में कतई हैं नहीं, यह हर गैर हिंदू कोबताने की गरज आन पड़ी है और चूंकि जनम से हिंदू हूं,इसलिए पहली बार कह रहा हूं ईद मुबारक।


कश्मीर में ईद का माहौल है ही नहीं।पाक माहे रमजान पर देश भर में जो इफ्तार का सिलसिला चला है मुसलमान वोटों के लिए,वह इफ्तार डल झील के किनारे कहीं हुआ है,ऐसा भी लग नहीं रहा है।


हम बार बार इस तरफ आपका ध्यान खींचने की कोशिश कर रहे हैं कि फासिज्म के मुक्तबाजारी राजकाज,राजनीति और राजनय से हम जाने अनजाने समूची एशिया को अरब दुनिया की त्रासदी में निष्णात करते जा रहे हैं।


सच तो यह है कि आंशिक ही सही,नेपाल में राजतंत्र और हिंदू राष्ट्र के अवसान पर मधेशी,आदिवासियों और बहुजनों को देश के राज्यतंत्र में आंशिक भागेदारी मिली है।हम हिंदुत्व के उन्माद में उनकी यह हजारों साल बाद मिले हक हकूक छीनने की कोशिश कर रहे हैं लगातार लगातार नेपाल में हिंदू राष्ट्र और राजतंत्र की बहाली की कोशिशें और हस्तक्षेप जारी करके तो बांग्लादेश में धर्मांध राष्ट्रीयता को बांग्ला राष्ट्रीयता का तख्ता पलचचकर बहाल करने की भी हमारे हिंदू राष्ट्र की कोशिश है।

भारत के साथ आजाद हुए पाकिस्तान के हालात छुपे नहीं है जो वहां जारी लगातार इस्लामी सैन्य तंत्र की वजह से है।


इराक और अफगानिस्तान का नजारा हमने टीवी के परदे पर देख लिया लाइव।देख लिया गद्दाफी के लीबिया का अंजाम।सूडान ,सोमालिया से लेकर सीरिया और जार्डन का सच अब छुपा नहीं है।


फिर भी यह खासी परेशानी का सबब है कि तमाम पढ़े लिखे लोग भारत को विशुद्ध वैदिकी हिंदू राष्ट्र बनाने पर तुले हुए धर्म और आस्था को राज्यतंत्र,राजनीति,राजनय औरमुक्तबाजारी अर्थव्यवस्था का विध्वंसक अरब बनाने पर तुला हुआ है।


कश्मीर मामले में हमें पाकिस्तान से जानी दुश्मनी है।कश्मीर मसले की वजह से पाकिस्तान सेहमारे रिश्ते कभी सुधर नहीं सकते।कश्मीर की वजह से चीन लेकर ऱूस और रूस से लेकर इजराइल और अमेरिका तक इस महादेश में अपनी अपनी दादागिरि से बाज नहीं आ रहे हैं और हम जानबूझकर उन्हें इसकी इजाजत दे रहे हैं।


बांग्लादेश का किस्सा हम जानते हैं।वहां दमन का जो सिलसिला चला,उसकी वजह से ही पाकिस्तान का विभाजन हुआ।बांग्ला भाषा के बदले उर्दू की अनिवार्यता की इस्लामी अभियान में पाकिस्तान बनने के साथ ही विभाजन की जमीन पकने लगी थी और 1971 में यह विभाजन हो गया।


हम क्यों कश्मीर को बांग्लादेश बनाने पर तुले हैं,इस पहेली को जितना जल्दी बूझ लें उतना ही बेहतर है।


हम कश्मीर के लोगों को उतना भारतीय नहीं मानते जितना दावा हम अपने बारे में करते हैं।इस पहेली को जितना जल्दी बूझ लें उतना ही बेहतर है।


भारतीय नगरिकता का वजन देश के हर हिस्से में इतना अलग अलग क्यों है।

नई दिल्ली के नागरिक कुछ ज्यादा ही भारतीय हैं और खासतौर पर सत्ता और राजनीति के गलियारे में तमाम लोग हमसे बेहतर और वजनदार भारतीय है,यह बंदोबस्त जारी रहना है तो देश में और कितने कश्मीर कहां कहां पैदा होने हैं,हम यह बता नहीं सकते लेकिन इस आसंका से भीतर बाहर हिल जाते हैं।


लोकतंत्र के तहत भारत में किसी भी नागरिक को कुछ भी कहने का हक है।अखबारों और टीवी पर जारी बयानों को देख लें।लेकिन कश्मीर में कोई भी कुछ अलग बयान जारी करें,महज नागरिक और मानवाधिकार की बात करें,तो वह देशद्रोह क्यों है,हमारी समझसे यह परे हैं।


कश्मीर परचर्चा मना है।कश्मीरकी खबरें देश को देना मना है।कस्मीर पर अलग राय रखना देशद्रोह है।अखंड भारत में कश्मीर निषिद्ध प्रदेश है।


फिरबी ईद मुबारक,बावजूद इसके कि हमारे हिस्से का काश्मीर जल रहा है।

और जमीन पर जो जन्नत है मुकम्मल हम उससे बेदखल होते जा रहे हैं।

अरब दुनिया की त्रासदी को गले लगा रहे हैं हम।



हमारा लोकतंत्र अब भी नाबालिक है या उसे बदहजमी है कि कोई अश्लील जुमला हमें बर्दाश्त नहीं होता जबकि हर कहीं गालियों की बौछार है,अश्लील छवियों की भरमार है,हिंसा जायज है और नफरत पैदा करने वाले तमाम लोग मसीहा हैं।


मजे की बात है कि नख से शिख तक ऩपरत से लबालब लोग हिंदुत्व के नाम पर हिंदू होने के नाते जो लोकतंत्र हमारी विरासत है,उसको कच्चा चबाते हुए हर धर्मनिरपेक्ष और हर लोकतांत्रिक आवाज को देशद्रोह का फतवा जारी कर रहे हैं।


देस के किसी भी हिस्से में जनता के अलग अलग मसले हो सकते हैं।हो सकता है कि हमारा उनका नजरिया अलग अलग हो।


उन मसलों को सुलझाने का सबसे आसान तरीका सेंसर शिप और सैन्यशासन नहीं है,दुनिया के इतिहास ने और अखंड बारत के इतिहास ने इसे बार बार साबित किया है।


फिर भी अखंड हिंदू राष्ट्र के नाम हम न सिर्फ भारत को फिर कंड खंड करने पर तुले हैं,बल्कि समूची एशिया को धर्मोन्मादी जिहाद के तेलकुओं में धकेलने की वारदात को अंजाम दे रहे हैं।


हमारा कोई रब नहीं है।रब जिनका है,मजहब और इबादत से जिनका वास्ता है,वे रब से दुआ करें कि रब खैर करें।


हम फिर वही काफिर है और दोजख या नर्क हमारे हिस्से में है,हमें इसकी गिला भी नहीं है।आपको अपनी अपनी जन्नत मुबारक।मगर जरा उस जन्नत का हकीकत भी जान लेने की तकलीफ करें तो आपके हिस्से का नर्क या दोजख बनने से रह जायेगा।




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