बेदखली अभियान हो गया और तेज
कत्लेआम के इंतजाम भी चाकचौबंद
बुलबुलों के सौदागर असलियत बता रहे नहीं कि सारे वैश्विक इशारे लाल निशान पार, पार
अमेरिकी साम्राज्यवाद ने तेल के कुंओं से लेकर पानी पर कब्जे के लिए समूची अरब दुनिया और मध्यएशिया को युद्ध गृहयुद्ध और आतंकवाद की आग में धकेल दिया।तालिबान,अल कायदा से लेकर इस्लामिक स्टेट और अरबिया वसंत उनकी विश्वव्यवस्था के लिए जिस तरह अनिवार्य रही है,उसी तरह दक्षिण एशिया में हिंदुत्व का आतंक विश्वव्यवस्था के उपनिवेश को बहाल रखने के लिए अनिवार्य है।उतना ही अनिवार्य है मुक्तबाजारी मनुस्मृति अभियान और नरसंहार अश्वमेध अभियान।
पलाश विश्वासखून एक हर कतरे का हिसाब किससे मांगें किसी का जमीर कोई साबूत बचा हो तो हिसाब मांगें।नदियां खून की अबाध हैं ,जैसे अबाध हैं महाजनी पूंजी इन दिनों।धर्म हुआ कंडोम कारोबार तो पवित्र अपवित्र सारा जल बंधा हुआ बनता जाता जहरीला शीतलपेय,जिसे पीकर जी रहे हैं हम मरमरकर।जयश्री राम।जयश्री राम।
सुखीलाला का राजकाज।जयश्री राम।जयश्री राम।
बाजार में पेशन।जयश्री राम।जयश्री राम।
रेलवे का निजीकरण।जयश्री राम।जयश्री राम।
सराकीर रिफाइनरी का काम तमाम।जयश्री राम।जयश्री राम।
अंबानी बेचें तेल,अडानी का निजी रेलपथ,टाटा करें कायाकल्प।भारतीय रेल का भी काम तमाम।जयश्री राम।जयश्री राम।
तीसाती के यहां छापे।मालेगांव दफा रफा।जयश्री राम।जयश्री राम।
भारत अमेरिका परमाणु संधि के लिए अगर कामरेड प्रकाश कारत खलनायक हुए तो कृषि आंदोलन के मौलिक मसीहा कामरेड रणदिवे का क्या कहिये।कामरेडों ने परमामु संधि का मुद्दा छोड़ दिया है और अब अमेरिका इजराइल परमाणु संधि के बहाने भारत देश को परमाणु भट्टी में जोंकने का महिमामंडन हो रहा है।
शेयर बाजार फिर उछाले पर है कि कर्ज का सूद भरने के लिए फिर कर्ज दिया गया है यूनान को।संकट न खत्म हुआ न टला है।उदारीकरण के फैसले के खिलाफ सरकार और संसद के खिलाफ खुली बगावत है और तमाम बैंक ,तमाम अखबार बंद हैं।जल रहा है यूनान और सिर्फ पेट्रोल बम के धमाके गूंज रहे हैं।
दशकों से जलते हुए तेलकुंओं की तमाम तस्वीरे धुंधली है और समुंदर में तेल के फैलाव में फंसे पक्षियों के पंख तेल से अब भी लथपथ हैं,जान निकली कि न निकली हमें नामालूम है।
बहुत शोर है कि बदल गये सत्तर दशक के सारे लोग,इने गिने चेहरे हैं जिनका रंग रोगन हो गया,टीवी पर अखबारों में उनका चेहारा चमके दमके सुपरस्टार।वे ही समीकरण बनावैं,बिगाड़े समीकरण वे हीं।राजकाज उन्हीं का।मुल्क हुआ महाजिन्न का।हुक्म चले वाशिंगटन का।सारा लोककल्याण कारपोरेट।हिफाजत का नाम हो गया सलवा जुड़ुम,आफसा या फिर मोसाद या सीआईए या ड्रोन या आधार निराधार।
जमीन पर और जमीन एक भीतर भी जो लोग अब भी लड़ रहे हैं जनता के हकहकूक की लड़ाई जो हरगिज नहीं बदले,उनपर लेकिन नजर किसी की नहीं।
बदलने वालों के साथ हुजमोहुजुम भेड़िया धंसान हैं,जो बदले नहीं हैं यकीनन,वे सारे लोग तन्हा तन्हा है।
निजीकरण और विनिवेश के माहौल में राष्ट्रीयकरण और डा. अशोक मित्र को याद कीजिये।
बंगाल में वाम शासन जो रहा पैंतीस साल,उसकी असल वजह भूमि सुधार की क्या कहिये।
बंगाल में दीदी ने कोलकाता विश्वविद्यालय के उपकुलपति सुरंजन दास को बागी यादवपुर विश्वविद्यालय की कमान सौंप दी है जो मुख्यमंत्री के खास चहेते बताये जाते हैं तो जाने माने अर्थशास्त्री सुगत मार्जित कोलकाता के उपकुलपति बना दिये गये हैं।
देश में एफटीआई से लेकर आईसीएचआर तक तमाम नियुक्तियों के मद्देनजर यह कोई अनहोनी नहीं है लेकिन।
खास बात तो यह है कि जिस विश्वविद्यालय के उपकुलपति सर आशुतोष मुखोपाध्याय स्वायत्तता को विश्वविद्यालयों की बैठते ही सुगत मार्जित ने ऐलान कर दिया कि वे सरकारी आदमी हैं और यह कोई राज नहीं है,जिसे छुपाया जाये।उनके मुताबिक सभी संस्थानों में सरकार के नजदीकी लोगों की ही नियुक्तियां होती हैं।
हम कोई विश्वविद्यालय की स्वायत्तता के मसल पर ऐसा लेकिन लिख नहीं रहे हैं।रेलवे के तुरंत निजीकरण की सिफारिश करने वाले अर्थशास्त्री अभिरुप सरकार के साथ साथ बुद्धदेव भट्टाटार्य के पूंजीवादी वामपंथ के मुख्य सलाहकारों में अर्थशास्त्री सुगत मार्जित भी खासमखास थे।दोनो के दोनों पाला बदलते ही ममता पंथी हो गये हैं।
बगुलावृंद के बयानों,उनके विश्लेषणों और उनकी लफ्पाजियों के सिलसिले में हम अरथव्यवस्था और राजकाज का सच बताना चाहते हैं कि वैश्विक इशारे सारे लाल निशान के पार हैं।जबकि सबकुछ ठीकठाक की हांक लगाकर कैदियों को हांका जा रहा है और बुलबुलों के सौदागर भरपूर मुनाफावसूली के दौर में हैं।
बेदखली अभियान हो गया और तेज।
कत्लेआम के इंतजाम भी चाकचौबंद।
बुलबुलों के सौदागर असलियत बता रहे नहीं कि सारे वैश्विक इशारे लाल निशान पार पार।
संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से शुरु होने जा रहा है।हम पहले ही बता चुके हैं कि विश्व व्यवस्था के उपनिवेशों में सरकारें और संसदें कुछ भी तय नहीं करती हैं और सबकुछ विश्वव्यवस्था तय करती है।संसदीय सहमति इसीलिए अनिवार्य है चाहे जो संसदीय नौटंकिया हों।
कानून पास हो या न हो बेदखली अभियान जारी रहेगा यकीनन।
वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति सो हिंदू राष्ट्र में नरसंहार अश्वमेध भी जारी रहेगा।
धर्म कर्म की इस मनभावन कंडोम आस्था की आड़ में लेकिन बुलबुलों का कारोबार खूब जोर है।मुक्त बाजार के लिए निवेशकों की महाजनी पूंजी के लिए यह कंडोम आस्था बहुत काम की चीज है,जिसके बिना विश्वव्यवस्था कहीं चल ही नहीं सकती।
अमेरिकी साम्राज्यवाद ने तेल के कुंओं से लेकर पानी पर कब्जे के लिए समूची अरब दुनिया और मध्यएशिया को युद्ध गृहयुद्ध और आतंकवाद की आग में धकेल दिया।तालिबान,अल कायदा से लेकर इस्लामिक स्टेट और अरबिया वसंत उनकी विश्वव्यवस्था के लिए जिस तरह अनिवार्य रही है,उसी तरह दक्षिण एशिया में हिंदुत्व का आतंक विश्वव्यवस्था के उपनिवेश को बहाल रखने के लिए अनिवार्य है।उतना ही अनिवार्य है मुक्तबाजारी मनुस्मृति अभियान और नरसंहार अश्वमेध अभियान।
जमीन अधिनियम संसद में पास हो न हो,थोक पर्यावरण हरी झंडी से बेदखली अभियान और तेज है और सारी कारपोरेट परियोजनाएं चालू हैं तो मेकिंग इन के तहत संपूर्ण निजीकरण और संपूर्ण विनिवेश का जलवा है और नागरिकों की संप्रभुता, गोपनीयता, उनके हकहकूक और जमापूंजी,बीमा ,भविष्यनिधि से लेकर पेंशन तक बाजार के हवाले हैं।
अब इस बात को समझ लें कि अरब दुनिया में इस्लाम के नाम पर जो तबाही मची,उसके नाम अगर इराक अफगानिस्तान और लीबिया, सीरिया और जार्डन हो सकते हैं तो हिंदुत्व के नाम क्या क्या होने वाला है।
फिलहाल गुजरात नरसंहार,सिख नरसंहार से लेकर बाबरी विध्वंस के आगे पीछे तमाम दंगों के तमाम हत्यारे खुल्ला घूम रहे हैं और उनकी हैसियतें इस स्तर की हैं बुलबुलों की अपार महिमा से भारतीय जनता,भारतीय लोकतंत्र,भारतीय कायदे कानून ,भारतीय संविधान से लेकर भीरत राष्ट्र तक की खैर नहीं।
अब इस बात को समझ लें कि तीस्ता शेतलवाड़ के यहां दनादन छापे पड़ रहे हैं तो दंगाइयों और हत्यारों के खिलाफ कोई कार्वाई नहीं हो रही है।
शारदा फर्जीवाड़ा और चिटफंड के सारे मामलात दफा रफा है।आईपीएल कैसिनों के सारे चियारिये चियारिनें पुरदम मदमस्त सकुशल हैं और बाकी तो ब्रांडिंग को बचाने की कवायद है।बकरे सिर्फ होने हैं हलाल।पुरोहितों को काहे का डर।
पत्रकारों पर देश भर में हमले हो रहे हैं तो व्यापमं से चायबागानों,कलकारखानों और खेत खलिहानों के बाद मृत्यु जुलूस निकल रहा है।
हिमांशु कुमार जी के ताजा अपडेट के मुताबिक इन तमाम घोटालों में जो हुआ,उससे भयंकर आदिवासियों के हजारों गांवों की हत्या का है।उनका वह अपडेट बी हम इस आलेख के साथ नत्थी कर रहे हैं।
सत्तावर्ग की संवेदना कितनी नाजुक है,खामोशी का रसायन कितना कारगर है और राजनीति कितनी जहरीली है,बिहार के चुनावी महाभारत उसका मुकम्मल नक्शा है।मसीहा रोज पैदा किये जा रहे हैं और लोग बेमौत मारे जा रहे हैं।
मध्यबिहार के नरसंहारों के अपराधी रिहा हैं और लखीसराय में एक दलित को मजदूरी मांगने के अपराध में थ्रेशर में टुकड़ा टुकड़ा कर दिया गया लेकिन राजनीति खामोश है।जनपक्षधरता भी खामोश है।
इसीतरह राजस्थान के नागौर में टैक्टर से कुचल कर मार दिये गये दलित और उनकी औरतों के साथ न सिर्फ वीभत्स बलात्कार हुए ,उनके स्त्री अंग भी तहस नहस कर दिये गये।भंवर मेघवंशी ने वारदात के दो महीने बाद फिर फालोअप लगाया है,लेकिन कोई मोमबत्ती कहीं नहीं जल रही है।
इसी तरह ओड़ीशा के बोलांगीर जिले की सत्रह साल की दलित कन्या के लिए कोई मोमबत्ती कहीं जली ही नहीं जिसका अपराध मात्र इतना था कि उनसके मां बाप दलित आदिवासी आंदोलन के कार्यकर्ता हैं।
खून एक हर कतरे का हिसाब किससे मांगे किसा का जमीर कोई साबूत बचा हो तो हिसाब मांगे।नदियां खून की अबाध है ,जैसे अबाध हैं खून की नदियां इन दिनों।धर्म हुआ कंडोम कारोबार तो पवित्र अपवित्र सारा जल बंधा हुआ बनता जाता जहरीला शीतलपेय,जिसे पीकर जी रहे हैं हम मरमरकर।जयश्री राम।जयश्री राम।
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