कठमुल्ला मानसिकता चाहे वह किसी भी समाज के नेतृत्व की हो, अपने मिथ्या गौरव की दुहाई देकर भले ही समाजों को मध्ययुगीन अंधेरी कोठरियों में बन्द करने की सोचे, विश्व संस्कृति की सतत प्रवहमान धाराओं का नित्य नूतन संगम रुकता नहीं है। कोई भी संस्कृति न तो महान होती है और न हेय। संस्कृति, संस्कृति होती है। उनका उद्गम और संगम एक प्राकृतिक परिघटना है।
( मेरी पुस्तक 'आँखिन की देखी' का एक अंश)
BiharWatch, Journal of Justice, Jurisprudence and Law is an initiative of Indian Jurists Association (IJA), East India Research Council (EIRC) and MediaVigil. It focuses on consciousness of justice, constitutionalism, legislations and judgements besides philosophy, science, ecocide, wars, economic laws and crimes. It keeps an eye on poetry, aesthetics, unsound business and donations, jails, death penalty, suicide, cyber space, big data, migrants and neighbors. Editor:forcompletejustice@proton.me
Tuesday, July 7, 2015
कठमुल्ला मानसिकता चाहे वह किसी भी समाज के नेतृत्व की हो, अपने मिथ्या गौरव की दुहाई देकर भले ही समाजों को मध्ययुगीन अंधेरी कोठरियों में बन्द करने की सोचे, विश्व संस्कृति की सतत प्रवहमान धाराओं का नित्य नूतन संगम रुकता नहीं है। कोई भी संस्कृति न तो महान होती है और न हेय। संस्कृति, संस्कृति होती है। उनका उद्गम और संगम एक प्राकृतिक परिघटना है।
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