क ल्पना करें कि किसी मुल्क के प्रधानमंत्री की पत्नी, एक सूबे में जहां सत्ताधारी पार्टी की ही सरकार है, एक संगठन के कार्यक्रम में उसके बुलावे पर पहुंचती है और आयोजन अधबीच में ही समाप्त कर दिया जाता है।
ऐसी किसी खबर पर सहसा यकीन करना मुश्किल हो सकता है, मगर पिछले दिनों ऐसा ही वाकया 120 करोड़ आबादी के इस मुल्क में ही नमूदार हुआ जब 'नमो इंडिया सेना' – जो जनाब मोदी के मुरीदों का संगठन है – द्वारा सूरत में आयोजित एक सार्वजनिक कार्यक्रम में सुश्री जसोदाबेन नरेंद्रभाई मोदी पहुंचीं और सात दिन के लिए चलने वाला उपरोक्त कार्यक्रम तीसरे ही दिन समाप्त कर दिया गया। (देखें, 'शी हू बीजेपी कनाट स्टमक', द टेलीग्राफ, 12 जून 2015)
खबर के मुताबिक 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' वाले उपरोक्त कार्यक्रम में जसोदाबेन पहुंचीं, जहां उन्हें बात रखने के लिए कहा गया था, मगर आयोजकों ने ही उन्हें मना कर दिया और कुछ समय बाद आयोजकों को स्थानीय भाजपा नेताओं ने बुलाया और उन्हें कार्यक्रम तत्काल खत्म करने के लिए कहा। समाचार के मुताबिक आयोजकों की बात भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से भी करवा दी गई। आखिर अचानक ऐसा क्यों हुआ कि सूरत के भाजपा नेताओं ने एक ऐसे संगठन के कार्यक्रम में सीधे हस्तक्षेप किया जो किसी भी रूप में भाजपा का आनुषंगिक संगठन नहीं था और किस वजह से मुख्य आयोजक को सहारनपुर स्थित अपने घर जाने की 'सलाह' भी दी गई।
याद रहे कि पेशे से स्कूल अध्यापक रही जसोदाबेन का नाम 2014 में पहली दफा सुर्खियों में तब आया जब प्रधानमंत्री मोदी ने नामांकन के दौरान औपचारिक तौर पर सुश्री जसोदाबेन का नाम पत्नी के तौर पर लिखा। यूं तो दोनों की शादी की खबरें बहुत पहले से चल रही थीं, मगर उन्होंने इसके पहले के चुनावों में नामांकन के दौरान इसके बारे में मौन ही बरता था। बताया गया कि 1968 में शादी के कुछ माह बाद ही वह उनसे अलग हुए थे और सुश्री जसोदाबेन अपने भाइयों के साथ रह रही थीं।
गौरतलब है कि सूरत के सम्मेलन को आनन-फानन में समाप्त करने जैसा यह उदाहरण कोई अपवाद नहीं है, जब भाजपा-संघ की असहजता सामने आई हो। आखिर इसकी क्या वजह हो सकती है, जबकि उन्होंने कभी भी सार्वजनिक तौर पर अपने पति के बारे में कोई शिकायत नहीं की है और न ही उनके राजनीतिक विरोधियों को ऐसा कोई मौका प्रदान किया है। इससे आगे के पेजों को देखने लिये क्लिक करें NotNul.com
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