रवींद्र नाथ ठाकुर का चित्र " माँ और बच्चा "
शीर्षक हालाँकि रवींद्र नाथ ठाकुर ने स्वयं नहीं दिया है पर कला समीक्षकों ने इसे 'माँ और बच्चा ' कहा है . रवींद्र नाथ ठाकुर ने इसे कागज़ पर श्याही और जलरंग से बनाया था और निःसंदेह यह चित्र उनके सबसे महत्वपूर्ण चित्रों मे से एक है .
रवींद्र नाथ ठाकुर के अन्य चित्रों से यह चित्र अपनी संरचना में बिलकुल स्वतंत्र है . चित्र को देखने से ही लगता है कि चित्रकार ने पूरी सजगता से और पूर्वयोजना के साथ (काफी सोच समझ कर ) संरचना को रूप दिया है और चित्र को बिना किसी जल्दबाजी के धीरे धीरे पूरा किया गया है
चित्र को ध्यान से देखने पर हम इस चित्र को चार हिस्सों मे बँटा पाते है .(पहला हिस्सा) चित्र के बीच में माँ का चेहरा औरबच्चे का शरीर है .इस हिस्से में माँ ने अपने बाएं गाल से बच्चे को छु रखा है . बच्चा माँ के गोद में शांत और आश्वस्त बैठा है, उसने अपना दाहिना हाथ माँ के शरीर पर पूरे भरोसे के साथ रखा हुआ है.माँ और बच्चे को रवींद्र नाथ ठाकुर ने हल्के रंग की सतह पर लयात्मक रेखाओं से बनाया है. माँ और बच्चे के इस अंश को घेरे माँ की साड़ी (दूसरा हिस्सा )है जो उनके घूँघट से शुरू होकर ,पूरे शरीर को ढंकते हुए चित्र के दाहनी सीमा के पार चली जाती है .पूरे साड़ी पर गहरे जलरंग के धब्बों से एक चितकबरा पैटर्न बनाया गया है जिससे माँ और बच्चे वाला अंश (सापेक्ष रूप से ) और भी ज्यादा कोमल लगता है.
माँ को घेरे(तीसरा हिस्सा ) एक सपाट काली पट्टी है जो काफी चौड़ी है . चित्रकार का यह एक चौका देने वाला प्रयोग है, जो चित्र को और भी महत्वपूर्ण बनता है .काले रंग की यह पट्टी (मेरा मानना है) माँ और बच्चे की परछाई है . चित्र का प्रकाश उत्स (लाइट सोर्स ) चित्र के बहार है जो मुख्य रूप से चित्र के माँ और बच्चे को प्रकाशित कर रहा है . इस प्रकाश व्यवस्था के कारण ही यह काली परछाई है साथ ही इसी के चलते दर्शक का ध्यान चित्र के मूल विषय अर्थात माँ और बच्चे पर केन्द्रित बना रहता है .
चित्र का एक खूबसूरत हिस्सा इसका बाहरी अंश है (चौथा हिस्सा) जो चित्र के ऊपर, बाएं और दाहिने पर एक फ्रेम नुमा किनारा बनाता है. यह हिस्सा माँ और बच्चे की परछाई को एक निश्चित आकर भी दे रहा है.चित्र के इस हिस्से को करीब से देखने पर बारीक खड़ी सघन समानांतर रेखाओ को साफ़ देखा जा सकता है . ऊपर से नीचे की ओर आती इन रेखाओं में लय नहीं है और इन्हें चित्र के किसी दूसरे हिस्से मे प्रयोग भी नहीं किया गया है . इन रेखाओं की तुलना यदि हम माँ और बच्चे के शरीर पर, या माँ की साड़ी पर बनी रेखाओं से करे तो हम देखेंगे कि ये रेखायें यहाँ घुमावदार और लयात्मक है जबकी दीवार पर (चौथे हिस्से ) की रेखाएं सीधी और खड़ी है . इस चित्र मे रेखाओं के ऐसे अभिनव प्रयोग को समझना हम सबके लिये दिलचस्प रहेगा क्योकि ऐसा प्रयोग हमें आसानी से किसी अन्य कलाकारों की कृतियों में नहीं देखने को मिलता है .
इन सब व्याख्याओं के बावजूद चित्र का भावात्मक पक्ष इस चित्र को और भी महत्वपूर्ण बनाता है . रवींद्र नाथ ठाकुर ने बचपन मे ही अपने माँ को खो दिया था . जीवन भर रवींद्र नाथ ठाकुर शायद इस दुःख को नहीं भुला सके थे . उनकी 'शिशु ' श्रृंखला की कविताओं में रवींद्र नाथ ठाकुर ने बारबार माँ और बच्चे को विषय बनाया , पर शायद ही कोई दूसरा चित्र इस विषय पर बनाया है .
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