उसी मुहब्बत की खातिर नफरत की आंधियों के मुकाबले में हूं,चाहे कोई मेरा सर कलम कर दें।
उसी केदानाथ से फिर खबर है कि पहाड़ फिर खतरे में है।चमोली में भूकंप है तो वरुणावत पर्वत में दरार। फौरन लोगों को सुरक्षित स्थानों पर हटाया नहीं गया तो दस हजार लोगों को जान का खतरा ।
फिर भूकंप,फिर मेरा हिमालय लहूलुहान
मूसलाधार बारिश और लगातार जारी भूस्खलन से तबाह तबाह है हिमालय की जिंदगी,जिसमें अपने दार्जिलिंग से लेकर सिक्किम,उत्तराखंड और हिमाचल से लेकर काश्मीर,नेपाल से लेकर तिब्बत,भूटान से लेकर पाकिस्तान और अफगानिस्तान तक फैली इंसानियत जख्मी है।खबर लेकिन सिर्फ हिल स्टेशनों और धर्मस्थलों की है।खबर लेकिन सिर्फ यात्राओं,बंद और खुलते पवित्र कपाटों की है।इंसानियत की कोई खबर बनती नही है,बाकी सारा कुछ या सत्ता है या कारोबार या फिर सियासत।धर्म अधर्म,पाप पुण्य,लोक परलोक ,स्वर्ग नर्क का कुल किस्सा यहींच।
पलाश विश्वास
धर्मोन्मादी नागरिकों,महाकाल भी बह गये है इस बरसात में,अब अपनी खैर मनाइये!केदार जलसुनामी,समुद्रतटों पर सुनामी,बाढ़,सूखा,भुखमरी जैसी आपदाएं हम कितनी जल्दी भूल गये।नेपाल के भूकंप के झॉके जारी हैं,फिर भी उस महाभूकंप को भूल गये।केदार जलसुनामी में सिरे से लापता घाटियों और इंसानों को भूल गये और जो नरकंकाल अब भी मिल रहे हैं,उनकी शिनाखत नहीं हो पा रही है।
उसी केदानाथ से फिर खबर है कि पहाड़ फिर खतरे में है।चमोली में भूकंप है तो वरुणावत पर्वत में दरार। फौरन लोगों को सुरक्षित स्थानों पर हटाया नहीं गया तो दस हजार लोगों को जान का खतरा है।
उत्तराखंड के चमोली में भूकंप के झटके आए जिसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 4.0 थी। जानकारी के मुताबिक सुबह पांच बज कर 18 मिनट पर लोगों ने चमोली और आसपास के इलाकों में झटके महसूस किए।विशेषज्ञों के मुताबिक सुबह 05:18 बजे चमोली जिले में भूकंप आया और सात ही आसपास के इलाकों में भी झटके महसूस किए गए। इसका केंद्र जमीन से करीब 26 किलोमीटर अंदर बताया गया है।
उत्तराखंड में दो दिनों से लगातार बारिश से उत्तराखंड का हाल बुरा हो गया है। भारी बारिश से और भूस्खलन होने के कारण लोगों का जन जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है।फिर तीन दिनों के लिए भारी वर्षा का रेड अलर्ट है।
इतनी मूसलाधार बारिश,फिरभी सूखा और दुष्काल का अंदेशा,खैर मनाइये!मुंबई-पुणे एक्सप्रेस पर जमीन धंसी। गाड़ी पर पत्थर गिरने से तीन लोगों की मौत हो गई है।मुंबई-पुणे एक्सप्रेस वे पर रविवार को जमीन धंस गई। एक्सप्रेस वे से गुजर रही एक कार पर बड़े पत्थर आकर लगने से तीन लोगों के मारे जाने की खबर है। मलबा गिरन के कारण ट्रैफिक पूरी तरह से ठप हो चुका है। बताया जा रहा है कि मलबा हटाने में तीन दिन का वक्त लग सकता है।
पहले महंगा कर देते हैं,फिर थोड़ा सा सस्ता करने का ऐलान,एक के सा दूसरा तीसरा फ्री और त्योहारों पर छूट की तरह उपभोक्ता यह अर्थव्यवस्था मुक्तबाजारी,जिसे न कायनात की परवाह है और न इंसानियत की!
मौसम की मार पर मगरमच्छ आंसू फिर बाढ़ है।रेसिपी धुआंधार है।हवाई उड़ान है!
फिर भूकंप,फिर मेरा हिमालय लहूलुहान।
चार धामों की यात्रा असुरक्षित है फिर।
उत्तरकाशी,चमोली और टिहरी में नेपाल के महाभूंकप के झटकों का स्पर्श है फिलहाल।जिसके अंदेशे से हमारी नींद चैन गायब रही है उस दिन से जिस दिन नेपाल में कयामत का कहर बरपा था।
हम जान रहे थे कि यह कयामत भी कोई आखिरी कयामत नहीं है हरगिज।तब से चीखै जा रहे हैं।
हमारी आवाज लेकिन पहुंचती नहीं है कहीं।
मेरा दिल बसंतीपुर की उन औरतों की तरह है जो इमरजेंसी के दिनों में नैनीझील में विनाशकारी पौधे होने की खबर से बेइंतहा खौफजदा थीं।सेंसर था जबर्दस्त,फिर भी पहाड़ और तराई और बाकी देश में खबर ऐसी फैली थी कि दो साल तक नैनीताल में परिंदों ने भी पर नहीं मारे।
हम चूंकि वहां डीएसबी में पढ़ते थे।सर्दियों और गर्मियों की छुट्टियों में घर आते थे,तो हमसे बेपनाह मुहब्बत करने वाली मांओं,चाचियों,ताइयों,बहनों,भाभियों को जान निकल रही थीं।
काश,बाकी देश के नागरिकों,नागरिकाओं के पास बसंतीपुर की औरतों का दिल होता,तो शायद हिमालय की सेहत का ख्याल भी आया होता लोगों को!
हम पहाड़ों में तबाही का सिलसिला देखते रहने के लिए शायद जनमे हों और संजोग से उन तबाही के मंजर में मैं फिलहाल नहीं हूं और अजीब बात यह है कि जब बिजलियां गिरती है इस कायनात पर और मरती खपती है इंसानियत कहीं भी,तो सबसे पहले झुलसता है मेरा दिल।झूठों में सबसे झूठा शायद यह मेरा दिल।
कगारों को ध्वस्त करती पगली टौंस के आर पार तार पर लटकते हुए स्कूल जाते बच्चों के वीडियो अगर आपने देखा हो,नदी की धार पार करतीं पहाड़ की इजाओं को अगर आपने देखा हो या हमारे खास दोस्त कमल जोशी के कैमरे की आंख से अपने कभी पहाड़ को देखा हो तो आपको यकीनन अंदाज होगा कि कितना कच्चा कच्चा है मेरा दिल और कैसे तार तार है मेरा दिल।
हम बार बार कहते रहे हैं,चेताते रहे हैं कि इस हिमालय की सेहत का भी ख्याल कीजिये दोस्तों।
हम बार बार कहते रहे हैं,चेताते रहे हैं कि इसी हिमालय में जल के सारे स्रोत और मानसून इसी हिमालय के उत्तुंग शिखरों से टकराकर मैदानों में बरसाते हैं अमृत सरहदों के आर पार।
हम बार बार कहते रहे हैं,चेताते रहे हैं कि हिमालय की कोई आपदा आकिरी आपदा है नहीं और आपदाएं सिलसिलेवार है क्योंकि कायनात की सबसे हसीन इस जन्नत को तबाह करने में कोई कसर किसीने छोड़ी नहीं है।
केदार जलआपदा के बाद उसी चमोली जिले में भूकंप की खबर है।रेक्टर स्केल के हिसाब से चार अंक है और जानोमाल का खास नुकसान का पता चला नहीं है।
मूसलाधार बारिश और लगातार जारी भूस्खलन से तबाह तबाह है हिमालय की जिंदगी,जिसमें अपने दार्जिलिंग से लेकर सिक्किम, उत्तराखंड और हिमाचल से लेकर काश्मीर,नेपाल से लेकर तिब्बत,भूटान से लेकर पाकिस्तान और अफगानिस्तान तक फैली इंसानियत जख्मी है।
खबर लेकिन सिर्फ हिल स्टेशनों और धर्मस्थलों की है।खबर लेकिन सिर्फ यात्राओं,बंद और खुलते पवित्र कपाटों की है।
इंसानियत की कोई खबर बनती नहीं है,बाकी सारा कुछ या सत्ता है या कारोबार या फिर सियासत।धर्म अधर्म,पाप पुण्य,लोक परलोक, स्वर्ग नर्क का कुल किस्सा यहींच।
मरनेवालों का कोई आंकड़ा निकला नहीं है और हेलीकाप्टरों की उड़ान शुरु हुई नहीं है।
इसीलिए टीवी के परदे पर स्क्रालिंग में झलक दिखलाकर भागती इस खबर का ब्यौरा भी अभी हमारे पास नहीं है।पहाड़ों से बात निकलेगी तो शेयर भी करते रहेंगे।
हिमालय मेरे लिए किसी भूगोल या इतिहास का टुकड़ा नहीं है।
विभाजनपीड़ित परिवार का हिस्सा हूं टूटता बिखरता हुआ हमेशा,तो सरहद से काटती इंसानियत की राजनीति और राजनय की जद में भी मेरा यह हिमालय नहीं है।
दिल की दास्तां भी अजीबोगरीब है जो जेहन कितना ही साफ रहे यकीनन,नजरिया भी हो साफ साफ न जाने किस किस हद तक,फिरभी सीने में महज धड़कनों के मासूम औजार से पल छिन पल छिन चाक चाक कर देता वजूद जब चाहे तब।
हकीकत का मंजर हो कितना भयानक,नफरत की आंधियां चाहे बिजली गिराती रहें मूसलाधार उसमें मुहब्बत का जज्बा खत्म होता नहीं यकीनन।
मुहब्बत न की हो जिसने कभी,मुहब्बत के लिये बगावत की हिम्मत न हो जिसमें,वह बदलाव का ख्वाब भी देख नहीं सकता यकीनन और न बदलाव के ख्वाब से कोई सरोकार उसका मुमकिन है यकीनन।दिमाग तो रोबोट का भी हुआ करे हैं।
फासिज्म का कोई दिल नहीं है दोस्तों।
महाजिन्न का कोई दिल नहीं है दोस्तों।
सियासत का इंसानियत से कोई वास्ता नहीं दोस्तों।
2020 तक वे हिंदू राष्ट्र मुकम्मल बनायेंगे।
2020 तक वे इस हिमालय को तबाह जरुर करेंगे,दोस्तों।
फिर वाशिंगगटन और न्यूयार्क में फहरेगा केसरिया।
2030 तक वे हिंदू विश्व बना देंगे।
खास बात है कि ग्लोबल हिंदू साम्राज्य से अमेरिका को कोई ऐतराज नहीं है।
खास बात है कि ग्लोबल हिंदू साम्राज्य से इजराइल को भी कोई ऐतराज नहीं है।
खास बात है कि ग्लोबल हिंदू साम्राज्य से अबाध महाजनी पूंजी को भी कोई परहेज है नहीं।
खास बात है कि अबाध विदेशी पूंजी को हर छूट है इस कायनात पर कहर बरपाते रहने की।
खासबात यह है कि कारपोेरट परियोजनाओं के लिए हरियाली की शामत है हर कहीं और खेती का यह हाल कि अच्छे दिनों के एक बरस में 5500 किसानों ने कुदकशी कर ली है।
अपने अपने नगर महानगर में सड़कों पर फैले बेहिसाब पानी,आबादी को तबाह करती घुसपैठिया शिप्रा जैसी नदी को देख लीजिये दिल खोलकर तो समझें शायद आप की मानसून का आखिर क्या मतलब है पहाड़ों में हानीमून के सिवाय।
फासिज्म को कोई दिल नहीं होता दोस्तों।
दिल होता तो न अश्वमेध होता और न होते नरसंहार।
दिल होता तो,मुहब्बत होती तो नफरत का यह खुल्ला कारोबार न होता।
दिल होता तो,मुहब्बत होती तो कयामत का यह मंजर न होता।
फासिज्म का कोई दिल होता नहीं है ,इसीलिए कायनात और इंसानियत पर कहर बरपाते रहने का यह चाकचौबंद इंतजाम।
फासिज्म का कोई दिल होता नहीं है ,इसीलिए हमारे हिमालय में आपदाओं का यह अनंत सिलसिला है दोस्तों।
तकनीक इतनी दुरुस्त है इन दिनों कि दिमागी कसरत की जरुरत भी खास नहीं होती।
फासिज्म को क्या,इस कायनात और उसमें आबाद इंसानियत की रुह भी दिल में बसी वही मुहब्बत है।जो सिरे से गायब है इन दिनों।
बहरहाल आज मेरा हिमालय फिर लहूलुहान है।
हूं मैं आखिर कोलकाता में पिछले पच्चीस बरस से।
हो सकता है कि अब पहाड़ लौटना न हो फिर कभी।
मातृभाषा मेरी कुमांयुनी, गढ़वाली, डोगरी, कश्मीरी, गुरखाली,लेप्चा जैसी कोई भाषा नहीं है,वह बांग्ला है।
संवाद की भाषाएं हालांकि बहुतेरी हैं।
फिर भी उन उत्तुंग शिखरों,खूबसूरत घाटियों,अनंत ग्लेशियरों,बंधी अनबंधी नदियों,झीलों,झरनों के हिमालय और उसके भाबर और तराई की हर आवाज मेरे दिल में दस्तक देती रहती है।
कहीं धार पर गिरता है पेड़ तो उसकी गूंज हमारी धड़कनों को तबाह कर देती है।
बादल फटता है तो हमीं डूबते हैं।
टूटता है पहाड़ तो हम होते हैं लहूलुहान।
हिमालय की हर आपदा में हम पहाड़ के लोगों की तरह फिर फिर मर मर कर जीते हैं।
यह जो महानगर है।उसका सीमेंट का जंगल बेइंतहा है।राजमार्ग जो सुंदरियों के गाल जैसे चकाचक हैं,वहां मेरा दिल लगता नहीं है।
हूं अछूत बंगाली शरणार्थी।विभाजन के बाद इस महादेश में कहीं सर छुपाने की जगह नहीं मिली तो मेरे पिता हमारे तमाम अजनबी स्वजनों के साथ हिमालय की तराई से जो बस गये,हमने कभी छुआछूत महसूस नहीं की है।
उस हिमालय में इतनी मुहब्बत है कि हानीमून की रस्म निभाने वहां आने वाले जोड़ों को उसका अंदाजा नहीं है।
हमें दरअसल कभी मौका ही नहीं मिला कि हम बहारों से कहते कि बहारों फूल बरसाओ कि मेरा महबूब आया है।
फिरभी जितनी मुहब्बत मुझे हिमालय और उसकी तलहटी में मिलती रही है,वह किसी हिमालय से कम नहीं है।
हर गांव में जो पलक पांवड़े बिछाये लोग होते थे,बेहिसाब उन लोगों की मुहब्बत का कर्ज बहुत भारी है।
1978 की जिस प्रलयंकारी बाढ़ की याद कोलकाता वालों को भी है,उसी बाढ़ और भूस्खलन के दौरान टूटते गिरते पहाड़ की पगडंडियों और जंगल जंगल भटका है मैंने।
उसी बाढ़ में उत्तरकाशी के गंगोरी के पास अधकटे गांव में रहते थे गोविंद पंत राजू और वहीं छावनी डाले बैठे थे सुंदर लाल बहुगुणा।
हेलीकाप्टर से पत्रकार खबरे बना रहे थे और हम पैदल गंगोत्री की टूटी राह से ऊपर पंगडंडी पगडंडी मूसलाधार बरसात और भूस्खलन से टूटते पहाड़ की पगडंडियों से गिरते पत्थरों से सर बचाते हुए बेखौफ चल रहे थे गंगोत्री की तरफ।
राजू मेरे साथ साथ चले थे मनेरी बांध परियोजना तक,जहां एक सिनेमा हाल गंगा में धंस गया था और उसमे तब फिल्म लगी थी,फिर जनम लेंगे हम।
उसके बाद बंद कोयलाखानों में उतरते हुए हमें कभी डर लगा नहीं। खानों की दहकती आग की आंच ने हमें कभी परेशां किया नहीं।
तराई के जंगल में जनमे पले बढ़े होने की वजह से जंगल की हर गंध मुझे पागल बना देती है।
अब जिंदगी रहे न रहे,कोई फर्क नहीं पड़ता।
उसी मुहब्बत की खातिर नफरत की आंधियों के मुकाबले में हूं,चाहे कोई मेरा सर कलम कर दें।
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