Saturday, July 18, 2015

अंग्रेजों ने अन्यत्र की भांति आदिवासी विद्रोहों को दबाने के लिए उन अंचलों में आदिवासी छावनियों की स्थापना की थी जिनमें नीमच, देवली, खेरवाड़ा, कोटड़ा सहित जिला पाली के सुमेरपुर क़स्बा के निकट एरनपुरा में मीणा फ़ौजी छावनी थी जिसमें अफ़सरों के अलावा अन्य फ़ौजी मीणा आदिम समुदाय में से ही भर्ती किये गये थे. प्रथम विश्व युद्ध में उस छावनी की एक कंपनी यानी कि कुल नफरी 120 सैनिक रूस-टर्की की सीमा पर हुई लड़ाई में शामिल हुए थे.

Hari Ram Meena

अंग्रेजों ने अन्यत्र की भांति आदिवासी विद्रोहों को दबाने के लिए उन अंचलों में आदिवासी छावनियों की स्थापना की थी जिनमें नीमच, देवली, खेरवाड़ा, कोटड़ा सहित जिला पाली के सुमेरपुर क़स्बा के निकट एरनपुरा में मीणा फ़ौजी छावनी थी जिसमें अफ़सरों के अलावा अन्य फ़ौजी मीणा आदिम समुदाय में से ही भर्ती किये गये थे. प्रथम विश्व युद्ध में उस छावनी की एक कंपनी यानी कि कुल नफरी 120 सैनिक रूस-टर्की की सीमा पर हुई लड़ाई में शामिल हुए थे. 
युद्धरत राष्ट्रों की सभी सैनिक यूनिटों में वह एकमात्र कंपनी थी जिसके प्रत्येक सैनिक को अप्रतिम बहादुरी के लिए सेना के सर्वोच्च सम्मान 'विक्टोरिया क्रोस' से नवाज़ा गया था.
वीर सैनिक जमादार राजाराम मीणा का एक दुर्लभ चित्र मेरी फ़ोटो गैलेरी में है जिसे मैं यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ. साथ ही उस कंपनी का एक ग्रुप फ़ोटो. (दो फ़ोटो एक साथ स्केन हो गये. नीचे वाला यहाँ प्रासांगिक है.)


Hari Ram Meena's photo.
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