Monday, July 10, 2023

जनगणना सर्वेक्षण व कानून की यात्रा और मकसद, अंतहीन व निरन्तर जनगणना, जनता की ख़ुफ़िया निगरानी, नरसंहार की संभावना

विश्व जनसंख्या दिवस के अवसर पर जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान शिक्षा विभाग,बिहार सरकार द्वारा आयोजित जगजीवन राम स्मृति व्याख्यान के अंतर्गत "जनगणना सर्वेक्षण व कानून की यात्रा और मकसद" विषय पर  डॉ. गोपाल कृष्ण, अधिवक्ता, पटना हाई कोर्ट ने जनगणना के इतिहास को सामने रखा। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि आज आधार संख्या डेटाबेस  के जरिए हमारी एक-एक सूचना सरकार प्राप्त कर रही है। यह बहुत ही चिंताजनक है। इसका इस्तेमाल किसी जाति समूह के जनसंहार तक में हो सकता है। जैसा कि जर्मनी में हो चुका है। 

उन्होंने कहा कि सामाजिक नीतियां बनाने के लिये जनगणना बहुत जरूरी है लेकिन आंकड़ों की सुरक्षा की गारंटी होनी चाहिए। आधार संख्या डेटाबेस के आंकड़े कहीं से भी सुरक्षित नहीं है। जनगणना द्वारा डेटा के कारण 1940 के दशक में जर्मनी में एक बड़ी मानव आबादी का विनाश हुआ। जनगणना से प्राप्त डेटा में यहूदियों को चिन्हित किया गया नाज़ी पार्टी ने इस आकड़े का इस्तेमाल करके यहूदियों  का संहार किया प्राचीनतम समय से ही जनता की गिनती की होती रही है मगर भारत के संदर्भ में जनगणना का आधुनिक इतिहास ब्रिटैन के जनगणना कानून 1800 से शुरू होता है 1824 में इलाहाबाद और 1825 (1827-28) में बनारस में इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार ने जनगणना की शुरुआत किया कंपनी सरकार ने जुलाई 1856 में एक डिस्पैच के जरिये पुरे देश की जनगणना की अपनी मंशा को जाहिर किया 1857 के आज़ादी के आंदोलन के कारण उस समय यह कार्य हो न सका 1872 में घरों की गणना की गयी 1881 में समूचे ब्रिटिश साम्राज्य में जनगणना की गयी 1890 में संयुक्त राज्य अमेरिका में IBM कंपनी की पंच कार्ड तकनीक से जनगणना किया गया इस कंपनी ने इसी तकनीक का इस्तेमाल करके जर्मनी में जनगणना किया था और यहूदियों की निशानदेही कर दिया था इस तकनीक के जरिये नरसंहार हुआ 

भारत में इस घटना से सबक लेते हुए जनगणना कानून, 1948 तहत धारा 15 में यह प्रावधान किया कि जनगणना द्वारा प्राप्त आकड़े को हमेशा के लिए गोपनीय रखा जाएगा. इसे अदालत के आदेश पर भी सार्वजनिक नहीं किया जाएगा मगर नागरिकता कानून 1955 के तहत जो सार्वजनिक नेशनल पापुलेशन रजिस्टर बन रहा है उसे लागु करने वाले रजिस्ट्रार जनरल ऑफ़ इंडिया वही सेन्सस कमिश्नर है जो जनगणना करवाते है आधार सम्बंधित अधिसूचना 2009 और आधार कानून 2016 से यह स्पष्ट है कि नेशनल पापुलेशन रजिस्टर और आधार डेटाबेस का एकीकरण हो रहा है आधार संख्या के जरिये सभी पार्टनर डेटाबेस को जोड़ा जा रहा है. इससे डेमोग्राफिक डाटा, बायोमेट्रिक डाटा और मेटा डाटा का एकीकरण किया जा रहा है केंद्रीकृत डेटाबेस एक ख़ुफ़िया तंत्र है जो नरसंहार की प्रबल संभावना को जन्म देता है बिना नागरिको के सहमति आकड़ों का संग्रहीकरण और प्रयोग मानवाधिकारों का उल्लंघन है यूरोप और भारत के न्यायालयों के फैसले आकड़ों के विकेन्द्रित संग्रहण और मजबूत आकड़ा सुरक्षा कानून का तर्क उपस्थित कर रहे है

कोसी नवनिर्माण मंच के राहुल यादुका ने कहा कि जनसंख्या विस्फोट का बात भ्रम पैदा करता है। जनसंख्या दरअसल मानव संसाधन है। सवाल यह है कि हम इसका सही इस्तेमाल कैसे करते हैं। 

दलित अधिकार मंच के कपिलेश्वर राम ने जनगणना की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि दलित व कमजोर वर्ग का उत्पादन के साधनों पर कितना अधिकार है इसे भी गणना में शामिल किया जाना चाहिए।

सी.पी.आई.(एम.एल.) के कुमार परवेज ने कहा कि मोदी सरकार साजिश के तहत 2021 की जनगणना नहीं करवा रही है। बिहार में जाति जनगणना रोकने के पीछे भी भाजपा का ही हाथ है। 

राष्ट्रीय जनता दल से सम्बंधित सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती मुकुद सिंह ने कहा कि जनगणना से हमें लिंग अनुपात का भी पता चलता है। हम महिलाओं और अन्य तबकों के प्रति कोई सही नीति कैसे बना पाएंगे यदि हमारे पास आंकड़े ही न हो।

बी.आई.टी., पटना की डॉ. अनामिका नंदन ने कहा कि वास्तुशास्त्र के लिए भी आंकड़ों की जरूरत है। उन्होंने पटना मेट्रो प्रोजेक्ट का उदाहरण देते हुए कहा कि यदि हमें बनावट की सही समझदारी नहीं तो हम कोई परियोजना कैसे चला सकते हैं। रिटायर्ड अधिकारी गोरे लाल यादव ने भी इस विषय पर अपनी महत्वपूर्ण विचार प्रकट किये।

अध्यक्षीय भाषण देते हुए पीयूसीएल के राज्य सचिव मो. सरफराज ने कहा कि आज सत्ता केवल हमारी सूचना एकत्रित करना चाहती है ताकि वह उसका वह किसी भी प्रकार का इस्तेमाल कर सके। जरूरत इस बात की है कि हम सरकार से सवाल पूछे।

सभा में कमलेश शर्मा, बलजीत यादव, राकेश कुमार, ममीत प्रकाश, मंजीत आनंद साहू, विनय कुमार झा, डॉ. दिलीप कुमार, विजय कुमार चौधरी, आशुतोष कुमार राकेश, सौम्या, शिल्पी रवीन्द्र, साहिल राज, मंगलमूर्ति, राजकिशोर प्रसाद, सकीला खातून,  अधिवक्ता अभिषेक आनंद, राजीव कुमार, फरीदा, अमरनाथ सहित कई लोग उपस्थित थे। इस संगोष्ठी का संचालन संस्थान के निदेशक डॉ. नरेन्द्र पाठक ने किया। संगोष्ठी में राजनीतिक, सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ-साथ शहर के कई महत्वपूर्ण गणमान्य नागरिकों ने हिस्सा लिया। 

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