बहराहल,बंगाल से ही इस सुनामी के प्रतिरोध की चुनौती है और बंगाल के बुद्धिजीवी, राजनेता ,संस्कृतिकर्मी बिहार, असम, पूर्वोत्तर और मध्य,पश्चिम और दक्षिण भारत की,हुजन समाज की तरह,अंबेडकरी मिशन,समाजवाद और गांदी विम्रश ,वामपंथ की तरह गोभक्तों में तेजी से शामिल हो रहे हैं और पूरा देश गोभक्तों में तब्दील है।
BiharWatch, Journal of Justice, Jurisprudence and Law is an initiative of Indian Jurists Association (IJA), East India Research Council (EIRC) and MediaVigil. It focuses on consciousness of justice, legislations and judgements besides philosophy, science, ecocide, wars and economic crimes since 2007. It keeps an eye on poetry, aesthetics, research on unsound business, donations to parties, CSR funds, jails, death penalty, suicide, migrants, neighbors, big data, cyber space and totalitarianism.
Saturday, April 8, 2017
गाय के बराबर अधिकार तो मिलें,नागरिक मानवाधिकार हो या न हो! Clinical establishment act,সবার জন্য স্বাস্থ,বহিরাগত হিন্দুত্বের বর্ণ বৈষম্য ও হিংসা,ঘৃণার রাজনীতি,মতাদর্শের মৃত্যু और बंगाल की भूमिका। पलाश विश्वास
गाय के बराबर अधिकार तो मिलें,नागरिक मानवाधिकार हो या न हो!
Clinical establishment act,সবার জন্য স্বাস্থ,বহিরাগত হিন্দুত্বের বর্ণ বৈষম্য ও হিংসা,ঘৃণার রাজনীতি,মতাদর্শের মৃত্যু और बंगाल की भूमिका।
पलाश विश्वास
मैं चिंतित हूं मंदाक्रांता के लिए,जिन्हें असहिष्णुता और धर्मोन्माद के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए ,उनकी रचनात्मकता के लिए पहले ही गैंग रेप की धमकी दी जा चुकी है,जिसपर अभीतक कोई खानूनी कार्रवाई नहीं हुई है और बिना डरी उस बहादुर कवियत्री रामनवमी के दिन बजरंगी सशस्त्र शक्ति परीक्षण के विरुद्ध विद्वतजनों के साथ फिर सड़क पर उतर गयी।
बजरंगी अब उसे कौन सी धमकी देंगे?
संविधान की रोज रोज हत्या हो रही है और यह हकीकत है कि धर्म ,भाषा,जाति,नस्ल,क्षेत्र चाहे कुछ हो भारत में हकीकत की जमीन पर मनुस्मृति राज है,जिससे पढे लिखे भी मुक्त नहीं है और दलितों,आदिवासियों और स्त्रियों के साथ विधर्मियों को कोई अधिकार नहीं है।
इस देश में मनुष्यों से दर्शन और राजनीति,सत्ता और राष्ट्र का कोई लेना देना नहीं रहा है।
नवजागरण से पहले भारत में देवों और देवसंस्कृति के अलावा राक्षसों, असुरों, दैत्यों,दानवों,किन्नरों,गंधर्वों की च्रचा होती रही है।भूत प्रेतो की चर्चा होती रही है।मनुष्यों की चर्चा नहीं हुई है।
नवजागरण से भारतीय समाज का आधुनिकरण हुआ और सहिष्णुनता,विविधता और बहुलता को लोकतंत्र बना।लेकिन अब बंकिम और आनंदमठ के महिमा्मंडन के लिए विद्यासागर,राममोहन के साथ साथ माइकेल और रवींद्र पर भी हमले शुरु हो गये हैं।
पूरे देश में,बुद्धिजीवियों और पढ़े लिखे लोगों में भी इसका कोई विरोध नहीं हो रहा है क्योंकि कुल मिलाकर हम लोग मनुमहाराज के मनुस्मृति देश की गुलाम प्रजा हैं।
मध्य युग की गुलामी से हम आजादी के बाद भी रिहा न नहीं है।और हम इस गुलामी को मजबूत करने की विचारधारा की पैद सेना हैं।
इस रंगभेदी परिदृश्य में नागरकिता, नागरिक स्वतंत्रता, संप्रभुता, निजता, गोपनीयता, मनुष्यता, सभ्यता के साथ साथ मानवाधिकार करी बांतें गैरप्रासंगिक हैं।
कल सबके लिए स्वास्थ्य दिवस पर हमारे पुराने मित्र तमिल मूल के सत्यनारायण जी ने इस मुद्दे पर खसा चर्चा की है।उन्होंने कहा कि हिंदू राष्ट्रवाद का जन्म बंगाल में बंकिम के आनंदमठ से हुआ है जो अब हिंदू राष्ट्र में कार्यान्वित हो रहा है तो इसके प्रतिरोध में बंगाल को ही नेतृत्व करना होगा।
इसके अलावा सत्यानाराय़म जी ने कहा कि मानवाधिकार भारतीय विमर्श में रहा ही नहीं और अब समय है,गाय विमर्श का।
मानवाधिकार की छोड़िये,कमसेकम मनुष्यों को गाय के बराबर अधिकार मिल जायें,हमें अब यह आंदोलन करने की जरुरत है।
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