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BiharWatch, Journal of Justice, Jurisprudence and Law is an initiative of East India Research Council (EIRC) and MediaVigil. It focuses on justice, constitutionalism, legislations and judgements besides aesthetics, philosophy, science, ecocide and economic history. It attempts to keep an eye on consciousness, unsound business, jails, cyber space, big data, migrants and neighbors. Editor: Dr.G.Krishna, M.A., LL.M., Ph.D, Post Doc (Berlin), UGC-NET (Law) Email: forcompletejustice@proton.me
कन्नड़ लेखक कलबुर्गी की नृशंस हत्या ने एक ऐसा अवसर पैदा किया है कि हिंदी लेखक वाद-वाद खेलने में जुट गए हैं. हालाँकि इस घटना का प्रतिरोध हिंदी लेखकों में जिस कदर दिखाई दे रहा है उससे यह आश्वस्ति होती है कि हिंदी की प्रतिरोध क्षमता अभी कम नहीं हुई है, बल्कि सांप्रदायिक शक्तियों के मुकाबले में वह दम-ख़म से खड़ी है. लेकिन यह भी सच्चाई है कि इस मसले में हम एक नहीं हैं, एकजुट नहीं हैं.
हिंदी के अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लेखक ने डॉ. कलबुर्गी की हत्या के विरोध में साहित्य अकादेमी पुरस्कार वापस लेने की घोषणा की और हम हिंदी वाले उसके स्वागत में आगे आने के बजाय उनके माथे का सिन्दूर पोछने में लग गए, उसकी सफ़ेद कमीज को मैली करने में जुट गए.
जानकीपुल में प्रभात रंजन
आज गुरु सुधीश पचौरी का दैनिक हिन्दुस्तान में तिरछी नजर नामक स्तम्भ में पढ़ा, जिसमें उन्होंने उदय प्रकाश को पलटदास कहा है. यह देख-पढ़कर दुःख होता है कि जो लोग खुद को हर सत्ता के अनुकूल बनाने के खेल में माहिर बने रहते हैं वे एक सत्ताहीन लेखक पर कीचड़ उछाल रहे हैं. उदय प्रकाश ने पहले क्या किया आज क्या किया सवाल इसका नहीं है. यहाँ यह बात मायने रखती है कि एक कन्नड़ लेखक की हत्या के विरोध में एक हिंदी लेखक ने आगे बढ़कर उस साहित्य अकादेमी पुरस्कार को ठुकराने का काम किया है जो सरकारी पैसे से दिया जाता है, जो भारत में लेखकों की सबसे बड़ी सरकारी संस्था द्वारा दिया जाता है. दुर्भाग्य से वह संस्था ऐसी बन गई है जो अपने पुरस्कार प्राप्त एक लेखक की नृशंस हत्या के बावजूद उसकी स्मृति में शोक सभा का आयोजन भी नहीं करती है.
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