शैलेश मटियानी के परिवार की दुर्दशा का जिम्मेदार कौन?
आज ही फेसबुक पर श्री जयप्रकाश मानस की स्व. शैलेश मटियानी पर एक पोस्ट लगी है कि उनका परिवार भूखों मर रहा है और सरकार उनके परिवार की सुध नहीं ले रही. कई पाठकों ने इस पर आंसू बहाए हैं. पता नहीं वह पोस्ट और मेरा जवाब आप तक पहुँचता है या नहीं, उसे मैं आपके विचारार्थ भेज रहा हूँ.
Jayprakash Manasजी, क्या आपने कहीं सुना है कि किसी लेखक या कलाकार को सुरक्षा और संरक्षण देना सिर्फ उसके देश या प्रदेश सरकार का ही दायित्व है. अगर समाज की जवाबदेही है भी तो उस लेखक के प्रति है न कि उसकी अगली पीढ़ियों के प्रति. इस संसार में हर व्यक्ति को अपनी जमीन खुद ही तलाशनी होती है जैसी कि मटियानी ने तलाशी. शैलेश मटियानी के लिए तो सरकार ने इतना किया है जितना शायद ही इतिहास में किसी सरकार ने अपने लेखक के लिए किया हो. आपने खुद ही लिखा है, सरकार ने हल्द्वानी में उनके लिए घर बनवाया, उनकी पत्नी को मानव संसाधन मंत्रालय से पेंशन मिलती है, उनकी बेटी को कुमाऊँ विश्वविद्यालय में एक आरक्षित पद को सामान्य में बदलकर प्राध्यापक की नौकरी दी गई, उनकी अनेक पुस्तकें कुमाऊँ और गढ़वाल विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में रही है/ आज भी हैं. उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की परीक्षा में उनका एक उपन्यास स्वीकृत है, उनके प्रशंसक समय-समय पर उनकी किताबों को खरीदना चाहते भी है मगर उनके संस्करण बाजार में उपलब्ध नहीं हैं. पुराने प्रकाशकों से किताबें वापस ले ली गयी हैं. उत्तराखंड शासन राज्य के सर्वश्रेष्ठ दस शिक्षकों को प्रतिवर्ष 'शैलेश मटियानी पुरस्कार' प्रदान करता है. उनकी कुछ रचनाओं पर नाटक और फ़िल्में बनाने के प्रस्ताव हैं, जिनकी अनुमति उनकी संतानें नहीं देतीं. प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता स्वर्गीय निर्मल पांडे ने उनके उपन्यास 'मुख सरोवर के हंस' पर 'अजुवा बफौल' नाम से नाटक लिखा और प्रदर्शित किया जो बेहद सराहा गया. कहते हैं, इसी नाटक को प्रदर्शित करने के बाद निर्मल पांडे जब इंग्लैंड से लौट रहे थे, शेखर कपूर ने तभी उन्हें 'बैंडिट क्वीन' के लिए साईन किया... और भी अनेक किस्से हैं भाई, कुछ लिखने से पहले जानकारी ले लेनी चाहिए, आप तो लेखक हैं न.
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