Saturday, August 15, 2015

मानवता के लिए लिए डरावना है यह ईश्वर विश्वास

मानवता के लिए लिए डरावना है यह ईश्वर विश्वास

h.l Dusadh

करीब सात साल पहले मुंबई में हुए आतंकी हमले के दौरान पकड़े गए आमिर अजमल कसाब के बाद कल दूसरा पाकिस्तानी आतंकी सुरक्षा बलों के हाथ में आया है. उधमपुर में बीएसएफ़ जवानों पर हमला करनेवाला कासिम उर्फ़ उस्मान खान उर्फ़ नवेद नामक आतंकी उसके ही द्वारा बंधक बनाये गए दो नौजवानों की दिलेरी से पकड़ में आया है.अब भारत उसके जरिये पाकिस्तान को बेनकाब करने की कोशिश करेगा.

बहरहाल पाकिस्तान को बेनकाब करने की कोशिशों का क्या परिणाम निकलेगा,यह मेरे लिए गौड़ विषय है .चिंता का मुख्य  विषय उसका ईश्वर विश्वास है जो इंसानियत के लिए डरावनी बात है.अख़बारों में जो उसकी तस्वीरे छपी हैं उसमें  वह पूरी तरह बेख़ौफ़ दिख रहा है.उसके चेहरे पर इस बात की रत्ती भर भी शिकन नहीं है कि उसे कठोर अंजाम का सामना करना पड़ सकता है. और इसके पीछे है उसका ईश्वर विश्वास जिसका अंदाजा उसके इस उद्गार से लगता है-'मैं पाकिस्तानी हूं .मैं हिन्दुओं को मारने आया था . यह करने में मजा आता है.मेरा साथी गोलीबारी में मारा गया लेकिन मैं बच  गया.अगर मैं मारा जाता तो यह अल्लाह का करम होता.' अर्थात उसे इस बात का अफ़सोस है कि मारा नहीं गया.अगर मारा जाता तो ऊपर वाले की मेहरबानी होती जिससे वह महरूम हो गया.

दरअसल अपनी फिदायिनी गतिविधियों से खौफ पैदा कर रहे इस्लामिक आतंकवादी मरणोपरांत जन्नत का सुख पाने के प्रति इतना आश्वस्त हैं कि उन्हें मौत का सामना करने में जरा भी डर नहीं लगता. उनमे यह विश्वास शायद कूंट-कूंट कर भरा हुआ है कि मरने के बाद जन्नत में वह सब मिलता तय है जिसकी इस दुनिया में सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है. मुझे नहीं लगता कि जन्नत के सुख को छोडकर इसके पीछे इंसानियत या कौम का कोई बड़ा सरोकार है. ऐसा सरोकार श्रीलंका के तमिल फिदायीनों में था. इसलिए तमाम कमियों के बावजूद लिट्टे के फिदायीनों के प्रति कुछ श्रद्धा पैदा होती थी. लेकिन इस्लामिक फिदायीनों का लक्ष्य काफी हद तक,व्यक्तिगत है.वे पारलौकिक सुखों के लिए ही बेख़ौफ़ होकर बड़ी-बड़ी घटनाएँ अंजाम दिए जा रहे हैं.मुझे कहीं से भी नहीं लगता इसके जरिये वे अपने सहधर्मियों की भौतिक समस्याएं सुलझाना चाहते है.

वैसे तो तमाम ईश्वर विश्वासी धर्मों के लिए ही परलौकिक सुख ही सर्वोपरि है.इस मामले में तो हिन्दू धर्म का तो कोई जवाब ही नहीं है.हिन्दू धर्म के नायकों ने तो खुले  तौर पर जगत मिथ्या ,ब्रह्म सत्य की घोषणा कर परलौकिक सुख की सर्वोच्चता को प्रतिष्ठित कर रखा है.इस परलौकिक सुख को पाने में हिन्दुओं ने जो कुछ किया उसके फलस्वरूप उनके धर्म की  प्रायः ९३ प्रतिशत आबादी चिरकाल के लिए शक्ति के स्रोतों से वंचित होकर अस्पृश्य,जंगली,पिछड़ा,अबला कहलाने के लिए अभिशप्त हुई.आज भी हिन्दुओं के परलोक सुख की चाह भारत में मानवता के लिए समस्या बनी हुई है.किन्तु गनीमत यह है कि वे इस्लाम के अनुयायियों की तरह स्वर्ग का सुख लूटने के लिए फिदायिनी कांड अंजाम नहीं देते.इसलिए उनकी परलोक सुख की चाह मानवता को खौफजदा नहीं करती .

बहरहाल इस्लाम के धर्माधिकारियों को चाहिए कि वे जन्नत के सुख के लिए अपने लोगों को बन्दुक को छोड़कर बाकि चीजों के अवलम्बन का उपाय बताएं.ऐसा नहीं करने पर यह फिदायिनी रवैया दुनिया को धर्मयुद्ध आग में झोक सकता है.

6.8.2015       



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