Tuesday, August 11, 2015

संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता का अब कोई अर्थ नहीं है

संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता का अब कोई अर्थ नहीं है

देश के संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष शब्द आया है. जिसका यह अर्थ है कि सरकार और उसके अंग धर्मनिरपेक्ष तरीके से सामान भाव से सभी नागरिकों को न्याय देंगे और एहसास भी कराएँगे सरकारी तंत्र के ऊपर किसी भी धर्म का असर नही होगा लेकिन आतंकवाद के मामलों में दोहरा मापदंड अपनाया जा रहा है. हिंदुवत्ववादी आतंकी मामलों में एन आई ए से लेकर सभी एजेंसियां नरम रूख अपना कर उन्हें जमानत दिलाने का प्रयास कर रही है. तो दूसरी तरफ अल्पसंख्यक समुदाय के लोग जो जेलों में निरुद्ध हैं. उनको किसी भी तरह से जमानत न मिलने पाए उसका प्रयास यह एजेंसियां करती हैं. 
                             अभी हाल में बिजनौर निवासी याकूब , नौशाद अली व बंगाल निवासी जलालुद्दीन को न्यायलय ने बरी कर दिया. इन लोगों के पास से चार किलो आर डी एक्स, ए के 47, डेकोनेटर, हैण्ड ग्रेनेड आदि की बरामदगी दिखाई थी. केस छूट जाने के बाद ही उत्तर प्रदेश सरकार ने अपील की तैयारियां शुरू कर दी हैं. उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को आतंकवाद के मामले में जेलों में निरुद्ध किया गया था. अदालतों में उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत न होने के बावजूद विधि के सिद्धांतो के विपरीत सजाएं हुई.            
                      वहीँ, दूसरी तरफ हिंदुत्ववादी आतंकवादियों के खिलाफ न्यायालयों का भी रुख कोमल रहता है.  लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी के सवाल के जवाब में गृह मंत्रालय ने कहा, 'पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने 28 अगस्त, 2014 एक आदेश पारित कर स्वामी असीमानंद को समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट केस में सशर्त जमानत दे दी थी।  क्या हाई कोर्ट की बेल को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देनी चाहिए। जांच के बाद एनआईए ने फैसला किया है कि हाई कोर्ट द्वारा दी गई बेल को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी जाएगी क्योंकि उसका कोई औचित्य नहीं है।'
असीमानंद को बेल पिछले साल 28 अगस्त को मिली थी। असीमानंद के वकील बीजेपी के लीगल सेल के हेड सत्यपाल जैन थे। हालांकि असीमानंद अभी जेल में ही हैं क्योंकि अजमेर और मक्का मस्जिद ब्लास्ट केस में उन्हें बेल नहीं मिली है। इन मामलों में भी असीमानंद अहम आरोपी हैं।  कुछ माह पहले असीमानंद को हाई कोर्ट ने 10 दिनों का परोल दिया था। यह परोल एनआईए की सहमति से मिला था। असीमानंद ने कहा था कि उनकी मां बीमार हैं और उन्हें देखने के लिए कोलकाता जाना है जबकि अल्पसंख्यक जो आतंकवाद के केसेस में निरुद्ध हैं उनके माँ बाप, पत्नी के मर जाने के बाद भी पैरोल नहीं मिलती है. उत्तर प्रदेश में खालिद मुजाहिद को आर डी निमेष कमीशन की रिपोर्ट आ जाने पर उनकी गिरफ्तारी संदिग्ध मानने के बाद भी केस वापसी संभव नहीं हुई और 18 मई 2013 उसकी हिरासत में हत्या हो जाती है. 

एनआईए के अधिकारियों ने कहा कि 12 दिसंबर, 2014 को सुप्रीम कोर्ट से आतंकी केस में जयंत कुमार घोष को जमानत दिलवा दी थी। इसका आधार यह था कि वह जांच के दौरान पांच साल जेल रहा था। एनआईए का कहना है कि असीमानंद का केस भी बिल्कुल वैसा ही है। असीमानंद 2010 से जेल में हैं और समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट की जांच खत्म नहीं हुई है। इसी आधार पर हाई कोर्ट ने असीमानंद को भी जमानत दी है।
असीमानंद पर दिल्ली-लाहौर समझौता एक्सप्रेस में बम ब्लास्ट करने का आरोप है। इस ब्लास्ट में 68 लोग मारे गए थे और ज्यादातर लोग पाकिस्तानी थे। 

  एनआईए पर इस मामले में पहले से ही गंभीर आरोप लगें हैं । विशेष अभियोजन अधिकारी  रोहिणी सालियान ने आरोप लगाया था कि एनआईए हिन्दुवत्व वादी आतंकवाद को लेकर उदार रवैया अपना रहा है। इससे पहले एनआईए ने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा हिन्दुवत्व वादी  आतंक के आरोपी देवेंद्र गुप्ता को मिली जमानत का विरोध नहीं किया था। 
 अब आस्था और विशवास के आधार पर फांसी की सजा भी सुने जाने लगी है. साक्ष्य व सबूत का कोई मतलब नहीं रह गया है.
सुमन 

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