Sunday, November 9, 2014

हम क्यों मनायें संविधान दिवस?

26 नवंबर को भारतीय संविधान की 

65वीं वर्षगांठ पर

हम क्यों मनायें संविधान दिवस?
क्योंकि लोकतंत्र को बचाने के लिए,जल जंगल जमीन,नागरिकता और आजीविका जैसे बुनियादी हकों के लिए भारतीय संविधान पर बहस बेहद जरुरी!
पलाश विश्वास
आज मध्य कोलकाता में बंगाल के जनसंगठनों,अल्पसंख्यक संगठनों,कर्मचारी संगठनों,सामाजिक कार्यकर्ताओं की एक अति महत्वपूर्ण सभा बौद्ध तीर्थांकुर मंदिर  के सभा कक्ष में हुई और 26 नवंबर को भारतीय संविधान की 65वीं वर्षगांठ पर गौतमबुद्ध के दिखाये मत और बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर के जाति उन्मूलन के एजंडे को प्रस्थानबिदू मानकार नवउदारवादी विध्वंसक जनसंहारी संस्कृति के प्रतिरोध के बतौर देशव्यापी जन जागरण के लिए भारतीय संविधान और भारतीय लोकतंत्र के बुनियादी मुद्दों को लगातार संबोधित करने का संकल्प लिया गया।

खास बात तो यह है कि इस मौके पर आनंद तेलतुंबड़े ने पूरी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का खुलासा करते हुए साफ साफ तौर पर बता दिया कि संविधान मसविदा समिति के अध्यक्ष बाबासाहेब जरुर थे,लेकिन यह संविधान उनका रचा हुआ नहीं है।इसकी अनेक सीमाएं हैं।

तेलतुंबड़े ने अपनी विशिष्ट शैली में संविधान की उन सीमाओं और उनके अतर्विरोधों का खुलास करते हुए सामाजिक और जनआंदोलन के सिलसिले में बुनियादों मुद्दों को केंद्रित अस्मिताओं के आरपार सामाजिक और संभव हुआ तो जनांदोलन के रचनात्मक तौर तरीके ईजाद करने और लोकतांत्रिक स्पेस तैयार करने की जरुरत बतायी।

तेलतुंबड़े ने कहा कि इतिहास और पृष्ठभूमि को छोड़ दें तो मौजूदा समाज वस्तव यह है कि सत्ता वर्ग के चंद लोगों को छोड़कर आम जनता संवैधानिक और लोकतांत्रिक हकहकूक से वंचित है।

तेलतुंबड़े ने कहा कि नवउदारवादी विचारधारा का आधार ही यह है कि ताकतवर तबके के लोगों को ही जीने का हक है और बाकी लोग देश दुनिया के लिए गैर जरुरी है।

तेलतुंबड़े ने साफ किया कि इसका लिए बुनियादी परिवर्तन जरुरी है और राज्यतंत्र में बदलाव बिना बुनियादी परिवर्तन नहीं होंगे।इसके लिए सत्ता वर्ग के हितों के मुताबिक बनाये गये संविधान में भी जरुरी परिवर्तन होने चाहिए।

उन्होंने अंबेडकरी एजंडा के बुनियादी मुद्दे जाति उन्मूलन को सामाजिक आंदोलन की सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए नवउदारवादी जनसंहारी संस्कृति में जातिव्यवस्था, मनुस्मृति शासन और आर्थिक सामाजिक बहिस्कार को वैधता देने के तत्र का खुलासा भी किया।उन्होंने आरक्षण केद्रित अंबेडकर विमर्श को खारिज करते हुए कहा कि अस्मिता राजनीति सत्ता वर्ग के सत्ता समीकरण के माफिक है और यह कुल मिलाकर कारपोरेट तंत्र को मजबूत ही करती है।

इसपर कर्मचारी संगठनों के नेताओं ने आर्थिक सुधारों,विनवेश, अबाध पूंजी प्रवाह,प्रत्यक्ष पूंजी निवेश,निजीकरण और विनियंत्रण के सुधार खेल में आरक्षण के गैर प्रासंगिक हो जाने और संवैधानिक लोकतांत्रिक अधिकारों के खुल्लम खुल्ला उल्लंघन पर भी  खुली चर्चा की।हल्दिया,मेदिनीपुर और कोलकाता के कर्मचारी नेताओं न कासतौर पर अपनी बातें रखीं।

तेलतुंबड़े सभा के दूसरे सत्र में पहुंचे लेकिन इससे पहले युवा साथियों ने सुबह के सत्र में  यह सवाल उठा दिया था कि जिस संविधान को बाबासाहेब अंबेडकर स्वयं खारिज कर चुके हों तो उसे बचाने की क्या जरुरत पड़ी है।

उत्तर 24 परगना से आये एकदम युवा सामाजिक कार्यकर्ता शिशिर राय ने लाखों के तादाद में चल रहे संगठनों के कामकाज के तौर तरीके की चीड़फाड़ की और जमीनी स्तर पर जनजागरण की बात करते हुए संविदान के महिमामंडन के औचित्य पर तीख सवाल भी दागे।

ले.कर्नल सिद्धार्थ बर्वे और लेफ्टिनेंट कर्नल मजुमदार ने संघटन और आंदोलन के पुराने अनुभवों का हवाला देते हुए जमीनी स्तर के विकेंद्रित सामूहिक लोकतांत्रिक नेतृत्व की जरुरत पर खास प्रकाश डाला।तो कांथी मेदिनीपुर से आत्मनिरीक्षण पत्रिका के संपादक और इंडियान सोशल मूवमेंट के ईस्ट्रन जोन के सह संयोजकतपन मंडल ने सांगाठनिक मुद्दों पर खुली चर्चा की।भुवनेश्वर से आये आदिवासी दलित मूलनिवासी संगठन के उज्जवल विश्वास और बंगाल में मूलनिवासी समिति के पीयूष गायेन ने सामाजिक आंदोलन के भूगोल पर प्रकाश डाला।

मैंने स्पष्ट भी कर दिया कि हमारा मकसद संविधान का बचाव करना नहीं है और न संविधान का महिमामंडन करना है।इस कारपोरेट धर्मांध समय में लोकतंत्र के लिए जगह निकालने के लिएसंविधान पर बहस केंद्रित होनी ही चाहिए।

हमने साफ कर दिया कि अगर जनता समझती है कि यह संविधान उनके हक हकूक की हिफाजत में कहीं खड़ा नहीं होता तो जनता उस संविधान को बदल डाले ,लेकिन हम कारपोरेट असंवैधानिक देशद्रोही ताकतों को भारत के संविधान और लोकतंत्र से खिलवाड़ की इजाजत नहीं देंगे।

फिर तेलतुंबड़े के वक्तव्य के बाद संचालक शरदिंदु उद्दीपन ने प्रस्ताव रखा कि हमारा जनजागरण का मकसद वही बुनियादी परिवर्तन है और राज्यतंत्र में बदलाव है।जिसके तहत हम बाबा साहेब के सपनों का संविधान और राज्यतंत्र का निर्माण कर सकें।लेकिन हम राष्ट्रविरोधी बाजार की शक्तियों और उनके दलालों की ओर से संवैधानिक प्रावधानों के तहत मनुष्य और प्रकृति के हित में जो प्रावधान किये गये हैं ,उसको खत्म करके संविधान के प्रावधानों के खिलाफ कारपोरेट हित में जनसंहारी संस्कृति के तहत आर्थिक सुधारों को लागूकरने के मकसद से सारे कायदे कानून बदल कर भारतीय लोकतंत्र और संविधान को बदलने की इजाजत नहीं दे सकते।

फिलहाल हमें इसी संविधान के तहत ही व्यवस्था परिवर्तन की मुहिम चलानी होगी।इस पर सभा में सहमतिव्यक्त की गयी।

बांग्ला के प्रख्यात लेखक और पूर्व आईपीएस अधिकारी नजरुल इस्लाम ने अपने निजी अनुभवों का हवाला देकर साफ किया कि संविधान का हर स्तर पर उल्लंघन हो रहा है और लाकतांत्रिक प्रणाली दांव पर है।लोकतंत्र न हो तो किसी भी परिवर्तन की कोई संभावना नहीं बनती।इसलिए लोकतंत्र को संवैधानिक प्रावधानों के तहत ही बचाने का कार्यभार बनता है।

गौरतलब है कि सेवा में रहते हुए नजरुल ने बंगाल के वोटबैंक राजनीति के तहत मुसलमानों को लगातार वंचित किये जाने का खुलासा करते हुए मुसलिमदेर की करणीय पुस्तक ही नहीं लिखी,बल्कि उन्होंने अपनी दूसरी पुस्तक मूलनिवासीदेर कि करणीय लिखकर बंगाल में वंचितों की व्यापर गोलबंदी करने की मुहिम शुरु की है और अब उनके संगठन का बंगाल के हर जिले में मजबूत नेटवर्क है।

जनमुक्ति के लिए नजरुल साहेब अंबेडकरी आंदोलन को तेज करने की जरुरत बताते रहे हैं और आज भी उन्होंने इस सिलसिले में प्रकाश डाला।

खास बात है कि अंबेडकरी आंदोलन के दुकानदारों की खुली आलोचना और भारतीय संविधान के सच का खुलासा के बावजूद अंबेडकरी धारा के जनसंगठनों ने महसूस किया कि संविधान के महिमामंडन से कारपोरेट समय का मुकाबला नहीं किया जा सकता क्योंकि भारतीय संविधान का पिछले पैसठ सालों से सिर्फ सत्ता वर्ग के हित में ही इस्तेमाल हुआ,नागरिक और मानवाधिकारों के हितों में नहीं और न ही बहिस्कृत बहुसंंख्य जनसमुदायों के भूगोल में यह संविधान या कानून का राज कहीं लागू है।

खास बात यह कि इस सभा में शामिल लोगों ने देशव्यापी शिक्षा आंदोलन का समर्थन भी किया है और देशभर में विभिन्न जनसंगठनों की ओर से चलाये जा रहे सभी तरह के जनपक्षधर आंदोलनों और सभी जनसमूहों को साथ लेकर चलने पर सहमति जतायी है।

खास बात यह कि परंपरागत बहुजन आंदोलन की तरह किसी भीतर तरह की अस्मिता या शब्दावली का इस्तेमाल किये बिना अस्मिताओं रके आरपार जाति उन्मूलनके एजंडे के तहत बुनियादी मुद्दों और आम जनता के हक हकूक के लिए निकरंतर जन जागरण अभियान पर सहमति हुई है।

गौर तलब है कि इस सभा का कोई अध्यक्ष न था और हर संगठन और हर व्यक्ति को अपनी राय रखने और दूसरों के वक्तव्य पर प्रतिक्रिया देने की छूट थी।कोई मंच कहीं नहीं था बल्कि हम लोग एक दूसरे से सीधे हमारे मुद्दों पर संवाद कर रहे थे।

कोलकाता सिख संगत और मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों ने आपबीती बताते हुए सवाल किये अगर देश में संविधान लागू है तो पीढ़ियों से न्याय से वंचित क्यों हैं वंचित बहुसंख्य लोग और खासकर आदिवासी।

सिखसंगत के नेता और पंजाबी के साहित्यकार जगमोहन गिल ने भारतीय संविधान और लोकतांत्रिक हक हकूक के बारे में लगातार व्यापक जनजागरण जारी रखने की बात की।

बैंक कर्मचारियों के नेता सुरेश राम जी ने कहा कि 26 नवंबर को इस मुहिम की शुरुआत होगी।उन्होंने जाति उन्मूलन के आंदोलन पर फोकस किया और कहा कि जाति को खत्म किये बिना बहुसंख्य जनत की गोलबंदी नही हो सकती और हमें इस पर फोकस करना चाहिए।

बेंगल बुद्धिष्ट सोसाइटी के अरुण बरुआ इस आयोजन को संगठित करने में लगे थे लेकिन वे भी अपने विचार व्यक्त करने से चूके नहीं।

दलित मुस्लिम फ्रेंडशिप के एमएन अब्दुससमाद और अब्दुल मनासी ने भी नागरिक अधिकारों और मानवाधिकारों की हिफाजत के लिए अस्मिता आरपार सामाजिक आंदोलन की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला।

मुर्शिदाबाद से आये पत्रकार हेनाद्दीन,न्यू बैरकपुर अंबेडकर मिशन के विराट चंद्र सेन, मेदिनीपुर के कर्मचारी नेता अरुप चौधरी,बाहाला के अलक विश्वास,मतुआ आधारभूमि वनगांव के गोपाल चंद्र हालदार

ग्रामीण अंचलों से आयी महिलाओं ने कांथी की एडवोकेट मिसेज बर्मन,बारुईपुर महिलामंडल की दुलाली सिंहा और सुनीता विश्वास कीअगुवाई में  कहा कि अगर भारतीय संविधान लागू है तो स्त्री आज भी क्यों शूद्र और दासी है और लोकतांत्रिक समाज और देश में उनका सही स्थान क्यों नहीं है।

मेदिनीपुर,उत्तर और दक्षिण 24 परगना और हुगली जैसे ग्रामीण इलाकों से महिलाएं आयीं और उन्होंने सामाजिक बदलाव के सिलसिले में अपनी भूमिका पर बातें भी सिलसिलेवार कीं।

हमने भी उनसे वायदा किया कि देश व्यापी परिवर्तन के सामाजिक आंदोलन में हम न केवल युवाजनों और स्त्री की व्यापक भागेदारी चाहते हैं बल्कि हम स्त्री नेतृत्व में ही नये सिरे से शुरुआत करना चाहते हैं।

इस सभा में भारत देश में देश बेचो ब्रिगेड के माफिया राज में लोकतंत्र के लिए जगह बनाने के लिए संविधान पर नये सिरे से बहस शुरु करने संवैधानिक प्रावधानों और अधिकारों के तहत जल जंगल जमीन नागरिकता और आजीविका के हक में सामाजिक आंदोलन की आवश्यकता पर सहमति जताई गयी।

खास बात है कि आज ही के दिन छत्तीसगढ़ के साढ़े छह सौ गांवों के प्रतिनिधियों ने राजधानी रायपुर में संवैधानिक व लोकतांत्रिक हक हकूक के लिए 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाने का संकल्प किया है।तो ओड़ीशा के हर जिले में संविधान दिवस मनाने की तैयारी जोरों पर है।झारखंड और बिहार के साथियों ने वायदा किया है कि वे पीछे नहीं रहेेंगे।

देश भर में समान मुफ्त शिक्षा के लिए  शिक्षा यात्रा कश्मीर से कन्याकुमारी और पंजाब से लेकर अरुणाचल मणिपुर तक जारी है तो संविधान दिवस भी देशभर मनाया जायेगा।

इसीतरह बाकी जनांदोलन मसलन सोलह मई के बाद कविता जैसे सामाजिक चेतना आंदोलनोऔर पर्यावरण आंदोलनों  को भी साथ ले चलने पर सहमति हुई है।

मुंबई,नागपुर और बाकी महाराष्ट्र में भी तैयारियां चल रहीं हैं।

भारत की राजधानी नई दिल्ली में 26 नवंबर की शाम भारतीय संविधान और लोकतंत्र के लिए मोमबत्तियां जलायी जायेंगी तो कोलकाता में कालेज स्कवायर से लेकर कोलकाता मैदान के मेयोरोड पर अंबेडकर मूर्ति तक पदयात्रा निकलेगी।

जिलों,नगरों,कस्बों और गांवों में जो कार्यक्रम देशभर में होने हैं,उनकी रुपरेखा उन क्षेत्रों में सक्रिय संगठन तैयार करेंगे औरकार्यक्रमों का आयोजन भी वे ही करेंगे।

यह सारा कार्यक्रम एकदम जमीनी स्तर से आयोजित होंगे जिसमें केंदि्रीय स्तर पर किसी  तरह का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा।

अंत में बोले बैंक अधिकारी जयप्रकाश चौधरी और खूब बोले।

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