Thursday, March 30, 2017

बाकी देश भी आनंदमठ हो जायेगा। बंगाल में युवा कवियत्री मंदाक्रांता सेन को सामूहिक बलात्कार की धमकी,रवींद्र माइकेल, ईश्वरचंद्र पर बेशर्म हमले और आनंदमठ का महिमामंडन। यूं समझ लो कि देशभर में सेकुलर प्रगतिशील तत्वों,संस्कृतिकर्मियों और भारतीय स्त्री के खिलाफ एक और ब्लू स्टार अभियान चालू है।बजरंगी वाहिनी के इस आपरेशन को सैन्य राष्ट्र की निरंकुश सत्ता को पूरा समर्थन है। क्षत्रपो�

बाकी देश भी आनंदमठ हो जायेगा।

बंगाल में युवा कवियत्री मंदाक्रांता सेन को सामूहिक बलात्कार की धमकी,रवींद्र माइकेल, ईश्वरचंद्र पर बेशर्म हमले और आनंदमठ का महिमामंडन।

यूं समझ लो कि देशभर में सेकुलर प्रगतिशील तत्वों,संस्कृतिकर्मियों और भारतीय स्त्री के खिलाफ एक और ब्लू स्टार अभियान चालू है।बजरंगी वाहिनी के इस आपरेशन को सैन्य राष्ट्र की निरंकुश सत्ता को पूरा समर्थन है। क्षत्रपों की मौन सहमति।

नवजागरण,रवींद्र माइकेल से लेकर श्रीजात और मंदाक्रांता पर बेशर्म पेशवाई हमले के खिलाफ बंगाल की राजनीति सिरे से खामोश है क्योंकि वे केंद्र सरकार और सीबीआई के सहारे ममता बनर्जी को बिना कोई इलेक्शन लड़े सत्ता से बेदखल करने के लिए सत्ता दल के टूटने के इंतजार में है और मजहबी सियासत के मुताबिक अपना अपना वोटबैंक साधने के लिए धार्मिक भावनाओं को चोट न पहुंचाने की आत्मघाती रणनीति पर चल रहे हैं।

ऐसे डफर लोगों से आप संस्थागत फासिज्म के मुकाबले की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?

पलाश विश्वास

बंगाल में कवियों के लिए महासंकट खड़ा हो गया है।

श्रीजात के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुआ तो फिर धार्मिक आस्था पर चोट पहुंचाने के आरोप में युवा कवियत्री मंदाक्रांता सेन को फेसबुक के जरिये सामूहिक बलात्कार की धमकी दी गयी है।

श्रीजात की कविता की प्रतिक्रिया में उनकी मां बहन के नाम जो उद्गार व्यक्ति किया गया है,उससे जाहिर है कि किसी की धार्मिक आस्था या भावना को कोई आघात नहीं लगा है और जाहिर है बंगाल में पूरी जनता अब धार्मिक हो गयी है और आम जनता के साथ बंगाली बुद्धिजीवियों और पढ़े लिखे लोगों को भी सेकुलर हिंदुत्वविरोधी प्रगतिशील तत्वों  को सबक सिखाने की इस मुहिम से कोई ऐतराज नहीं है।

गौरतलब है कि असहिष्णुता के खिलाफ बंगाल से युवा साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाली मंदाक्रांता सेन ही मुखर रही हैं और वे ही बंगाल से एकमात्र पुरस्कर वापस करने वाली साहित्यकार रही हैं।उनके खिलाफ  वामपंथी और सेकुलपर होने के सबूत बहुत पुख्ता हैं।

गौरतलब है कि अत्यंत प्रतिभाशाली कवियत्री बतौर छोटी उम्र में ही बांग्ला साहित्य के लिए प्रतिष्ठापूर्ण आनंद पुरस्कार पाने वाली मंदाक्रांता ने बाजार के हक में कभी नहीं लिखा है और गद्य पद्य हर विधा में सामाजिक यथार्थ को वे संबोधित करती रही हैं।

गौरतलब है कि श्रीजात के खिलाफ एफआईआर होने पर मंदाक्रांता ने ही इसके खिलाफ मुखर संस्कृतिकर्मियों को संगठित करके रास्ते पर उतारा है। फिर मौजूदा सद्र्भ में असहिष्णुता और मजहबी सियासत के खिलाफ एक कविता भी लिख दी।जाहिर है कि उन्हें सजा देने के लिए डायरेक्ट एक्शन का ऐलान हो गया है।

उनका अपराध बहुत ताजा हस्तक्षेप है जबकि उन्नीसवीं सदी में मेघनाथ वध लिखने वाले माइकेल मधुसूदन दत्त और गीतांजलि लिखकर नोबेल पुरस्कार पाने वाले रवींद्रनाथ तक को बख्शा नहीं जा रहा है।इस पुरस्कार का असल हकदार बंकिम चंद्र को बताया जा रहा है और रवींद्र,माइकेल और नवजागरण वालों को थोक भाव से विदेशी साम्राज्यवाद का दलाल वे लोग बता रहे हैं,जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत की कदमबोशी करते हुए भारत की आजादी के आंदोलन से दगा किया और कदम कदम पर अंग्रेजों का साथ दिया।यह इतिहास का नवलेखन है।

मधुसूदन राम के खिलाफ मेघनाद को हीरो बना दिया था और ब्रिटिश राजकाज में ही मर खप कर बच निकले हैं तो उनका गढ़ा मुर्दा उखाड़कर फांसी की सजा देने की मुहिम चल पड़ी है।रवींद्रनाथ भी देश आजाद होने से पहले मर गये तो गांधी की तरह उन्हें सजा नहीं दी जा सकी है और हिंदू धर्म को उदार बनाने में ईश्वर चंद्र से तत्कालीन कुलीन ब्राह्मण तंत्र निबट नहीं सका तो अब हर क्षेत्र में बाबरी मस्जिद का हिसाब बराबर करके चप्पे चप्पे पर राममंदिर बनाने का अश्वमेधी अभियान के लिए हिमालय से संतान दल का अवतरण हो रहा है।

बांग्ला वर्णमाला जिनके वर्ण परिचय से अब भी बंगाल के बच्चे सीखते हैं,जो सतीदाह, बहुविवाह जैसी कुप्रथाओं को कानूनी रुप दिलाने और हिंदुओं में स्त्री शिक्षा और विधवा विवाह का प्रचलन करने वाले नवजागरण के मसीहा ईश्वर चंद्र विद्यासागर के खिलाफ नवजागरण के समय का घृणा अभियान बंगाल में फिर शुरु हो गया है ।

पूरा बंगाल अब आनंदमठ में तब्दील होता जा रहा है तो यूपी पहले ही आनंद मठ है। बाकी देश भी आनंदमठ हो जायेगा।

यह बंगाल के लिए जितना खतरनाक है,उससे ज्यादा खतरनाक बाकी भारत के लिए है। पितृसत्ता की मनुस्मृति लागू करने के लिए स्त्री स्वतंत्रता और स्त्री अस्मिता पर यह आजादी के बाद सबसे बड़ा हमला है।

शरत के उपन्यासों में उन्नीसवीं सदी के बंगाल का आंखों देखा हाल है।तो रवींद्र नाथ ने अपने साहित्य और संगीत के माध्यम से भारतीय स्त्री की स्वतंत्रता का महासंग्राम छेड़ा। स्त्री शिक्षा की वजह से स्त्री के समान अधिकारों की जो चेतना समकालीन परिदृ्श्य है, उसकी शुरुआत सतीदाह, बाल विवाह, बेमेल विवाह पर रोक और विधवा विवाह और स्त्री शिक्षा के नवजागरण आंदोलन के तहत हुआ और अब नवजागरण के खिलाफ यह आंदोलन बंगाल और बाकी भारत को फिर मध्ययुगीन बर्बर अंधकार युग में धकेलना का प्रयास है, जिसका उद्देश्य निरंकुश पितृसत्ता का मनुस्मृति विधानलागू करना तो है ही, यह अबाध पूंजी की तरह स्त्री को फिर यौनदासी बनाने का मनुस्मृति उपक्रम है।

गौरतलब है कि दिवंगत भैरोसिंह शेखावत जो भारत के उपराष्ट्रपति रहे, राजस्थान में उनके राजकाज के दौरान रुपकुंवर सती हो गयी थीं और सती प्रथा के महिमामंडन का अभियान चला था, जिसे हिंदी पत्रकारिता के मसीहा प्रभाष जोशी ने जनसत्ता के माध्यम से समर्थन भी किया था ब्लू स्टार अभियान की तरह।जनसत्ता में नौकरी शुरु करने पर इसे लेकर बनवारी से कोलकाता में संपादकीय नीति पर  बहस हो जाने की वजह से मानीय जोशी ने मारा काम तमाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

बहरहाल, यूं समझ लो कि बंगाल के सेकुलर प्रगतिशील तत्वों, संस्कृतिकर्मियों और भारतीय स्त्री के खिलाफ एक और ब्लू स्टार अभियान चालू है।

बजरंगी वाहिनी के बार बार गांधी वध दोहराने के इस अविराम आपरेशन ब्लू स्टार को सैन्य राष्ट्र की निरंकुश सत्ता को पूरा समर्थन है।

विडंबना यह है कि बंगाल में प्रतिपक्ष की राजनीति अभी इस मजहबी सियासत के खिलाफ खड़े होने के लिए तैयार नहीं है।

नवजागरण,रवींद्र माइकेल से लेकर श्रीजात और मंदाक्रांता पर बेशर्म पेशवाई हमले के खिलाफ बंगाल की राजनीति सिरे से खामोश है क्योंकि वे केंद्र सरकार और सीबीआई के सहारे ममता बनर्जी को बिना कोई इलेक्शन लड़े सत्ता से बेदखल करने के लिए सत्ता दल के टूटने के इंतजार में है और मजहबी सियासत के मुताबिक अपना अपना वोटबैंक साधने के लिए धार्मिक भावनाओं को चोट न पहुंचाने की आत्मघाती रणनीति पर चल रहे हैं।

ऐसे डफर लोगों से आप संस्थागत फासिज्म के मुकाबले की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?

पूरे देश को आनंदमठ बनाने में आर्तिक सुधार की आधार योजना की तरह सर्वदलीय सहमति है।

श्रीजात और मंदाक्रांता के बाद किसकी बारी है,कहना मुश्किल है।

रवींद्र नाथ ने भारत और बांग्लादेश का राष्ट्रगान लिखा और और बंगाल के हर छोटे बड़े सहर कस्बे में रवींद्र भवन जरुर है।

बंगालऔर बांग्लादेश में हर स्त्री रवींद्र संगीत गाती हैं।

आनंदमठ और बंकिम चंद्र को महान साबित करने के लिए उस सेकुलर कवि की गांधी हत्या का जो अभियान जारी है ,उसके मद्देनजर बंगालियों के रवींद्र प्रेम के बारे में करीब दो दशक पहले खुशवंत सिंह की पवित्र गाय वाली टिप्पणी को याद किया जाना चाहिए, जिसकी तीखी प्रतिक्रिया बंगाल और बंगालियों में हुई थी।

सत्तर के दशक में रवींद्र मूर्ति तोड़े जाने के खिलाफ बंगाली भद्रलोक नक्सली दमन के समर्थक हो गये थे,यह भी गौर तलब है। वह बंगाली रवींद्रप्रेम अब गेरुआ हो गया है और इसकी उपमा लिखना बंगाल में भारी जोखिम उठाने के बराबर है।

अब जब यूपी के मुख्यमंत्री आनंद मठ के सन्यासी विद्रोह के महानायक के अवतार बताये जा रहे हैं तो बंगाल में बंकिम और आनंदमठ के महिमामंडन अभियान का आशय अलग से समझाने की जरुरत नहीं है।

जो भी सेकुलर मान लिए जायेंगे वे सजी भुगतने को तैयार रहें तो बेहतर।

पिछले दिनों लिख न पाने की वजह से मैंने इस बारे में बांग्ला,हिंदी और अंग्रेजी में कई वीडियो फेसबुक पर जारी किये हैं,जिसका प्रसारण रोका जा रहा है।

पेसबुक पर हम जैसे तमाम लोगों को गालियां मिलती रहती हैं और धमकियां भी।यह लिखने का पुरस्कार है और मुझे इससे कोई ऐतराज नहीं है।मेरे लिए फिलहाल सुविधा यह है कि भक्तजनों के नजरिये से मैं कोई पुरस्कृत या ब्रांडेड आिकानिक लेखक पत्रकार वगैरह नहीं हूं तो वे मेरे लिखे का खास नोटिस नहीं लेते और लेते भी हैं तो संस्थागत शैली के तहत कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करते।

वैसे भी सेकुलर वामपंथी बंगाल या अंबेडकरी महाराष्ट्र के मुकाबले अमूमन आम तौर पर इक्का दुक्का फेसबुक पोस्ट के अलावा हिंदी दुनिया में साहित्य और कविता के खिलाफ राष्ट्रवादी धर्मोन्माद  का नजारा माने नहीं आया है।

मसलन महंत आदित्यनाथ जो मुख्यमंत्री बन जाने के बाद संतानदल के सिपाहसालार घोषित किये जाते हैं,उनके बारे में कहा जाता है कि वे हमारे प्रिय मित्र उदय प्रकाश की पीली छतरियां समेत तमाम कहानियों और उपन्यासों के नियमित पाठक हैं और उन्हें उदय प्रकाश की कविताएं याद हैं।

वैसे भी गढ़वाली होने के कारण वहां की जन्मगत आदत मुताबिक साहित्य का पाठक अगर हैं भवानाथ अवतार,तो उम्मीद है कि उन्होंने कुछ सेकुलर लोगों की कविताएं भी पढ़  ली होंगी और हो सकता है कि वे लघु पत्रिकाएं भी पढ़ते रहे हों।ऐसे तमाम लोग लाइन में आ जायें तो उनका कल्याण है।

हिंदू राष्ट्रवाद और पेशवा के भगवाराज की सरजमीं पर असहिष्णुता का बागों में बहार रही है।वहीं पानसारे और दाभोलकर की हत्या हुई तो कर्नाटक के भगवाकरण के बाद वहां कुलबर्गी मारे गये तो तलंगना अलग हो जाने के बाद हैदराबाद में रोहित वेमुला की हत्या हो गयी।

जाहिर है कि अपढ़,अधपढ़ गायपट्टी में कवियों और साहित्यकारों की कोई खास औकात महाराष्ट्र,कर्नाटक और बंगाल,केरल की तरह होती नहीं है और उनकी क्रांति का कोई असर जनमानस पर होता नहीं है।

पाश जैसे खतरनाक लोग भी गायपट्टी में होते नहीं हैं तो संतान दल प्रमुख की तरफ से उनकी सेहत को फिलहाल कोई खतरा लगता नहीं है।

बंगाल में अब भी राजनेताओं और दूसरे विभिन्न क्षेत्र के कामयाब लोगों के मुकाबले रवींद्र शरत संस्कृति के मुताबिक फटेहाल साहित्यकारों, कवियों, चित्रकारों, कलाकारों, रंगकर्मियों और आम संस्कृतिकर्मियों की साख बहुत ज्यादा है और वे अब भी जनमत और जनमानस को प्रभावित करते हैं।

ये तमाम लोग प्रगतिशील और सेकुलर माने जाते हैं।

दीदी के जमाने में उन्होंने दलबदल भले किया हो,लेकिन भगवा राष्ट्रवादियों, बजरंगी वाहिनी और मजहबी सियासत के नजरिये से ये लोग अब भी वामपंथी और सेकुलर हैं।इनमें जो भी मुखर हैं,वे निशाने पर हैं।

सत्ता दल को वे किसी गिनती में नहीं रखते हैं क्योंकि वह टूटन के कगार पर है और उनके तमाम मंत्री ,एमपी ,विधायक टूटकर बजरंगी सेना में शामिल होने को बेताब है।लेकिन बंगाल के जनमानस का केसरिया कायाक्लप करने के लिए इन वामपंथी सेकुलर संस्कृतिकर्मियों से निपटना जरुरी है जो बंगाल में वाम शासन के अंत के बावजूद पहले की तरह प्रतिबद्ध और सक्रिय बने हुए हैं।

जाहिर है कि गायपट्टी में ऐसे हिंदुत्वविरोधी तत्वों का कोई असर नहीं है और चाहे तो संतान दल प्रमुख उन्हें पुरस्कृत सम्मानित कर सकते हैं।

गनीमत है कि मैं हिंदी का लेखक हूं।कवि ,साहित्यकार वगैरह नहीं हूं।

बांग्ला का लेखक तो किसी भी मायने में नहीं हूं।और न बंगाल की जनता में हमारी पैठ हैं और हमारे सारे पाठक बंगाल से बाहर के हैं,जो हमारा लिखा कभी कभार पढ़ लेते हैं मजे के लिए या मेरा कहा सुन भी लेते हैं टाइम पास करने के लिए,लेकिन उन पर हमारा कोई असर होता नहीं है।

वे मर्जी हुई तो कभी कभार लाइक कर देते हैं लेकिन कुछ भी शेयर करते नहीं हैं।इसलिए फिलहाल सकुशल हूं।ऐसी ही कृपा बनाये रखें।

हालांकि हमें भी कविताएं लिखने का बचपन से शौक रहा है।

गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी से मिलने से पहले तक मैं सिर्फ बांग्ला में ही लिखा करता था।उन्होंने ही मुझे सिखाया की हर भाषा हमारी मातृभाषा है और उनके कहने पर ही मैं हिंदी में लिखता रहा हूं।

दो कहानी संग्रह और अमेरिका से सावधान के बाद जब किसी ने मुझे घास नहीं डाला तो मैं समझ गया कि साहित्यिक बिरादरी में मेरी कोई जगह नहीं है।हिंदी में मेरी सैकड़ों कविताएं छपी हैं।इनमें पचासेक कविताएं लंबी और बेहद लंबी हैं।तराई कथा तो चोटे पाइंट में  छपने के बाद भी बत्तीस पेज की हो गयी।सैकड़ों अप्रकाशित कविताएं और दर्जनों कहानियां मैंने किसी पत्रिका या प्रकाशक को नहीं भेजीं।कविता संग्रहों का हश्र दिखते हुए कविता संग्रह निकालने के बारे में भी नहीं सोचा।

हमने पहले ही लिखा है कि मणिपुर में केसरिया सुनामी पैदा करने के लिए नगा और मैतेई समुदायों के बीच नये सिरे से वैमनस्य और उग्रवादी तत्वों की मदद लेकर वहां हारने के बाद भी जिस तरह सत्ता पर भाजपा काबिज हो गयी, उस पर बाकी देश में और मीडिया में कोई चर्चा नहीं हो रही है।

इसी तरह मेघालय, त्रिपुरा, समूचा पूर्वोत्तर, बंगाल बिहार उड़ीसा जैसे राज्यों को आग के हवाले करने की मजहबी सियासत के खिलाफ लामबंदी के बारे में न सोचकर निंदा करके राजनीतिक तौर पर सही होने की कोशिश में लगे हैं लोग।

इस बीच पूर्व भारत की दो शक्तिशाली राष्ट्रीयताओं बंगाली और असमिया राष्ट्रीयताओं की फिर मुठभेड़ की हालत पैदा कर दी  गयी है,जो बंगाल,पंजाब,कश्मीर और असम के विभाजन के बाद दिल्ली की राजनीति की सुनियोजित परिकल्पना रही है। धार्मिक ध्रूवीकरण बेहद तेज हैं और मणिपुर में नगा मैतेई टकराव के बाद अब असम, मणिपुर और पूर्वोत्तर के नगा इलाकों को लेकर अलग महानगालैंड बनाने का आंदोलन उसी संगठन ने छेड़ दिया है, जो दशकों से पूर्वोत्तर में अलगाववादी आंदोलन चला रहा है और केंद्र सरकार उसे उग्रवादी संगठन मानती है।

गौरतलब है कि मणिपुर में नई सरकार को इसी संगठन का खुला समर्थन हैं।

इस संदर्भ में मेरे वीडियोः

ময় জানাইছু বহা 'গ বিহু লৈ অভিনন্দন!

Accent might be different but we are the same one blood people connected by the glorious theme of Bihu!

Bihu must be projected as the cultural heritage for unity.

https://www.facebook.com/palashbiswaskl/videos/1663482100346859/?l=143451601315938798


Most urgent in reference of the sovereignty of the Nation

हिंदू राष्ट्र के लिए नगालिम,महानगालैंड आंदोलन राष्ट्र के लिए भारी खतरा

बंगाल में रवींद्र माइकेल मधुसूदन दत्त,विद्यासागर और नवजागरण के खिलाफ घृणा अभियान के खिलाफ सन्नाटा,आनंदमठ और बंकिम चंद्र का महिमामंडन

https://www.facebook.com/palashbiswaskl/videos/1661998303828572/?l=2893064857459593506

হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!More Mayhem to follow if we fail to activate the Love apps !

Palash Biswas

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ত্রিশুল বিদ্ধ,রক্তাক্ত আ মরি মোর বাংলা ভাষা!

মধুকবি,রবীন্দ্রনাথকে নির্লজ্জ আক্রমণ ও একটি ভূল কবিতা নিয়ে ধর্মীয় মেরুকরণ!

তবে কি এই বাংলাতেও সাহিত্যকি ,সাংবাদিক,সংস্কৃতিকর্মিদেরবধ্যভূমি প্রস্তুত?

https://www.facebook.com/palashbiswaskl/videos/1659727487388987/?l=6991427350561751897

#Embroidered Quilt#, a focus on the poet Jasimuddin and his works to understand the Chemistry and Physics of Communal Politics which inflicts the Indian pshyche countrywide and specifically in Bengal where it originally roots in.

Palash Biswas

https://www.facebook.com/palashbiswaskl/videos/1659130364115366/?l=1691417911761343781

आजादी की लड़ाई और शहादतों की महान विरासत के हम कैसे वारिस है?

https://www.facebook.com/palashbiswaskl/videos/vb.100000552551326/1657604207601315/?type=3&theater

मैं नास्तिक क्यों हूं# Necessity of Atheism#!Genetics Bharat Teertha#Charvak # one blood India!

आज घर घर शहीदे आजम के पैदा होने की जरुरत है। भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरू के 86 वें शहादत दिवस पर आज 23 मार्च 2017 को उनके विचारों पर केंद्रित यह वीडियो देखें।

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