Tuesday, July 14, 2015

मोगांबो खुश हुआ,दावा खूब जोर कि बुलबुले जैसे हालात नहीं हैं आप अपनी खैर मनायें कि आपका कोई मिस्टर इंडिया है ही नहीं ज्यादा इतरइयो नहीं,भारत में किस्सा कोई यूनान से अलग नहीं है भइया,बहिना। लूटखसोट के दंधे में सबै बराबर हिस्सेदार,बांया हो या दाहिना। 1991 से जो सिलसिला जारी है आर्थिक सुधारों के जनसंहारी अश्वमेध का,फासिज्म के राजकाज का,उसे डरियो,वरना मरियो,भइया,बहिना। हर कातिल का रंग अलग अलग,खून फिर भी लाल है,कातिल जो बायां या दाहिना। कुल मिलाकर लब्वो लुआब यह है कि फिल्म अभी खत्म हुई नहीं है,महज दुनियाभर में शेयरबाजारों में बुलरन के लिए कामर्शियल ब्रेक है,मुनाफावसूली के लिए फिर संकट गगन घटा गहरानी है। महामंदी पर तेलकुंओं की आग का धुआं है कि रब ने खोल दिये सारे ज्वालामुखी के मुहाने और तिस पर बरसने लगा है मानसून लहसून का तड़का कच्चा तेल जो है दरअसल जलता हुआ और डालर निगलता हुआ। पलाश विश्वास

मोगांबो खुश हुआ,दावा खूब जोर कि बुलबुले जैसे हालात नहीं हैं

आप अपनी खैर मनायें कि आपका कोई मिस्टर इंडिया है ही नहीं

ज्यादा इतरइयो नहीं,भारत में किस्सा कोई यूनान से अलग नहीं है भइया,बहिना।

लूटखसोट के दंधे में सबै बराबर हिस्सेदार,बांया हो या दाहिना।

1991 से जो सिलसिला जारी है आर्थिक सुधारों के जनसंहारी अश्वमेध का,फासिज्म के राजकाज का,उसे डरियो,वरना मरियो,भइया,बहिना।

हर कातिल का रंग अलग अलग,खून फिर भी लाल है,कातिल जो बायां या दाहिना।

कुल मिलाकर लब्वो लुआब यह है कि फिल्म अभी खत्म हुई नहीं है,महज दुनियाभर में शेयरबाजारों में बुलरन के लिए कामर्शियल ब्रेक है,मुनाफावसूली के लिए फिर संकट गगन घटा गहरानी है।


महामंदी पर तेलकुंओं की आग का धुआं है कि रब ने खोल दिये सारे ज्वालामुखी के मुहाने और तिस पर बरसने लगा है मानसून लहसून का तड़का कच्चा तेल जो है दरअसल जलता हुआ और डालर निगलता हुआ।

पलाश विश्वास

ग्रीस में जो हो रहा है,हूबहू भारत में वहीं हो रहा है।फर्क सिर्फ इतना है,वे समझ रहे हैं और अबभी हम नासमझ हैं।


दावा खूब जोर कि बुलबुले जैसे हालात नहीं हैं।

बुलबुले लेकिन तितलियां हैं।

खूबसूरत।

उड़ते हुए बुलबुले लेकिन इंद्रधनुष है और मौसम हानीमून का है।


यात्राओं और मेलों से समां बंधा है।


रोजी रोटी की सोचें कौन मूरख,सबको हउ चाहिए और कंडोम का अकाल है बलि चारों तरफ बिन कंडोम एड्स महामारी की दस्तक है।


ग्रेटिक्स टालने का गजब इंतजाम हुआ है।


बलि ग्रीस में समझौता भारतीय बाजारों के लिए बेहतर संकेत है। साथ ही चीन के संकट का असर भी बाजार पर ज्यादा दिनों तक नहीं होगा।


बलि लंबी अवधि के लिए घरेलू बाजार के फंडामेंटल काफी मजबूत है। अच्छे मानसून से महंगाई नहीं बढ़ेगी। जिससे ब्याज दरें घटने की उम्मीद बढ़ गई है। साथ ही कॉर्पोरेट अर्निंग अब फिर से पटरी पर लौटने लगी है। ऐसे समय में छोटे निवेशकों को हर गिरावट पर अच्छे शेयर खरीददने चाहिए।


ग्रीस यानी कि यूनान की जमानत का बंदोबस्त उसे कर्ज में छूट या कर्ज से उबारने के लिए कतई नहीं हुई है।उसे और कर्ज दिया गया है कि वह इस कर्ज से अपना कर्ज चुकता कर सकें या नहीं कर्ज का ब्याज जरुर चुका दें,जैसे किसी सुखीलाला को असल वसूलने की गरज कभी नहीं होती,उसे सूद से मतलब है।



ब्रूसेल्स: यूरो ज़ोन के नेताओं ने सर्वसम्मती से ग्रीस के हक़ में फैसला लेते हुए तय किया है कि वे ग्रीस को बेल-आउट लोन ज़रूर देंगे। ये जानकारी यूरोपियन काउंसिल के अध्यक्ष डोनाल्ड टस्क ने सोमवार को दिया है।


टस्क ने एक ट्वीट में कहा, 'यूरो सम्मिट ने एकमत से ये निर्णय लिया है और वो ग्रीस में बदलाव और आर्थिक सुधार के लिए ESM Programme शुरू करने के लिए तैयार है।' यूरोपियन यूनियन की तरफ़ से ग्रीस को दिया जाने वाला ये तीसरा राहत पैकेज है।


16 घंटे की मीटिंग

यूरो ज़ोन के नेताओं ने कंगाल हो चुके ग्रीस के भविष्य और लोन की शर्तों पर पूरी रात बहस करने के बाद ये निर्णय लिया कि ग्रीस को तीसरी बार बेल-आउट लोन दिया जाए, ताकि वो यूरो-ज़ोन का हिस्सा बना रहे।


यूरोपियन यूनियन के अधिकारियों के अनुसार ग्रीस के कम्युनिस्ट प्रधानमंत्री एलेक्सिस सिप्रास ने अंतरराष्ट्रीय नेताओं द्वारा रखी गई लगभग सभी कठिन शर्तों को मान लिया है। लेकिन वे जर्मनी की उस मांग को लगातार मानने से इनकार करते रहे, जिसके तहत ग्रीस की सरकारी संपत्ति को ज़ब्त कर बेचने का प्रस्ताव रखा गया था, ताकि ग्रीस अपना कर्ज़ चुका सके।


सिप्रास ने आईएमएफ द्वारा प्रस्तावित 86 बिलियन यूरो बेलआउट को मानने से इनकार किया, जिसमें आईएमएफ़ का पूरा रोल होगा। इस प्रस्ताव को जर्मन चांसलर एंजेला मर्किल ने भी बर्लिन के संसद में समर्थन के लिए ज़रूरी बताया था।


वादों के विपरीत

तक़रीबन 16 घंटे तक चली इस मीटिंग में जर्मनी, फ्रांस, ग्रीस और यूरोपियन यूनियन के अध्यक्ष डोनाल्ड टस्क कई बार मिले, ताकि वे अंतिम निर्णय पर पहुंच सके। इस दौरान सिप्रास को कई बार उन शर्तों को भी मानना पड़ा, जो सरेंडर की शर्तों से मिलते-जुलते थे। इन शर्तों को मानना कहीं न कहीं उनके द्वारा ग्रीस के लोगों को दिए गए उनके वादों के विपरीत था।


ग्रीस को मदद दी जाए या नहीं, अगर इस पर कोई फैसला नहीं हो पाता तो ये देश आर्थिक संकट में डूब जाता और इसके बैंक पूरी तरह से ढह जाते। इतना कि उनके सामने अपनी अलग करेंसी छापने की नौबत आ जाती।


ऐसा होने पर ग्रीस यूरोपियन यूनियन से बाहर हो जाता।



यह तो झांकी है और असली किस्सा बाकी है।


एथेंस। ग्रीस सरकार ने सोमवार शाम बैंकों की बंदी की मियाद बढ़ा दी। सरकार ने घोषणा की कि बैंक अब 16 जुलाई तक बंद रहेंगे। ग्रीस के बैंकों में 29 जून से ताले लटके हुए हैं। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, वित्त मंत्रालय द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, बैंक इस हफ्ते मंगलवार और बुधवार को बंद रहेंगे। यूरोपीय केंद्रीय बैंक (ईसीबी) के संचालन परिषद ने टेलीकॉफ्रेंस के जरिए आपात नकदी सहयोग (ईएलए) के जरिए ग्रीस के बैंकों को नकदी देने का फैसला किया।

ग्रीस को उम्मीद है कि ब्रसेल्स में यूरोजोन सम्मेलन के दौरान कर्ज समझौता अटकने के बाद यूरोपीय साझेदार देश ग्रीस के बैंकों को नकदी सहयोग करेंगे। ईसीबी से नकदी सहयोग नहीं मिलने की वजह से ग्रीस के पास कोई और रास्ता नहीं था। इसलिए मजबूरन ग्रीस को बैंकों पर तालेबंदी की समय सीमा बढ़ानी पड़ी।

ग्रीस: 16 जुलाई तक बैकों में लटके रहेंगे ताले

ग्रीस सरकार ने सोमवार शाम बैंकों की बंदी की मियाद बढ़ा दी। सरकार ने घोषणा की कि बैंक अब 16 जुलाई तक बंद रहेंगे।



असल वसूल हो गया हो सूद मिलेगा नहीं और सोने का अंडा देने वाली मुर्गी मर जायेगी।इसलिए कर्जे को जिंदा रखो और सूद भरने  के लिए फिर कर्जा दो।


दो टुक शब्दों में महाजनी पूंजी से उत्पादकों की ऐसी तैसी करने,अनंत बेदखली और कत्लेआम का सिलसिला जारी रखते हुए दुनिया भर के शेयरबाजार अर्थव्यवस्थाओं में सांढ़ोंकी दौड़ बहाल रखने और फासिज्म का राजकाज ग्लोबल चलाने के लिए यूनान के संकट में कामर्शियल ब्रेक है ताकि बुलरन कुछ देर और चले मुनाफावसूली के लिए भालुओं का खेल शुरु करने से पहले तक इंटरवेल।


खेल खेल के नियम से भहुतै धांय धायं है और इसी वास्ते मोगांबा खुश हुआ।


भौते खुश हुआ है मोगांबो,अब आप आपनी खैर मनाइये कि छप्पन इंच की छाती तो हैं आपके पास,लेकिन कोई मिस्टर इंडिया है ही नहीं।


कुल मिलाकर लब्वो लुआब यह है कि फिल्म अभी खत्म हुई नहीं है,महज दुनियाभर में शेयरबाजारों में बुलरन के लिए कामर्शियल ब्रेक है,मुनाफावसूली के लिए फिर संकट गगन घटा गहरानी है।


महामंदी पर तेलकुंओं की आग का धुआं है कि रब ने खोल दिये सारे ज्वालामुखी के मुहाने और तिस पर बरसने लगा है मानसून लहसून का तड़का कच्चा तेल जो है दरअसल जलता हुआ और डालर निगलता हुआ।


तस्वीर के चमकीले हिस्से को पलटो तो सुखीलाला की अर्थव्यवस्था का आलम यूं है कि भुकमरी और कुपोषण का सिलसिला घनघोर है कि इस साल बेमौसम बारिश से गेहूं की फसल को भारी नुकसान पहुंचा था। सरकार ने किसानों को राहत के लिए सरकारी खरीद नियमों में ढील दी, लेकिन इसका असर ये हुआ कि एफसीआई के गोदामों में करीब 80 फीसदी खराब गेहूं का स्टॉक जमा हो गया है।


यहीं नहीं एफसीआई का इस साल 3 करोड़ टन गेहूं खरीद का लक्ष्य था, जिसमें टार्गेट भी हासिल नहीं हो सका है। गेहूं की सरकारी खरीद करीब पौने तीन करोड़ टन के स्तर पर पहुंचकर रुक गई है। ऐसे में आटा मिलों के सामने क्वालिटी को बनाए रखने में दिक्कत झेलनी पड़ रही है। वहीं दक्षिण भारत की आटा मिलें गेहूं के इंपोर्ट पर ज्यादा जोर दे रही हैं।



दूसरी ओर वैश्विक इशारों का मजा यह है कि मजा यह है जो यूनान संकट का अगला अंक है।परदा भी उठने लगा है कि कच्चे तेल में भारी गिरावट आई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड का दाम 2 फीसदी तक लुढ़क गया है। वहीं घरेलू बाजार में करीब 3 फीसदी नीचे कारोबार हो रहा है। दरअसल ईरान के परमाणु प्रोग्राम पर दुनिया के 6 बड़ देशों के साथ डील हो गई है। इन देशों में ब्रिटेन, चीन, रूस, फ्रांस, जर्मनी और अमेरिका का नाम शामिल है। ऐसे में आगे ग्लोबल मार्केट में कच्चे तेल की सप्लाई बढ़ने का अनुमान है।


आपको बता दें ईरान के परमाणु प्रोग्राम की वजह से दुनिया के इन बड़े देशों में इसके साथ कारोबार पर पाबंदी लगा दी थी। लेकिन डील के बाद अब पाबंदी हटने पर आगे ग्लोबल मार्केट में क्रूड की सप्लाई बढ़ सकती है। इसी वजह से कच्चे तेल की कीमतें लगातार गिरती जा रही हैं।


ईरान के साथ परमाणु डील पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने बड़ा बयान जारी करते हुए कहा है कि ये समझौता विश्वास पर नहीं बल्कि तथ्यों के आधार पर हुआ है और अगर भविष्य में ईरान समझौते की शर्तों को तोड़ता है तो उस पर कड़े प्रतिबंध लगाए जाएंगे। उन्होंने कहा कि इस डील से अमेरिका को कोई खतरा नहीं है। ये समझौता अमेरिका के उम्मीदों के मुताबिक ही हुआ है। उन्होंने ये भी कहा कि जरूरत पड़ने पर आईएईए कभी भी दखल दे सकता है।


आज कच्चे तेल में भारी गिरावट आई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड का दाम 2 फीसदी तक लुढ़क गया है। वहीं घरेलू बाजार में इसके दाम करीब 3 फीसदी फिसल गए हैं। एमसीएक्स पर कच्चा तेल 3 फीसदी गिरकर 3250 रुपये के नीचे नजर आ रहा है। वहीं नैचुरल गैस 0.44 फीसदी बढ़त के साथ 185 रुपये के आसपास कारोबार कर रहा है। दरअसल ईरान के परमाणु प्रोग्राम पर दुनिया के 6 बड़े देशों के साथ डील हो गई है। इन देशों में ब्रिटेन, चीन, रूस, फ्रांस, जर्मनी और अमेरिका का नाम शामिल है। ऐसे में आगे ग्लोबल मार्केट में कच्चे तेल की सप्लाई बढ़ने का अनुमान है।


घरेलू बाजार में सोना 0.35 फीसदी की कमजोरी के साथ 25930 रुपये के आसपास नजर आ रहा है। जबकि चांदी 1 फीसदी से ज्यादा टूटकर 35110 रुपये के आसपास कारोबार कर रही है। बेस मेटल्स में कॉपर 1 फीसदी से ज्यादा टूटकर 355 रुपये के करीब नजर आ रहा है। जबकि जिंक करीब 1 फीसदी घटकर 130 रुपये के नीचे नजर आ रहा है।



यूनान अभी गले गले तक कर्ज में डूबा है।यूरोपीयआर्थिक समुदाय से निकल जाता तो आर्थिक सुधारों के चक्रव्यूह से निकल जाता और लोककल्याण की कुछ जुगत हो जाती तो यूनान में भूखे बच्चों का कुछ भला हो जाता,थोडा़ सा पेंसन बढ़ जाता और मरीजों का इसलाज हो जाता।बैंकिंग चल निकलती औऱ अखबार भी तमाम छप रहे होते।ऐसा कुछ भी नहीं हुआ बाकी बेलआउट हो गया संकट और गहराने के लिए।


जनता के भले के लिए,इंसानियत की रिहाी के लिए कुछ भी नहीं हुआ और सूदखोर महाजनी सभ्यता की जीत हो गयी बल्ले बल्ले और मोगांबो खुश हो गया।


ज्यादा इतरइयो नहीं,भारत में किस्सा कोई यूनान से अलग नहीं है भइया,बहिना।

लूटखसोट के दंधे में सबै बराबर हिस्सेदार,बांया हो या दाहिना।


1991 से जो सिलसिला जारी है आर्थिक सुधारों के जनसंहारी अश्वमेध का,फासिज्म के राजकाज का,उसे डरियो,वरना मरियो,भइया,बहिना।


हर कातिल का रंग अलग अलग,खून फिर भी लाल है,कातिल जो बाायां या दाहिना।


आज के सबसे लोकप्रिय बांग्ला दैनिक में अर्थशास्त्री अभिरुप सरकार का संपादकीय आलेख है कि पीएफ का पैसा बाजार में क्यों डाला जा रहा है?क्यों कर्मचारियों की जिंदगी भर की खून पसीने की कमाई बाजार के जोखिम में डाला जा रहा है?


ये वही अर्थशास्त्री है,जिनने भारतीय रेल के तुरंत निजीकरण की जबर्दस्त वकालत की है और याद रखें,मार्क्सवादी विचारधारा के विपरीत पूंजीवादी विकास के हाईवे पर सिंगुर नंदीग्राम दौर के बंगाल के वामशासन के सबसे बड़े अर्थशास्त्री भी वे ही हैं।


जाहिर है कि लफ्फाज सिर्फ साहित्य और पत्रकारिता में नहीं होते,बगुला भगत संप्रदाय भी कम लफ्पाज नहीं होते।मसलन रिजर्व बैंक गवर्नर की उलटबांसियों का ख्याल करें या फिर बंगाल और चीन की भुखमरी के लिए ब्रिटिश साम्राज्यवादियों को क्लीन चिट देने वाले डा.अमर्त्यसेन का अखंड मानवता वाद समझ लें।


बाजार में जोखिम हैं तो किसकी खातिर ये बगुला समुदाय के भक्त वृंद  हरिकीर्तन करते हुए कपास ओटने लगे हैं,समझ लीजिये।


जनता के बीच बगुलों की भी साख बनाने की उतनी ही गरज है जितनी कि टाइटैनिक बाबा की। बाकी वही दिनदहाड़े लूट और भारी भीड़ के बीच जेबकतरी और राहजनी का किस्सा है,भारतीय अर्थव्यवस्था में आम जनता बा बचा खुचा जो हिस्सा है।


इसके विपरीत भारतीय बाजार मजबूत है और इनमें कोई बुलबुले जैसे हालात नहीं हैं, ये मानना है सेबी चेयरमैन यू के सिन्हा का।सीएनबीसी-आवाज के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में यू के सिन्हा ने ये भी कहा कि सेबी के कामकाज में सरकार का कोई दखल नहीं है। उन्होंने ये भी कहा कि सेबी ने सिर्फ उन कॉरपोरेट पर कार्रवाई की है जिन्होंने नियमों का पालन नहीं किया है। यू के सिन्हा ने ये भी कहा कि सेबी कॉरपोरेट के पक्ष में काम नहीं करता।

कुल मिलाकर मुक्तबाजारी महाजनी सभ्यता का सार यही है।


क्रेडिट कार्ड से कर्ज लेते जाओ,लेते जाओ,असल लौटाने की सोचो नहीं,कर्ज का सूद भरते जाओ। आजादी के बाद भारतीयअर्थव्यवस्था का किस्सा भी वही है।वहा,कर्ज का सूद भरते जाओ।


हर बजट का बड़ा हिस्सा पहले से लिए विदेशी कर्ज के भुगतान में निबट जाता है।


लाखों करोड़ हर साल।

बाकी लाखों करोड़ युद्ध और गृहयुद्ध और अंधाधुंध सैन्यीकरण की मुनाफावसूली के लिए खरच तो जनप्रतितिनिधियों के ऐशो आराम और उनकी बिलियन मिलियन डालर की तरक्की के खातिर जो सरकारी खर्च और कर्मचारियों के वेतन में जो खर्च उसे निकालकर सारा का सारा कर्ज कारपोेरेट का टैक्स छूट।


जनता के हिस्से में बाबाजी का ठुल्लु।  


इस धंधे को भारत के किसान हजारों सेला से खब जानते हैं।खेती के लिए साहूकार से पहले कर्ज लो गिरवी रखकर अपना सबकुछ,फिक कर्ज भरते चले जाओ।

कर्ज का ब्याज चक्रवृद्धि दर से बढ़ती जाये।

महाजनी सभ्यता का मजा यह है कि सारी शर्ते साहूकार की होती है और कर्ज लेने वाले का कोई हक हकूक नहीं होता।


बैंकिंग के दायरे से छोटा मोटा कर्ज लेकर भारत भर में अब भी किसान तजिंदगी उतार नहीं पाते और थोक पैमाने पर खुदकशी करते हैं।


सुखीलाला का यह किस्सा कोई अर्थशास्त्र लेकिन नहीं है,भारतीय अर्थव्यवस्था का जलता हुआ सच है और जो मुक्त बाजार में तमाम सेवाओं को खरीदने के इंतजाम के साथ इतना भयंकर चेहरा बन गया है मुक्त बाजार का,कि उसे आस्था और धर्म की आड़ में छुपाया जाता है।


कितनी बदबू होगी वहां,जहां सुगंध के लिए खुशबू की नदियां बहायी जाती है।


विश्वव्यवस्था के कायदे कानून महाजनी सभ्यता के सामंती बंदोबस्त से भी भयानक है क्योंकि आपका बजट कैसा हो,यह आप तय नहीं करते,विश्वव्यवस्था करती है।


विश्वव्यवस्था के कायदे कानून महाजनी सभ्यता के सामंती बंदोबस्त से भी भयानक है क्योंकि आपकी सरकार किसकी हो,आपके प्रधानमंत्री कौन हो और आपके वित्त मंत्री कौन हो,किस पार्टी को आप वोट देकर जितायें और किस पार्टी को आप हरा दें,यह आप तय नहीं करते,विश्वव्यवस्था करती है।


विश्वव्यवस्था के कायदे कानून महाजनी सभ्यता के सामंती बंदोबस्त से भी भयानक है क्योंकि आपका वित्तीय प्रबंधन ,मौद्रिक प्रबंधन कैसा हो,यह आप तय नहीं करते,विश्वव्यवस्था करती है।


विश्वव्यवस्था के कायदे कानून महाजनी सभ्यता के सामंती बंदोबस्त से भी भयानक है क्योंकि आप कितना टैक्स लगायें और किस पर टैक्स लगाये और किसे टैक्स देना न पड़ें कतई, यह आपकी चुनी हुई सरकार  तय नहीं करते,विश्वव्यवस्था करती है।


विश्वव्यवस्था के कायदे कानून महाजनी सभ्यता के सामंती बंदोबस्त से भी भयानक है क्योंकि आपका संविधान किस हद तक प्रासंगिक है और किस तरह उसे बदलना चाहिए, कौन से कानून होने चाहिए और कौन से कानून नहीं होने चाहिए,कौन से कानून सिरे से बदल देने चाहिए,यह आपकी संसद या विधानसभाएं हरगिज तय नहीं करती,विश्वव्यवस्था करती है।


विश्वव्यवस्था के कायदे कानून महाजनी सभ्यता के सामंती बंदोबस्त से भी भयानक है क्योंकि आपकी विदेश नीति क्या हो और राजनय क्या हो,किससे कैसे आपके संबंध हों और दूसरों के साथ आपका कारोबार कितना खुल्ला हो, कैसा हो कारोबार,यह आपकी सरकार या संसद तय नहीं करती,विश्वव्यवस्था करती है।


विश्वव्यवस्था के कायदे कानून महाजनी सभ्यता के सामंती बंदोबस्त से भी भयानक है क्योंकि आपका बजट पैसा कहां जायें,आप पीएफ पेंशन भविष्यनिधि,बीमा जमापूंजी का क्या हश्र हो,क्या बाजार में झोंका जायें,यह आप तय नहीं करते,,आपकी सरकार या संसद भी नहीं तय नहीं करती,विश्वव्यवस्था करती है।


आपको सब्सिडी मिलें या नही, आपका विकास कितना हो और विकास के साथ साथ आपके संसाधनों का क्या हो,यह भी आपकी सरकार और संसद तय नहीं करती है,विश्वव्यवस्था करती है।


विदेशी पूंजी कितना अबाध हो,विनिवेश कितना और किस हद तक हो, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कहां कहा हो ,यह भी सरकार और संसद तय नहीं करती,विश्वव्यवस्था करती है।


नागरिकों के हक क्या हैं,मानवाधिकार कितने हों और कानून का राज कितना,दमन कितना हो ,उत्पीड़न कितना हो और कत्लेआम कितना,देश का सैन्यीकरण कितना हो,आप किससे लड़ें,किससे न लड़ें और राजद्रोह के आरोप में आपकी सरकार किसे जेल में डालें या फांसी दे,या मुठभेड़ में मार गिराये और अभिव्यक्ति की कितनी स्वतंत्रतता हो,यह सबकुछ माफ कीजिये,देश की सरकार और संसद तय नहीं करती।विश्वव्यवश्ता तय करती है।


ग्रीस में जो हो रहा है,हूबहू भारत में वहीं हो रहा है।फर्क सिर्फ इतना है,वे समझ रहे हैं और अबभी हम नासमझ हैं।


इसी बीच शून्य मंहगाई के अच्छे दिनों का नजारा यह।खुशी मनाइये कि अब ऑनलाइन इनकम टैक्स रिटर्न भरना और आसान हो गया है। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने वन टाइम पासवर्ड यानी ओटीपी आधारित ई-फाईलिंग वेरिफिकेशन सिस्टम लॉन्च कर दिया है। इसके बाद अब ई-रिटर्न भरने के बाद रिटर्न एकनॉलेजमेंट या आईटीआर-4 को बंगलुरु भेजने की जरूरत नहीं पड़ेगी।


यू के सिन्हा ने कहा कि 2014-15 में भारतीय बाजार ने 26-27 फीसदी का रिटर्न दिया है। इस साल पिछले 3 महीने में बाजार ने 10 फीसदी रिटर्न दिया है। 7 फीसदी जीडीपी ग्रोथ में ही ऐसा रिटर्न संभव है। भारतीय बाजार का प्राइस अर्निंग रेश्यो एमएससीआई इंडेक्स के समान है। सेबी आईपीओ लाने में कंपनियों की मदद कर रहा है जिसके लिए नियम आसान किए गए हैं। अब इलेक्ट्रॉमिक आईपीओ से लिस्टिंग का वक्त 12 दिन से घटकर 6 दिन हो जाएगा।


इसी के साथ दिग्गज ब्रोकरेज हाउसेज ने एक रिपोर्ट में ब्याज दरों में कटौती होने की संभावना जताई है। आइए विस्तार से जानते हैं कि अपनी रिपोर्ट में क्या कह रहे हैं दिग्गज ब्रोकरेज हाउसेज।


बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच के मुताबिक मॉनसून सामान्य रहने पर अगले महीने दरों में 0.25 फीसदी की कमी संभव है। मई के आईआईपी आंकड़ों में गिरावट से दरें घटने की उम्मीद बढ़ गई है। वहीं सीएलएसए का कहना है कि 4 अगस्त को पॉलिसी में दरें घटने की उम्मीद नहीं है। लेकिन साल के अंत तक दरों में कटौती हो सकती है।


डीबीएस के मुताबिक आरबीआई अगस्त में दरों में बदलाव नहीं करेगा। लेकिन आरबीआई की ओर से दरों में अगली कटौती अमेरिका में दरें बढ़ने और विदेशी संकेतों पर निर्भर होगी। आईडीएफसी का मानना है कि आरबीआई की ओर से दरों में 0.5 फीसदी की कमी और मुमकिन है। लेकिन दरों में अगली कटौती 2016 के शुरुआत में हो सकती है।


ऐसे में साफ जाहिर है कि आरबीआई की तरफ से अगले महीने की पॉलिसी में दरों में कटौती की उम्मीद काफी कम है। इस बारे में बार्कलेज कैपिटल के राहुल बाजोरिया का कहना है कि सस्ती ब्याज दरों के लिए अभी और इंतजार करना पड़ेगा। अगस्त की क्रेडिट पॉलिसी में दरों में कटौती की उम्मीद कम है। मॉनसून अच्छा रहा तो मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में 1 या 2 बार दरों में कटौती संभव है।


राहुल बाजोरिया के मुताबिक कच्चे तेल के दाम में गिरावट बरकरार रहती है तो महंगाई कम होने की उम्मीद है। लिहाजा महंगाई कम होने पर सितंबर या अक्टूबर में आरबीआई की ओर से दरों में कटौती किए जाने की उम्मीद है।



ई-रिटर्न फाइल करने के लिए वन टाइम पासवर्ड इंटरनेट बैंकिंग, एटीएम या आधार नंबर के जरिए हासिल होगा। लेकिन वन टाइम पासवर्ड हासिल करने के लिए टैक्सपेयर की सालाना आय 5 लाख रुपये या इससे कम होनी चाहिए। साथ टैक्सपेयर का रिफंड क्लेम नहीं होना चाहिए।


रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर और ईमेल आईडी पर ही वन टाइम पासवर्ड मिलेगा। वन टाइम पासवर्ड की वैधता अधिकतम 72 घंटे की होगी। हालांकि गलत सूचना की आशंका होने पर वन टाइम पासवर्ड नहीं मिलेगा। इसके अलावा सभी जानकारी से संतुष्ट होने पर ही इनकम टैक्स डिपार्टमेंट वन टाइम पासवर्ड देगा।



थोक महंगाई जून में भी शून्‍य से नीचे दर्ज की गई। जून 2015 में थोक महंगाई दर -2.40 फीसदी पर दर्ज की गई, जो मई में -2.36 फीसदी पर रही थी। लगातार आठवें माह थोक महंगाई दर का आंकड़ा निगेटिव जोन में बना रहा। बीते माह खाने-पीने के चीजों की थोक कीमतों में अच्‍छी खासी गिरावट आई है। खासकर आलू और प्‍याज की थोक महंगाई घटी है। मैन्‍युफैक्‍रिंग प्रोडक्‍ट्स की महंगाई भी मामूली रूप से कम हुई है लेकिन गैर खाद्य वस्‍तुओं की थोक कीमतों में उछाल आया है। वहीं, दालों और खाद्य तेलों के थोक भाव में आया जोरदार उछाल आने वाले दिनों में सरकार और आम आदमी की मुश्किलें बढ़ा सकता है। इसके अलावा, जून में फ्यूल और पावर सेक्‍टर की थोक महंगाई में मामूली तेजी आई है। हालांकि, यह अभी निगेटिव शून्‍य से नीचे ही है।

वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार थोक महंगाई दर जून में लगातार आठवें महीने शून्‍य से नीचे बनी हुई है। सरकारी आंकड़ों में महंगाई के आंकड़े में भले ही गिरावट आई है लेकिन आम आदमी की जेब पर इसका कोई खास असर नहीं हुआ है। वहीं, दालों और खाद्य तेलों की लगातार बढ़ती कीमतें चिंता का विषय बनी हुई हैं। जून 2015 में मैन्‍युफैक्‍चरिंग क्षेत्र की महंगाई दर -0.77 फीसदी रही। जून में खाने खाने-पीने के चीजों की महंगाई दर घटकर 2.88 फीसदी रह गई। गैर खाद्य पदार्थों की महंगाई बढ़ी है। जून में गैर खाद्य पदार्थों की महंगाई दर 1.06 फीसदी दर्ज की गई जो मई में -2.24 फीसदी और अप्रैल में -6.18 फीसदी थी।

खाद्य महंगाई दर में गिरावट

सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबि‍क, खाद्य पदार्थों की महंगाई दर में गिरावट बनी हुई है। जून में खाद्य पदार्थों की थोक महंगाई दर 2.88 फीसदी रही। मई में यह 3.8 फीसदी थी। जून में गेहूं की थोक कीमतों में गिरावट जबकि दालों की कीमतों में जोरदार तेजी आई है। जून में गेहूं की महंगाई दर 1.64 फीसदी रही जो मई में 2.79 फीसदी थी। वहीं, दालों की थोक महंगाई जून में 33.67 फीसदी हो गई, जो मई में 22.84 फीसदी था। जून में चावल की कीमतों में मामूली बदलाव आया है वहीं सब्जियां, फल, आलू, प्‍याज, अंड़े और दूध की कीमतों में कमी आई है। वहीं, खाद्य तेलों की थोक महंगाई दर जून में 2.83 फीसदी रही, जो मई में 0.27 फीसदी थी।

फ्यूल एडं पावर ग्रुप की महंगाई बढ़ी

फ्यूल एवं पावर ग्रुप की महंगाई दर में मामूली तेजी बढ़ोत्‍तरी हुई है। जून में फ्यूल एवं पावर ग्रुप की थोक महंगाई दर -10.03 फीसदी रही जो मई में -10.51 फीसदी थी। अप्रैल में फ्यूल एवं पावर ग्रुप की थोक महंगाई दर -13.03 फीसदी थी। पेट्रोल और एलपीजी की कीमतों में मामूली बढ़ोत्‍तरी हुई है। हालांकि यह अभी शून्‍य से नीचे है।

मैन्‍युफैक्‍चरिंग प्रोडक्‍ट की महंगाई घटी

मैन्‍युफैक्‍चरिंग स्‍तर पर सरकार को राहत मि‍ली है। जून में मैन्‍युफैक्‍चरिंग प्रोडक्‍ट्स की महंगाई दर में मामूली कमी आई है। जून में मैन्‍युफैक्‍चरिंग प्रोडक्‍ट्स की थोक महंगाई दर -0.77 फीसदी रही, जो मई में -0.64 फीसदी थी। अप्रैल में मैन्‍युफैक्‍चरिंग प्रोडक्‍ट्स की थोक महंगाई -0.52 फीसदी थी।

महंगाई के आंकड़ों पर एक नजर

कमोडि‍टी

जून 2015 (फीसदी में)

मई 2015 (फीसदी में)

चावल

-1.74

-1.77

गेहूं

1.64

2.79

दालें

33.67

22.84

सब्‍जि‍‍यां

-7.07

-5.54

फल

7.47

8.65

पेट्रोल

-9.70

-11.29

बाजार सेंटीमेंट सुधरेगा, ब्‍याज दरों में कटौती की उम्‍मीद: इंडस्‍ट्री

इंडस्‍ट्री का कहना है कि थोक महंगाई पिछले आठ माह से शून्‍य से नीचे हैं। यह बाजार के सेंटीमेंट के लिए सकारात्‍मक है। इंडस्‍ट्री का मानना है, कि महंगाई के रुख को देखते हुए उम्‍मीद है रिजर्व बैंक अगली मौद्रिक समीक्षा में ब्‍याज दरों में फिर कटौती कर सकता है।


उद्योग संगठन सीईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी का कहना है कि खाने-पीने की चीजों की महंगाई में कमी आई है। हालांकि, फ्यूल और पावर की महंगाई में मामूली तेजी रही। कोर सेक्‍टर की महंगाई में भी गिरावट बनी हुई है। मैन्‍युफैक्‍चरिंग की कीमतों में गिरावट से स्‍पष्‍ट है कि डिमांड में अभी तेजी आएगी। बनर्जी ने उम्‍मीद जताई कि तेल कीमतों में नरमी और खाद्य महंगाई में गिरावट से मूल्‍यवृद्धि का दबाव कम होगा। उम्‍मीद से बेहतर मानूसन से खाद्य महंगाई में कमी आएगी। बनर्जी ने कहा कि महंगाई के आंकड़े को देखते हुए रिजर्व बैंक को ब्‍याज दरों में कटौती का रुख अगली मौद्रिक समीक्षा में भी बनाए रखना चाहिए।


मसलन स्मार्टसिटी और विकास का बहुत हल्ला  है जो बकरे को हलाल करना का अब तक की खासा सुगंधित कंडोम है।


सागर का यह किस्सा ताजा नजीर है बाकी बेनजीर और भी हैं।


सागर। सागर भी स्मार्ट सिटी के एग्जाम में बैठने जा रहा है। आत्मावलोकन में निगम ने खुद को फर्स्ट डिवीजन के अंक दिए हैं। दूसरी तरफ शहर के लोगों के जहन में इस प्रोजेक्ट को लेकर बहुत सारे सवाल अभी भी कौंध रहे हैं। लोगों का यह जानना-समझना लाजमी भी है कि आखिर स्मार्ट सिटी से कितना और कैसा बदलाव आएगा। लोगों की जिज्ञासा दूर करने के लिए हमने इस पूरे कॉन्सेप्ट पर कुछ एक्सपर्ट से बात की।

निचोड़ यह निकलकर आया है कि स्मार्ट सिटी के रूप में पानी, बिजली, सफाई और अन्य मूलभूत सुविधाओं में सुधार होगा, लेकिन इन सुविधाओं के बदले निर्धारित टैक्स भी जिम्मेदारी से जमा करना होंगे।


जांच करने आएगी टीम : मंगलवार को भोपाल में मूल्यांकन समिति की बैठक होने जा रही है। अभी निकायों से आए आवेदनों की स्क्रूटनी होगी। कॉम्पटीशन का यह पहला चरण है। स्मार्ट सिटी के हमारे दावों को लेकर भोपाल से एक टीम जायजा लेने सागर आएगी।


ऐसे होगा काम : यदि शहर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में शामिल हुआ तो निगम को स्पेशल कंपनी बनानी होगी, जो कि शहर विकास का नए सिरे से खाका तैयार कर जरूरतों के हिसाब से काम कराएगी।


स्मार्ट सिटी की गाइड लाइन पीपीपी पर आधारित है। इसमें जनता की सहभागिता जरूरी है। गवर्मेंट चाहती है कि बुनियादी सुविधाओं के बदले जनता से टैक्स के रूप में यूजर चार्ज एक लिमिट में लिया जाए। डोर टू डोर कचरा कलेक्शन का भी चार्ज लगेगा। यह चार्ज निकाय तय करेगी। लोग सेवाअों से संतुष्ट होंगे तो उन्हें उसका चार्ज देने में कोई गुरेज नहीं रहेगा। -केके श्रीवास्तव, रिटायर चीफ इंजीनियर, अर्बन डेवलपमेंट।


मकरोनिया को अलग नगर पालिका बनाकर शहर के विस्तार का रास्ता पहले ही बंद कर दिया है। शहर यदि स्मार्ट सिटी प्राेजेक्ट में शामिल हुआ तो उसके नॉर्म्स के मुताबिक नए मास्टर प्लान पर काम करना होगा। भौगोलिक स्थिति के आधार पर वाॅटर सप्लाई और अन्य सेवाओं की पूर्ति चुनौतीपूर्ण होगी। हम पुरानी योजनाओं का हश्र देख चुके हैं। जनता पर टैक्सों का भार बढ़ना निश्चित है। - अजय परमार, नेता प्रतिपक्ष।


स्मार्ट सिटी की गाइड लाइन के मुताबिक पानी का वेस्टेज एनआरडी (नॉन रेवेन्यु डिस्चार्ज) 20 प्रतिशत से कम होना चाहिए। एनआरडी को 15 प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य है। 35-40 प्रतिशत वेस्टज पानी, स्मार्ट सिटी में 15 तक होना चाहिए। हम टैक्स नहीं बढ़ा रहे हैं, लेकिन उनका निर्धारण जरूरी है। शहर के विस्तार के लिए दक्षिणी भाग तिली के अलावा बीना व भोपाल रोड तरफ काफी संभावनाएं हैं। - इंजीनियर अभय दरे, महापौर।


स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत पीपीपी मोड से जो भी सुविधाएं मिलेंगी वे यूज एंड पे वाली हो सकती हैं। इनमें कम्युनिटी हाॅल, पार्क, सिटी परिवहन सेवा आदि शामिल हैं। क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने के लिए पहले पिछड़े शहरों को स्मार्ट सिटी में शामिल किया जाना जरूरी है। टैक्स के मामले शहर को एक ही नजरिए से देखना ठीक नहीं। उन लोगों की भी काफी तादाद है जो सभी तरह के टैक्स देने में खुद आगे आते हैं। - इंजीनियर राजेंद्र सिलाकारी, अर्बन प्लानर


5 साल में 500 करोड़ का बजट


निगमायुक्त रणवीर कुमार ने बताया कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत केंद्र से 5 साल में 500 करोड़ का बजट मिलेगा। इसके अलावा पीपीपी, विदेशी एजेंसियों व अन्य मदों से राशि जुटाकर विकास की योजना है। 1 लाख से अधिक आबादी वाले निकायों को केंद्र की कई योजनाओं का लाभ मिलेगा।


स्मार्ट सिटी के नुकसान


राजनैतिक दवाब या फिर निगम के अधिकारियों की मिली भगत के कारण प्रॉपटी, जलकर व अन्य टैक्सों से बचे लोगों को टैक्स देना ही पड़ेगा। इससे बच नहीं पाएंगे। केंद्र ने राज्य सरकारों के माध्यम से 90 फीसदी से ज्यादा टैक्स कलेक्शन की जिम्मेदारी निकायों को दी है। कुछ टैक्स की दरों में भी बढ़ोतरी की जा सकती है। पानी, संपत्ति व समेकित कर सालों से नहीं बढ़े।


सवाल यह कि जनता को क्या मिलेगा

पक्ष व प्रतिपक्ष स्मार्ट सिटी के फायदे


24 घंटे पानी, बिजली की उपलब्धता रहेगी।

90 फीसदी से ज्यादा टैक्स कलेक्शन होने से निगम की वित्तीय हालत में सुधार आएगा।


लीकेज व अन्य तरह से पानी की बर्बादी को 20 प्रतिशत से कम करना होगा। नलों में मीटर लगाने के पीछे भी यही उद्देश्य बताया जा रहा है।

शिकायतों का एक समय सीमा में निराकरण हो सकेगा।

निगम से संबंधित ज्यादातर काम आॅनलाइन हो सकेंगे।

बड़ी योजनाओं के लिए बाहरी एजेंसियों से मदद मिलेगी।

रिफॉर्म ही कर दें तो स्मार्ट बन जाएगा हमारा शहर

भोपाल। स्मार्ट सिटी के लिए रेस शुरू हो चुकी है। मप्र से स्मार्ट सिटी के लिए प्रतियोगिता के जरिए चयनित होने वाले सात शहरों में भोपाल को स्थान मिलना लगभग तय है। नतीजे भी अगस्त में आ जाएंगे। इस बार मौका नहीं भी मिला तो अगले साल भोपाल का स्थान अपने आप ही तय हो जाएगा। तब तक शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर की स्मार्ट सिटी से भी बड़ी दो और मिशन अमृत और सबको आवास के लिए भोपाल को प्रोजेक्ट मिलेंगे। इनके लिए भी केंद्र सरकार ने जो शर्तें लगाई, वे भी शहर को स्मार्ट बनाने का काम करेंगी।

केंद्र सरकार ने 48 हजार करोड़ रुपए की स्मार्ट सिटी से बड़ी योजनाएं अटल मिशन फॉर रिजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉरमेशन (अमृत) और सबको आवास मिशन लाॅन्च किए। इन दोनों का बजट स्मार्ट सिटी से सात गुना यानी 3 लाख 50 हजार करोड़ रुपए है। इनके लिए केंद्र सरकार ने हर साल 15 प्रतिशत हरियाली बढ़ाना, पार्क व खेल मैदान विकसित करना व ऊर्जा बचत करने वाले कई कदम उठाने की शर्त लगाई है। निगम कमिश्नर तेजस्वी एस नायक ने बताया कि इन शर्तों को पूरा करने से शहरवासियों और निगम दोनों का ही फायदा है। इसलिए अब निगम इन पर काम शुरू करने जा रहा है। सभी 58 शर्तों को पूरा कर निगम शहर के कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के लिए केंद्र से इन स्कीमों में मदद मांगेगा।



मीडिया के मुताबिक साल के इन दिनों में लोग पिछले फाइनैंशल इयर की कमाई इनकम टैक्स रिटर्न भरने के लिए टैक्स पेपर्स और प्रूफ जुटाने में भिड़े होते हैं।


अब उनकी शामत समझ लीजिये जिनका टैक्स सोर्स से कटता है।कितना टैक्स टीडीएस में कटा है और कैलकुलेटर के मुताबिक बकाया कितना निकलताहै,देखते रहिए।


जो टैक्स छुपा रहे हैं,खूब छुपा रहे हैं,आपकी महीनेभर की पगार चंद घंटों में जो कमाये हैं,उनका हिसाब किताब बराबर लेकिऩ आपका हिसाब तो कोई और करै हैं,जो टीडीएस काटे हैं।


इनकम टैक्स डिपार्ट्मेंट्स्स्स ने कई सेल्फहेल्प ऑनलाइन कैलकुलेटर्स तैयार किए हैं जिनके जरिए टैक्सपेयर्स अपनी टैक्स लायबिलिटी का असेसमेंट और उनके लिए प्लानिंग कर सकते हैं। ये कैलकुलेटर्स इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की वेबसाइट http://www.incometaxindia.gov.in/Pages/e-services.aspx पर टैक्स टूल्स टैब में मिलेंगे।


टैक्स कैलकुलेटर


अगर टैक्सपेयर को पता है कि उसकी टैक्सेबल इनकम कितनी है, तो वह इससे जान सकता है कि उस पर किसी असेसमेंट इयर में कितने इनकम टैक्स की देनदारी बन रही है। इस कैलकुलेटर का यूज सिंगल इनकम वाले टैक्सपेयर्स कर सकते हैं। टैक्सपेयर्स को अपने असेसमेंट इयर, टैक्सपेयर स्टेटस, रेजिडेंट स्टेटस, सीनियर सिटिजनशिप और नेट टैक्सेबल इनकम के बारे में पता होना चाहिए।

इनकम और टैक्स कैलकुलेटर


यह टूल टैक्सपेयर को अपनी टैक्सेबल इनकम और टैक्स लायबिलिटी कैलकुलेट करने में हेल्प करता है। इसको टैक्सपेयर यूज कर सकते हैं, जिनके पास इनकम के एक से ज्यादा सोर्स हैं। टैक्सपेयर को अलग-अलग मद में अपनी इनकम और टैक्स छूट के मदों में एंट्री करनी होती है। डिटेल भरने के बाद कैलकुलेट बटन पर क्लिक करने से स्क्रीन पर टैक्स, सरचार्ज और सेस आ जाता है।


अडवांस टैक्स कैलकुलेटर


यह टूल टैक्सपेयर को यह अनुमान लगाने में हेल्प करता है कि उनको अलग-अलग सोर्स से होने वाली अनुमानित इनकम पर कितना अडवांस टैक्स देना पड़ेगा। इसमें टैक्सपेयर को अलग-अलग टाइप की इनकम की एंट्री अलग मद में करनी होती है, जिनसे उनको एक फाइनैंशल इयर में इनकम होनेवाली है। डिटेल सबमिट करने के बाद टूल टोटल टैक्स लायबिलिटी के साथ साथ यह भी बताती है कि टैक्स पेमेंट की ड्यू डेट क्या है।


इन बातों का ध्यान रखें


हालांकि ये कैलकुलेटर्स एक्यूरेसी के मामले में भरोसेमंद हैं, लेकिन इनको कॉमन इनकम टैक्स हैंड करने के हिसाब से डिजाइन किया गया है। हो सकता है कि ये कुछ असेसी के टैक्स से जुड़े खास मामलों में काम नहीं करे।


कैलकुलेटर्स असल में एक अनुमान लेने के मकसद से यूज किए जाते हैं। पक्का होने के लिए टैक्स अडवाइजर से सलाह करना फायदेमंद होगा।









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