Monday, May 27, 2024

किसानों का आंदोलन, आपातकालीन भूमि अधिग्रहण के संदर्भ में मुआवजा, पटना उच्च न्यायालय, चुनाव आयोग और आचार संहिता

भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वास में पारदर्शिता पुनर्वास अधिनियम, 2013 की धारा 40 "कुछ मामलों में भूमि अधिग्रहण की अत्यावश्यकता के मामले में विशेष शक्तियाँ" प्रदान करता हैं। धारा 40 (1) में लिखा है कि "अत्यावश्यक मामलों में, जब भी उपयुक्त सरकार ऐसा निर्देश देती है, कलेक्टर, हालांकि ऐसा कोई पुरस्कार नहीं दिया गया है, धारा 21 में उल्लिखित नोटिस के प्रकाशन से तीस दिन की समाप्ति पर, किसी भी भूमि पर कब्जा कर सकता है सार्वजनिक उद्देश्य के लिए आवश्यक है और ऐसी भूमि सभी बाधाओं से मुक्त होकर पूर्णतः सरकार में निहित हो जाएगी।" धारा 40 (5) में लिखा है कि  आपातकालीन भूमि अधिग्रहन की स्थिति में "धारा 27 के तहत निर्धारित कुल मुआवजे का पचहत्तर प्रतिशत का अतिरिक्त मुआवजा" दिया जाएगा। यह भी लिखा हैं कि "धारा 27 के तहत निर्धारित कुल मुआवजे का भुगतान कलेक्टर द्वारा उस भूमि और संपत्ति के संबंध में किया जाएगा जिसके अधिग्रहण के लिए इस धारा की उपधारा (1) के तहत कार्यवाही शुरू की गई है" बिहार के बक्सर में चौसा पावर प्लांट के लिए आपातकालीन भूमि अधिग्रहण के मुआवजे को लेकर किसान संघर्षरत हैं 

एसटीपीएल कंपनी, एसजेवीएनएल (सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड) की सहायक कंपनी ने 13 अक्टूबर 2023 को बिहार सरकार के मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव, गृह पुलिस विभाग, बिहार, डायरेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस, बिहार, इंस्पेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस, सेंट्रल रेंज, पटना, डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, बक्सर, सुपरिन्टेन्डेन्ट ऑफ़ पुलिस, बक्सर, डिप्टी  सुपरिन्टेन्डेन्ट ऑफ़ पुलिस, बक्सर, सब डिविशनल अफसर, बक्सर, सब डिविशनल पुलिस अफसर, बक्सर, SHO, चौसा, पुलिस स्टेशन, बक्सर, SHO, बक्सर मुफसिल पुलिस स्टेशन, बक्सर और लार्सन एंड टौब्रो (Larsen and Toubro) लिमिटेड के खिलाफ पटना उच्च न्यायालय में याचिकाकर्ता के वकील रणजीत कुमार द्वारा याचिका दायर किया। इन 12 लोगों के खिलाफ याचिका दायर करने के दिन ही याचिका पंजीकृत हो गयी। राज्य सरकार की तरफ से एडवोकेट जनरल पी.के. शाही पेश हुए। कंपनी की तरफ से सीनियर एडवोकेट ललित किशोर पेश हुए। याचिका के दायर होने के दिन ही सुनवाई शुरू हो गयी और उच्च न्यायालय ने उसी दिन अपना पहला आदेश भी दे दिया। 

13 अक्टूबर 2023 के प्रथम आदेश में लिखा है कि इस याचिका को सुनवाई के लिए अधिसूचित वरिष्ठ वकील ललित किशोर द्वारा उल्लेख (mention) करने पर किया गया। याचिकाकर्ता ने सूचित किया कि एल एंड टी नामक कंपनी के 5,000 श्रमिक/कर्मचारी/कर्मचारी जो आवंटित भूमि पर मुख्य संयंत्र में काम कर रहे थे बियाडा को परिसर में ही बंधक बनाकर रखा गया है कुछ स्थानीय ग्रामीणों द्वारा कानून और व्यवस्था की समस्या पैदा की गई है। बड़ी संख्या में श्रमिकों/कर्मचारियों/कर्मचारियों परिसर के मुख्य गेट पर ताला लगाकर अंदर बंधक बनाकर रखा गया है। उच्च न्यायालय ने श्रमिकों/कर्मचारियों/कर्मचारियों की असुरक्षा से चिंतित होकर त्वरित सुनवाई किया। सुनवाई के दौरान न्यायालय को सूचित किया गया है कि वास्तव में परिसर के अंदर मजदूरों/कर्मचारियों/कर्मचारियों की संख्या 50-60 के बीच ही हैं। 

कोर्ट के आदेश में लिखा है कि अधिग्रहित की जाने वाली प्रस्तावित भूमि 1064.69 एकड़ है, जिसमें से 1035.74 एकड़ भूमि एसटीपीएल के नाम पर स्थानांतरित कर दी गई है। अदालत के अनुरोध पी.के. शाही, उपस्थित हुए। न्यायालय को सूचित किया गया है कि महाधिवक्ता और जिला मजिस्ट्रेट, बिहार स्टेट पावर होल्डिंग के चेयरमैन भी रहे बक्सर कंपनी लिमिटेड एवं जिला पदाधिकारी,बक्सर के बीच बातचीत हुई थी। ललित किशोर, याचिकाकर्ता के वकील का कहना है कि जिला प्रशासन को श्रमिकों को बिना किसी रुकावट के शांतिपूर्वक मुख्य संयंत्र के अंदर जाने और काम करने को सुनिश्चित करना आवश्यक है। महाधिवक्ता ने आश्वासन दिया है कि वह ऐसा करेंगे पूरे मामले पर जिलाधिकारी, बक्सर से चर्चा करें किसी प्रकार के समाधान पर पहुंचने का प्रयास किया जाएगा। अधिक मुआवजे की मांग को लेकर स्थानीय लोगों के आंदोलन के कारण 10.01.2023 से काम बंद था।

17 अक्टूबर 2023 के दूसरे आदेश में लिखा है कि उच्च न्यायालय में मामले को कर्मचारियों और श्रमिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ही उठाया जा रहा है। इन कर्मचारियों और श्रमिकों के बारे में कहा गया है  कि उन्हें बंदी बना लिया गया है और प्लांट के अंदर और बाहर नहीं आने दिया जा रहा है। अंशुल अग्रवाल,  जिलाधिकारी, बक्सर ने बताया है कि वे पुलिस अधीक्षक, बक्सर के परामर्श से वह हर उचित कदम उठाएंगे जिसके द्वारा कर्मचारी और श्रमिक संयंत्र परिसर से अपने आवास तक आवाजाही कर सके। प्लांट परिसर का मुख्य द्वार कल सुबह तक खोला जाएगा। इस उद्देश्य के लिए जिलाधिकारी, बक्सर प्रदर्शनकारियों से चर्चा कर यह सुनिश्चित करेंगे कि प्रदर्शनकारी स्वयं को मुख्य द्वार से कुछ दूरी पर स्थानांतरित कर ले। न्यायालय ने उम्मीद जाहिर किया कि जिलाधिकारी,बक्सर मुद्दे के समाधान हेतु हर संभव प्रयास करेंगे। जिलाधिकारी, बक्सर हाइब्रिड मोड के माध्यम से सुनवाई में शामिल हुए। 

18 अक्टूबर 2023 के न्यायालय के तीसरे आदेश में लिखा है कि इस न्यायालय को सूचित किया गया है कि प्लांट का मुख्य गेट खोल दिया गया है और श्रमिकों और कर्मचारियों की आवाजाही सुनिश्चित कर लिया गया हैं। 

6 नवम्बर 2023 के न्यायालय के चौथे आदेश में लिखा है कि याचिकाकर्ता कंपनी के द्वारा अंतरवर्ती आवेदन (इंटरलोक्यूटरी एप्लीकेशन) दायर किया गया मगर वह न्यायालय के रिकॉर्ड में उपलब्ध नहीं हैं। कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील के पास उपलब्ध (इंटरलोक्यूटरी एप्लीकेशन) से इसका अवलोकन किया और राज्य सरकार से कहा कि जवाबी हलफनामा दायर करें।  

18 दिसंबर 2023 के अदालत के पांचवे आदेश में लिखा है कि इंटरलोक्यूटरी एप्लीकेशन (आई.ए.) No. 1/2023 पर admission के समय पर विचार किया जायेगा। इस मामले को 16 जनवरी 2024 के तहत शीर्ष दस मामलों में 'प्रवेश के लिए' सूचीबद्ध करें। 

16 जनवरी 2024 के अदालत के छठे और आखिरी आदेश/फैसले में लिखा है कि इंटरलोक्यूटरी एप्लीकेशन (आई.ए.) No. 1/2023 के द्वारा याचिकाकर्ता ने मुख्य याचिका में एक और प्रार्थना जोड़कर मांग की है कि जिला प्रशासन,बक्सर को प्रस्तावित परियोजना स्थल जिसमे जल पाइपलाइन कॉरिडोर की साइट (मुख्य एप्रोच रोड, क्राउन पोर्शन रेल बल्ब एरिया) और रेल कॉरिडोर जो बक्सर थर्मल पावर प्रोजेक्ट का अभिन्न अंग हैं- पर पर्याप्त सुरक्षा और कानून एवं व्यवस्था उपलब्ध कराने का निदेश दिया जाए। फैसले में लिखा है कि याचिकाकर्ता का कहना है कि भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वास में पारदर्शिता पुनर्वास अधिनियम, 2013 के तहत उचित मुआवज़े के अधिकार के संदर्भ में सभी औपचारिकताएँ औ पूरी होने के बाद जमीन  याचिकाकर्ता को सौंप दी गई लेकिन भूमि मालिकों की हिंसक और आक्रामक बाधा और आंदोलन के कारण काम पूरी तरह से बंद हो गया है। 

16 जनवरी 2024 के अदालत के छठे और आखिरी आदेश/फैसले में लिखा है कि 16 जनवरी 2024 को ही एक पूरक हलफनामा दाखिल किया गया. पूरक शपथ पत्र के पैराग्राफ '9' में कहा गया है कि जैसे ही किसानों को जल के कॉरिडोर और रेल कॉरिडोर कार्य के शुरू होने के बारे में पता चला, वे मुख्य संयंत्र क्षेत्र के मुख्य द्वार पर 26 दिसम्बर 2023 को इकट्ठे हुए और मुख्य संयंत्र क्षेत्र में अवरोध उत्पन्न किया और उन्होंने जबरदस्ती की मजदूरों ने परिसर खाली कर दिया और फिर मुख्य द्वार ताला लगा दिया। लेकिन प्रशासन के हस्तक्षेप पर, दो घंटे बाद मुख्य गेट का ताला खुलवाया लेकिन प्रदर्शनकारियों ने मजदूरों को अंदर नहीं आने दिया। इसकी सूचना मुख्य सचिव, बिहार, पटना एवं जिलाधिकारी, बक्सर को दिनांक 2 जनवरी 2024 के पत्र के माध्यम से दे दी गयी।  आदेश में लिखा है कि एल एंड के परियोजना के प्रमुख टी ने मुफस्सिल थाना प्रभारी, बक्सर को 26 दिसम्बर 2023 को भी सूचना भेजी थी। न्यायालय को सूचित किया गया कि 2 जनवरी 2024 को जिला प्रशासन द्वारा बैठक बुलाई गई थी जिसमें याचिकाकर्ता के प्रतिनिधि और किसानों के कुछ प्रतिनिधि भी उपस्थित थे. किसानों के प्रतिनिधियों की सहमति के के बाद इस बैठक में यह तय हुआ था कि काम शुरू करें। याचिकाकर्ता को जिला प्रशासन से कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के अलावा न केवल संयंत्र क्षेत्र के अंदर बल्कि 225 एकड़ जमीन पर जल गलियारे के साथ-साथ रेल गलियारे के काम के कार्यान्वयन में भी समर्थन की उम्मीद है। 225 एकड़ जमीन में से 17 एकड़ जमीन सरकारी है एवं शेष भूमि नियमानुसार अर्जित रैयती भूमि है।

न्यायालय का विचार हैं कि जिला प्रशासन द्वारा सभी सकारात्मक कदम लेना चाहिए जिससे यह सुनिश्चित हो कि प्लांट के मुख्य द्वार, प्लांट के अंदर, वाटर कॉरिडोर और रेल कॉरिडोर के काम में कोई बाधा/रुकावट उत्पन्न न हो. 2 जनवरी 2024 की बैठक एक सकारात्मक कार्यवाही है और ऐसा लगता है कि फिलहाल समस्या का समाधान हो गया है लेकिन यह कोर्ट ने जिला दंडाधिकारी, बक्सर को निर्देश दिया कि वह उपरोक्त क्षेत्रों पर निरंतर निगरानी रखें और सुनिश्चित करें कि प्रदर्शनकारी संयंत्र क्षेत्र के अंदर, क्षेत्रों में एकत्र नहीं हो, जहां रेल के साथ-साथ वाटर कॉरिडोर का काम चल रहा है. ये सार्वजनिक महत्व के कार्य हैं और लाभार्थी बड़े पैमाने पर जनता हैं, इसलिए, सभी यह सुनिश्चित करने के लिए सभी स्टैकधारकों द्वारा प्रयास किए जाने चाहिए प्रदर्शनकारियों की ओर से बिना किसी बाधा के काम आगे बढ़ना चाहिए। इस न्यायालय का निर्देश यह ध्यान में रखते हुए जारी किया गया है कि जिलाधिकारी,बक्सर द्वारा पिछली सुनवाई में आश्वासन दिया गया कि वह संकट के समाधान के लिए इस मामले पर किसान प्रदर्शनकारियों से चर्चा करेंगे। न्यायमूर्ति राजीव  रंजन प्रसाद ने याचिका की सुनवाई छह तारीखों को की और सातवे तारीख-16 जनवरी 2024 को फैसला सुना दिया। जिलाधिकारी,बक्सर द्वारा दिया गया आश्वासन का दर्ज हैं. भविष्य में उनके आश्वासन पर अदालत शायद ही कभी भरोसा करेगी।

अदालत में दिए गए आश्वासन के विपरीत जिला प्रशासन ने कंपनी के पक्ष में किसान प्रदर्शनकारियों का अमानवीय दमन कर किसान प्रदर्शनकारियों का लोकतान्त्रिक और संवैधानिक धरना भंग कर तानाशाही का प्रदर्शन किया। इससे प्रतीत होता है कि जब भी कंपनी के हित और किसानों के हित में द्वन्द होगा, जिलाधिकारी,बक्सर ने यह तय कर लिया है कि वे किसके हित में खड़े होंगे। ऐसा बर्बर रवैया बक्सर प्रशासन का कंपनी से मिलीभगत की तरफ इशारा करता है। इस रवैये का वीडियो सबूत उपलब्ध हैं और सनातन काल तक उपलब्ध रहेगा। देश के लगभग सभी किसान संगठनों और उसके नेताओं बक्सर प्रशासन की करतूत की आलोचना की है। अपने साथी देशवासियों के प्रति ऐसी अक्ष्म्य क्रूरता से देश की लोकतांत्रिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचा हैं। देशव्यापी आक्रोश के अकारण नहीं हैं।

ऐसा प्रतीत होता है कि किसानों और उनके नेताओं को उचित कानून सलाह नहीं मिला। उच्च न्यायालय का दरवाजा उनके लिए भी खुला था। अक्टूबर 2023 से जनवरी 2024 तक सुनवाई चलती रही मगर उनके तरफ से कोई याचिका दायर नहीं की गयी। इस सम्बन्ध में न्यायमूर्ति राजीव  रंजन प्रसाद ने अपने सभी आदेशों और अंतिम फैसले में भी  किसान प्रदर्शनकारियों के प्रति संवेदनशील थे और वार्ता और संवाद के रास्ते को चिन्हित कर रहे थे। सही कानून सलाह नहीं मिलने के कारण झारखण्ड के मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा और उचित क़ानूनी सलाह के कारण दिल्ली के मुख्यमंत्री को जेल में बाद भी इस्तीफा नहीं देना पड़ा। लोकतान्त्रिक और मौलिक अधिकारों के संघर्ष में साधारण वकीलों के स्थान पर विद्वान् कानूनविदों की सलाह बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। किसानों के नेताओं को बताना चाहिए कि उन्होंने न्यायालय अक्टूबर 2023 से जनवरी 2024 के बीच हुए सुनवाई के दौरान हस्तक्षेप क्यों नहीं किया।

गौरतलब है कि सचिव (राजस्व), बिहार सरकार, लारा कोर्ट न्यायाधीश और जिला प्रशासन के बीच 5 मार्च, 2024 को एक बैठक हुई। सचिव (राजस्व), बिहार सरकार द्वारा भूमि मुआवजे के वितरण से संबंधित मामलों में तेजी लाने का निर्देश दिया गया।

16 मार्च, 2024 को आचार संहिता लागू होते ही चुनाव आयोग 'सर्वशक्तिमान' हो गया। चुनाव का ऐलान होने के बाद मंत्रियों और अन्य अधिकारियों को किसी भी वित्तीय अनुदान की घोषणा करने या उसके वादे करने से रोक लग जाती हैसिविल सेवकों को छोड़कर, सरकार से जुड़े किसी भी व्यक्ति पर शिलान्यास करने या किसी भी प्रकार की परियोजनाओं या योजनाओं को शुरू करने पर रोक केंद्र सरकार के अधिकारी-कर्मचारी चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक चुनाव आयोग के कर्मचारी की तरह काम करते हैं आचार संहिता का उल्लंघन करने पर 1860 का भारतीय दंड संहिता, 1973 का आपराधिक प्रक्रिया संहिता और 1951 का लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम प्रयोग में लाया जाता हैकेंद्र या राज्य का कोई भी मंत्री चुनाव प्रक्रिया में शामिल किसी भी अधिकारी को नहीं बुला सकता 

बिहार के बक्सर में चौसा पावर प्लांट के लिए आपातकालीन भूमि अधिग्रहन के संदर्भ में मुआवजे को लेकर किसानों का आंदोलन लगातार जारी था। ऐसे में 20 मार्च, 2024 को पुलिस दोपहर में किसानों को जबरन धरना समाप्त कराने के लिए पहुंची थी. 20 मार्च की रात में किसानोंं के घर में घुसकर पुलिस ने मारपीट किया गया। 

पीयूसीएल की जांच दल ने 28 अप्रैल 2024 को पीड़ित किसानों और प्रशासनिक अधिकारी से बात कर इस घटना पर अपनी रिपोर्ट को 26 मई 2024 को पटना में जारी कियाजांच दल में निम्नलिखित सदस्य थे:सरफराज- महासचिव, बिहार पीयूसीएल, किशोरी दास, सदस्य, राज्य कार्यकारिणी, बिहार पीयूसीएलअर्थशास्त्री और भूमि अधिग्रहण मामलों के विशेषज्ञ - प्राध्यापक डॉ. विद्यार्थी विकास और भूमि अधिग्रहण, भूमि अधिकार, प्राकृतिक संशाधन और पर्यावरण मामलों के क़ानूनी विशेषज्ञ डॉ.गोपाल कृष्ण, एडवोकेट भी दल के साथ थे।

जांच के निष्कर्ष

पीयूसीएल की जांच दल निम्नलिखित निष्कर्ष पर पहुंची -

  1. पुलिस ने बक्सर जिला के चौसा थाने के कई गांव के किसानों द्वारा किए जा रहे प्रदर्शन और अन्य सामान्य किसानों और ग्रामीणों के ऊपर बर्बरता के साथ अत्याचार किया लाठियां बरसाई और घरों में घुसकर लाखों लाख रुपए का नुकसान किया यह एक शर्मनाक, अशोभनीय और अमानवीय घटना है। जिसके लिए पूर्व में कोई नजीर ढूंढना भी मुश्किल होगा।

  2. 20 मार्च 2024 को पुलिस ने ग्रामीणों के घर में घुसकर जिस तरह से मारपीट की और चल व चल संपत्तियां एवं मवेशियों का नुकसान किया वह किसी भी प्रकार से किसी भी समाज के लिए तर्कसंगत नहीं है।

  3. 20 मार्च 2024 को पुलिस बल में महिला पुलिस की संख्या नाम मात्र की थी जबकि पुलिस ने महिलाओं पर भी लाठी चार्ज किया घरों में घुसकर महिलाओं के साथ मारपीट, धक्का मुक्की और बदतमीजी की और यह सब पुरुष पुलिस कर्मियों ने किया यह एक घोर अन्यायपूर्ण बात है।

  4. जांच से इस बात की पुष्टि होती है कि पुलिस के लाठीचार्ज के जवाब में ग्रामीणों ने भी पुलिस बल पर पथराव किया। गाड़ियों को नुकसान पहुंचाया।

  5. 2017 के सीएजी के रिपोर्ट के अनुसार बिहार के पांच जिलों में भूमि अधिग्रहण के दौरान अनियमितता भ्रष्टाचार और नियमों के उल्लंघन के साक्ष्य मिले हैं। उन पांच जिलों में एक बक्सर जिला भी है मगर स्पष्ट यह नहीं कहा जा सकता कि बक्सर में बना रहे थर्मल पावर प्लांट के लिए ली गई जमीन में हुई अनियमितता की बात भी इस रिपोर्ट में की जा रही है मगर यह भी संभव है की बक्सर में पिछले 10 सालों में जितनी भी जमीन अधिग्रहित की गई उनमें ज्यादातर में अनियमितता और भ्रष्टाचार हुआ। 

  6. कैग की रिपोर्ट से इस बात का खुलासा हो जाता है कि बिहार में उद्योगों और अन्य कार्यों के लिए जो भी जमीन ली जा रही हैं उसमें हाल के वर्षों में बहुत अधिक भ्रष्टाचार हो रहा है यह एक नए प्रकार का रुझान है जिसके तरफ गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है अन्यथा इस तरह के आंदोलन और उनका अन्यायपूर्ण दमन आगे भी होता रहेगा। 

  7. 2013 में केंद्र सरकार के द्वारा भूमि अधिग्रहण के जो कानून बनाए गए थे वह काफी हद तक जनता के हित में थे। उस कानून को अगर अक्षरशः पालन किया जाए तो देश के विकास और जनता के आकांक्षाओं के बीच किसी प्रकार की कटुता या टकराव का होना कठिन होगा मगर यह पाया गया है कि सरकार 2013 के कानून का उल्लंघन सामान्यतः कर रही हैं बल्कि यह भी कहना गलत नहीं होगा के राज्य सत्ता उसे कानून के खिलाफ खड़ी है और अपनी पूरी शक्ति के द्वारा उसे कानून को खत्म करने के लिए कटिबंध है जिसके कारण देश भर में किसानों के आंदोलन भी चल रहे हैं इसी का एक ज्वलंत उदाहरण है बक्सर के चौसा में भूमि अधिग्रहण मामला।

पीयूसीएल जांच दल की अनुशंसा

  1. इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच उच्च न्यायालय के किसी जज की अध्यक्षता में बनी हुई समिति से कराया जाना चाहिए। 

  2. बक्सर में जितने भी प्रशासनिक अधिकारी हैं उनका तुरंत तबादला हो जाना चाहिए जिन में अनुमंडल पदाधिकारी, जिला भू अर्जन अधिकारी, अंचलाधिकारी, थाना अध्यक्ष आदि प्रमुख है। 

  3. कैग की रिपोर्ट के अनुसार बक्सर के जिन अधिकारियों पर उंगली उठाई गई है उनको तत्काल निलंबित किया जाए।

  4. 25 लोग जिन पर फर्जी केस दायर करके जेल में बंद कर दिया गया है उन्हें तुरंत रिहा किया जाए और उन के ऊपर दायर केस वापस लिया जाए।

  5. पुलिस के दमनकारी कार्यों के कारण जो लोग भी घायल हुए हैं उनके सरकार के द्वारा समुचित इलाज का प्रबंध होना चाहिए और उनको और उनके परिवार को उचित मुआवजा सरकार की ओर से तुरंत दिया जाना चाहिए। 

  6. पुलिस के द्वारा घरों में घुसकर जो नुकसान किया गया है उसकी भरपाई पुलिस अफसर एवं प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा किया जाए।

  7. दोषी अधिकारियों पर भारत के दंड संहिता के अनुसार किसी पर जानलेवा हमला करना किसी की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की धाराओं के अंतर्गत केस चलाया जाना चाहिए। 

  8. बक्सर के किसानों और उनके नेताओं को संवैधानिक व कानूनी साक्षरता और उचित कानून सलाह से लैश करने की आवश्यकता हैं. सरकारें क़ानूनी तर्क से चलती हैं, क़ानूनी तर्क के अभाव में अन्याय की भावना आधारित संघर्ष अपने उचित निष्कर्ष तक नहीं पहुँचती. कानूनी साक्षरता की धारणा इस सिद्धांत पर आधारित है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने अधिकारों और दायित्वों के बारे में जागरूक होना चाहिए। इसलिए दायित्व से बचने के लिए बचाव के रूप में कानून की अज्ञानता का दावा नहीं कर सकता है।

  9. बिहार सरकार को भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013, इसके तहत बने नियमावली और सुप्रीम कोर्ट और पटना हाई कोर्ट के फैसलों के आलोक राज्य में हो रहे भूमि अधिग्रहण और मुआवजा पर श्वेतपत्र लाना चाहिए। बक्सर प्रशासन भूमि अधिग्रहण और मुआवजा पर श्वेतपत्र लाना चाहिए।  

  10. भूमि अधिग्रहण से पूर्व, भूमि अधिग्रहण के दौरान और भूमि अधिग्रहण के पश्चात उभरे मामलों की पड़ताल के लिए और  भूमि अधिग्रहण विवादों से उपजे विभिन्न बिंदुओं को लेकर एक जिला स्तरीय, और एक राज्य स्तरीय एक्सपर्ट समिति गठित किया जाना चाहिए क्योंकि भूमि अधिग्रहण को लेकर गया, रोहतास, कैमूर, भभुआ, कजरा, जमालपुर, धनरुआ, फतुहा, औरंगाबाद, खगडिया, मुजफ्फरपुर, बिहटा, पटना, कोइलवर-बबुरा, भोजपुर, बेगुसराय, पूर्वी चम्पारण, कल्याणबिगहा, नालंदा से बख्तियारपुर तक के किसान भी संघर्षरत हैं

  11. बिहार में  पुनर्वास और पुनर्व्यस्थापन को लेकर कोई स्पष्ट नीति /SOP नहीं है, जिसके कारण पुनर्वास के मामले में हर जगह अनदेखी की जा रही है। राज्य  में  पुनर्वास और पुनर्व्यस्थापन को लेकर स्पष्ट नीति/SOP तत्काल बनाया जाना चाहिए.    


20 मार्च की रात किसानोंं के घर में घुसकर पुलिस द्वारा की गयी मारपीट के सम्बन्ध में पीयूसीएल चुनाव आयोग को पत्र लिख कर दोषी अधीकारियों पर कार्यवाही की मांग करेगा



 


 

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