Monday, February 16, 2015

बिहार: जीतन राम मांझी-नीतीश कुमार व भाजपा की राजनीतिक तिकड़में

जिन विधायकों ने श्री जीतन राम मांझी को अपने विधानमंडल का नेता चुना था अब उसी ने श्री नीतीश कुमार को दोबारा अपना नेता चुन लिया है. नैतिकता के आधार पर इस ठोस हकीकत को कबूल करते हुए श्री जीतन राम मांझी को तुरंत बेहिचक अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए था.

जदयू-राजद के सामंती-आपराधिक प्रवृत्ति के अधिकांशतः विधायकों को गरीब-दलित मुख्यमंत्री श्री जीतन राम मांझी कभी रास नहीं आया और वे उसे सालभर भी बर्दाश्त करने को तैयार नहीं दिखे.

हालांकि, श्री जीतन राम मांझी का राजनीतिक सफर शासकवर्ग पूर्व कांग्रेस सरकार, जनतादल/राजद सरकार, ‘जदयू-भाजपा’ सरकार और जदयू सरकार के साथ अपने ‘चरम-उत्कर्ष’ पर पहुँच चुका है जहां से वह अब भाजपा के गोद में बैठने को आतुर दिख रहा है. इस लिहाज से श्री मांझी को दलित-गरीब-मजदूर वर्ग का न
तो मसीहा कहा जा सकता है और न ही सामाजिक बदलाव/क्रान्ति का ध्वजवाहक.

भाजपा इन दिनों सियार/गीदड़ की भूमिका में आ गयी है जो बीच-बीच में हुवा-हुवा कर मृत लाश को नोचने-तीड़्ने और नोंचकर भागने में लगी हुई है, तो वहीँ भाजपाई राज्यपाल आदतन अपनी संवैधानिक मर्यादा/निष्पक्षता को ताक पर रखकर कुकुडखेल को बढ़ावा देने में लगा है.

इसमें दो राय नहीं कि बिहार में 'सामाजिक बदलाव/सामाजिक-क्रान्ति' का अगुवा कहे जाने वाले प्रमुख सामाजिक शक्तियां- "मेहनतकश-मजदूरवर्ग दलित-शूद्र" इस कथित राजनीतिक तिकड़मों के भंवड़जाल में फंसा हुआ है. जबकि साम्प्रदायिक-फासीवादी ‘बाभन-बनिया’ की प्रतिनिधि ‘भाजपा’ बिहार में सत्ता की दहलीज पर खड़ी है.

ए. सी. प्रभाकर
तीसरी दुनिया का सामाजिक नेटवर्क्स

No comments: