(चित्र: अशोक कुमार जैन, पूर्व मुख्य अभियंता, दामोदर घाटी निगम व संयोजक विधि, ऑल इंडिया पावर इंजीनीयर्स फेडरेशन और धर्मात्मा शर्मा, पर्यावरण स्वास्थ्य सुरक्षा समिति, पर्यावरण बचाओ, जीवन बचाओ संघर्ष समिति और खेत बचाओ जीवन बचाओ संघर्ष समिति के साथ मिलकर 18 जिलों के 98 कारखानों के 50 हजार मैट्रिक टन जहरीले औद्योगिक कचरे और 150 अस्पतालों के कचरे को जलाने और दफनाने वाले हैदराबाद की कंपनी के कारखाने को सोन नद के तट में स्थापित होने से रोकने की मांग कर रहे हैं).
सेवा में
प्रोफेसर (डॉ.) अशोक कुमार घोष
चेयरमैंन
बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
पटना
विषय:सोन महानद कोइलवर-बबुरा रोड, भोजपुर व बिहटा, पटना क्षेत्र मे जहरीले कचरे के कारखाने के निर्माण के सन्दर्भ में।
महाशय,उपरोक्त विषय में हमलोग आपके संज्ञान या तथ्य लाना चाहते है कि 16 अक्टूबर 2014 को बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अम्बिका शरण उच्च विद्यालय, जमालपुर, कोईलवर ब्लॉक, बिहटा के नजदीक क्षेत्र में राम्के कंपनी द्वारा प्रस्तावित खतरनाक कचड़ा जलाने वाले कारखाने के पर्यावरणीय प्रभाव पर जन सुनवाई का आयोजन किया गया। भोजपुर जिले के कोईलवर क्षेत्र में सोन नदी के किनारे प्रस्तावित कारखाने में बिहार के 18 जिलों के 98 कारखानों के 50 हजार मैट्रिक टन जहरीले कचड़े को जलाने की योजना थी। इस कारखाने में खेती योग्य 57.24 एकड़ जमीन, रोजाना 423 किलोलीटर पानी की जरूरत, तथा रोजाना 80 किलोलीटर जहरीला प्रदूषित पानी बाहर निकलेगा जिसे सोन नदी में बहा दिया जायेगा । तीसरे चरण के दौरान इस कारखाने में 2 मेगावाट ऊर्जा का उत्पादन होगा।
ज्ञात हो कि सोन महानद कोइलवर-बबुरा रोड, भोजपुर व बिहटा, पटना क्षेत्र मे कुटलुपुर व विसंभरपुर, बिहटा क्षेत्र में हवाई अड्डा प्रस्तावित है।(चित्र: कारखाना निर्माण स्थल सोन महानद तट)
कोईलवरवासियों ने 16 अक्टूबर 2014 को हैदराबाद की रैमके कंपनी की कचरा दफनाने व जलाने वाली प्रस्तावित परियोजना से होने वाले गले का कैंसर, फेफडें का कैंसर, पेट का कैंसर, मल द्वार का कैंसर आदि खतरों के मद्देनजर कारखाने के निर्माण के प्रस्ताव को बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा आयोजित लोक सुनवाई में खारिज कर दिया था। बिहटा के लोगों के लिए भी यह राहत की बात थी। (लोक सुनवाई का ब्यौरा: 200120151PIFAI41AnnexurePublicHearing.pdf (environmentclearance.nic.in)
यह एक वैज्ञानिक सत्य है कि ऐसी कचरा जलाने वाली परियोजना से लाइलाज रोगों का शिकार होना पडता है। सोन नदी के किनारे कोईलवर प्रखंड अर्न्तगत दौलतपुर पंचायत में इस प्रकार की परियोजना से वर्तमान और भविष्य की पीढियों को गंभीर जन स्वास्थ्य की समस्याएं पैदा होने का खतरा है।ग्रामीणों ने अपर समहर्ता, भोजपुर जिला की अध्यक्षता में और प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों के समक्ष तथा कंपनी प्रबंधन के मौजूदगी में हुई लोक सुनवाई में प्रस्तावित कारखाने से होने वाले जल प्रदुषण तथा वायु प्रदुषण एवं भोजन श्रृंखला प्रदुषण के दुश्प्रभाव के कारण कारखाने के प्रस्ताव पर ही सवालिया निशान लगा दिया। जिसका प्रबंधन और सरकारी अधिकारियों के पास कोई सार्थक जवाब नहीं था। इसलिए ऐसे कारखाने को अनुमति देने का कोई औचित्य नहीं बनता है।रामके एनवायरों इंनजियरर्स लिमिटेड हैदरावाद के अनुभागी कंपनी बिहार वेस्ट मैनेजमेंट लिमिटेड के लिए रामके एनवायरों इंनजियरर्स लिमिटेड के द्वारा ही तैयार की गई पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA) के रिपोर्ट का बारिकी से अध्ययन करने पर यह बात सामने आयी कि उनका रिपोर्ट झूठ और गलत बयानी का पुलिंदा है। इस फर्जी रिपोर्ट में कोईलवर रेलवे स्टेशन के बदले आरा रेलवे स्टेशन को महुई मौजा के करीब बताया गया है। इस रिपोर्ट में बहुत कुछ बदनियति से छुपाया गया है - 1 कारखाने का प्रस्तावित जमीन नदी के पेट में ही है। 2 कारखाना क्षेत्र में कोई विद्यालय नहीं है। 3 कारखाना क्षेत्र में कोई अस्पताल नहीं है। 4 इस क्षेत्र में CRPF कैंप नहीं है। ऐसे भ्रामक रिपोर्ट को कोई विवेकशील प्राणी विश्वसनीय नहीं मान सकता है।प्रस्तावित कारखाने से होने वाले नुकसान का ब्यौरा निम्नलिखित हैः-डायऑकसीन और पारा का उत्पादनडायऑक्सीन का रासायनिक हथियारों के रूप में प्रयोगअमेरिका द्वारा वियतनाम के खिलाफ 1959‐75 के दौरान किया गया गया। इसके दुष्परिणाम अभी भी जारी है।ऐसे कारखाने से जल प्रदुषण वायु प्रदुषण और भोजन श्रृंखला प्रदुषण होता है। रिपोर्ट के अनुसार इस कारखानें में बिहार के 18 जिलों से 99 कारखानों का जहरीला कचरा आयेगा। लोक सुनवाई के दौरान यह बात भी सामने आयी कि सवा सौ से डेढ सौ कारखानों और हजारों अस्पतालों का कचरा आयेगा।सुनवाई के दौरान यह जाहिर हुआ कि बिहार के मौजूदा कारखाने नियमानुसार औद्योगिक कचरा का निपटारे का प्रबंधन किये बिना ही चलाई जा रही है।कंपनी के रिपोर्ट में कारखाने का इलाका बाढग्रस्त क्षेत्र है जिसको रिपोर्ट में गुमराह करने के इरादे से छुपाया गया है।दुसरों जिलों का कारखानों व अस्पतालों का कचरा सोन नदी व रिहायशी इलाके में लाने का कोई तर्क संगत न्याय संगत औचित्य नहीं है।कारखाना कोईलवर क्षेत्र व बिहिटा क्षेत्र को प्रभावित करेगा।कंपनी के रिपोर्ट में यह भी खुलासा नहीं किया गया है कि कारखाना प्रस्तावित जमिन आदालत में विचाराधीन है।यह तथ्य भी सामने आया कि भारत सरकार के पर्यावरण विषेशज्ञ आकलन समिति ने अपने 118 वें बैठक में रामके एनवायरों इंनजियरर्स लिमिटेड हैदरावाद के अनुभागी कंपनी बिहार वेस्ट मैनेजमेंट लिमिटेड के लिए रामके एनवायरों इंनजियरर्स लिमिटेड के द्वारा ही तैयार की गई पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA)पर विचार करने के उपरान्त इस कारखाने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। EIA रिपोर्ट से यह साफ पता चलता है कि कंपनी ने कारखाने का पर्यावरण व स्वास्थ्य पर पडने वाले भयंकर प्रभाव का आकलन खुद किया है। इससे प्रमाणित होता है कि कारखाने से होने वाले नुकसान को कम करके आंका है। कंपनी द्वारा तैयार रिपोर्ट के कार्यकारी सारांष से यह उजागर होता है कि कारखाने से जहरीले गैसों का उत्पादन होगा। लोक सुनवाई में उपस्थित सैकडों ग्रामीणों ने रैमके कंपनी द्वारा प्रस्तावित कारखाना का विरोध किया व कहा कि यहां कारखाना कोईलवर की जनता के लाशों पर ही बन सकता है। रैमके कंपनी वापस जाओ- जनता के जीवन से खिलवाड करना बंद करों के नारे के साथ कारखाने के प्रस्ताव को खारिज किया हैं।एक और सरकार और प्रशासन की पहल पर कार्यालयों और मोहल्लों में सिर्फ झाडू लगाकर ‘स्वच्छ भारत’ बनाने का प्रयास किया जा रहा है, वहीं दूसरी और पूरे देश में सरकार की गलत नीतियों के कारण प्रकृति की ‘स्वच्छता’ नष्ट हो रही है और तमाम प्राणियों की जिंदगी पर संकट बढ़ रहे हैं। खतरा हमारे घर-आंगन तक भी आ पहुंचा है। बिहार के आरा जिले के महुई बलहा मौजा के चनपुरा-हरिपुर गांव के पास 200 मीटर के अंदर खतरनाक कचड़ा जलाने वाले जिस कारखाने का निर्माण करने के लिए राम्के कंपनी एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए है, अगर वह कारखाना बन गया तो यह जनता के स्वास्थ्य और पूरे पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक होगा। रिहाइशी इलाके और सोन नदी के बीच खेती योग्य 57.24 एकड़ जमीन पर बनाए जाने वाले इस कारखाने में बिहार के 18 जिलों के 99 कारखानों के 50 हजार मैट्रिक टन जहरीले कचड़े को जलाने की योजना है। यह कारखाना जहरीले कचड़े को जमीन के भीतर दफनाने की योजना है। यह कारखाना जहरीले कचड़े को जमीन के भीतर दफनाने का कार्य भी करेगा। कारखाना के शुरू होने के प्रथम चरण में ही यहां 25 हजार टन कचड़ा दफनाने की योजना है। 1500 टन अस्पताल का कचड़ा और 30 हजार टन इलेक्ट्रॉनिक कचड़ा भी यहां लाया जाएगा। राम्के कंपनी के अनुसार इस कारखाने को रोजाना 423 किलोलीटर जल की जरूरत होगी। इस कारखाने से रोजाना 80 किलोलीटर जहरीला प्रदूषित पानी बाहर निकलेगा। इस प्रस्तावित कारखाने के दूसरे चरण में जहरीले तेल और कचड़े को जलाया जाएगा। इस कारखाने में लेड एसीड बैटरी, प्लास्टिक और कागज के कचड़े से भी छुटकारा पाने का प्रस्ताव है। तीसरे चरण के दौरान इस कारखाने में 2 मेगावाट ऊर्जा और 2 मेगावाट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन की बात कही गई है।यहाँ जो ऊर्जा उत्पादन होगा, उससे कई गुणा ज्यादा नुकसान कोईलवर क्षेत्र की जनता को उठाना पड़ेगा। सवाल यह है कि जो कारखाने कचड़ा पैदा कर रहे हैं वे अपने ही क्षेत्र में उनसे मुक्ति का जरिया क्यों नहीं तलाश करते? और जहरीला कचड़ा पैदा करने वाले उद्योगधंधों पर रोक क्यों नहीं लगाई जाती? जो कारखाना मालिक भारी मुनाफा कमाते हैं वही कचड़े को विनष्ट करने की जिम्मेवारी क्यों नहीं निभाते? उनके द्वारा पैदा जहरीले कचड़े का कहर हम कोईलवरवासी क्यों झेलें?विकास का झांसा देकर विनाश का खौफनाक खेल रचने वाली कंपनियों और उनका साथ देने वालों से सचेत रहना और उनका प्रतिरोध करना बेहद जरूरी है। ज्ञात हुआ है कि राम्के कंपनी ने छड़ का कारखाना बनाने के नाम पर यह जमीन खरीदी थी। लेकिन अब यहां खतरनाक बीमारियों को जन्म देने वाले कारखाना के निर्माण की कोशिश की जा रही है। यह कंपनी पर्यावरण की देख-रेख के लिए बनाई गई संस्थाओं के निर्देर्शों की भी अवहेलना कर रही है। भारत सरकार के पर्यावरण विशेषज्ञ आकलन समिति ने अपने 118 वे मीटिंग में इस कारखाने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। इस संबंध में इसका लिखित ब्यौरा समिति की वेबसाइट पर अभी भी मौजूद है। समिति के अनुसार रिहायशी इलाके से 200 मीटर के भीतर इस प्रकार के खतरनाक परिसंकटमय कचड़े के निबटान और भस्मीकरण की गतिविधि उचित नहीं है। कारखाने के लिए जो जगह चुनी गई है उसे कंपनी तर्कसंगत और न्याससंगत नहीं साबित कर पाई है। लेकिन कंपनी ने समिति को बरगलाते हुए 200 मीटर के बजाए 600 मीटर दूर रिहायशी इलाका होने की बात कहकर इस मामले में जन सुनवाई की अनुमति हासिल कर ली थी।ज्ञात रहे कि दिल्ली उच्च न्यायालय के 15 जनवरी 2013 के एक आदेश पर गौर करें जिसमें कहा गया है कि ‘‘कचड़ा भस्मीकरण संयंत्र के 10 किलोमीटर क्षेत्र में रहने वाले लोगों में गले का कैंसर, फेफड़े का कैंसर, पैर का कैंसर, लीवर का कैंसर, मलद्वार का कैंसर आदि के खतरे बढ़ जाते हैं’’। सच तो यह है कि इस बदबूदार कचड़े का आने वाली पीढ़ियों पर भी खतरनाक असर पड़ेगा।इस तरह के कारखाने से डायोक्सीन नामक जहरीला गैस निकलता है, जिसका प्रयोग अमेरिका ने वियतनाम पर रासायनिक हथियार ‘एजेंट अॅरेंज’ के रूप में हमला करके किया था, जिसके फलस्वरूप अमरीकी और वियतनामी सैनिक लाइलाज रोगों से आज तक जूझ रहे हैं। वियतनाम का र्प्यावरण और आहार श्रृंखला भी तहस-नहस हो गया था, जिसका दुष्परिणाम वहां के लोग आज तक भोग रहे हैं।कोईलवर में सोन के किनारे की स्वच्छ जलवायु के कारण ही यहां गंभीर मानसिक रोगियों के हॉस्पीटल बनाया गया था। प्रदूषण फैलाने वाले कारखाने से यहां के मरीजों के स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड़ेगा। इस इलाके में स्वास्थ्य लाभ के लिए भी लोग आते हैं ।हम सरकार से खेती की बदहाल स्थिति में सुधार, अपने नौजवानों के लिए रोजगार, प्रदूषण मुक्त लघु-कुटीर उद्योगों के विकास की अपेक्षा रखते हैं, हम विकास के नाम पर विनाश फैलाने वाले जहरीले कारखाने वाली नीतियों का विरोध करते हैं।अतः हमारी आपसे अपील है कि कारखाने पर रोक लगा कर कोइलवर व बिहटा क्षेत्र के निवासियों व पर्यावरण की रक्षा करे।सधन्यवादसादरडॉ. गोपाल कृष्ण, LL.M., Ph.Dपटना हाई कोर्टईमेल:krishnagreen@gmail.com
No comments:
Post a Comment