Thursday, October 1, 2020

सियासी दलों को वायदा करना होगा कि वे गाँव को शहरी कचरे का कूड़ादान नहीं बनने देंगे

बिहार विधानसभा चुनाव 2020, जनघोष संवाद श्रृंखला-4 में " शहरी मुद्दे और पर्यावरण" विषय पर आयोजित चर्चा में 30 सितंबर को पानी और पर्यावरण पर काम करनेवाले टॉक्सिक्स वाच और ईस्ट इंडिया रिसर्च कौंसिल के डॉ.गोपालकृष्ण  द्वारा दिया गया वक्तव्य: 
भस्मीकरण तकनिकी से ‘कचरे से ऊर्जा’ अवैज्ञानिक है. पर्यावरण स्वास्थ्य के लिए गंभीर समस्यााएं पैदा हो रहीं हैं. कचरे से ऊर्जा बनाने वाले ऐसे संयंत्र डाइऑक्सिन नामक विषैले रसायन निकालते हैं। ये उन 12 घातक रसायनों में शामिल है जिनसे दुनिया शीघ्र छुटकारा पाने की जुगत में है। राजधानी पटना से हर दिन निकलनेवाले 750 टन कचरे के निपटारे के लिए पटना जिला के रामचक बैरिया गाँव में ही पटना के को ही शहरी लोगों का कूड़ादान बना दिया गया है . यदि इसे सही मान लिया गया तो जल्द ही अन्य गाँव भी शहरों के कूड़ादान में तब्दील हो जायेंगे. यह कदम अवैज्ञानिक पर्यावरण और जन स्वास्थ्य विरोधी है. ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए समन्वित दृष्टिकोण अपनाने पर जोर दिया. विकेंद्रित कचरा निपटान सुविधाएं स्थापित करने पर बल दिया. 

अपने विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितियों और जटिल जलविज्ञान के विशेषताओं के कारण कोसी, हिमालय और गंगा घाटी की एक ऐसी नदी है जिसके बारे में अभी व्यापक रूप से समझा जाना बाकी है। यह सही समय है कि नीति निर्माता ''प्रकृति पर नियंत्रण'' करने के अपनी पुरानी अवधारणा का त्याग करें और यह माने कि इस संकट से जो की एशिया का सबसे बड़े पर्यावरण संकट है, निपटने के लिए हमें बाढ़ और नदियों के साथ जीना सीखना होगा। अब तक न ऐसा कोई तटबंध बना है और न भविष्य में बनेगा जिसमें कटाव न आए। नदी के तटबंध में कटाव और सरकार द्वारा बड़े बांध का प्रस्ताव के तर्क में इस बात पर ध्यान नहीं दिया गया कि कोसी को बांधा नहीं जा सकता।

नदियों में प्रदूषण को बचाने के लिये हमारी चिन्ता देश की सभी नदियों के लिये लोगों की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिये होनी चाहिये। अगर कोई जबरन हमारे घर में घुसता है तो वो सीमा अतिक्रमण का अपराधी माना जाता है। औद्योगिक प्रदूषण हमारी रक्त वाहनियों में घुस कर स्वास्थ्य संकट पैदा कर रहा है। 

राजनैतिक दल और राजनेता जिन्हें उद्योग और उद्योगपति ही धन देते हैं, केवल भावनात्मक और मौखिक आश्वासन ही देते हैं और ऐसे नीति परिवर्तन से मुँह चुराते हैं, जो नदियों के संरक्षण के लिये जरूरी हैं। नदियों का संरक्षण हमारी शहरीकरण, उद्योग, जल, भूमि, कृषि और ऊर्जा नीतियों का अभिन्न अंग होना चाहिये। 

नदियों के किनारों के लगातार क्षरण के विपरीत परिणामों की दृष्टि में, प्राकृतिक संसाधन आधारित अंतरपीढ़ी समानता को सुनिश्चित करने के लिए मौज़ूदा नीतियों में उलटफेर के अटूट तर्क हैं। तभी हम यह सुनश्चित कर पायेंगे कि नदियों पर उनके सामर्थ्य से अधिक दवाब न डाला जाय। हमें इस भ्रम में भी नहीं रहना चाहिये कि प्रदूषण चाके किसी भी स्तर तक चला जाये, हम ट्रीटमेन्ट प्लाँट लगाकर नदियों को सुरक्षित कर लेंगे। नीतियों की जटिलता, जो ये निर्धारण करती हैं कि कितना पानी नदियों में रखना है, कितने खतरनाक रसायन नदियों मे छोडे जा रहे हैं, सीवेज और औद्योगिक प्रदूषण की कितनी अधिकता होगी, ये सभी बहुत महत्वपूर्ण है। इन सभी समस्यायों के समाधान हमारे प्राकृतिक संसाधनों के नियंत्रण की नीतियों में मूलभूत बदलाव में निहित है। 

बहती हुई नदी के आर्थिक महत्व को दरकिनार कर सिर्फ उसके जल प्रवाह को रोकने में आर्थिक फायदा देखने की भूल को अतिशीघ्र सुधारने की जरुरत है. गंगा के प्रवाह को भी इसी प्राण घातक आर्थिक सोच ने नुक्सान पहुचाया है। 

गंगा घाटी के सन्दर्भ में प्रधानमंत्री की अगुवाई में एक बार फिर जो कदम उठाये जा रहे है उससे अंततः यही साबित होगा की नदी के हत्यारे, सरकार से ज्यादा ताकतवर है. अगर ऐसा नहीं है तो प्रधानमन्त्री गंगा नदी के हत्यारों की एक लिस्ट जारी करने का हौसला दिखाए, बताये की 2500 किलोमीटर लम्बी गंगाघाटी के इलाके को किस्तों में नष्ट करने वाले इन आतंकवादियो के साथ एक निश्चित समयसीमा में वे क्या सलूक करने जा रहे है, उन नीतियों में बदलाव की घोषणा करे जिससे गंगा सहित सभी नदिया खतरे में है और गंगा घाटी की लोगो की भागीदारी सुनिश्चित करे. 

बिहार के 2,50000 जल स्रोतों में से केवल 93000 ही अतिक्रमण मुक्त है, जल स्रोतों को अतिक्रमण मुक्त करना होगा. गंगा को बचाने के लिए फरक्का बांध को हटाना होगा.

बिहार को एस्बेस्टस मुक्त बनाने के लिए बिहिया के एस्बेस्टस कारखाने को भोजपुर से हटाना होगा. पानी के सप्लाई के लिए जो पाइप प्रयोग किया गया है वह एस्बेस्टस सीमेंट से बना है. एस्बेस्टस पर 70 से अधिक देशों में पाबन्दी लग चुकी है क्योंकी इस खनिज पदार्थ का सुरक्षित प्रयोग असंभव है. एस्बेस्टस-सीमेंट पाइप व्यावहारिक रूप से आधुनिक निर्माण में उपयोग नहीं किए जाते हैं। एस्बेस्टस पर तुरंत रोक लगाई जाए जिन इमारतों में एस्बेस्टस का इस्तेमाल किया गया है उन्हें इससे मुक्त करवाया जाए. एस्बेस्टस का असर सभी वर्गों पर हो रहा है. इससे होने वाली बीमारियों का इलाज करना मुश्किल होगा. विश्व स्वास्थय सगंठन (डब्ल्यूएचओ) ने सभी प्रकार के एस्बेस्टस को कैंसर पैदा करने वाले पदार्थों की श्रेणी मे रखा है. इसे देखते हुए कई विकसित देशों ने इस पर प्रतिबंध लगा रखा है.एस्बेस्टस से होने वाले कैंसर और अन्य बीमारियों का पता लगाने में काफी समय लगता है और इनके इलाज में भी काफी परेशानी होती है.भारत कच्चे एस्बेस्टस का सबसे ज़्यादा आयात करने वाले देशों में से एक है. यह आयात ब्राज़ील रुस और ज़िम्बाब्वे जैसे देशों से किया जाता है. भारत में सफ़ेद एस्बेस्टस सहित सभी प्रकार के एस्बेस्टस  के खनन पर रोक है लेकिन इसके आयात निर्यात, निर्माण, उद्योग और इस्तेमाल पर कोई रोक नहीं है. 

पिछले साल 2 जुलाई को मुख्यमंत्री ने विधान सभा में वायदा क्या कि वे बिहार में एस्बेस्टस बिहिया नहीं लगने देंगे मगर उन्होंने ये नहीं बताया कि बिहिया भोजपुर के गैरकानूनी एस्बेस्टस कारखाने को रोकने के लिए कब आदेश देंगे. भोजपुर के गिद्ध में बंद पड़े एस्बेस्टस कारखाने में पड़े एस्बेस्टस कचरा पुरे इलाके को प्रदूषित कर रहा है. उसे हटवाने का काम भी लंबित है. सरकार को रेल मंत्रालय से सबक लेकर सभी एस्बेस्टस पदार्थों कि खरीद- फरोख्त पर पाबन्दी लगा देनी चाहिए. सियासी दलों के इमारतों अदालतों विधान मंडल की इमारतों अस्पतालों शैक्षणिक संस्थानों और अन्य सभी इमारतों और घरों को एस्बेस्टस मुक्त कराने के सम्बन्ध में कदम उठाने चाहिए. सभी वाहनों को भी एस्बेस्टस से मुक्त करने के लिए निर्णय लेना चाहिए. स्वस्थ्य राज्य का विषय है अतः संविधान राज्य को यह अधिकार देता है कि वे जान स्वास्थ्य की रक्षा के लिए कानून बनाये. राज्य के अस्पतालों को एस्बेस्टस जनित रोगों से पीड़ित लोगों का एक अलग रजिस्टर बनाये और एक मुआवज़ा फण्ड कि व्यवस्था करे. एस्बेस्टस कंपनियों को हिदायत दे कि वे एस्बेस्टस मुक्त उत्पादों का उत्पादन को तत्काल अपनाये. 
परिचर्चा में सौम्य दत्ता रंजीत कुमार , अनामिका प्रियदर्शी राजेंद्र रवि महेंद्र यादव दीनबंधु वत्स संतोष उपाध्याय धर्मेंद्र कुमार अजय झा आदि ने भाग लिया . उनका कहना था कि सियासी दलों को विज्ञानसम्मत पर्यावरण और जान स्वस्थ्य के प्रति संवेदनशील कदम को अपने मैनिफेस्टो में शामिल करना चाहिए.





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