Monday, January 2, 2017

युआईडी/आधार आकड़े राष्ट्रीय धन है, जिसे विदेशी सरकारों को मुहैया कराया जा रहा है

डिजिटल उपनिवेशवाद को निमंत्रण देता डिजिटल इंडिया और बायोमेट्रिक युआईडी/आधार संख्या
 
युआईडी/आधार आकड़े राष्ट्रीय धन है, जिसे विदेशी सरकारों को मुहैया कराया जा रहा है

क्या धन के परिभाषा में “देश के आकड़े”, “निजी संवेदनशील सूचना” और “डिजिटल सूचना” शामिल नहीं है? भारत सरकार की बॉयोमेट्रिक्स समिति की रिपोर्ट “बॉयोमेट्रिक्स डिजाईन स्टैण्डर्ड फॉर युआईडी एप्लिकेसंस की अनुशंसा में कहा है कि “बॉयोमेट्रिक्स आकड़े राष्ट्रीय संपत्ति है और उन्हें अपने मूल विशिष्ट लक्षण में संरक्षित रखना चाहिए.”
क्या कोई राष्ट्र या कम्पनी या इन दोनों का कोई समूह अपनी राजनीतिक शक्ति का विस्तार “आकड़े” को अपने वश में कर के अन्य राष्ट्रों पर कर नियंत्रण कर सकता है?  
क्या “आकड़ो के खनन” से एक देश या एक कम्पनी या उनके संयुक्त प्रयास से किसी अन्य देश के संसाधनों को अपने हित में शोषण कर सकता है?
क्या “आकड़ो के गणितीय मॉडल” और डिजिटल तकनीक के गठजोड़ से गैर बराबरी और गरीबी और बढ़ सकती है और लोकतंत्र खतरे में पड़ सकता है?
क्या “संवेदनशील सूचना” के साइबर बादल (कंप्यूटिंग क्लाउड) क्षेत्र में उपलब्ध होने से देशवासियों और देश की संप्रभुता और सुरक्षा बढ़ती है?
क्या किसी भी डिजिटल पहल के द्वारा अपने भौगोलिक क्षेत्र के लोगों के ऊपर किसी दूसरे भौगोलिक क्षेत्र के तत्वों के द्वारा उपनिवेश स्थापित करने देना और यह मान्यता रखना कि यह अच्छा काम है, देश हित में है?
जब फेसबुक कंपनी के निदेशक समूह के मार्क अन्द्रेसन ने जब अपने लगभग पांच लाख ट्विटर साथियो को यह बताया कि “उपनिवेशवाद का विरोध भारतीय लोगो के लिए दशको से आर्थिक सत्यानाश का करना रहा है, अब क्यों रुके?” तो वेब दुनिया में हंगामा हो गया. फेसबुक के मार्क जुकरबर्ग ने कहा कि वे अन्द्रेसन के विचारों से असहमत है. अन्द्रेसन ने इस टिप्पणी के वेब से मिटा दिया और इसके लिए माफ़ी भी मांगी. मगर बात इतने से ख़त्म नहीं होती है क्योकि डिजिटल कंपनियों का उपनिवेशवाद से सम्बन्ध नया नहीं है.
उपनिवेशवाद के प्रवर्तकों की तरह ही साइबरवाद और डिजिटल इंडिया के पैरोकार अपने आप को मसीहा के तौर पर पेश कर रहे है और बराबरी, लोकतंत्र और मूलभूत अधिकार के जुमलो का जाप और मंत्रोचारण कर रहे है. वे अपने मुनाफे के मूल मकसद को पर्दानशी कर छुपा रहे है. पूरी सूचना के संचार को रोक कर आधे-अधूरे सूचना को टुकड़ो में देश वासियों को परोस रहे है. स्थानीय सौदागरों और मुनाफे के हिस्सेदारों की यारी को साध कर  आलोचकों के डिजिटल उपनिवेशवाद के नीतिगत विरोध को देश विरोधी तय कर रहे है. ऐसा उपनिवेश काल में भी हो चुका है. वेब आधारित डिजिटल उपनिवेशवाद कोरी कल्पना नहीं है. यह उसका नया संस्करण है. वेब दुनिया एक नए प्रकार का साम्राज्य बन चुका है जो देश के कानून व्यवस्था, न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका को मोहित कर रही है और चुनौती भी दे रही है. वेब दुनिया और भौतिक जगत की ताकते एक नए साम्राज्यवाद को जन्म दे रही है.     
भारत के उपनिवेश बनने में सूचना और संचार माध्यम के योगदान पर आम तौर पर निगाह नहीं जाती. काफी समय से साम्राज्यों का अध्ययन उनके सूचना संचार का अध्ययन के रूप में प्रकट हुआ है. अब तो यह निष्कर्ष सामने आ गया है कि संचार का माध्यम ही साम्राज्य था. सूचना के अर्जन, प्रस्तुतीकरण, वर्गीकरण, प्रसुचीकरण और एकत्रीकरण और एकत्रित सूचना को पढ़ने और उसके आधार पर लिखने के अधिकार से ही साम्राज्य का निर्माण होता रहा है. जब-जब साम्राज्य ने अपने सूचना संचार बदलाव किया तब-तब साम्राज्य का स्वरुप बदला है.
भारत में भी पुस्तकालयों की परंपरा पुरानी है. विक्रमशिला, तक्षशिला और नालंदा के पुस्तकालयों की स्मृति अभी भी कायम है. साम्राज्यों के उत्थान और पुस्तकालयो के निर्माण में एक रिश्ता रहा है.
आर्क्सफोर्ड विश्वविद्यालय का विशाल पुस्तकालय 14वीं शताब्दी में स्थापित हुआ और कैंब्रिज विश्वविद्यालय का पुस्तकालय 15वीं शताब्दी के आरंभ में स्थापित हुआ था. ब्रिटेन में ब्रिटिश म्यूजियम नामक पुस्तकालय कि स्थापना सन्‌ 1753 में हुई। ब्रिटेन में पेटेंट आफिस के पुस्तकालय और साइंस लाइब्रेरी की स्थापना सन्‌ 1857 में हुई. गौर तलब है कि अपने देश में जनगणना कि शुरुवात सन्‌ 1872 में अंग्रेजी साम्राज्य ने अपने हित को साधने के किया था. अमेरिका के लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस की स्थापना वाशिंगटन में सन्‌ 1800 में हुई थी। यहाँ लगभग 2,400 कर्मचारी काम करते हैं। पुस्तकों और सूचना के अर्जन का इतिहास साम्राज्यों के इतिहास से जुड़ा है.
हर रोज अमेरिकी सरकार के 24 विभाग 191 देशो में 71, 000 लोगो कि मदद से 169 दूतावासों के 276 सुरक्षित महलों से आज के सूचना संचार आधारित साम्राज्य का कारोबार चलता है.  जनगणना से लेकर जनता के निजी संवेदनशील सूचना, उंगलियों के निशान, आँखों के पुतलियो के निशान, आवाज़ के सैंपल, DNA, मोबाइल, इन्टरनेट और साइबर बादल पर स्थित आकड़ो तक की जानकारी को एकत्रित और सूचीबद्ध करके साम्राज्य अपने आपको सुरक्षित और अपने अलावा सबको असुरक्षित कर रहा है.
सूचना प्रोद्योगिकी से सम्बंधित संसदीय समिति ने अपने एक रिपोर्ट में बताया है कि दुनिया में 20 प्रकार के साइबर अपराध के मामलो में भारत का स्थान पांचवा है. समिति ने अमेरिकी नेशनल सिक्यूरिटी एजेंसी द्वारा किये जा रहे ख़ुफ़िया हस्तक्षेप और विकिलिक्स के खुलासे और साइबर क्लाउड तकनीकी और वैधानिक खतरों के संबध में इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के तत्कालीन सचिव जे सत्यनारायणा (वर्तमान में चेयरमैन, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण, भारत सरकार) से पूछा था. संसदीय समिति उनके जवाब से संतुष्ट नहीं लगी. हैरत की बात ये सामने आई कि इन्हें विदेशी सरकारों और कम्पनियों द्वारा सरकारी लोगो और देशवासियों के अधि-आंकड़ा (मेटा डाटा) एकत्रित किये जाने से कोई परेशानी नहीं थी. इस सन्दर्भ में अधि आकड़ा के एकत्रीकरण का अर्थ है यह है कि संदेश के आगमन बिंदु, प्रस्थान बिंदु, संदेश का मंजिल और सदेश मार्ग के बारे में जानकारी को किसी ख़ुफ़िया संस्था द्वारा प्राप्त करना. इन्होने समिति को बताया कि भारत सरकार ने अमेरिकी सरकार से  स्पष्ट जिक्र किया है कि भारतीय दृष्टि से संदेश के सामग्री पर आक्रमण बर्दाश्त नहीं किया जायेगा और  असहनीय माना जायेगा. यह तो तय है कि भारत सरकार और उनके अधिकारी उस अनाम शायर से भी गए गुजरे मालूम होते है जो कह गए है कि हम वो है जो ख़त का मज़मून भाप लेते है लिफाफा देख कर. सरकार के सचिव को लिफाफा दिखाने से परहेज नहीं है.   
ऐसे में सार्वजनिक क्षेत्र की दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड द्वारा इस उद्देश्य से क्लाउड प्लेटफॉर्म स्थापित कर डिजिटल इंडिया पहल के माध्यम से सरकार की बायोमेट्रिक युआईडी/आधार संख्या योजना सहित अन्य महत्त्वपूर्ण सेवाएं को और अधिक गति प्रदान करने का कार्यक्रम का तेजी से लागू किया जाना और उसका विस्तार करना बहुराष्ट्रीय डिजिटल कंपनियों के हितो को साधने में मदद देते प्रतीत होते है.
आज जब दुनिया के सबसे ताकतवर राष्ट्रपति यह दावा करते है कि उनके पास “सबसे लंबे समय तक की स्मृति” है उनका दावा डिजिटल कंपनियों के योगदान पर आधारित है. भारत सरकार को यह तो पता ही है कि ये कंपनिया अमरीकी देश हित में काम करने के लिए क़ानूनी तुरत पर बाध्य है.    
इन दिनों सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण सरकार किसी भी नागरिक के लिए आधार कार्ड लेना अधिदेशात्मक नहीं है” प्रचारित तो कर रही है मगर 639 संस्थानों में इसे “अधिदेशात्मक” अर्थात अनिवार्य बना दिया है और इसे रक्षा से जुड़े क्षेत्रो में भी लागू कर दिया है. इस कार्यक्रम को लागु करने में डिजिटल कंपनियों के योगदान के भयावह परिणाम हो सकते है क्योकि संधित अधिकारी सचेत नहीं प्रति होते है.
गौर तलब है कि भारत सरकार द्वारा बहुराष्ट्रीय डिजिटल कंपनियों के माध्यम को अपने संचार के लिए प्रयोग करने और “निजी संवेदनशील सूचना” आधारित बायोमेट्रिक युआईडी/आधार संख्या योजना के खिलाफ लंबित मामलो की सुनवाई में जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री की भूमिका देश और देशवासियों के लिये अति महत्वपूर्ण हो गयी प्रतीत होती है. ऐसा सन्दर्भ डिजिटल उपनिवेशीकरण की प्रक्रिया में ऐसे संस्थानों पर लोकतंत्र के पहरेदारो की पैनी निगाह और हस्तक्षेप की तार्किक बाध्यता प्रस्तुत कर रहा है. अब जबकि सितम्बर 14, 2016 के न्यायमूर्ति वि. गोपाला गौड़ा और आदर्श कुमार गोयल की खंडपीठ ने 5 जजों के संविधान पीठ के 15 अक्टूबर 2015 के आदेश को सातवी बार यह कहते हुए दोहराया कि युआईडी/आधार संख्या किसी भी कार्य के लिए जरूरी नहीं बनाया जा सकता है. इस मामले की सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टी .एस ठाकुर, न्यायाधीश . एम. खानविलकर और न्यायाधीश डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़ के पीठ ने 9 सितम्बर को तय किया था. यह फैसला पश्चिम बंगाल अल्पसंख्यक विद्यार्थी कौंसिल द्वारा दी गयी चनौती के सन्दर्भ में आया है. इससे पहले पश्चिम बंगाल विधान सभा ने आधार के खिलाफ सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव भी पारित किया है.

यह पहली बार नहीं हुआ है कि सरकार इस प्रकार के आदेश को जारी करती है और फिर क़ानूनी चनौती मिलने पर उसे वापस लेती है.
सरकार ने चुनाव आयोग को भी भरमा कर ऐसे आदेश जारी करवा चुकी है. चुनाव आयोग को जब सूचित किया गया कि युआईडी/आधार संख्या पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश इसे गैर जरुरी है और इसकी वैधता पर सवालिया निशान लगा हुआ, आयोग ने 13 अगस्त, 2015 को अपना 27 फ़रवरी, 2015 के आदेश का संशोधन कर यह स्पष्ट किया कि मतदाता पहचान पत्र के लिए बायोमेट्रिक (यूनिक आइडेंटिफिकेशन) युआईडी/आधार संख्या जरूरी नहीं है। आयोग ने अपने आदेश में लिखा है कि आधार नंबर के एकत्रीकरण, भरण और उसे आयोग के डेटाबेस में बोने की क्रिया को तत्काल प्रभाव से बंद करना होगा और आगे से कोई भी आधार आकड़ा किसी भी संस्थान या डाटा हब से एकत्रित नहीं किया जायेगा. ऐसा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पालन करने के लिए किया गया. अब सबकी निगाह नए मुख्य न्यायाधीश पर टिकी है क्योकि डिजिटल उपनिवेशवाद को निमंत्रण देता डिजिटल इंडिया और बायोमेट्रिक युआईडी/आधार संख्या का भविष्य उन्हें ही तय करना है.
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For Details: Gopal Krishna, Citizens Forum for Civil Liberties (CFCL)*, Mb: 08227816731, 09818089660, E-mail-1715krishna@gmail.com
*Citizens Forum for Civil Liberties (CFCL) had appeared before the Parliamentary Standing Committee on Finance that examined the UID/Aadhaar Bill, 2010.
For more background information visit:
Repository of aadhaar related articles: aadhararticles.blogspot.com

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