Friday, April 24, 2015

जानलेवा एसबेस्टस बिहार में धड़ल्ले से बिक रहा है, भोजपुर में एसबेस्टस कारखाना कहर बरपा रहा है

25 April, 2015: बिहार के भोजपुर के बिहिया और कोईलवर प्रखंड के गिद्धा मे ग्रामीणो को एसबेस्टस  के दुष्प्रभाव  से जुझना पड़ रहा है. बिहिया में एक ही कंपनी के दो कारखानो का ताण्डव जारी है. गिद्धा मे  ग्रामीणो और आस-पास के भूमि और शिक्षण संस्थानों  को जहरीले कारोबार के प्रभाव को झेलना पड़ रहा है. भोजपुर जिले मे एस्बेस्टस कारखानो के कारण मजदूरो की मौत  का सिलसिला शुरू  हो चुका है. एसबेस्टस की फैक्ट्री का स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं। राज्य मानव अधिकार आयोग (Case No. 313/14) इस मामले का
 तत्परता से  पड़ताल कर रही है.

बिहार के वैशाली और मुज़फ्फरपुर जिले में ग्रामीणो ने इसके कारखाने को अपने विरोध से रोक दिया। सरकार और कम्पनियो को झुकना पड़ा. लेकिन दिसंबर 2012 में वैशाली में इसके विरोध में सैकड़ों लोग सड़कों पर उतरे। लोगों में आज भी गुस्सा है. मुज़फ्फरपुर और वैशाली में उन्हें झूठे आरोपों में अब कचहरी के चक्कर भी लगाने पड़ते हैं। सरकार अगर जनता के साथ है तो फर्जी मुकदमो  को निरस्त करना चाहिए।

एसबेस्टस कैंसर कारक है. वैज्ञानिक शोधों ने इसे कैंसर की बड़ी वजह बताया है.यह जानते हुए भी कि यह इतना हानिकारक है, भारत सरकार इसके आयात को रोक नहीं रही है. दुनिया के 52 देशों ने इसे प्रतिबंधित कर दिया है. यूरोपियन यूनियन और पश्चिमी देशों में इसका प्रयोग प्रतिबंधित है क्योंकि आँकड़ों के मुताबिक़ इसके दुष्प्रभावों से हज़ारों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है.

सस्ता होने की वजह से घर बनाने के लिए एसबेस्टस की खूब मांग है. एसबेस्टस का सबसे ज्यादा इस्तेमाल छत और पानी की पाइप बनाने में होता है. इसके बड़े पैमाने पर इस्तेमाल की एक बड़ी वजह यह भी है कि यह फाइबर सीमेंट, स्टील वाली कंक्रीट पाइप और अल्युमिनियम की टाइलों से सस्ता है. कंपनीयो के दबाब  के  कारण केंद्र सरकार एस्बेस्टस पदार्थो को कृत्रिम  तरीके से सस्ता बना रही है.

एसबेस्टस के बारीक रेशे सांस के साथ फेफड़ों तक जाते हैं और कई बीमारियां पनपनाते हैं। मेडिकल रिसर्च में साफ हुआ है कि इसके शिकार लोगों में सांस तेज चलने, फेफड़ों में कैंसर या  छाती में दर्द की बीमारियां देखी जाती हैं। माइक्रोस्कोप में दिखने वाला एसबेस्टस का रेशा एक बार शरीर में घुसने के बाद लंबे समय तक वहां बना रहता है।

एसबेस्टस का कभी पश्चिमी देशों में खूब इस्तेमाल हुआ। लेकिन जब 30-40 साल बाद फेफड़ों के कैंसर, मिसोथेलिओमा और एसबेस्टोसिस जैसी बीमारियां सामने आने लगीं, तो जोखिम का अंदाज हुआ।

गौरतलब बात यह है  कि भारत में एस्बेस्टस के खनन पर  पाबन्दी है. केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने सितम्बर 2011 में लिखित घोषणा की थी कि  सरकार  पर पाबन्दी लगाने का  विचार  रही है. दिसंबर 2014 में  राष्ट्रीय
मानवाधिकार आयोग ने मंत्रालय से  सवाल किया है कि इस घोषणा  सम्बन्ध क्या कदम उठाये गए है.

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन, विश्व स्वास्थ्य संगठन और 50 से ज्यादा देशों के स्वास्थ्य विशेषज्ञ एसबेस्ट्स के इस्तेमाल पर पूरी तरह पाबंदी लगाने की वकालत करते हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक एसबेस्टस उद्योग में नौकरी करने वाले एक लाख लोग हर साल मारे जाते हैं। वर्ल्ड बैंक ने भी कहा है कि लोगों को एसबेस्टस की जगह इसके विकल्पों का इस्तेमाल करना चाहिए. व्हाइट  एसबेस्टस सबसे आम प्रकार हैं. चीन के बाद भारत एसबेस्टस का दूसरा सबसे बड़ा बाजार है. इसके पीछे की वजह दशकों से देश की सरकारों
में इच्छाशक्ति की कमी, एसबेस्टस सीमेंट के उत्पादन के लिए अनुमति देने में भारी भ्रष्टाचार और सरकारी विभागों में तालमेल का अभाव है.

स्वास्थ्य क्योकि राज्य का बिषय है राज्य सरकार को एस्बेस्टस उद्योग और उपयोग पर पाबन्दी लगा कर केंद्र और अन्य राज्यों  का मार्गदर्शन करना चाहिए।

For Details: Gopal Krishna, Mb: 08227816731, 09818089660, E-mail-715krishna@gmail.com
Web: www.toxicswatch.org

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