18 मार्च, 2015: नर्मदा घाटी में इंदिरा सागर तथा ओंकारेश्वर नहर परियोजनाओं के कारण
प्रभावित हज़ारों किसानों तथा पर्यावरणीय क्षति सम्बन्धी गंभीर समस्याओं पर आज
म.प्र. उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मा. ए.एम. खानविलकर तथा मा. न्या. अलोक
आराधे के खंडपीठ ने सचिव, पर्यावरणीय मंत्रालय, भारत सरकार एवं मुख्य सचिव, म.प्र.
शासन को का आदेश दिया की वे नर्मदा बचाओ आन्दोलन व नहर प्रभावितों द्वारा दाखिल
विस्तृत अंतरिम याचिका पर दो हफ़्तों में जवाब प्रस्तुत करे. इस याचिका में पुनासा,
खरगोन तथा सस्लिया महाकाय तालाबों से डूब प्रभावित सेकड़ों किसानो के पुनर्वास,
रिसन प्रभावित खेतों की भरपाई के साथ मा. न्यायालय द्वारा 3-1-2014 और 24-6-2014
को पारित आदेशों की अवहेलना के सम्बन्ध में विभिन्न मुद्दे उठाये गए | नर्मदा घाटी
विकास प्राधिकरण ने सभी तालाब प्रभावित, जिनकी आधी से पूरी ज़मीन तक अधिग्रहित या
डूब प्रभावित हो चुकी है, को गैर कानूनी रूप से नहर-प्रभावित मानकर, पुनर्वास नीति
के तेहत उन्हें देय 5 एकड़ जमीन, घर प्लाट, अन्य अनुदान आदि से वंचित किया है |
याचिकर्ताओं की
प्रतिनिधित्व करते हुए मेधा पाटकर ने न्यालायाय को अवगत कराया की प्रभावित किसानो
को पुनर्वास का लाभ, मलबा एवं रिसन प्रभावितों को नए भू-अर्जन अधिनियम के तहत
नुकसान भरपाई, सभी पर्यावरणीय एवं कानूनी शर्तों का अमल ना करते हुए तथा सिंचित
क्षेत्रो में नहरों पर पुनर्विचार न करते हुए नहर कार्य आगे बढाया जा रहा है | आज
न्यायालय में पर्यावरण मंत्रालय की अधिवक्ता के गैर उपस्तिथि पर गंभीर आपत्ति
जताते हुए मुख्य न्यायाधीश ने मंत्रालय के सचीव को आदेशित किया कि अग्रिम तारिक पर
उनके अधिवक्ता उपस्तिथ रहे | मेधा पाटकर ने न्यायाधीशों को बताया कि आज तक सेकड़ो
किसानों के खेत एवं फसलें जल-जमाव तथा रिसन से प्रभावित हो चुकी है, दसों जगह नहरों
से दुर्घटनाएं हुई है, मलबा-प्रभावित किसान तरस रहे है, मगर आज तक किसी को भी
नुकसान-भरपाई न देते हुए न्यायालयीन आदेशों की अवहेलना की जा रही है | मुख्य न्यायाधीश ने
सम्सायों की गंभीरता स्वीकार की और आदेश दिया कि 24 मार्च को प्रात: 10.30 से दोपहर
1.30 तक विस्तृत सुनवाई करके, कानूनी परिप्रेक्ष में निर्देश दिए जायेंगे |
No comments:
Post a Comment