Tuesday, February 28, 2012

न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू का अपमान ,बिहार के लिए शर्मनाक

२४ फरवरी २०१२ को बिहार के पटना विश्वविद्यालय के द्वारा आयोजित सेमिनार में भारतीय प्रेस परिषद् के माननीय अध्यक्ष नयायमूर्ति मार्कंडेय काटजू को वक्तव्य के दौरान सत्तारूढ़ दल की विधायक के प्राचार्य -पति के द्वारा असभ्य तरीके से रोकने की कोशिश गौरवशाली बिहार की गरिमा के विरुद्ध है .पटना विश्वविद्यालय की अंगीभूत इकाई पटना कॉलेज के प्राचार्य लालकेश्वर सिंह के द्वारा विश्वविद्यालय के कुलाधिपति -राज्यपाल ,कुलपति की उपस्थिति में न्यायमूर्ति काटजू को जोर आवाज़ में रोकने से मना करने की कोशिश लोकतान्त्रिक और संवैधानिक गरिमा के विरुद्ध है .बिहार के इतिहास में यह शर्मनाक घटना है ,जब प्रदेश के गौरवशाली विश्वविद्यालय में विश्वविद्यालय के मुख्य अतिथि को विश्वविद्यालय के एक प्राचार्य के अशोभनीय आचरण का सामना करना पड़ा हो .यह घटना इस तथ्य को उजागर करता है कि अगर बिहार में भारतीय प्रेस परिषद् के अध्यक्ष बोलने की आज़ादी नहीं रखते हें तो आम आदमी और मीडिया को अभिव्यक्ति की कितनी स्वतंत्रता प्राप्त है.

भारतीय प्रेस परिषद् के न्यायमूर्ति अध्यक्ष के अपमान की घटना को नीतीश सरकार के द्वारा गंभीरता से नहीं लेना और दोषी प्राचार्य के विरुद्ध कार्रवाई की बजाय उप -मुख्यमंत्री सुशील कु मोदी और शिवानन्द तिवारी नामक सत्ताधारी सांसद के द्वारा न्यायमूर्ति काटजू के विरुद्ध बदले की भाषा में की जा रही बयानबाजी आपत्तिजनक और निंदनीय है .जाँच का विषय है कि २५ फरवरी २०१२ को पटना विश्वविद्यालय में आइसा के छात्र नेताओं पर हुई बमबाजी के तार क्या न्यायमूर्ति काटजू का अपमान करनेवाले प्राचार्य से जुड़े हें ...?

देश के तमाम पत्रकार संगठनो ,वरिष्ठ पत्रकारों ,न्यायप्रिय बुद्धिजीविओं को इस घटना को गंभीरता से लेना चाहिए. भारतीय प्रेस परिषद् पत्रकारिता को दिशा -निर्देश देनेवाली देश की सर्वोच्च शक्तिशाली संवैधानिक संस्था है. बिहार में भारतीय प्रेस परिषद् के अध्यक्ष को बोलने से रोकने की कोशिश संपूर्ण पत्रकारिता बिरादरी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास रखनेवाले नागरिक समूह का अपमान है.

हम बिहार के कुलाधिपति सह राज्यपाल से उनकी उपस्थिति में घटित अशोभनीय घटना के दोषी प्राचार्य के विरुद्ध तत्काल सख्त कार्रवाई की मांग करते हुए बिहार के उपमुख्यमंत्री और सांसद के बयानों की भर्त्सना करते हें .भारतीय प्रेस परिषद् ने बिहार की सत्तापरस्त पत्रकारिता की भूमिका की पड़ताल करने के लिए जाँच -कमिटी गठित की है . भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में यह बड़ी घटना है ,जब किसी खास मीडिया समूह की बजाय संपूर्ण प्रदेश की पत्रकारिता की पड़ताल करने के लिए एक संवैधानिक जाँच आयोग का गठन किया गया हो .भारतीय प्रेस परिषद् के इस कदम का हम स्वागत करते हें.

पुष्पराज (जनांदोलनो के पत्रकार और नंदीग्राम डायरी के लेखक ),अमरनाथ (वरिष्ठ पत्रकार )
गोपाल कृष्ण (पत्रकार,पर्यावरणविद ),हसन इमाम (सचिव ,प्रेरणा एवं वरिष्ठ रंगकर्मी )
चिन्मयानन्द (पत्रकार )राजेंद्र राजन (महासचिव ,प्रगतिशील लेखक संघ ,बिहार ),शशिसागर(पत्रकार )
डॉ मीरा दत्ता (संपादक ,तलाश )
गुलरेज शहजाद (शायर ),रेसू वर्मा (पत्रकार ).कृष्णा (हैदराबाद विश्वविद्यालय में शोधार्थी ),निर्भय दिव्यांशु (पत्रकार ),इरफ़ान (अध्यक्ष होकर फेड्रेसन बिहार )
डॉ नंदकिशोर नंदन (कवि ),विनिताभ(कवि ) ,निवेदिता (वरिष्ठ पत्रकार ),संतोष सारंग (पत्रकार ),रंजीव (नदी -पानी विशेषग्य ),संजीव शांति मेहता (फिल्म निर्माता ),दीनानाथ सुमित्र (कवि ),सुनीता (शोधार्थी पत्रकार ),रविन्द्र भारती (कवि ),
स्वतंत्र मिश्र (पत्रकार ),हसन इमाम (सचिव ,प्रेरणा एवं वरिष्ठ रंगकर्मी ),रंजीत (पत्रकार ),राघव शरण शर्मा (वरिष्ठ लेखक )

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