Sunday, October 23, 2016

हैकर्स और साइबर अपराधियों के निशाने पर है आपका आधार नंबर भी आधार नंबर बैंक खाते से जोड़ने के बहाने सांसदों पर निशाना तो आम लोगों का क्या हाल होना है पलाश विश्वास


हैकर्स और साइबर अपराधियों के निशाने पर है आपका आधार नंबर भी

आधार नंबर बैंक खाते से जोड़ने के बहाने सांसदों पर निशाना तो आम लोगों का क्या हाल होना है

पलाश विश्वास

माकपा के राज्यसभा सांसद ऋतव्रत बंदोपाध्याय को उनके बैंक एकाउंट को आधार नंबर से जोड़ने के बहाने साइबर अपराधी गिरोह ने टार्गेट बनाने की कोशिश की और तकनीकी तौर पर बेहतर युवा सांसद ने बैंक खाता और डिबिट कार्ड के सिलसिले में उनके सवालों से असल खतरा भांप लिया और तुंरत पुलिस से संपर्क किया।

हुआ यह कि ऋतव्रत के पास एक फोन कल आया और काल करने वाले ने अंग्रेजी में निवेदन किया कि वह एसबीआई की शाखा से बोल रहा है।चूंकि एसबीआई ने  पिन समेत डाटा चुरा लिये जाने की वजह से लाखों डेबिट कार्ड ब्लाक कर लिये हैं,तो उन्हें दोबारा जारी करने के सिलिसले में लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों की समस्य़ा प्रातमिकता के स्तर पर सुलझाने के लिए एसबीआई ने हमें जिम्मेदारी सौंपी है।

सांसद से आधार ब्यौरा के साथ साथ डेबिट कार्ट के ब्यौरे पर लगातार सवाल वह करता रहा इस दलील पर कि ऋतव्रत का बैंक खाता आधार नंबर से जुड़ा नहीं है और वह डेबिट कार्ड का मसला सुलझाने के लिए खाते को आदमर नंबर से जोड़ने के लिए मदद की पेशकश कर रहा था।

सांसद को शक हुआ तो उन्होंने कहा कि अगर आधार नंबर से जुड़ा न होना कोई समस्या है तो उनका सचिव बैंक जाकर यह अधूरा काम पूरा कर सकते हैं।इसपर भी जब पूछताछ का सिलसिला नहीं थमा तो सांसद ने सीधे कह दिया कि वे उसे कोई जानकारी नहीं दे रहे हैं औरइस बारे में पुलिस को सूचित कर रहे हैं।

खास बात तो यह है कि काल करने वालों को उनके बैंक खाते के बारे में सबकुछ मालूम था।राज्यसभा के सांसद के पार्लियामेंट एसबीआई शाखा का खाता आधार नंबर से जुड़ा नहीं है,यह तथ्य ऐसे अपराधी तत्वों के पास कैसे पहुंच गया।क्योंकि पुलिस को टेलीकालर के मोबाइल नंबर का अभी कोई अता पता नहीं मिल रहा है।

सांसद ने पुलिस को जानकारी देने के अलावा भारतीय स्टेट बैंक की चेयरपर्सन अरुंधति भट्टाचार्य को पत्र भी लिखा है।

सांसद ने माना कि चुस्त अंग्रेजी में उनके बैंक काते के बारे में सही जानकारी के सात उनका आधार नंबर जोड़ने की पेशकश से शुरुआत में वे भी दुविधा में पड़ गये थे।

कल ही हमने इस खतरे से आगाह किया था कि आधार नंबर का इस्तेमाल अपराधीि गिरोह कर सकते हैं और बैंक के सुरक्षा इंतजाम इस सिलसिले में धोखाधड़ी रोकने के लिए काफी नहीं है।

जब सीधे भारत के सांसदों को निशाना बनाया जा रहा है आधार नंबर को लेकर तो आधार की जानकारी वाणिज्यिक संस्थाओं और अपराधी गिरोह के हात लगने पर संकट कितना गहरा होगा,इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

कल जिन बिंदुओं पर मैंने आगाह किया था,कृपया उन पर गौर करेंः

केंद्र सरकार ने माल वेयर गोत्र के वाइरल साफ्ट वेयर के जरिये 32 लाख डेबिट कार्ड के तमाम तथ्यों के लीक हो जाने के मामले पर जांच करा रही है तो 130 करोड़ नागरिकों के आधार नंबर से जुड़े तथ्य लीक होने पर वह क्या करेंगी,हमें इसका अंदाजा नहीं है।

देश के सबसे बड़े कारपोरेट वकील इस फर्जीवाड़े से निबटने के लिए आम जनता को भरोसा दिला रहे हैं,लेकिन कुकिंग गैस,बैंकिंग,राशन,वोटर लिस्ट,वेतन,पेंशन,रेलवे जैसे विशाल नेटवर्क से जब सारे तथ्य लीक या हैक हो जाने की स्थिति से सरकार कैसे निपटेगी जबकि सिर्फ बत्तीस लाख डेबिट कार्ड लीक हो जाने से देश की बैंकिंग सिस्टम अभूतपूर्व संकट में है।


देशभर में सिर्फ 32 लाख नहीं, बल्कि 65 लाख डेबिट कार्डों का डाटा चोरी होने की आशंका है।यह संख्या भी आधिकारिक नहीं है।लाखों की तादाद में या करोडो़ं की तादाद में यह डाटाचोरी हुई है या नहीं है,संबंधित बैंको की ओर से अपना कारोबार बचाने की गरज से इसका खुलासा हो नहीं रहा है। भारतीय स्टेट बैंक जिस तरह खुलासा कर रहा है,निजी बैंको में उससे कहीं बड़ा संकट होने के बावजूद वे अपने व्यवसायिक हितों के मद्देनजर जब तक संभव है,कोई जानकारी साझा करने से बचेंगे।बहरहाल अब बैंकों ने अपने ग्राहकों से पिन बदलवाने या फिर मौजूदा कार्ड ब्लॉक कर नया कार्ड देने की कवायद तो शुरू कर दी है। लेकिन सबसे खतरनाक बात तो यह है कि अभी तक किसी भी बैंक ने इस मामले में एफआईआर तक दर्ज नहीं करवाई है और न ही सरकार को इस बारे में कोई सूचना ही दी है।मसलन महाराष्ट्र पुलिस की साइबर सिक्योरिटी ने खुद बैंकों को खत लिखा है।

बैंक प्राथमिक स्तर पर तत्काल पिन नंबर बदलने की बात पर जोर दे रहे हैं। सवाल यह है कि जब बैंकिंग नेटवर्क ही सुरक्षित नहीं है तो नये सिरे से पिन बदलते हुए वह पिन भी हैक हो गया तो आपकी जमा पूंजी का क्या होगा,जिन्हें अपना पेंशन पीएफ वेतन वगैरह बैंक में जमा करना होता है,वे सारे लोग तो रातोंरात कौड़ी कौड़ी के लिए मोहताज हो जायेंगे।

फिर कोई जरुरी नहीं है कि वे तथ्य बैंकिंग सिस्टम से ही लीक हो और बैंकों के तमाम एहतियात के बावजूद वे तथ्य लीक न हों,इसका कोई पुख्ता इंतजाम तकनीक के मामले में सबसे ज्यादा विकसित सिस्टम और देशों के पास भी नहीं है।

बाजार के विस्तार के लिए तेज अबाध लेनदेन के लिए जो डिजिटल पेपरलैस अत्याधुनिक इंतजाम है,उसीके वाइरल हो जाने से नागरिकों की निजता,गोपनीयता असुरक्षित हो गयी है।डिजिटल लेन देन बेशक सुविधाजनक है और यह शत प्रतिसत तकनीक के मार्फत होता है।यह तकनीक मददगार है,इसमें भी कोई शक नहीं है।लेकिन अत्यधिक तकनीक निर्भर हो जाने के बाद वही तकनीक भस्मासुर बनकर आपका काम तमाम कर सकती है।

जल जंगल जमीन से बेदखली की तरह तकनीक से बेदखली की समस्या भी बेहद संक्रामक है।

साइबर अपराधी,अपराधी गिरोह से लेकर कारपोरेट कंपनियों के हाथों में हमारे तमाम तथ्य हमारी उंगलियों की छाप और आंखों की पुतलियों के साथ जमा आधार परियोजना के निजी उपक्रम के सौौजन्य से उपलब्ध हैं।बुनियादी सेवाओं और बुनियादी जरुरतों को पूरा करने के बहाने डिजिटल माध्यमों का इस्तेमाल करके कोई भी सरकारी गैरसरकारी और संबंधित नागरिकों से ऐसे बेहद संवेदनशील तथ्यहासिल कर सकते हैं जैसी कोशिश मानीय सांसद के साथ हो चुकी है।

नेट बैंकिंग,एटीएम,डेबिट क्रेडिट कार्ड और मोबाइल बैंकिंग से श्रम और समय की बचत है और कागज की भी बचत है और सारा का सारा ई बाजार इसी कार्ड आधारित लेन देन पर निर्भर है तो वेतन,बीमा,पेंशन समेत तमाम सेक्टर में विनिवेश के तहत जो आम जनता का पैसा लग रहा है,वह निजी खातों से आधार नंबर के जरिये स्थानांतरित हो रहा है और यही आधार नंबर बैकिंग के लिए अब अनिवार्य है।

गौरतलब है कि पैन नंबर में नागरिकों के आय ब्यय का ब्यौरा ही लीक हो सकता है और इसलिए पैन नंबर आधारित बैंकिंग से उतना खतरा नहीं है।लेकिन आधार नंबर कुकिंग गैस से लेकर राशन कार्ड तक के लिए अनिवार्य हो जाने से आधार के साथ साथ आंखों की पुतलियां,उंगलियों की छाप समेत तमाम तथ्य और जानकारिया लीक हो जाने का बहुत बड़ा खतरा है,जिसके मुखातिब अब हम हैं।

सिर्फ शेयर बाजार तक यह संकट सीमाबद्ध नहीं है। सामाजिक परियोजनाों के माध्यम से एकदम सीमांत लोगों,गरीबी रेखा के नीचे गुजर बसर करने वाले लोगों को भी दिहाड़ी और योजना लाभ,कर्ज वगैरह का भुगतान गैस सब्सिडी की तर्ज पर आधार नंबर से नत्थी कर दिया गया है।जिससे उनके बारे में भी कोई तथ्य गोपनीय नहीं है।

कुल मिलाकर नागरिकों के तमाम तथ्य डिजिटल तकनीक के जरिये जिस तरह सारकारी खुफिया निगरानी के लिए उपलब्ध हैं,उसीतरह बाजार के विस्तार के लिए ये तमाम तथ्यई मार्केट और ईटेलिंग के जरिये देशी विदेशी निजी कंपनियों को उपलब्ध हैं।जब सीधे प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री का संदेश पाकर आप फूले नहीं समाते और कभी यह समझने की कोशिश नहीं करते कि आपका सेल नंबर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को कैसे उपलब्ध हैं,उसीतरह चौबीसों घंटे रंग बिरंगे काल सेंटर से आपके नंबर पर होने वाले फोन से आपको अंदाजा नहीं लगता कि आपके बारे में तमाम तथ्य उन कंपनियों के पास हैं,जिसके लिए वे बाकायदा आपको टार्गेट कर रहे होते हैं।

बिल्कुल इसीतरह दुनियाभर के अपराधी,माफिया और हैकर के निशाने पर आप रातदिन हैं और मौजूदा बैंकिंग संकट सिर्फ टिप आप दि आइसबर्ग है।अब तो गाइडेड मिसाइल के साथ साथ गाइडेड बुलेट तक तकनीक विकसित है और आप रेलवे टिकट या ट्रेन टिकट बुकिंग के लिए जो तथ्य डिजिटल माध्यम से हस्तांतरित कर रहे हैं,किस प्वाइंट पर वे लीक या हैक हो सकते हैं,इसका अंदाजा किसी को नहीं है।

बांग्ला दैनिक एई समय ने सांसद ऋतव्रत की आपबीती आज पहले पेज पर प्रकाशित की है।



--
Pl see my blogs;


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!

No comments: