Wednesday, November 17, 2021

याज्ञसेनी बाँधो न केश

केश खुले ही रहने दो याज्ञसेनी

 -कोरोबी डेका हजारिका 


केश खुले ही रहने दो याज्ञसेनी

कालसर्प की तरह चारों ओर फैल जाए

तुम्हारी मेघवर्ण केशराशि

उसकी छाया में ढँक जाएं

चाँद, तारे और सूर्य

केश न बाँधो याज्ञसेनी।


अग्निसंभवा-

अपने नयनों में रखो प्रलय शिखा से बने तीर

तुम्हारे दोनों नयनों के अश्रु

अग्निकण बनकर बरस जाएं

खुले केशों से कालसर्प जैसी वेणी बाँधना

फिर कभी तुम-

लेकिन अभी केश खुले ही रहने दो याज्ञसेनी।


रूखे केश रक्त से धोऊँ

यही तो है न तुम्हारा प्रण

पांचजन्य की आवाज़ नहीं सुनाई दी है अभी

देव वाद्य भी नहीं बजा

हो सकता है,

कौरव सेना के संहार के लिए

महाक्षण नहीं आया है अभी।


पंचपति की अनाथ प्रिया

केशों की छाया में मुँह छिपाकर

कायर पांडवों को लज्जा ढँकने के लिए कहो

धर्मपुत्र की नीति के अधीन

पार्थ भी आज वृहन्नला के वेश में हैं

वीर वृकोदर शायद भोग में लिप्त हैं

और माद्री पुत्र ?

उनका तो नाम ही न लो

सुकुमार हैं वे, रक्त की बातों से ही

सिहर गए होंगें।


याज्ञसेनी-किसी से

सहायता की आशा न करो

केशों के मेघ में तूफान आएँ

मेघ गरजें और बिजली चमके

हस्तिनापुर का स्वर्ण महल,

धूल में मिल जाए।


अब तुम्हारे प्राण की तृष्णा

हम महसूस कर रहे हैं

ये क्षण है दु:शासन के अंत का

बहुत सहा है दुख और अपमान हमने

बहुत देखी है नीति के नाम पर

अत्याचार की रीति

नदी अब उल्टी दिशा में बहने लगी है....


याज्ञसेनी-

कौरव सेना का अट्टहास अब भी सुनाई दे रहा है

अंधे राजा की राजसभा में

मौत का चौसर

कायर पुरूषों का पण बनकर

हमने बहुत क्लेश सहा है

अब उत्तर देने का समय है

खुले केशों को रक्त से धोने का आयोजन

हम और तुम

साथ ही रक्त से सजाएंगे और बाँधेंगे

कालसर्प जैसी वेणी

इस समय

तुम अपने केश खुले ही रहने दो

याज्ञसेनी।

(याज्ञसेनी, द्रोपदी का ही एक और नाम है।) 

-असमिया से अनुवाद पापोरी गोस्वामी ने किया है ।

भारतीय कविता सम्मेलन, पटना मे कोरोबी डेका हजारिका ने अपनी कविता का हिंदी मे पाठ " याज्ञसेनी बाँधो न केश" शीर्षक से किया था। 



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