Friday, January 30, 2015

हे राम! वैष्णव जन तेने कहिये… पलाश विश्वास


हे राम!
वैष्णव जन तेने कहिये…
पलाश विश्वास
Feroze Mithiborwala's photo.
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वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2।

पर दुःखे उपकार करे तोये, मन अभिमान न आणे रे ।।
सकल लोक मां सहुने वन्दे, निन्दा न करे केनी रे ।।
वाच काछ मन निश्चल राखे, धन-धन जननी तेरी रे ।।

वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2।

समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, पर स्त्री जेने मात रे ।।
जिहृवा थकी असत्य न बोले, पर धन नव झाले हाथ रे ।।
मोह माया व्यापे नहि जेने, दृढ वैराग्य जेना तन मा रे ।।
राम नामशुं ताली लागी, सकल तीरथ तेना तन मा रे ।।
वण लोभी ने कपट रहित छे, काम क्रोध निवार्या रे ।।
भणे नर सैयों तेनु दरसन करता, कुळ एको तेर तार्या रे ।।

वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2।
पागल दौड़ में देश गांधी को याद कर रहा है और वैष्णव जन तो वे हैं जिनके दिलोदिमाग में पीर पैदा करने की हरेक मशीनें बनती है।

हस्तक्षेप में लगातार इस विषय पर आलेख छपे हैं।मीडिया में खूब लिखा गया है।
जनसत्ता के संपादकीय पेज पर के विक्रम राव ने प्रपंच के सहारे महिमामंडन लिखा है तो अन्ना रालेगांव से फिर दहाड़े हैंःअच्छे दिन कहां गये।उनकी फिर सत्याग्रह की तैयारी है।

केसरिया कारपोरेट वैष्णवजन के भजन कीर्तन कर्मकांड धर्म अधर्म और पागल दौड़ में देश काल पात्र गड्डमड्ड है।
इसी के मध्य वकील की दलीलें तेज हैं वसंत बहार।

केन्द्रीय मंत्री अरूण जेटली ने पूर्व पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन द्वारा परियोजनाओं के लिए हरित मंजूरी में राहुल गांधी पर हस्तक्षेप करने का आरोप लगाए जाने के बाद संप्रग शासन के दौरान मंजूर और खारिज की गयी पर्यावरणीय परियोजनाओं की समीक्षा की आज मांग की।

वित्त मंत्री ने आरोप लगाया कि सोनिया गांधी को नटराजन का पत्र 'पुख्ता तौर पर साबित करता है' कि कांग्रेस के लिए वैधानिक या आवश्यक मंजूरी की नहीं बल्कि नेताओं की 'मर्जी' ही अहम थी।
जेटली ने कहा, ''मुझे उम्मीद है कि अब पर्यावरण मंत्रालय (उस समय) मंजूरी और नामंजूर की गयी उन सभी अनुमतियों की समीक्षा करेगा और सुनिश्चित करेगा कि केवल कानून के मुताबिक ही इनका निपटारा हो और किसी अन्य बात पर नहीं।''

कोलकाता हिलेला।हिलेला देहलिवा।

दीदी कठघरे में दाखिल हैं।
मुकुल ने खूब बोला है सीबीआई जिरह में।
सत्तादल की ओर से मदन मित्र की पेशी के वक्त जो नजारा पेश किया गया था,उसके मुकाबले सन्नाटा है।
जैसे सांप सूंघ गया है।
अब अगर मुकुल गिरफ्तार हुए तो संकट में तृणमूल सरकरा और नहीं हुए तो संकट
उससे भारी है।

सुबह लिखी थीं ये पंक्तियां और मन में सन्नाटा ऐसा छाया कि फिर लिखा नहीं गया घंटों।तब मुकुल से जिरह चल रही थी।

साढ़े चार घंटे की रगड़ाई के बाद बाहर निकलकर मुकुल राय ने कहा कि वे चाहते हैं कि शारदा  फर्जीवाड़े का जो सच है,वह उजागर हो।

दिशा दिशा में उनके अनुयायी बागी बोल बोल रहे हैं  तो सीबीआई के कब्जे से बेदाग,सीना तानकर निकले मुकुल के दर्शन से धर्मांतरण मुहिम में निष्णात बंगाल और तेज केशरिया होने लगा है।

जिन सव्यसाची दत्ता के खिलाफ कालीघाट में अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए दीदी बैठक लगा रही हैं,उन्हीं सव्यसाची दत्ता ने शारदा फर्जीवाड़ा कांड के दागियों के खिलाफ  डंका पीटना शुरु किया हुआ है और आज हुए सीबीआई शो में तृणमूली जनता को हंगामा से रोक भी वही रहे थे।

बहरहाल सीबीआई ने पच्चीस प्रश्न मुकुल से पूछे जो पहले से आज के अखबारों में छपे हैं।जिनमें ममता और उनके भतीजे को कटघरे में खड़े करने वाले सवाल है तो कोलिंपोग से शुरु परिवर्तन की हवा ओं का खुलासा भी इन्हीं सवालों से होना है।

कोलिपोंग में ही मुकुल राय और सुदीप्तो के साथ ,बेशकीमती गाड़ियों के काफिला, फुटबाल, अखबार, सिनेमा और दुर्गोत्सव स्पांसर करने वाले महासितारा  रोजवैली के मालिक गौतम कुंडु की बैठक हुई थी वाम को बेदखल बनाने के लिए।

किस्सा उन सूटकेशों का भी है जो नोटों से भरे थे और विधानसभा चुनावों से पहले बांटे गये थे।देवयानी संग लापता सुदीप्तों ने भागने से पहले मुकुल के साथ बैछक की थी और गुमशुदगी के दौर में उनसे लगातार कनेक्टेड थे मुकुल बाबू तो वापसी भी उन्हींके इशारे पर हुई उनकी।

जाहिर है मुकुल ने सारे राज खोल दिये हैं जैसा कि उनका कहना भी है और सीबीआई का भी कहना है कि वे तफतीश में पूरा सहयोग कर रहे हैं और घोटाले के असली चेहरे को बेनकाब करने वाले हैं।

गौर करें कि  तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के महासचिव और पूर्व रेल मंत्री मुकुल रॉय आज शारदा घोटाला मामले में पूछताछ के लिए सीबीआई के सामने पेश हुए। मुकुल रॉय ने सीजीओ परिसर स्थित सीबीआई के कार्यालय में दाखिल होने के दौरान कहा, 'मैं यहां सीबीआई के साथ सहयोग करने के लिए हूं।' 12 जनवरी को सीबीआई ने मुकुल रॉय को समन जारी किया था और वह दो बार सीबीआई के सामने आने से बच गए थे। रॉय पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के काफी करीबी सहयोगी माने जाते हैं। उन्हें समन जारी करने के बाद रॉय बार-बार दिल्ली का दौरा कर रहे थे।

मुकुलबाबू गिरफ्तार होते तो भी राहत मिलती दीदी को कि उन्होंने शायद कुछ बका न हो।अब मामला तो हाट में हड़िया तोड़ने का है।

गौरतलब है कि मुकुल रॉय से शुक्रवार को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने शारदा घोटाला मामले में साढ़े चार घंटे तक पूछताछ की। रॉय ने साल्ट लेक इलाके में सीजीओ परिसर स्थित सीबीआई दफ्तर से दोपहर के समय बाहर आते हुए कहा कि वह चाहते हैं कि सच सबके सामने आए और मामले की जांच सही दिशा में आगे बढ़े। रॉय ने संवाददाताओं से कहा, "मैं आज जांचकर्ताओं से मिला। उन्होंने मेरे साथ लंबी पूछताछ की। मैंने उनसे कहा कि अगर जांच के लिए उन्हें मेरी जरूरत पड़ी तो मैं एक बार नहीं, बल्कि बार-बार उनसे ...


मदन मित्र और दूसरे दागी जिस तरह सीबीआई में पेश होते ही गिरफ्तार कर लिये गये,उसके बाद मुकुल का सीना तानकर सीबीआई को सहयोग का खुल्ला ऐलान के साथ बरी हो जाना नये बन रहे राजनीतिक केसरिया समीकरण का खुलासा है।

अब कोलकाता और बाकी बंगाल में इस भूकंप का कंपन किस अंक का है,वह हम अभी माप नहीं सके हैं।सूत्रों के अनुसार, पूछताछ के बाद मुकुल ने मीडिया के सामने न तो तृणमूल का जिक्र किया और न ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का।

सीबीआई अधिकारियों के सामने रॉय ने कई प्रभावशाली लोगों के बारे में खुलासा किया। जांच एजेंसी ने मुख्य रूप से कलिम्पोंग के डेलो में तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी के साथ शारदा समूह के मालिक सुदीप्त सेन की बैठक के बारे में सवाल किए। बताया जाता है कि रॉय ने बैठक में होने की बात स्वीकार की है। करीब 3.30 बजे सीबीआई दफ्तर से बाहर आने पर उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं मामले के सभी तथ्य सामने आएं और गाढ़ी कमाई का पैसा गंवाने वाले गरीबों को उचित न्याय ...

संतन के घर झगड़ा भारी
रगड़ा प्रलयंकारी
राजधाऩी दिल्ली में मारामारी।
किरण बेदी की ताजपोशी के लिए अमित शाह कैंप किये हैं और खबर है कि फोनवा  ठोंकते ही केजरी भूत दिल्लीवासियों पर जो हावी है,उसे उतारने किस्म किस्म के ओझा मसलन प्रधानमंत्री से लेकर तमाम मंत्री उपमंत्री सांसद वगैरह वगैरह गली तस्यगली में आपके चौखट पर हाजिर है।

पालिसी पैरालिसिस कौन सी बीमारी है,उसका खुलासा भी होने लगा है।मनमोहन ने इस बीमारी के चलते कुर्सी गंवाई तो मोदी महारजज्यी फिटमफिट है और इस बीमारी का वायरल किसी भी स्तर पर उन्हें छू ही नहीं सकता उनकी गुजरात गौरव गाथा उसका पुख्ता सबूत है।

अब अमेरिका जो जलवायु और मौसम की चिंतामें मुआ जा रहा है और अपने बंद कारखाने चालू करके न्यूक्लियर चूल्हा पैदा करके बारत में हर कहीं झोंक रहा है,उसके पीछे पिघलते ग्लशियरा की सेहत का मामला है।

परमाणु ईंधन पर्यावऱण के लिए सबसे अनिवार्य चीज है और इसके लिए कतनी ही भोपाल त्रासदियां हो,न अमेरिका को फिक्र है और न आज के केसरिया वैष्णवजनों को।

डाउ कैमिकल्स के मंत्री महाशय को अमेरिकी कंपनियों के हितों की चिंता थी तो भविष्य में किसी अमेरिकी कंपनी को कोई मुआवजा न दिया जाये,इसका पुख्ता इंतजाम भी कर दिया गया है।

अमेरिकी राष्ट्रपति ने चलते चलते धर्म की स्वतंत्रता की उदात्त घोषणा के साथ गांदी को राजघाट पर प्रणाम का ब्याज चुकाते हुए विकास के लाए धार्मिक विभाजन के किलाफ हिंदुत्व ब्रिगेड को चेतावनी भी दे डाली है।

लोग बेहद खुश हैं कि अमेरिका को आरएसएस का एजंडा मालूम है।

हम कब कह रहे हैं कि मालूम नइखै।
आरएसएस का एजंडा अमेरिकी हितों के मुताबिक न होइबे करता तो वे मोदी को पलकपांवड़े पर काहे बिठाते,समझने वाली बात है।

तो इंफ्रास्ट्रक्चर यानी के सीमेंट के जंगल दसों दिशाओं में खेत बनाने के खातिर चार खरब डालर झोकेंगी अमेरिकी कंपनियां और शेयर सूचकांक पार होगा पचास हजार पार।

तो जैसे योजना आयोग का खात्मा हो गया वित्तीय घाटा के इलाज बतौर वैसे ही पालिसी पैरालिसिसवा का इलाज सख्त चाहिए।

पहला काम अंजाम संविधान से धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी का जुमला हटाने का है।

अब नीति निर्दारकों और संघ सिपाहसालारों के मुताबिक असल खलनायक पर्यावरण कानून है और यूपीए के जमाने में सारी बदमाशियां इसी पर्यावरण हरी झंडी के लिए हुई।

ससुरे इस पर्यावरण मंत्रालय को खत्म करना अनिवार्य है।

न रहेगा बंस,न बजबै करै बांसुरी।

इस एजंडा का हल दीखने लगा है कि जागऱण की रपट से खुलासा हुआ कि
पीए सरकार की कार्यशैली का खुलासा करते हुए पूर्व पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन ने कांग्रेस छोड़ दी है। यूपीए सरकार में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की मर्जी चलने के आरोपों के बीच कांग्रेस पर बड़ी मुसीबत आ गई है। राहुल पर सरकारी नीतियां बदलने का आरोप लगाते हुए जयंती ने कहा कि राहुल के कार्यालय से विशेष 'इनपुट' आते थे। इनमें कुछ बड़ी परियोजनाओं को रोकने के लिए उस पर चिंता जताई जाती थी।
जयंती ने आरोप लगाया कि उन्होंने परियोजनाओं को मंजूरी देने में कांग्रेस उपाध्यक्ष के निर्देश का पालन किया। उन्होंने सोनिया और राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा कि पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र खत्म हो गया है। पर्यावरण मंत्री रहते हुए उन्होंने राहुल के निर्देश माने। फिर भी उन्हें पार्टी में हाशिये पर कर दिया।
जयंती ने राजनीति के कटु अनुभवों को देखते हुए फिलहाल किसी पार्टी में शामिल होने का फैसला नहीं किया है। हालांकि नरेंद्र मोदी के प्रति नरमी बरतते हुए उन्होंने कहा कि जब कांग्रेस ने उन्हें धोखा दिया तो वह विपक्षी होकर 'जयंती टैक्स' कह रहे थे।
अडानी की फाइल वाशरूम में थी
नटराजन ने आरोप लगाया, 'इस्तीफे के कुछ दिन पहले उन्हें कुछ कानूनी मुद्दों पर अडानी की फाइल की समीक्षा करनी थी। जब मैंने फाइल मांगी तो बताया गया कि वह खो गई है। काफी खोजबीन के बाद अधिकारियों को फाइल मिली।
बताया गया कि कंप्यूटर सेक्शन के वॉशरूम में थी, लेकिन यह मिली उसी दिन, जिस दिन मुझे हटाया गया।' उन्होंने बताया कि राहुल की वजह से ही ओडिशा के नियामगिरि पर्वतीय क्षेत्र में वेदांता की परियोजना को मंजूरी नहीं दी गई थी।
जयंती ने राहुल पर लगाए आरोप, सरकार करेगी जांच
रिव्यू और कार्रवाई होगी!
राजग सरकार ने जयंती के खुलासे की गंभीरता दिखते हुए उनके सभी फैसलों के पुनरावलोकन की बात कही। पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि 'यह गंभीर जानकारी है। जिन फाइलों की बात कही गई है, मैं उनका रिव्यू करूंगा।' भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने जयंती के पत्र पर कहा, 'मैं इस पत्र का अध्ययन करूंगा कि इस आधार पर राहुल गांधी के खिलाफ केस बन सकता है या नहीं।'
जयंती जांच कराने को तैयार
जयंती नटराजन पर लगभग 35 ऐसे अहम परियोजनाओं को हरी झंडी नहीं देने के आरोप हैं। इनमें हजार से पांच हजार करोड़ तक परियोजनाएं शामिल हैं। नटराजन ने कहा है कि यूपीए में मंत्री रहते हुए अपने निर्णयों को लेकर वे जांच का सामना करने को तैयार हैं।
कांग्रेस ने की प्रतिष्ठा धूमिल
जयंती ने राहुल गांधी कार्यालय पर उनकी प्रतिष्ठा धूमिल करने का कैम्पेन चलाने का आरोप भी लगाया। तीन दशकों से जयंती गांधी परिवार की करीबी रहीं। वह खुद पार्टी में परिवार की चौथी पीढ़ी हैं। जयंती नरसिम्हा राव सरकार के समय जीके मूपनार नेतृत्व वाली तमिल मनिला कांग्रेस में चली गई थीं। वे फिर कांग्रेस में लौट आई थीं।

गौरतलब है कि सात साल के लिए सभी परियोजनाओं को,लंबित परियोजनाओं को भी एकमुश्त हरी झंडी दे दी गयी है और संपूर्ण निजीकरणके लिए सबकुछ बेचा जा रहा है।

और संघ के सिपाहसालर य पालिसी पैरालिसिस खत्म कराने का गुहार लगा रहे हैं कि आदिवासी इलाकों में फंसी लाखों लाखों डालर का निवेश रुका है और विकास दर आईएमएफ,विश्वबैक और अमेरिकी रेटिंग एजंसियों के मनमाफिक नहीं है।

जाहिर है जो आदिवासी बागी है,उसकी खास वजह उनका गैरहिंदुत्व है।

एकर खातिर मिशनरी जा जाके वे पढ़े लिखे बनकर जल जंगल जमीन के हकोहकूक के बारे में जानकर अंग्रेजी जमाने से बगावत करते रहे।वो बगावत की बीमारी जारी रहल वानी।

एकर इलाज सलवा जुडु़म काफी नहीं है।

मध्यभारत से लेकर पूर्वोत्तर में सलवाजुड़ुम करके देख लियो कि आदिवासी तेवर बाकी हिंदुस्तान की तरह बदलता नहीं है।

जली हुई रस्सी भी सांप बनकर फुंफकराती है।

पालिसी पैरालिसिस को खत्म करने वास्ते पर्यावरण हरी झंडी ही काफी नहीं है।

आदिवासियों के दिलो दमाग में घुसलल विधर्मी भाव का खात्मा चाहि और आदिवासियों के सफाया वास्ते उनके दिलो दिमाग में कमल की खेती चाहि कि वे विशुद्ध हिंदू हो तो कहीं जाकर जल जंगल जमीन लबालब हो विदेशी निवेश से और कोई परियोजना पालिस पैरालिसि खातिर रुकै नाही।

सो यह पुण्यकर्म जोर शोर से घर वापसी खातिरै चालू आहे अब शारदा में फंसे कटघरे में खड़े दीदी के बंगाल में यह सहज विधि आजमायी जा रही है।

दिल्ली दांव पर है तो बंगाल भी दांव पर है।

दिल्ली में बजट उजट का झमेला कारपोरेट लाबिंग और अमेरिकी हितों और दिशानिर्दशों के हवाले करके कारपोरेट वकील अरुण जेटली संघ परिवार के लिए दिल्ली जीतने वास्ते सिपाहसालार बनकर बैठे हैं।

बंगाल विजय अब वक्त का इंतजार लग रहा है।
हालांकि बंगाल की शेरनी गरजी भी है।
धर्मांतरण के खिलाफ बोली भी दीदी आज और संघ परिवार को चेतावनी भी दी है कि पहले संविधान बदलने की जुर्रत करे क्योंकि भारत अब भी धर्मनिरपेक्ष देश है।

आदिवासियों के धर्मांतरण के खिलाफ आसनसोल कोयलांचल से आदिवासियों का विरोध प्रदर्शन भी शुरु हो चुका है।

और सबसे खास बात है कि विश्वहिंदू परिषद के तुर्रम खां प्रवीण तोगड़िया के खिलाफ एफआईआर दर्ज भी हो गया है।

ममता दीदी ने कहा कि सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठे नहीं रहेगी और संघ परिवार के धर्मांतऱण अभियान चलने नहीं देंगी।

धर्मांतरण को लेकर भाजपा पर तीखा हमला करते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शुक्रवार को कहा कि अगर हिम्मत है तो वह भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान को बदल कर दिखाए।
उन्होंने कहा कि कोई किसी पर धर्म परिवर्तन के लिए दबाव कैसे बना सकता है? उन्हें किसने यह जिम्मेदारी दी? तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ने सवालिया लहजे में कहा कि कुछ लोग कहते हैं कि यह धर्म अच्छा है, यह धर्म बुरा है तो फिर उस धर्म का व्यक्ति रिक्शा खींच रहा है, तो उसमें मत बैठिए।
उन्होंने कहा कि वे लोगों को नियंत्रित करना चाहते हैं। उन्हें पता नहीं है कि जब आप सत्ता में होते हैं तो आपको सुशासन देना होता है। लेकिन सुशासन का अर्थ लोगों को नियंत्रित करना नहीं है। आप किसी के अधिकारों पर नियंत्रण नहीं रख सकते।
उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्षता हमारे संविधान की आत्मा है। अगर आप इसे नियंत्रित करना चाहते हैं और आपमें हिम्मत है तो संविधान को बदलिए।


मुश्किल यह है कि सारे राजनीतिक दलों के लोग केसरिया हुए जा रहे हैं और कटघरे में खड़ी दीदी की आवाज अब उतनी बुलंद नहीं है कि ठीक से कहा जा सकें कि हर कहीं पहुंच रही होगी उनकी आवाज।

इससे भी बड़ी फिक्र का मुद्दा यह है कि बहुजन समाज मतुआ नेतृत्व में केसरिया है और शरणार्थी भी केसरिया।

अपनी सुरक्षा के लिए जमीन को रहे मुसलामान संघ परिवार में शरण ले रहे हैं और इन हालात के खिलाफ पुरजोर कोई वाम पहल नहीं है और न कोई प्रतिनिधित्वमूलक वाम नेतृत्व है बंगाल में जो केसरिया सुनामी का मुकाबला कर सकें।

दीदी और वाम की लड़ाई में बंटा हुआ है धर्मनरपेक्ष खेमा और अस्तित्व की लड़ाई में साइन बोर्ट तक सिमट गयी है कांग्रेस।

कपिल सिब्बल ने शारदा फर्जीवाड़े मामले में बंगाल सरकार का वकील बनकर कांग्रेस की हालत और पतली कर दी है।

गांधी की शहादत दिवस पर बंगाल में दुर्गोत्सव से पहले दुर्गोत्सव है और कमल की खेती है हर कहीं।

पुस्तक मेले तक में संघ परिवार की बहार है जहां भाजपा का सदस्यता अभियान जोरों पर है।

दांव पर है देश और अर्थव्यवस्था।
डाउ कैमिकल्स के वकील और वित्तमंत्री सच कहलवानी कि कोई जरुरी नहीं कि सारे फैसल बजट में हो।

कोई जरुरी नहीं कि सारे फैसले संसद में हों या सारे फैसले जनप्रतिनिधि करें,आशय इसका यह है।

आखेर बगुला जो वैष्णव जन है,जो तरह तरह की समितियों और आयोग में हैं,जो इतिहास बदलने से लेकर संपूर्ण महाभारत और संपूर्ण रामायण की तर्ज पर संपूर्ण निजीकरण की निजी टीमें है,वे कौन मर्ज की दवा हैं।

सो डाउ कैमिकल्स के वकीलवा जो हैं जो वैसे ही दिल्ला मा बइठ गइलन जइसन मैदान मा अंगद पांव सरीखे भयो कपिल सिब्बल शारदा फर्जीवाड़ा के बचाव खातिर।

भ्रष्टाचार उन्मूलन और कालाधन सफेदधन का यह गड़बड़झाला गांधीवादी अन्ना ना समझे हैं कि किनके हितों में उनके सबसे बड़े दो चेले महाभारत मचाये हैं इंद्रप्रस्थवा में।

बारीक किस्सा तोता मैना यह के दांव पर  है काश्मीर, जहां एक बेटी और बाप के सत्ता लोलुप चेहरे लाइव चमक रहे हैं दमक रहे हैं कि संघ परिवार कश्मीर घाटी पर भारी पड़ने वाला ही ठैरा है।

कोलकाता और आसपास पेयजल अब खगरीदकर पीना पड़ता है और जलापूर्ति के पानी का कोई भरोसा है नहीं।

हमरा जहां दफ्तर है मुंबई रोड पर,वहां अस्पताल तो दूर आड़ोस पड़ोस की दवा की दुकानें भी शाम ढलने तक बंद हो जाती है।

वहां तक पहुंचने के लिए दिल्ली रोड होकर सलप तक पहुंचते न पहुंचते परसो पेट में मरोड़ ऐसा हुआ कि दवा दुकान से नारफ्लाक्स टीजेड मंगवाकर काम करना पड़ा।

लौटा घर तो दो दिन से बाथरूम आते जाते हाल बेहाल।

आज अपने डाक्टर से मिला तो उनने कहा कि पूरे शहर में पेयजल के कारण डायरिया,जीसेंट्री,जान्डिस की महामारी है।

सविता बाबू ने कहा कि पेयजल खरीदकर मिनरल पी रहे है।
उन्हें भी पेट की तकलीफ हो गयी है और उनको भी दिखाना पड़ा।

डाक्टर ने सलाह दी कि खाना भी अब मिनरल से ही पकाना होगा।
बर्तन भी मिनरल से धोना है।
दवा और डाक्टर के खर्च से बचने का यह अचूक रामवाण है।

पेयजल का हाल यह है।
सांसों की तकलीफ के बारे में जो कहें कम है।

जरा बाराक ओबामा की बदली सेहत के बारे में मालूम चले तो राजधानी में विशुद्ध केसरिया हवाओं की सेहत का पता चले जिनके बारे में मशहूर है कि फिसड्डी एशियाई शहरों से भी हाल वहां ज्यादा जहरीला है।

कोलकाता में हावा पानी जलमल एकाकार है और आपराधिक वारदातें दिनचर्या है और बाकी राजनीति है।

यहां कोलकाता को दीदी वाईफाई महानगर बना रही हैं तो ओबामा देश भर में अमेरिकी कंपनियों के पैसे से स्मार्टसिटी बनवा देंगे।

विकास कितना अपच है,यह तो भुक्तभोगी ही जानै हैं।

हमारे मित्र मराठी दैनिक महानायक  के संपादक ने सुबहोसुबह बाकायदा हिंदी में लिखा है असल फंडा है क्या आखेर।

Sunil KhobragadePalash Biswas

सुनील खोपड़ागड़े मराठी दैनिक महानायक के संपादक हैं तो रिपब्लिकन पार्टी के एक बड़े धड़े के नेता भी हैं।वे देवयानी खोपड़गड़े के बाई भी है।

अभी अकस्मात जो दलित व महिला विदेश सचिव सुजाता सिंह को विदेश सचिव पद से अपमानजनक तरीके से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को अंधेरे में रखकर बर्खास्त किया गया है,देवयानी उसकी पहली कड़ी है।

सुनीलजी मराठी में ही लिखते हैं और उन्होंने यह टिप्पणी हिंदी में की है।जाहिर है कि वे हिंदी भाषी जनता से संवाद करना चाहते हैं और चूंकि वे रिपब्लिकेन पार्टी के नेता भी हैं एक लोकप्रिय मराठी दैनिक के संपादक होने के अलावा,जो महाराष्ट्र में बहुजन समाज का प्रतिनिधित्व करता है और नियमित निकलता है दूसरे अखबारों का पेशेवर तरीके से मुकाबला करते हुए,उनके इस वक्तव्य पर 30 जनवरी के खास दिन संघ परिवार के एजंडे की सही समझ के लिे नाथूराम गोडसे के महिमामंडन समय में गौर करना जरुरी है।

हमने उनकी वर्तनी सुधारी नहीं है और उनका लिखा जस का तस पेश कर रहे हैं।हूबहू।
पलाश विश्वास
सुनील खोपड़ागड़े ने लिखा हैः
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भारतीय जनता पार्टी ने धार्मिक विद्वेष की राजनीती को और प्रखर करणे की कोशिश शुरू की.इसे रोकने के लिये तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 1989 मे भारतीय लोकप्रतिनिधित्व कानून 1951 ( Representation Of People Act )मे संशोधन किया.इस संशोधित धारा का मुलभूत आधार संविधान की प्रास्ताविका है.इस संशोधित धारा के अनुसार देश के हर राजनीतिक दलोंको , भारतीय संविधान की प्रास्ताविका मे निहित, धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद, देश की संप्रभुता,एकता और अखंडता इन सिद्धान्तो के प्रती प्रतिबद्ध रहने का हलफनामा चुनाव आयोग को देने के लिये बाध्य किया है.चुनाव लडनेवाले हर उम्मिद्वार को चुनाव पर्चा दाखील करते वक़्त ऐसा हलफनामा देना जरुरी है.राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा भारतीय जनता पार्टी की मूलभूत आपत्ती Representation Of People Act मे किये गये इस संशोधन को है. क्योंकी भविष्य मे कोई व्यक्ती या संस्था अदालत मे ये साबित कर दे की, भारतीय जनता पार्टी के सांसद चुनाव आयोग को दिये हुए हलफनामे के अनुसार व्यवहार नही कर रहा है और धार्मिक विद्वेष को बढावा दे रहा है,धर्मनिरपेक्षता,समाजवाद और देश की संप्रभुता, एकता और अखंडता इन संवैधानिक मुल्यो से प्रतिबद्ध नही है, तो उस सांसद की संसद सदस्यता खतरे मे आ सकती है.इसलिये संविधान की प्रास्तविका मे निहित धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद ये शब्दो को हटाने के प्रयास RSS और BJP ने पिछले कुछ सालो से शुरू किया है.इसके तहत संघ परिवार से नाता रखनेवाली एक गैर सरकारी संघटन Good Governance India Foundation द्वारा 2007 में सुप्रीम कोर्ट में एक मामला दायर किया गया था और संविधान की प्रास्तविका मे निहित धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद ये शब्दो को हटाने और Representation Of People Act मे किये गये उपरोल्लिखित संशोधन को निरस्त करने की मांग की थी. तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने देश के नामचीन विधीद्न्य फली नरिमन को अनुबंधित कर इस मांग का दृढ़ता से विरोध किया था.फलस्वरूप इस संस्था ने यह मामला छोड दिया और सुप्रीम कोर्ट ने इसे 2010 में खारीज किया. अब, देश में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार की स्थापना होने के बाद RSS और BJP अपना यह अजेंडा अंमल मे लाने के लिये जमीन तलाश रही है.गणतंत्र दिन की विज्ञापन से धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद ये शब्दो को हटाने की वजह इस पर जनता की प्रतिक्रियाओं का जायजा लेना है.

संविधानाचे संरक्षण ही सर्वांचीच जबाबदारी- संपादकीय 29-1-2015

महानायक में प्रकाशित संपादकीय
भारत सरकारच्या माहिती व प्रसारण मंत्रालयाकडून देशाच्या 65 व्या प्रजासत्ताक दिनानिमित्ताने विविध प्रसार माध्यमातून एक जाहिरात प्रकाशित करण्यात आली. या जाहिरातीमध्ये भारतीय संविधानातील प्रास्ताविकेला प्रसिद्धी देण्यात आली. मात्र यातून `समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष' हे दोन महत्वपूर्ण शब्द वगळले गेले. जाहिरातील ही चूक अजाणतेपणाने झाल्याचा खुलासा केंद्रीय माहिती व प्रसारण राज्यमंत्री राजवर्धन राठोड यांनी सरकारतर्फे केला आहे. यासंदर्भात यांनी केलेल्या खुलाशात असे म्हटले आहे की, भारतीय संविधानाच्या मूळ प्रास्ताविकेत समाजवाद व धर्मनिरपेक्ष हे दोन्ही शब्द नाहीत. त्याचा समावेश 1976 साली करण्यात आलेल्या 42 व्या घटना दुरुस्तीद्वारे करण्यात आला. जाहिरातीत वापरण्यात आलेला मजकूर संविधानाच्या 1976 पूर्वीच्या प्रतीमधील आहे. या प्रतीमधील प्रास्ताविका अनवधानाने जाहिरातीसाठी वापरण्यात आल्यामुळे संबंधित जाहिरातीत समाजवाद व धर्मनिरपेक्ष हे दोन शब्द येऊ शकले नाही. हे शब्द वगळण्याचा सरकारचा हेतू नव्हता. केंद्र सरकारतर्फे केलेला हा खुलासा वरकरणी तरी पटणारा नाही. या संदर्भात वाद निर्माण झाल्यानंतर शिवसेनेचे खासदार संजय राऊत यांनी या प्रकरणी प्रसारमाध्यमांना दिलेल्या निवेदनात हे दोन शब्द वगळण्याचा जोरदार पुरस्कार केला आहे. सरकारने केलेली चूक व संजय राऊत यांचे वक्तव्य यामुळे एका नव्या वादाला सुरुवात झाली आहे.
सरकार चालविणे म्हणजे काही भातुकलीचा खेळ नाही. सरकारची कोणतीही कृती देशाचे संविधान, नियम, कायदे, परंपरा यांचे पालन करुन देशातील सौहार्द्र बिघडणार नाही, याची हमी देणारी असावी लागते. त्यासाठी विशिष्ट असा आराखडा आणि नियोजन असते. त्या आधारावर सरकार चालवावे लागते. आपल्या देशाचा कारभार चालविण्याची रुपरेखा ही संविधानात आहे. म्हणूनच संविधानाला `राष्ट्राचा प्राणग्रंथ' म्हणून स्थान मिळाले आहे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदींनी संविधानाला राष्ट्राचा धर्मग्रंथ म्हणून संबोधले आहे. देशाचे प्रधानमंत्री म्हणून त्यांचा हा पहिलाच प्रजासत्ताक दिन होता. प्रजासत्ताक दिनाच्या सोहळ्यासाठी प्रमुख पाहुणे म्हणून लोकशाहीची दिर्घ परंपरा असलेल्या अमेरिकेच्या राष्ट्राध्यक्षांना निमंत्रित करण्यात आले होते. अमेरिकन राष्ट्राध्यक्षांनी भारतातील लोकशाहीची प्रशंसा केली. त्याचवेळी सरकारने धार्मिक विविधतेचा आदर केला पाहिजे, असाही सल्ला भारताला दिला. याचवेळी भारत सरकारने पकाशित केलेल्या जाहिरातीतून लोकशाहीचा अनमोल दस्तावेज असलेल्या भारतीय संविधानाच्या प्रास्ताविकेतील समाजवाद व धर्मनिरपेक्ष असे हे दोन महत्वाचे शब्द गाळणे म्हणजे संविधानाच्या उत्सवदिनी संविधानावर  प्राणघातक हल्ला चढविण्यासारखा अघोरी प्रकार म्हणता येईल. केंद्रात  स्थापन झालेल्या सरकारची राजकीय विचारसरणी जी काही असेल ती बाजूला ठेऊन सरकारने आता संविधानाचे संरक्षक म्हणून संपूर्ण देशाच्या वतीने राज्यकारभार केला पाहिजे. असे होत नसेल तर या देशाच्या लोकशाहीला खऱया अर्थाने सरकारपासूनच धोका निर्माण झाला आहे, असे म्हणावे लागेल.
भारतीय संविधानाच्या मूळ प्रास्ताविकेत समाजवादी आणि धर्मनिरपेक्ष हे शब्द नव्हते ही वस्तुस्थिती आहे. हे शब्द समाविष्ट करण्यासाठी  तत्कालिन संविधान सभेचे सदस्य प्रोफेसर के.टी. शाह  यांनी संविधानाच्या प्रास्ताविकेत दुरुस्ती करण्याचा प्रस्ताव ठेवला होता. या संदर्भात 15 नोव्हेंबर 1948 रोजी झालेल्या चर्चेदरम्यान अनेक सदस्यांनी प्रोफेसर शाह यांच्या प्रस्तावाला समर्थनही दिले. मात्र ही दुरुस्ती भारतीय संविधानाचे  प्रमुख शिल्पकार डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर यांनी फेटाळून लावली होती. यावेळी केलेल्या भाषणात त्यांनी दोन प्रमुख मुद्यांवर युक्तीवाद केला. त्यापैकी  पहिल्या मुद्यात ते म्हणतात की, `` संविधान म्हणजे सरकारच्या  कारभाराचे आणि सरकारच्या विविध अंगाचे नियमन करणारी एक यंत्रणा आहे. कोणत्याही पक्षांच्या राजकीय धोरणानुसार सरकार चालविण्यास साहाय्य करणारा दस्तावेज नाही.  सरकारचे धोरण काय असावे समाजाचे सामाजिक  आणि आर्थिक संघटन कसे असावे हे काळानुसार बदलणारी परिस्थिती लक्षात घेऊन त्यावेळचे लोक ठरवितील. ही बाब जर संविधानानेच ठरवून दिली तर  लोकशाहीला गतीरोध निर्माण होईल. यामुळे लोकांच्या निर्णय स्वातंत्र्यावर बंधने येतील आजच्या घडीला भांडवलशाही शासन प्रणाली पेक्षा  समाजवादी शासन प्रणाली योग्य वाटत असेल परंतु भविष्यात यापेक्षा एखादी वेगळी प्रणाली लोकांना आकर्षक वाटू शकेल. यामुळे लोकांच्या स्वातंत्र्यावर बंधने आणून त्यांना अमुकच एका प्रकारची शासनप्रणाली स्विकारा असे बंधन संविधानाद्वारे घालणे गैर आहे.''  यासंदर्भातील दुसऱया मुद्यात ते म्हणतात की, `` संविधानात राज्याच्या धोरणाची निती निर्देशक तत्वे समाविष्ट करण्यात आली आहे. ही तत्वे मुलभूत हक्का इतकीच महत्वाची आहेत. या नुसार सरकारने राज्यकारभाराची धोरणे आखतानां 1) देशातील सर्व नागरिकांना, स्त्री- पुरुषांना उपजिवीकेची पुरेशी साधने उपलब्ध होतील अशी व्यवस्था सरकाने केली पाहिजे. 2)  देशाच्या मालकीच्या साधन संपत्तीचे आणि  उत्पादनांच्या भौतिक साधनाचे व संपत्तीचे  वाटप सर्वसामान्यांना उपकारक होईल अशा प्रकारे  केले जाईल  याची खबरदारी राज्याने घेतली पाहिजे. 3) देशाची अर्थव्यवस्था  अशा प्रकारे चालविली गेली पाहिजे की, ज्यामुळे संपत्तीचे आणि उत्पादनाच्या साधनांचे केंद्रीकरण कोणत्याही एका वर्गाकडे होणार नाही.4) पत्येक स्त्री- पुरुषाला समान कामासाठी समान वेतन मिळाले पाहिजे याची खबरदारी राज्याने घेतली पाहिजे. संविधानात नमुद केलेली ही तत्वे म्हणजे समाजवादच आहे. यामुळे प्रस्ताविकेत सोशलिस्ट हा शब्द वेगळेपणाने समाविष्ट करण्याची गरज नाही.'' डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरांचे हे स्पष्टीकरण पाहाता देशातील नागरिकांनी बदलत्या काळानुरुप कोणती तत्वप्रणाली स्विकारावी याचे स्वातंत्र्य त्या-त्या पिढीला असले पाहिजे हा त्यांचा आग्रह होता. त्याचप्रमाणे   भारतीय संविधानात समाजवादी तत्वे असल्यामुळे प्रास्ताविकेत पुन्हा समाजवाद हा शब्द समाविष्ट करण्याची गरज नाही हे स्पष्ट होते. संविधानातील  नितीनिर्देशक तत्वे म्हणजे सरकारचा जॉब चॉर्ट आहे. यानुसारच सरकारने राज्यकारभार केला पाहिजे. त्यावेळचे प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु यांनी याच जॉब चॉर्टला अनुसरुन आधुनिक भारताच्या विकासाची मुहुर्तमेढ रोवली होती हे नाकारता येणार नाही. प्रधानमंत्री इंदीरा गांधी यांनीही  समाजवादी तत्वांना अनुसरुनच भारतात 1970च्या दशकात जमिन सुधारणा कायदे, बँकांचे राष्ट्रीयीकरण, संस्थानिकांचे तनखे बंद करणे ही पाऊले उचलली. इंदिरा गांधींच्या या सुधारणांना आताच्या भाजपाचे मूळ असलेल्या जनसंघाने कडाडून विरोध केला होता.  मात्र या विरोधाला न जुमानता त्यांनी थोड्याफार प्रमाणात का होईना परंतु राज्याच्या नितीनिर्देशक धोरणाची अंमलबजावणी करणारे कायदे केले. या कायद्यांना विरोध करण्यासाठी जनसंघाने  जयप्रकाश नारायण यांच्या नेतृत्वाखाली इतर विरोधी पक्षांना हाताशी धरुन देशामध्ये गोंधळाचे व अराजकसदृश्य वातावरण तयार केले. जनसंघाला आपला हिंदूराष्ट्राचा अजेंडा उघडपणे राबविणे शक्य नसल्यामुळे जयप्रकाश नारायण यांच्या माध्यमातून `संपूर्ण क्रांती 'चा नारा देण्यात आला. या संपूर्ण क्रांतीचा  मुख्य आधार समाजवाद ही संकल्पना होती. मात्र या आंदोलनाच्या आडून जनसंघ आपले धर्माधिष्ठीत हिंदूत्ववादी राजकारण पुढे आणू इच्छित होता.संपूर्ण क्रांतीच्या नावाने संविधानातील समाजवादी तत्वांची अंमलबजावणी करणाऱ्या सुधारणांना विरोध करणे हे जनसंघाचे उद्दिष्ट होते. हे ओळखून यास  शह देण्यासाठी  इंदिरा गांधी यांनी भारतीय संविधानाच्या प्रास्ताविकेत समाजवादी आणि धर्मनिरपेक्ष हे दोन शब्द 42व्या घटना दुरुस्तीद्वारे समाविष्ट केले.
समाजवादी आणि धर्मनिरपेक्ष हे शब्द संविधानाच्या पास्ताविकेत  समाविष्ट केल्यामुळे जनसंघाला धार्मिक विद्वेषाचे राजकारण करण्यास अडथळा निर्माण झाला.यामुळे जनसंघाने  इतर विरोधी पक्षाच्या माध्यमातून देश अस्थिर करण्याचे प्रयत्न केल्यामुळे इंदिरा गांधीने आणिबाणी घोषित केली. इंदिरा गांधींच्या खुनानंतर रा.स्व.संघाचे राजकीय अपत्य असलेल्या भारतीय जनता पक्षाने धार्मिक विद्वेषाचे राजकारण आणखी टोकदार करण्याचा प्रयत्न चालविला.यास शह देण्यासाठी तत्कालिन प्रधानमंत्री  विश्वनाथ प्रताप सिंह यांनी 1989 मध्ये  भारतीय लोकप्रतिनिधत्व कायदा 1951मध्ये दुरुस्ती केली.  या नुसार  निवडणूक लढविणाऱया प्रत्येक राजकीय पक्षांनी देशाच्या संविधानाच्या प्रास्ताविकेत नमुद केलेल्या  लोकशाही, धर्मनिरपेक्षता व समाजवाद आणि  देशाचे सार्वभौमत्व, एकता आणि अखंडता या तत्वांशी आपण बांधिल आहोत असे प्रतिज्ञापत्र देणे बंधनकारक आहे. रा.स्व. संघाचा व भारतीय जनता पक्षाचा मूळ आक्षेप या दुरुस्तीला आहे. या दुरुस्तीचा आधार संविधानातील उपरोक्त शब्द असल्यामुळे त्यांना आपले धर्माधारीत राजकारण करण्यास बाधा निर्माण होते.उद्या कोणी, भारतीय जनता पक्षाचे  खासदार  निवडणूक आयोगाला दिलेल्या प्रतिज्ञा पत्रानुसार धर्मनिरपेक्षता व समाजवाद आणि  देशाचे सार्वभौमत्व, एकता आणि अखंडता या तत्वांशी बांधील न राहता या तत्वांशी विसंगत वर्तन करीत आहे हे न्यायालयात सिद्ध केले तर त्याची खासदारकी रद्द होऊ शकते.यामुळे हे शब्द वगळण्यासाठी संघाचे आणि भाजपाचे प्रयत्न सुरु आहेत.यादृष्टीने  संघ परिवाराशी संबंधीत असलेल्या ` गुड गव्हर्नन्स इंडिया फाऊंडेशन' या अशासकीय संस्थेमार्पत २००७ साली सर्वोच्च न्यायालयात याचिका दाखल करण्यात आली होती. सरकारने याचा जोरदार प्रतिवाद केल्यामुळे 2010 मध्ये ही याचीका फेटाळण्यात आली.  आता मात्र देशात भारतीय जनता पक्षाच्या नेतृत्वाखाली सरकार स्थापन झाल्यामुळे संघाने  आपला अजेंडा राबविण्यासाठी हालचाली सुरु केल्या आहेत. जाहीरातीतून हे शब्द वगळणे याच रणनितीचा एक भाग आहे.या निमित्ताने देशातील नागरिकांमध्ये   हे शब्द  वगळण्याविषयी  काय प्रतिक्रिया उमटते याची चाचपणी  करण्यात आली आहे.
संविधानात `सेक्युलर आणि सोशलिस्ट' हे शब्द  असावेत किंवा असू नयेत याबाबत वाद होऊ शकतो. मात्र हे शब्द जर बदलायचे असतील तर त्यासाठी संविधानाने विहीत केलेली प्रकिया अवलंबून रीतसर घटना दुरुस्तीचे विधेयक ठेऊन केली गेली पाहिजे. या वादासंदर्भात आंबेडकरवादी संघटनांनी जो पवित्रा घेतला आहे, तो केवळ भावनिकतेपोटी आहे. संविधान म्हणजे एखादी धार्मिक पोथी नव्हे. त्यात काळानुरुप बदल करण्याची आवश्यकता भासल्यास असे बदल करण्याची तरतुद खुद्द डॉ. बाबासाहेब आंबेडकरांनीच केली आहे दुसरा महत्वाचा भाग म्हणजे संविधानाचे संरक्षण करण्याचा मक्ता केवळ आंबेडकरवाद्यांनीच घेतला आहे असे चित्र अलिकडे निर्माण झाले आहे. संविधानातील तरतुदींचे लाभार्थी या देशातील सर्वच समाजसमुह आहेत. त्यांनीही पुढे येऊन कल्याणकारी समाजव्यवस्थेला हानीकरक ठरतील अशा बदलांना विरोध करणे आवश्यक आहे. आंबेडकरवादी लोक उगाचच भावनीक झाल्यामुळे संविधान केवळ आंबेडकरवादी जनतेच्याच भल्याचे आहे अशी एक धारणा इतर समाजांमध्ये निर्माण झाली आहे. ती दुर करणे गरजेचे आहे. हे लक्षात घेऊन या संदर्भातील विरोध संघटीत करण्याची  रणनिती आखली पाहिजे.




  • Narendra Modi, Republic day, Indian and Broadcasting Ministry, BJP, National News
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  • Narendra Modi, Barack Obama, Obama in India, Siri Fort Auditorium, Delhi, National News
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  • जनसत्ता | January 29, 2015
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  • जनसत्ता | January 28, 2015
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Alarm!Alarm!Wake up! All the way Beast runs through! All the way reforms and reforms! Palash Biswas


Alarm!Alarm!Wake up!
All the way Beast runs through! All the way reforms and reforms!
Palash Biswas

Alarm!Alarm!Wake up!
The Indian government has asked tax officials to apply the principle behind a tax ruling in favour of Vodafone Group Plc(VOD.L) to all similar cases, a major boost to foreign firms including Royal Dutch Shell PLC (RDSa.L). Thus,India's decision to drop a tax dispute with Vodafone Group Plc is likely to mean relief for Royal Dutch Shell PLC and others caught in similar, protracted battles, as the government tries to attract much-needed foreign investment.

Union Finance Minister of Dow Chemicals Arun Jaitley has said that US President Barack Obama's visit has helped both the countries in forging new commercial ties.He added that in the conclave of Indian and American business leaders, the CEOs exhibited a strong confidence about India and showed great interest to invest.Jaitley said that the queries of American business leaders were essentially related to the ease of doing business in India.Referring to the World Economic Forum's annual meeting at Davos last week, the Finance Minister said the investors were looking at India with greater enthusiasm.

US President Barack Obama's visit has helped forge a new commercial relationship and India appears high on the agenda of American companies flush with funds looking for investment opportunities, finance minister Arun Jaitely has said.

About a fifth of India's 1.27 billion people identify themselves as belonging to faiths other than Hinduism. Modi has warned lawmakers from his own party to stop promoting controversial issues such as religious conversions and to focus on economic reforms.But cent percent Hindutva drive is as much as intensive as the drive for reforms.

Conversion of every non Hindu and the agenda to make India free of Christians and Muslims,the Ghar Wapsi,ended th Parade in a Prod while the US President warned against  Hinduization referring to Indian Constitution.

The Free Market economy might not grow on Fire.that is the aesthetics.

All the way Beast runs through! All the way reforms and reforms!
The so much so hyped success in diplomacy is exposed and the media management to project Modi as world leader results in a rare fashion statement hitherto we have not seen.Parade ends in Prod as Obama warned India against cent percent Hindutva and quoted Indian constitution.Now lo!The PM has to dismiss the foreign secretary after such a record breakthrough and having ensured billion billion Dollars for the air conditioned HAVES to intensify the economic ethnic cleansing.

Here it is.There you are!
ET reports:The government has pressed the accelerator on the reforms front, fast-tracking a faltering disinvestment programme, fixing a base price for auction of spectrum for 3G telecom services and deciding not to appeal a decision by the Bombay High Court, which had quashed a transfer pricing-related tax demand on Vodafone, keeping its promise of a non-adversarial tax regime.
It is pertinent to mention here that a government-appointed panel had recommended reforms in food subsidy and its distribution system on January 21. The recommended reforms include decentralisation of grain procurement.Just because Global credit rating agency Moody's Investor Service Thursday said the recommended reforms in food subsidy and distribution will reduce India's inflationary pressures and fiscal deficit.

"We expect (farm sector reforms)... will improve the efficiency of India's food supply chain, a credit positive because it will reduce inflationary pressures and the government's fiscal deficit, two key constraints on the sovereign's credit quality," Moody's said  

Prime Minister Narendra Modi has fired India's highest-ranking diplomat and replaced her with the ambassador to the US, a day after a successful visit by President Barack Obama.In her e-mail dated January 28, Singh said that she had sought early retirement from the government service after 38 years!

just see the Times of India report:
"Government leaders, policy makers, heads of major corporations were engaging with India. Our own industrialists were attending the conferences with a renewed sense of confidence with their heads held high," he said.

India had the second largest contingent after the United States at Davos. Investor perception about India has reversed dramatically after years of stagnation.

Prime Minister Narendra Modi with US President Barack Obama at the India-US Business Summit in New Delhi, on January 26, 2015.

But he said the optimism was, however, tempered with caution. "Will India be able to deliver what it has promised? Will all these ordinances translate into law? Will the obstructionists be able to derail India's march? Many questions centered around this scepticism," he said.


He said the conclave of Indian and American CEOs during President Obama's visit exhibited a strong confidence about India.

"The desire of American businesses to invest in India was great. Their queries related essentially to the ease of doing business in India," he said.

The finance minister said both internal and external factors favour India. Decline in global crude oil prices have helped and states are competing with each other for higher growth. Andhra Pradesh chief minister N Chandrababu Naidu and Maharashtra chief minister Devendra Fadnavis were aggressively marketing their their states for investment in Davos.


"India needs more resources. Our domestic resources are not adequate. The cost of our capital is high. The world is looking to invest," the finance minister said.

"There are not too many options which are more attractive than India. Whereas most competing economies are facing serious challenges, India is promising to accelerate its growth. Hope has revisited us," he said.


Jan 29 2015 : The Economic Times (Kolkata)
After Barack, Govt Moves Like Beast on Reforms Road

New Delhi
Our Bureau


Oks Rs 24kcr CIL sale, fixes base price for 3G, decides not to challenge Voda order
The government has pressed the accelerator on the reforms front, fast-tracking a faltering disinvestment programme, fixing a base price for auction of spectrum for 3G telecom services and deciding not to appeal a decision by the Bombay High Court, which had quashed a transfer pricing-related tax demand on Vodafone, keeping its promise of a non-adversarial tax regime.
The government on Wednesday notified stock exchanges that it would sell up to 10% in Coal India on Friday (January 30), a transaction that could fetch as much as ` . 24,000 crore, more than half the disinvestment target of ` . 43,425 crore for the fiscal year ended March 31, 2015. It has raised only ` . 1,700 crore till now. Barring the Coal India stake sale, all the other decisions were taken by the Cabinet, which met on Wednesday afternoon.
Further, the cabinet committee on economic affairs (CCEA) approved HDFC Bank's plan to raise Rs 10,000 crore capital though a rights issue. The CCEA also approved Lupin's proposal to raise the FII limit in the company to 49% from 33%, which could fetch foreign investment of Rs.6099 crore, the government said in a statement. Both proposals had already been approved by the Foreign Investment Promotion Board (FIPB).
DISINVESTMENT FAST-TRACKED
The cabinet is likely to be busy on Thursday as well as the CCEA will decide the price band for the offer for sale (OFS) of Coal India. The price band will be announced on Thursday evening and retail investors will, as is the usual practice, benefit from a 5% discount.
Coal India's share closed 0.27% up at Rs 384.05 on the BSE on Wednesday.
ET had reported on January 12 that a 10% stake sale in Coal India was imminent after the government managed to convince unions who had gone on strike protesting the disinvestment as well as a provision in the recently promulgated ordinance which could allow private companies to mine and sell coal.
"The final price would be anywhere between Rs 365 and Rs 375 per share," a person privy to the deliberations told ET. The government is likely to sell 5-10 % stakes in Power Finance Corporation and Rural Electrification Corporation once the Coal India OFS is complete.
NOT TO APPEAL VODAFONE CASE
The Union Cabinet decided not to appeal the Bombay High Court decision that had squashed a Rs 1,397 crore transfer pricing claim on telecom major Vodafone.
Bombay High Court had struck down the demand in an order in October this year.
In a statement the government said it decided not to appeal the case in the Supreme Court based on the opinions of the Chief Commissioner of Income-tax (International Taxation), Chairperson (CBDT) and the Attorney General of India.
"This is a major correction of a tax matter which has adversely affected investor sentiment," the statement said.
The decision could benefit IBM, Nokia, Cairn India, Leighton India and many others that have faced similar tax demands.
The cabinet said the government will accept orders at different fora in similar cases that have been decided in favour of the taxpayer.
"The government, led by the Prime Minister Narendra Modi, wants to convey a clear message to investors world over that this is a government where the decisions will be fair, transparent and within the four corners of the law" telecommuni cations minister Ravi Shankar Prasad told a news conference after a cabinet meeting.
The tax demand on Vodafone and other MNCs had caused consternation as the tax authorities had sought to tax equity inflows from the parent company to their Indian affiliates using transfer pricing rules, something which many tax experts say is unprecedented.
HIGHER RESERVE PRICE FOR 3G AUCTION
The union cabinet also decided to adopt recommendations by the Telecom Commission setting the base price for the 3G spectrum auction at Rs 3705 crore, significantly higher than that suggested by the telecom regulator TRAI.
At this price, the government is guaranteed of at least Rs 17,555 crore, a third of which will accrue to the exchequer in the current fiscal providing support to finance minister Arun Jaitley, who is struggling to meet the fiscal deficit target for the year.
"The estimated revenues from the auction of 2100 MHz Band are Rs.17555 crore of which Rs.5793 crore is expected to be realized in the current financial year," the government said in a statement.
The industry expressed unhappiness with the higher base price.

(Reuters) - The Indian government has asked tax officials to apply the principle behind a tax ruling in favour of Vodafone Group Plc(VOD.L) to all similar cases, a major boost to foreign firms including Royal Dutch Shell PLC (RDSa.L).
The order was detailed in a letter seen by Reuters and sent by the finance ministry to all tax officials across the country on Thursday.
India's image as an investment destination has been tarnished by a reputation for red tape, unpredictable rules and a tax office long seen as over zealous in its pursuit of foreign companies with billions of dollars of demands.
Prime Minister Narendra Modi's government, which stormed to power in May on promises it would reboot a slowing economy, has sought to change that.
Tax lawyers said they expected the government order to impact all the past and future cases involving tax on shares issued by a company to related entities -- the heart of the Vodafone case.
The order came a day after the government said it would not appeal a Bombay High Court ruling in favour of Vodafone in a long-running dispute under which the taxmen had accused a unit of the British telecoms firm of under-pricing shares in a rights issue.
"In view of the acceptance of the above judgement, it is directed that the ratio decidendi of the judgement must be adhered to by the field officers in all cases here this issue is involved," said the letter from the finance ministry, using a Latin phrase denoting the rationale behind the ruling.
The decision will also bring relief to Shell, which won a favourable ruling in the Bombay High Court in November after it challenged the largest ever claim in an Indian tax case related to transfer pricing.
Transfer pricing is the value at which firms trade products, services or assets between units across borders, a regular part of doing business for a multinational.
TAX FIGHTS
The Indian government said in 2013 that 27 companies, including units of HSBC (HSBA.L), Standard Chartered (STAN.L) and Vodafone, underpaid taxes in the fiscal year 2011/12 after they sold shares to their overseas arms too cheaply.
While latest figure on the companies facing such charges are not available, tax lawyers said tax demand worth billions of dollars have been issued in the last couple of years in transfer pricing cases to multinational as well as local firms.
Most of these cases are at various stages of litigation, they said, adding cases such as those involving IBM (IBM.N), Microsoft Corp (MSFT.O), Sony Corp (6758.T), India's Essar Group and others could now be resolved instead through negotiation.
Vodafone has been involved in a string of tax disputes in India. The Bombay High Court in October ruled in its favour in the share issue case, and the attorney general recommended the government refrain from appealing.
On Wednesday the government heeded the recommendation, just days after Finance Minister Arun Jaitley reassured investors that India would review its past, "adversarial", tax policy.
A spokesman for Shell declined to comment. IBM, Microsoft, Sony and Essar were not immediately available for a comment, while Standard Chartered and HSBC declined to comment.


IBN Live reports:
External Affairs Minister Sushma Swaraj was not in favour of "curtailing" Sujatha Singh's tenure as the Foreign Secretary of India, say sources. The sacking of Sujatha Singh, who was to retire in July, is one of the reasons of tussle between her and National Security Advisor Ajit Doval.
Sources also say in the last six months no recommendation of MEA has been accepted by Prime Minister's Office and no new ambassador or high commissioner has been appointed due to this. Sujatha Singh's case is the second major sacking after former Deputy NSA Nehchal Sandhu was shown the door.

Even as Sujatha Singh refused to comment on her tenure being curtailed, the Centre reportedly gave hints to her that she is no longer required.
Sources say Prime Minister Narendra Modi had given enough hints that he was unhappy with Sujatha Singh. She was not included in delegation-level talks during a very important foreign head's visit and on another occasion, she was not included in the delegation over working lunch.

First Post however decodes the mystery!
Three days before he was scheduled to retire and a day after the diplomatic success of US President Barack Obama's visit for Republic Day, India's envoy to the US, Dr Subrahmanyam Jaishankar, got a call from the Modi government to take over as a the nation's next foreign secretary. But the move may have been in offing for long given that Prime Minister Narendra Modi has reportedly been keen on shunting Sujatha Singh out at the earliest.

The government was characteristically tight lipped about the change of post and in its release only said that Singh's tenure that was due to end in eight months was 'curtailed' with immediate effect. Singh took charge in August 2013, and was only the third woman to hold the post. While some reports indicated she could take charge of a diplomatic mission abroad, no posting have been assigned as of now.
However, a report in the Hinduquoted government sources as saying that Singh had sought voluntary retirement and it is unclear whether her removal will spark tension with other bureaucrats in the ministry. The last time such a major change occured when Rajiv Gandhi sacked his Foreign Secretary AP Venkateswaran leading to a huge controversy and stiff protest by the Foreign Service.
SALE SALE SALE!

A month before the budget, Modi government walks the talk

8 hours ago
Pssst...the budget's coming.(Reuters/Anindito Mukherjee)
After the hugs and histrionics of US president Barack Obama's visit to New Delhi, the Narendra Modi-led Bharatiya Janata Party (BJP) government has swiftly got down to business.
Three seemingly disparate announcements from the Modi government on Wednesday (Jan. 28)—a month before finance minister Arun Jaitley presents the budget—clearly signal its intention to boost investor sentiment and plug India's yawning fiscal deficit.

Coal India stake sale

It's been a little over 20 days since more than 500,000 employees of Coal India Limited (CIL) staged one of the largest industrial actions since 1977 to protest against the government's decision to partly divest its stake in the mining company.
But on Jan. 28, the government announced that it was going to sell 10% stake in the company to raise Rs24,000 crore ($4 billion).
The government owns 90% stake in CIL and this sale alone will meet 40% of the annual disinvestment target—Rs58,425 crore ($10 billion)—that the new government had set for itself in its interim budget in July 2014.
Among the largest coal mining firms globally, CIL accounts for 80% of the coal production in India. Last fiscal, the company posted a net profit of Rs15,008 crore ($2.5 billion).
But the coal sector has been roiled by regulatory issues in recent months, even as demand for the fuel has steadily increased. In Aug. 2014, India's Supreme Court had cancelled as many as 214 coal block allocations to companies and the government is in the midst of reallocating the blocks.
The government has been talking of divesting in CIL since September last year, but protests by its employees had forced the government to delay the process, which in the meantime eroded the company's share price by as much as 14%.

3G spectrum sale

On Jan. 28, the Indian government also fixed the base price for selling 3G spectrum in the country.
"The Union Cabinet, chaired by the prime minister, has approved the proposal of the department of telecommunication (DoT) to proceed with auction in 2,100 MHz band along with 800, 900 and 1,800 MHz bands. The reserve price approved for 2,100 MHz band is Rs3,705 crore ($600 million) pan-India per MHz", the government said in a statement.
The auctions are scheduled for March 4.
The government in January this year also set the reserve price for the auction of 2G spectrum—in 800 MHz, 900 Mhz and 1,800 MHz bands, which is expected to fetch the government Rs64,840 crore ($10.5 billion).
As India's finance minister looks to bring down the country's fiscal deficit to 4.1% of the gross domestic product, an additional Rs16,000 crore ($2.6 billion) from 2G spectrum sale and Rs5,793 crore ($900 million) on 3G airwaves is expected to flow in before the end of the financial year. The remaining amount from the sale will come in subsequently.
India's telecom sector has been in a mess for the past few years with heavy competition and lack of spectrum availability. The government controls the spectrum, which it often auctions out to private telecom operators. In February last year, it had raised over Rs60,000 crore ($9.8 billion).
In Feb. 2012, the Supreme Court had cancelled 122 licences granted to 11 mobile operators, for 2G licences, after it found that the government had incurred massive loss by not auctioning them.

Vodafone tax dispute

The Modi government has also decided not to appeal against a verdict by the Bombay high court, which ruled that the British telecom company Vodafone was not liable to pay tax of Rs3,200 crore ($490 million) in a transfer pricing case.
"I have publicly said I am against adversarial taxation. Currently, I am in the process of making (the) budget and I have seen that I have not earned a single rupee from all those contentious cases. All I have got is bad image and no money," finance minister Jaitley said in Davos recently.
India's income tax department had claimed that Vodafone undervalued its shares in its Indian subsidiary while transferring them to the parent company in 2010, and was asked to pay additional income tax in 2012.
"The government, led by the prime minister Narendra Modi, wants to convey a clear message to investors world over that this is a government where the decisions will be fair, transparent and within the four corners of the law," telecom minister Ravi Shankar Prasad said on Jan. 28.
Last November, the Indian arm of Royal Dutch Shell also won a $1.4 billion (Rs8,656.55 crore) tax dispute at the Bombay high court.
All together, it is an indication that this might be the end of a short-lived but damaging era of "tax terrorism" that began after the previous Manmohan Singh government, in 2012, introduced a retrospective tax amendment, allowing it to scrutinise cross-border deals going back to 1962.

Obama Disses Religious Liberties in India

Reason (blog) - ‎Jan 28, 2015‎
President Barack Obama handed Narendra Modi a personal triumph by accepting the Indian prime minister's invitation to attendIndia's Republic Day celebrations last Monday, January 26. The holiday commemorates Indiaadopting its constitution, and affirms the nation's commitment to religious ... He resolutely resisted, even though this prevented legislation on his key economic reformsfrom moving forward. Moreover, he rechristened Christmas as Good Governance Day, cancelling this Christian national holiday for ...

Obama in India: US president announces $4 billion of new initiatives, trade ...

Economic Times - ‎Jan 27, 2015‎
PM Modi has announced reforms that will overcome some of these barriers, including a new committee dedicated to fast-tracking US investments. We need to be fostering a business environment that is more accountable and transparent," he said.

Obama's Visit: India's Role As A 'Swing Power' - Analysis

Eurasia Review - ‎18 hours ago‎
However, in order to realise this excellent and cautious excitement over defence and trade, India needs to initiate a series of structural and infrastructural related reforms so as to create conducive environment for the investment inflows and technology ...

Foreign media cautions India against US intentions!

News Nation - ‎9 hours ago‎
"Obama keeps pushing India to boost ties with US in coalition to counter the so-called 'China threat' as the US has already become frustrated with the slow pace of New Delhi's economic reforms and unwillingness to side with Washington in international ...

Obama Visit: A Great Leap Forward - Analysis

Eurasia Review - ‎22 hours ago‎
While Prime Minister Modi has made it abundantly clear that he is committed to economic reforms, with special emphasis on rectifying the obstacles in the way of 'ease of doing business' in the country, the 'Make in India' initiative becomes an important driver ...

India Will Succeed Only If Its Not Splintered On Religion Basis

www.newsworms.com - ‎Jan 28, 2015‎
"India will succeed as long as it's not splintered along religious lines...nowhere is it more important to uphold religious freedom than in India," President Obama said while addressing 2,000 young people at the Siri Fort auditorium. "Your Article 25 (of the Constitution) says that all people are 'equally ... Modi had last year warned MPs against making provocative statements seen to divert attention from his government's agenda of economic reforms. President Obama in his speech referenced his own experience as a ...

Barack Obama's speech US-India Business Council Summit in Delhi

DeshGujarat - ‎Jan 27, 2015‎
Prime Minister Modi has initiated reforms that will help overcome some of these barriers, including a new government committee dedicated to fast-tracking American investments. And we enthusiastically support these efforts. We need to be incentivizing trade ...

Remarks by President Obama at U.S.-India Business Council Summit, Jan. 26 ...

eNews Park Forest - ‎Jan 26, 2015‎
And our growing trade is a win for India, because increased U.S. exports and investment here mean more American-made planes flying passengers on India's airlines all over the world, more American-made turbines generating the energy India needs to continue with its growth, more American-made machinery upgrading India's ... Prime Minister Modi has initiated reforms that will help overcome some of these barriers, including a new government committee dedicated to fast-tracking American investments. And we ...

Obama prods India on religious tolerance

MENAFN.COM - ‎Jan 28, 2015‎
"America wants to be your partner in igniting the next wave of Indian growth. As India pursues reforms to encourage more trade and investment, we'll be the first in line," he told the townhall, attended by Michelle Obama and Nobel peace laureate Kailash ...

India, US to resume bilateral investment treaty

MENAFN.COM - ‎Jan 28, 2015‎
(MENAFN - Gulf Times) India and US will resume dialogue on a bilateral investment treaty as the economic growth in both countries is becoming stronger and their economic partnership had strengthening, announced Prime Minister Narendra Modi and US ...