चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को लागू करते हुए अपने युआईडी/आधार संख्या आदेश का संशोधन किया
23 December, 2016:ओडिशा सरकार को सुप्रीम कोर्ट के बायोमेट्रिक युआईडी/आधार मुद्दे पर दिए आदेश को तत्काल लागू करते हुए युआईडी/आधार से जुड़ें सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के आदेश का संशोधन चुनाव आयोग की ही तरह करके अन्य राज्यों को रास्ता दिखाना चाहिए. गौरतलब है राज्य सरकार ने 14 जुलाई 2010 के भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) के साथ एक MOU पर हस्ताक्षर किया था. इस MOU पर डी ऐन गुप्ता, कमिश्नर-सह-सचिव, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, ओडिशा सरकार द्वारा हस्ताक्षर किया गया था. केंद्र सरकार ने लोक सभा में जिस तरह से आधार विधेयक 2016 को मनी बिल (धन विधेयक) के रूप में इसे पेश कर पारित करवाया, राज्य सभा में जिस तरह से इसकी तीखी आलोचना हुई, वित्त की संसदीय समिति ने जिस तरह से युआईडी/आधार परियोजना को दिशाहीन और देश हित के विपरीत बताया और सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह से सितम्बर 2013 अक्टूबर 2016 तक युआईडी/आधार को गैर जरुरी बताया है, ऐसे में राज्य सरकार के पास MOU को रद्द करने का मजबूत तर्क उपलब्ध है. सुप्रीम कोर्ट में आधार कानून और आधार परियोजना की संवैधानिकता पर चुनौती दी गयी है. इस सम्बन्ध में पूर्व सोलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम ने ठोस तर्क पेश किये है. युआईडी/आधार परियोजना के तहत हो रहे पंजीकरण में प्रति व्यक्ति 2.75 रुपये साफ्रण, एरनस्ट एंड यंग और अक्सेनचर जैसी विदेशी कम्पनियों को भुगतान किया जा रहा है. सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त कागजात के मुताबिक ये कंपनिया सभी भारतवासियों का निजी संवेदनशील आकड़ा (उंगलियों के निशान, आँखों की पुतलियो की तस्वीर आदि) अपने पास सात साल तक रख सकती है. इलेक्ट्रॉनिक युग में इसका अर्थ है कि भविष्य सभी प्रधानमंत्रियो, मुख्यमंत्रियों, जजों, फौजियों आदि की जानकारी इन कंपनियों और विदेशी सरकारों के पास हमेशा के लिए उपलब्ध रहेगी. युआईडी/आधार परियोजना से वर्तमान और भविष्य के सभी देशवासियों की सुरक्षा के साथ सौदेबाजी की गयी है. (MoU attached).
28 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने गैर क़ानूनी, गैर जरुरी ‘अनिवार्य बायोमेट्रिक युआईडी/आधार संख्या और सम्बंधित कानून के खिलाफ एक नयी याचिका को एडमिट कर लिया. अब कोर्ट को इस मामले और पुराने मामलो की सुनवाई के लिए मुख्या न्यायाधीश को संविधान पीठ का गठन कर सुनवाई करनी होगी.
इससे पहले एक बार फिर गैर क़ानूनी व गैर जरुरी ‘अनिवार्य बायोमेट्रिक युआईडी/आधार आदेश’ को रोक दिया गया. जम्मू एवं कश्मीर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एन. पॉल वसंतकुमार और न्यायाधीश अली मोहम्मद मगरे के पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए आधार आधारित बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम को कर्मचारियों पर लागू करने के सरकारी आदेश को रोक दिया.
इससे पहले सितम्बर 14, 2016 को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने स्कॉलरशिप और फैलोशिप के लिए आवेदन के लिए अपने 29 जून के आदेश का संशोधन कर यह स्पष्ट किया कि बायोमेट्रिक (यूनिक आइडेंटिफिकेशन) युआईडी/आधार संख्या जरूरी नहीं है। सितम्बर 14, 2016 को ही सुप्रीम कोर्ट दो जजों के पीठ ने 5 जजों के संविधान पीठ के 15 अक्टूबर 2015 के आदेश को सातवी बार यह कहते हुए दोहराया कि युआईडी/आधार संख्या किसी भी कार्य के लिए जरूरी नहीं बनाया जा सकता है. इस मामले की सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टी .एस ठाकुर, न्यायाधीश ए. एम. खानविलकर और न्यायाधीश डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़ के पीठ ने 9 सितम्बर को तय किया था. यह फैसला पश्चिम बंगाल अल्पसंख्यक विद्यार्थी कौंसिल द्वारा दी गयी चनौती के सन्दर्भ में आया है. इससे पहले पश्चिम बंगाल विधान सभा ने आधार के खिलाफ सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव भी पारित किया है.
यह पहली बार नहीं हुआ है कि सरकार इस प्रकार के आदेश को जारी करती है और फिर क़ानूनी चनौती मिलने पर उसे वापस लेती है.
सरकार ने चुनाव आयोग को भी भरमा कर ऐसे आदेश जारी करवा चुकी है. चुनाव आयोग को जब सूचित किया गया कि युआईडी/आधार संख्या पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश इसे गैर जरुरी है और इसकी वैधता पर सवालिया निशान लगा हुआ, आयोग ने 13 अगस्त, 2015 को अपना 27 फ़रवरी, 2015 के आदेश का संशोधन कर यह स्पष्ट किया कि मतदाता पहचान पत्र के लिए बायोमेट्रिक (यूनिक आइडेंटिफिकेशन)
युआईडी/आधार संख्या जरूरी नहीं है। आयोग ने अपने आदेश में लिखा है कि आधार नंबर के एकत्रीकरण, भरण और उसे आयोग के डेटाबेस में बोने की क्रिया को तत्काल प्रभाव से बंद करना होगा और आगे से कोई भी आधार आकड़ा किसी भी संस्थान या डाटा हब से एकत्रित नहीं किया जायेगा. ऐसा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पालन करने के लिए किया गया.
भारत सरकार का ऐसा ही रवैया केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में भी देखने को मिला. चंडीगढ़ प्रशासन ने अपने 5 दिसम्बर, 2012 के आदेश के द्वारा गाडियों के पंजीकरण आवेदन के लिए युआईडी/आधार को अनिवार्य कर दिया था. इस आदेश को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में चनौती डी गयी. जब ये मामला अदालत के मुख्य न्यायाधीश के खंड पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया तो अदालत ने अपने फ़रवरी 19, 2013 के आदेश में लिखा कि यह मामला शुद्ध क़ानूनी सवाल का है. इस तरह अदालत युआईडी/आधार को अनिवार्यता की अवैधता को तय पाया.
केंद्र शासित चंडीगढ़ प्रशासन ने अपना आदेश वापस ले लिया फलस्वरूप उच्च न्यायालय ने मार्च 2, 2013 को अपने दो पृष्ठ के आदेश द्वारा निपटा दिया. देश के कई अन्य उच्च न्यायालयो से कई ऐसे निर्णय आ चुके है.
इन सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयो के आदेशो के बावजूद भारत सरकार के सचिव, रक्षा मंत्रालय के रक्षा उत्पादन विभाग के सचिव को पत्र लिख कर आधार आधारित बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम को अपने सभी कर्मचारियों पर लागू करने का आदेश पारित कर दिया है. ऐसा ही नहीं सरकार के ही एक 17 पृष्ठ के दस्तावेज “आधार: डायानामिक्स ऑफ़ डिजिटल आइडेंटिटी” से यह खुलासा होता है कि 30 जुलाई, 2016 तक सरकार ने अबतक 639 संस्थानों को आधार से अनिवार्य तरीके से जोड़ दिया है.
इतना सब करने के बाद भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण, भारत सरकार के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) अजय भूषण पाण्डेय ने इस वर्ष के सितम्बर महीने में एक आर्थिक अखबार में दिए इंटरव्यू में यह दावा किया कि प्राधिकरण (युआईडीएआई) अपने तरफ से तो यह कह रही है कि आधार अनिवार्य नहीं है. सरकार तो यह भी कह रही कि आधार आधारित बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम और सदियों पुरानी अटेंडेंस रजिस्टर में कोई फर्क नहीं है. सरकार यह भी दावा कर रही है कि बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम का रक्षा मंत्रालय में प्रयोग को डिफेन्स क्षेत्र में प्रयोग का हिस्सा नहीं है. सरकार द्वारा ऐसी गलत बयानी और भ्रामक कुतर्क का उदाहरण शायद पहले कभी सामने नहीं आया है. सरकार आधे-अधूरे सच से अपने बचाव कर रही है.
जाने-अनजाने डिजिटल इंडिया पहल के माध्यम से सरकार की बायोमेट्रिक युआईडी/आधार संख्या योजना सहित अन्य महत्त्वपूर्ण सेवाएं बहुराष्ट्रीय डिजिटल कंपनियों के हितो को साधने में मदद देते प्रतीत होते है. आज जब दुनिया के सबसे ताकतवर राष्ट्रपति यह दावा करते है कि उनके पास “सबसे लंबे समय तक की स्मृति” है उनका दावा डिजिटल कंपनियों के योगदान पर आधारित है. भारत सरकार को यह तो पता ही है कि ये कंपनिया अमरीकी देश हित में काम करने के लिए क़ानूनी तुरत पर बाध्य है.
इन दिनों सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण सरकार “किसी भी नागरिक के लिए आधार कार्ड लेना अधिदेशात्मक नहीं है” प्रचारित तो कर रही है मगर हकीकत में सरकार ने मीडिया के एक प्रमुख वर्ग के समर्थन से और गैर कांग्रेसी विपक्षी सियासी दलों की उदासीनता से इसे “अधिदेशात्मक” अर्थात अनिवार्य बना दिया है.
बहुराष्ट्रीय डिजिटल कंपनियों के माध्यम से “निजी संवेदनशील सूचना” आधारित बायोमेट्रिक युआईडी/आधार संख्या योजना का कार्यन्वयन भारत के डिजिटल उपनिवेशीकरण की प्रक्रिया का हिस्सा बनता जा रहा है.
ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय की रजिस्ट्री द्वारा इस बायोमेट्रिक युआईडी/आधार के संवैधानिकता को चनौती देने वाले वो सारे मामले जो उच्च
न्यायालयो से स्थान्तरित होकर सुप्रीम कोर्ट में आये है और सीनियर फौजी अफसरों, वैज्ञानिको, पुरवा जजों और समाज सेवियो की याचिका को लंबित रखना अक्षम्य लगता है. सुनवाई में देरी एक ऐसे सन्दर्भ में हो रही जब चीन, ब्रिटेन, फ्रांस, फिलिपींस, ऑस्ट्रलिया और युएसए ने बायोमेट्रिक आकड़े आधारित पहचान पद्धति पर रोक लगा दी है.
यक्ष प्रश्न यह है कि यदि सरकार, यूजीसी, चुनाव आयोग और शासित प्रदेश चंडीगढ़ गैर जरुरी ‘अनिवार्य बायोमेट्रिक युआईडी/आधार आदेश’ वापस लेने को कानूनी और संवैधानिक बाध्यता के कारण मजबूर है तो यह तर्क देश के सभी 639 संस्थानों पर तत्काल प्रभाव से लागु क्यों नहीं हो रहा है? कही ऐसा तो नहीं कि सरकार इन सभी संस्थानों के कर्मचारियों द्वारा आदेश को कोर्ट में चुनौती देने और हर मामले में एक-एक कर फैसला आने का इन्तजार कर रही है. सर्वोच्च न्यायालय के बावजूद न्यायालय केंद्र सरकार, राज्य सरकार और अन्य
संगठनो द्वारा खुलेआम अवमानना का ऐसा उदाहरण शायद ही कभी सामने आया हो. क्या सरकार ब्रिटेन, फ्रांस और युएसए की सरकारों और निगमों के दवाब में है?
इन तथ्यों के आलोक में ओडिशा सरकार को बायोमेट्रिक यूआईडी/आधार सम्बंधित कार्यक्रमो को तत्काल रोक देना चाहिए और जुलाई 2010 के MoU को निरस्त कर अन्य राज्यो का मार्गदर्शन करना चाहिए.
23 December, 2016:ओडिशा सरकार को सुप्रीम कोर्ट के बायोमेट्रिक युआईडी/आधार मुद्दे पर दिए आदेश को तत्काल लागू करते हुए युआईडी/आधार से जुड़ें सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के आदेश का संशोधन चुनाव आयोग की ही तरह करके अन्य राज्यों को रास्ता दिखाना चाहिए. गौरतलब है राज्य सरकार ने 14 जुलाई 2010 के भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) के साथ एक MOU पर हस्ताक्षर किया था. इस MOU पर डी ऐन गुप्ता, कमिश्नर-सह-सचिव, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, ओडिशा सरकार द्वारा हस्ताक्षर किया गया था. केंद्र सरकार ने लोक सभा में जिस तरह से आधार विधेयक 2016 को मनी बिल (धन विधेयक) के रूप में इसे पेश कर पारित करवाया, राज्य सभा में जिस तरह से इसकी तीखी आलोचना हुई, वित्त की संसदीय समिति ने जिस तरह से युआईडी/आधार परियोजना को दिशाहीन और देश हित के विपरीत बताया और सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह से सितम्बर 2013 अक्टूबर 2016 तक युआईडी/आधार को गैर जरुरी बताया है, ऐसे में राज्य सरकार के पास MOU को रद्द करने का मजबूत तर्क उपलब्ध है. सुप्रीम कोर्ट में आधार कानून और आधार परियोजना की संवैधानिकता पर चुनौती दी गयी है. इस सम्बन्ध में पूर्व सोलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम ने ठोस तर्क पेश किये है. युआईडी/आधार परियोजना के तहत हो रहे पंजीकरण में प्रति व्यक्ति 2.75 रुपये साफ्रण, एरनस्ट एंड यंग और अक्सेनचर जैसी विदेशी कम्पनियों को भुगतान किया जा रहा है. सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त कागजात के मुताबिक ये कंपनिया सभी भारतवासियों का निजी संवेदनशील आकड़ा (उंगलियों के निशान, आँखों की पुतलियो की तस्वीर आदि) अपने पास सात साल तक रख सकती है. इलेक्ट्रॉनिक युग में इसका अर्थ है कि भविष्य सभी प्रधानमंत्रियो, मुख्यमंत्रियों, जजों, फौजियों आदि की जानकारी इन कंपनियों और विदेशी सरकारों के पास हमेशा के लिए उपलब्ध रहेगी. युआईडी/आधार परियोजना से वर्तमान और भविष्य के सभी देशवासियों की सुरक्षा के साथ सौदेबाजी की गयी है. (MoU attached).
28 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने गैर क़ानूनी, गैर जरुरी ‘अनिवार्य बायोमेट्रिक युआईडी/आधार संख्या और सम्बंधित कानून के खिलाफ एक नयी याचिका को एडमिट कर लिया. अब कोर्ट को इस मामले और पुराने मामलो की सुनवाई के लिए मुख्या न्यायाधीश को संविधान पीठ का गठन कर सुनवाई करनी होगी.
इससे पहले एक बार फिर गैर क़ानूनी व गैर जरुरी ‘अनिवार्य बायोमेट्रिक युआईडी/आधार आदेश’ को रोक दिया गया. जम्मू एवं कश्मीर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एन. पॉल वसंतकुमार और न्यायाधीश अली मोहम्मद मगरे के पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए आधार आधारित बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम को कर्मचारियों पर लागू करने के सरकारी आदेश को रोक दिया.
इससे पहले सितम्बर 14, 2016 को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने स्कॉलरशिप और फैलोशिप के लिए आवेदन के लिए अपने 29 जून के आदेश का संशोधन कर यह स्पष्ट किया कि बायोमेट्रिक (यूनिक आइडेंटिफिकेशन) युआईडी/आधार संख्या जरूरी नहीं है। सितम्बर 14, 2016 को ही सुप्रीम कोर्ट दो जजों के पीठ ने 5 जजों के संविधान पीठ के 15 अक्टूबर 2015 के आदेश को सातवी बार यह कहते हुए दोहराया कि युआईडी/आधार संख्या किसी भी कार्य के लिए जरूरी नहीं बनाया जा सकता है. इस मामले की सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टी .एस ठाकुर, न्यायाधीश ए. एम. खानविलकर और न्यायाधीश डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़ के पीठ ने 9 सितम्बर को तय किया था. यह फैसला पश्चिम बंगाल अल्पसंख्यक विद्यार्थी कौंसिल द्वारा दी गयी चनौती के सन्दर्भ में आया है. इससे पहले पश्चिम बंगाल विधान सभा ने आधार के खिलाफ सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव भी पारित किया है.
यह पहली बार नहीं हुआ है कि सरकार इस प्रकार के आदेश को जारी करती है और फिर क़ानूनी चनौती मिलने पर उसे वापस लेती है.
सरकार ने चुनाव आयोग को भी भरमा कर ऐसे आदेश जारी करवा चुकी है. चुनाव आयोग को जब सूचित किया गया कि युआईडी/आधार संख्या पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश इसे गैर जरुरी है और इसकी वैधता पर सवालिया निशान लगा हुआ, आयोग ने 13 अगस्त, 2015 को अपना 27 फ़रवरी, 2015 के आदेश का संशोधन कर यह स्पष्ट किया कि मतदाता पहचान पत्र के लिए बायोमेट्रिक (यूनिक आइडेंटिफिकेशन)
युआईडी/आधार संख्या जरूरी नहीं है। आयोग ने अपने आदेश में लिखा है कि आधार नंबर के एकत्रीकरण, भरण और उसे आयोग के डेटाबेस में बोने की क्रिया को तत्काल प्रभाव से बंद करना होगा और आगे से कोई भी आधार आकड़ा किसी भी संस्थान या डाटा हब से एकत्रित नहीं किया जायेगा. ऐसा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पालन करने के लिए किया गया.
भारत सरकार का ऐसा ही रवैया केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में भी देखने को मिला. चंडीगढ़ प्रशासन ने अपने 5 दिसम्बर, 2012 के आदेश के द्वारा गाडियों के पंजीकरण आवेदन के लिए युआईडी/आधार को अनिवार्य कर दिया था. इस आदेश को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में चनौती डी गयी. जब ये मामला अदालत के मुख्य न्यायाधीश के खंड पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया तो अदालत ने अपने फ़रवरी 19, 2013 के आदेश में लिखा कि यह मामला शुद्ध क़ानूनी सवाल का है. इस तरह अदालत युआईडी/आधार को अनिवार्यता की अवैधता को तय पाया.
केंद्र शासित चंडीगढ़ प्रशासन ने अपना आदेश वापस ले लिया फलस्वरूप उच्च न्यायालय ने मार्च 2, 2013 को अपने दो पृष्ठ के आदेश द्वारा निपटा दिया. देश के कई अन्य उच्च न्यायालयो से कई ऐसे निर्णय आ चुके है.
इन सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयो के आदेशो के बावजूद भारत सरकार के सचिव, रक्षा मंत्रालय के रक्षा उत्पादन विभाग के सचिव को पत्र लिख कर आधार आधारित बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम को अपने सभी कर्मचारियों पर लागू करने का आदेश पारित कर दिया है. ऐसा ही नहीं सरकार के ही एक 17 पृष्ठ के दस्तावेज “आधार: डायानामिक्स ऑफ़ डिजिटल आइडेंटिटी” से यह खुलासा होता है कि 30 जुलाई, 2016 तक सरकार ने अबतक 639 संस्थानों को आधार से अनिवार्य तरीके से जोड़ दिया है.
इतना सब करने के बाद भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण, भारत सरकार के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) अजय भूषण पाण्डेय ने इस वर्ष के सितम्बर महीने में एक आर्थिक अखबार में दिए इंटरव्यू में यह दावा किया कि प्राधिकरण (युआईडीएआई) अपने तरफ से तो यह कह रही है कि आधार अनिवार्य नहीं है. सरकार तो यह भी कह रही कि आधार आधारित बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम और सदियों पुरानी अटेंडेंस रजिस्टर में कोई फर्क नहीं है. सरकार यह भी दावा कर रही है कि बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम का रक्षा मंत्रालय में प्रयोग को डिफेन्स क्षेत्र में प्रयोग का हिस्सा नहीं है. सरकार द्वारा ऐसी गलत बयानी और भ्रामक कुतर्क का उदाहरण शायद पहले कभी सामने नहीं आया है. सरकार आधे-अधूरे सच से अपने बचाव कर रही है.
जाने-अनजाने डिजिटल इंडिया पहल के माध्यम से सरकार की बायोमेट्रिक युआईडी/आधार संख्या योजना सहित अन्य महत्त्वपूर्ण सेवाएं बहुराष्ट्रीय डिजिटल कंपनियों के हितो को साधने में मदद देते प्रतीत होते है. आज जब दुनिया के सबसे ताकतवर राष्ट्रपति यह दावा करते है कि उनके पास “सबसे लंबे समय तक की स्मृति” है उनका दावा डिजिटल कंपनियों के योगदान पर आधारित है. भारत सरकार को यह तो पता ही है कि ये कंपनिया अमरीकी देश हित में काम करने के लिए क़ानूनी तुरत पर बाध्य है.
इन दिनों सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण सरकार “किसी भी नागरिक के लिए आधार कार्ड लेना अधिदेशात्मक नहीं है” प्रचारित तो कर रही है मगर हकीकत में सरकार ने मीडिया के एक प्रमुख वर्ग के समर्थन से और गैर कांग्रेसी विपक्षी सियासी दलों की उदासीनता से इसे “अधिदेशात्मक” अर्थात अनिवार्य बना दिया है.
बहुराष्ट्रीय डिजिटल कंपनियों के माध्यम से “निजी संवेदनशील सूचना” आधारित बायोमेट्रिक युआईडी/आधार संख्या योजना का कार्यन्वयन भारत के डिजिटल उपनिवेशीकरण की प्रक्रिया का हिस्सा बनता जा रहा है.
ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय की रजिस्ट्री द्वारा इस बायोमेट्रिक युआईडी/आधार के संवैधानिकता को चनौती देने वाले वो सारे मामले जो उच्च
न्यायालयो से स्थान्तरित होकर सुप्रीम कोर्ट में आये है और सीनियर फौजी अफसरों, वैज्ञानिको, पुरवा जजों और समाज सेवियो की याचिका को लंबित रखना अक्षम्य लगता है. सुनवाई में देरी एक ऐसे सन्दर्भ में हो रही जब चीन, ब्रिटेन, फ्रांस, फिलिपींस, ऑस्ट्रलिया और युएसए ने बायोमेट्रिक आकड़े आधारित पहचान पद्धति पर रोक लगा दी है.
यक्ष प्रश्न यह है कि यदि सरकार, यूजीसी, चुनाव आयोग और शासित प्रदेश चंडीगढ़ गैर जरुरी ‘अनिवार्य बायोमेट्रिक युआईडी/आधार आदेश’ वापस लेने को कानूनी और संवैधानिक बाध्यता के कारण मजबूर है तो यह तर्क देश के सभी 639 संस्थानों पर तत्काल प्रभाव से लागु क्यों नहीं हो रहा है? कही ऐसा तो नहीं कि सरकार इन सभी संस्थानों के कर्मचारियों द्वारा आदेश को कोर्ट में चुनौती देने और हर मामले में एक-एक कर फैसला आने का इन्तजार कर रही है. सर्वोच्च न्यायालय के बावजूद न्यायालय केंद्र सरकार, राज्य सरकार और अन्य
संगठनो द्वारा खुलेआम अवमानना का ऐसा उदाहरण शायद ही कभी सामने आया हो. क्या सरकार ब्रिटेन, फ्रांस और युएसए की सरकारों और निगमों के दवाब में है?
इन तथ्यों के आलोक में ओडिशा सरकार को बायोमेट्रिक यूआईडी/आधार सम्बंधित कार्यक्रमो को तत्काल रोक देना चाहिए और जुलाई 2010 के MoU को निरस्त कर अन्य राज्यो का मार्गदर्शन करना चाहिए.
The Supreme Court’s
orders on 12 digit biometric Unique Identification (UID)/Aadhaar Number attached . The orders keep UID/Aadhaar voluntary.
Supreme Court of India in the ‘UID/Aadhaar’ matter, i.e. Justice (retd.)
K.S. Puttuswamy v. UOI & Ors., WP (C) No. 494/2012 and related
petitions is attached.
The AADHAAR/ UID
scheme is presently under challenge before the Hon’ble Supreme Court of India
vide a batch of petitions led by W.P (C) 494/2012 and the Hon’ble Court after
hearing the parties has passed a series of interim orders starting the 23rd
September 2013 and the last of which was passed on 15.10.2015 which, inter
alia, states as follows.
4.We impress upon the Union of India that it shall
strictly follow all the earlier orders passed by this Court commencing from
23.09.2013.
5. We will also make it clear that the Aadhaar card
Scheme is purely voluntary and it cannot be made mandatory till the matter is
finally decided by this Court one way or the other.
In the related case the Hon'ble
Supreme Court in SLP (CRl) 2524/2014 Unique Identification Authority of
India Vs CBI passed an order dated 24.3.2014 which reads as follows:
“More so, no person shall be deprived of any service for want of Aadhaar number
in case he/she is otherwise eligible/entitled. All the authorities are directed
to modify their forms/circulars/likes so as to not compulsorily require the
Aadhaar number in order to meet the requirement of the interim order passed by
this Court forthwith. Tag and list the matter with main mater i.e. WP (C) No.
494/2012.”
All the orders of Supreme Court are still in force as per
Court's order of 15th October, 2015 and they will remain in force till the time
court itself does not waive them. The Hon’ble Court’s order makes it clear
that UID/ aadhaar remains voluntary.
Therefore, no one can be asked to produce UID/ aadhaar
for disbursement of all Government subsidies/Scholarships/Fellowships which are
to be disbursed directly into the beneficiaries' account.
The relevant facts UID/Aadhaar are as under:
1.
UID/Aadhaar
cannot be made compulsory because of orders of Hon’ble Supreme Court even after
'coming into force' of Aadhaar Act, 2016
'coming into force' of Aadhaar Act, 2016
2.
Passage of the
Act by Parliament does not automatically imply that any agency can make
UID/Aadhaar compulsory disregarding Hon’ble Court’s orders.
3.
Even after
notification of 'coming into force' of Aadhaar Act 2016 UID/Aadhaar, it cannot
be made compulsory unless Hon’ble Supreme Court waives its order on request
from the Union of India The order has been reiterated by SC order of 14 September, 2016.For Details: Gopal Krishna, Citizens Forum for Civil Liberties (CFCL) Mb: 08227816731, 09818089660, E-mail-1715krishna@gmail.com
English articles available at:
ENEMIES AT THE AADHAAR GATES
http://www.outlookindia.com/
UID/AADHAAR SERIES
www.moneylife.in/author/gopal-
AADHAAR MAY HAVE A LETHAL IMPACT ON THE EXISTENCE OF INDIA
http://www.rediff.com/news/
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