Thursday, March 12, 2015

मसरत आलम की रिहाई कानूनन

जम्मू कश्मीर सरकार द्वारा मसरत आलम की रिहाई कानूनन किया गया. PASA  के तहत किसी को हिरासत में रखने की सीमा होती है लेकिन देश प्रेम और  सिक्योरिटी के नाम पे केंद्र सरकार भ्रम पैदा कर सरकार विरोधी उफान को शांत करना चाहती है.

एक तरफ सरकार सुप्रीम  कोर्ट  के बंदी रिहाई के आदेश  का पालन जोर जोर से करने  का उत्साह दिखाती  है कितने लोग रिहा होते है ये मामला अलग  है लेकिन जिस तरह जम्मू कश्मीर सरकार के एक बंदी के रिहा करने पे केंद्र सरकार सख्त हो रही है  इससे सरकारों के बंदी रिहाई विरोधी रुख को जाना जा सकता है तमिलनाडु सरकार ने राजीव गांधी हत्या मामले में २३ साल से बंद आजीवन सजा काट रही नलिनी को रिहा करना चाहा तब केंद्र सरकार ने सीबीआई जांच का हवाला देके रोक दिया  
                  केंद्र सरकार के इस रुख  से बाकि राज्य सरकारों को सन्देश दिया जा रहा है कि  भविष्य में राजनितिक बंदी हो या कोई बिना केंद्र सरकार से बात के उन्हें रिहा नहीं करना है.

   लेकिन उन सरकारों के बारे में कोई भी मंत्री या संत्री या देशप्रेमी नहीं सोचता है कि  खुलेम सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उलंघन करते हुए बंदी को जानवरो की तरह हथकड़ी और रस्से में जलील करते हुए कोर्ट पेशी पे लाया जाता है  दिमापुर में सेंट्रल जेल में क्या हुवा बताना नहीं है  

    हम मांग करते है कि तमाम जेल में बंद लोगो को नागरिक अधिकार दिया जाए उन्हें गुलाम और बेबस नहीं समझ जय ताकि कानून और राज्य में उनकी आस्था बची रहे  हम भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के जनविरोधी रुख का विरोध करते है और उमीद करते है कि  जेलों में बंद लोग इस जन सवाल पे आंदोलन करेंगे. खास के उस समय जब जनविरोधी भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के संसद में पारित करके कॉर्पोरेट जगत को खुश किया जा रहा है. 

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