Wednesday, July 9, 2014

अभी दुल्हन घुंघट की ओट में हैं।शाही ताजपोशीमध्ये आर्थिक समीक्षा,सुधार बजट के मोहताज नहीं लेकिन। हर तरह से अब साफ है कि देश के विकास का एक अकेला रास्ता है , एफडीआई (विदेशी पूँजी निवेश) और प्राइवेटाइजेशन (निजीकरण) ।

अभी दुल्हन घुंघट की ओट में हैं।शाही ताजपोशीमध्ये आर्थिक समीक्षा,सुधार बजट के मोहताज नहीं लेकिन।
हर तरह से अब साफ है कि देश के विकास का एक अकेला रास्ता है , एफडीआई (विदेशी पूँजी निवेश) और प्राइवेटाइजेशन (निजीकरण) ।
पलाश विश्वास

Narendra Modi's confidant Amit Shah replaces Rajnath Singh as BJP president; marks a new beginning for party

Narendra Modi's confidant Amit Shah replaces Rajnath Singh as BJP president; marks a new beginning for party


अभी दुल्हन घुंघट की ओट में हैं।मुंहदिखायी की रस्म के साथ गाली गीतों का अलाप जारी है।कल खुलेगा नये सपेरे का पिटारा।सपेरों और जादूगरों के देश में तमाशबीन जनता है।हालांकि  लोकसभा में विपक्ष ने महंगाई, नेता प्रतिपक्ष जैसे मुद्दों पर खूब शोरशराबा किया। महंगाई के मुद्दे पर विपक्षी पार्टियों ने प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ नारे लगाए तो दूसरी ओर संसद के बाहर कांग्रेस ने प्रदर्शन किया। विपक्ष ने सरकार पर जनता से वादाखिलाफी का आरोप लगाया। वहीं बीजेपी ने बढ़ती कीमतों के लिए यूपीए सरकार को जिम्मेदार ठहराया। बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने आरोप लगाया कि चुनाव में बीजेपी के लिए व्यापारी वर्ग ने पैसा लगाया और अब दाम बढ़ाकर बीजेपी वो पैसा ब्याज समेत वापस कर रही है।

अच्छे दिनों का सपना दिखाकर सत्ता में आई मोदी सरकार का कल कड़ा इम्तिहान है। एक तरफ करोड़ों उम्मीदों का दबाव है तो दूसरी तरफ खस्ताहाल इकोनॉमी। आज आए आथिर्क सर्वे में इकोनॉमी की डर्टी पिक्चर ही पेश की गई है। अब सवाल उठता है कि मोदी के पहले बजट में चौंकाने वाले एलान होंगे या वो दूर की सोच वाला होगा। वैसे रेल बजट के बाद ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि मोदी बैलेंस्ड बजट पर ही फोकस रखेंगे। कुछ बोल्ड फैसले भी होंगे और कुछ मलहम लगाने ऐलान।

माना जा रहा है कि बजट में मौजूदा 2 लाख के बजाए 2.5 लाख रुपये की आय टैक्स फ्री हो सकती है। टैक्स छूट सीमा को महंगाई दर से जोड़ सकते हैं। 80सी के तहत 1 लाख रुपये की छूट की सीमा बढ़ सकती है। इंफ्रा बॉन्ड को 80सी में शामिल किया जा सकता है। इंफ्रा बॉन्ड में 30,000 रुपये तक के निवेश पर छूट मिल सकती है। होम लोन के ब्याज पर छूट की सीमा बढ़कर 2.5 रुपये लाख संभव  है। होम लोन के ब्याज छूट बढ़ाने से सरकार के खर्चे पर दबाव नहीं आएगा।

शाही ताजपोशीमध्ये आर्थिक समीक्षा हो गयी रस्म अदायगी के लिए,सुधार बजट के मोहताज नहीं लेकिन।दरअसल आने वाले वर्ष में 7 से 8% की उच्च आर्थिक वृद्धि हासिल करने के लिये मुद्रास्फीति पर अंकुश, कर वसूली और व्यय क्षेत्र में सुधार तथा बाजार आधारित अर्थव्यवस्था के लिये कानूनी एवं नियामकीय ढांचा सहित तीन स्तरीय रणनीति अपनाये जाने का सुझाव दिया गया है।
संसद में आज पेश 2013-14 की आर्थिक समीक्षा में सरकार को यह सुझाव देते हुये कहा गया है, भारत की दीर्घकालिक आर्थिक वृद्धि संभावनाओं की बेहतरी के लिये रोजगार और आय के अवसर बढ़ाने और निवेश गतिविधियों में फिर से तेजी लाने के लिये तीन स्तरीय रणनीति अपनाने की आवश्यकता है।


गौरतलब है कि धर्मोन्मादी ध्रूवीकरण माध्यमे पूरे देश को गुजरात बनाने के आधार बतौर  लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश से सर्वाधिक सीट दिलाकर संघ परिवार का दिल जीतनेवाले गुजरात के पूर्व मंत्री अमित शाह को आज पार्टी का नया अध्यक्ष बना दिया गया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी अमित शाह के नाम पर भाजपा संसदीय बोर्ड ने आज मुहर लगाई। अमित शाह, जावड़ेकर और राममाधव की तिकड़ी के जरिये राजकाज को अंजाम देंगे धर्मयोद्धा नरेंद्र मोदी।

जारी है धर्म युद्ध प्रलयंकर तो जारी है जनसंहारी ग्लोबीकरण कारपोरेट राजनीति के साथ और छिनाल पूंजी छइया छइया बुलेट बूम बूम है नागपुर और नई दिल्ली के केसरिया एक्सप्रेसवे पर एफडीआई प्राइवेटाइजेशन की बुलेट धूम है।

आर्थिक समीक्षा से पहले रेल बजट ने समां बांध दिया है।जनसंहार समर्थने निनानब्वे फीसद जनगण और गणतंत्र के विरुद्ध मोर्चाबंद है क्रयशक्ति संपन्न एक फीसद सत्ता वर्ग की नस्ली व्चस्ववादी अस्मिता धारक वाहक कारपोरेट राजनीति की जाति स्थाई व्यवस्था।

समीक्षा का यह वैदिकी कर्मकांड संस्कृत कूट मंत्रों से भी कठिन है।ओंग बोंग धूम धड़ाका है आंकड़ों का,संख्याओं और ग्राफिक के स्पेशल एफेक्ट है और अवतार क परिवेश है।

समीक्षा में कहा गया है कि पहले कदम के तौर पर सरकार को मौद्रिक नीति के लिये खाका तैयार कर, राजकोषीय मजबूती और खाद्य बाजार में सुधार लाकर मुद्रास्फीति को नीचे लाना होगा। दूसरे कदम के तौर पर समीक्षा में कर और व्यय क्षेत्र में सुधार पर जोर दिया गया है। इसमें वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू करते हुये लोक वित्त को सतत् मजबूती के रास्ते पर लाने को कहा गया है।
व्यय क्षेत्र के सुधार में सार्वजनिक वस्तुओं और सब्सिडी कार्यक्रम के लिये नये तौर तरीके अपनाने पर जोर दिया गया है। समीक्षा के अनुसार बाजार अर्थव्यवस्था के लिये भारत में कानूनी और नियामकीय ढांचे की भी आवश्यकता है। इसके लिये पुराने कानूनों को निरस्त करने और बाजार असफलता के समय स्थिति संभालने के लिये सरकारी क्षमता मजबूत बनाने की आवश्यकता है।
समीक्षा में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष के दौरान आर्थिक वृद्धि के 5.4 से 5.9% के दायरे में रहने का अनुमान है। इससे पहले लगातार दो वर्ष आर्थिक वृद्धि पांच प्रतिशत से नीचे रही।


मीडिया नीति निर्धारण पर खामोश है।रेल बजट को तो शास्त्रीय तक बता दिया गया है और लंबी रेस के गौड़ा के रेलवे पथ पर पलक पांवड़े बिछा दिये गये हैं।

अर्थ और प्रतिरक्षा मंत्रालय का नदी जोड़ों अभियान प्रतिरक्षा में शत प्रतिशत एफडीआई को न्यूटन के गति नियमों के मुताबिक त्वरा देने के प्रयोजन से है तो भारत अमेरिकी परमाणु शंधि के कार्यान्वयन के लिए भी।

साथ ही अमेरिका और इजराइल के नेतृत्व में प्रतिरक्षा आंतरिक सुरक्षा के जायनवादी कायाकल्प के लिए भी।

मोदी और अमित शाह के निर्देशन में विनिवेश की तरह किस रिफाइंड ब्रांड के धीमे मारक जहरीला रसायन से ङमारी सांसें चुराने की भोपाल गैस त्रासदी की रचना हो रही है, सिख संहार और बाबरी विध्वंस के रसायन से अनजान आम जनता के लिए कार्निवाल मध्ये मुखौटा नृत्य और कबंधों के सांबा के वातावरण में समझ पाना असंभव है।

पढ़े लिखे डिग्रीधारी मलाईदार तबका इस कयामती अर्थव्यवस्था के ज्वालामुखी मुहाने आशियाना बनाये बकरे की अम्मा की खैर मना रहे हैं।

बजट से आर्थिक समीक्षा का संबंध जाहिर है उतना होना जरुरी भी नहीं है।

संसद के प्रति जिम्मेदार अल्पमत सरकारों ने पिछले तेईस साल में नीति निर्धारण से भारत की संसद और संविधान को अप्रासंगिक बना दिया है।

मसलन जेटली अपने मिशन इंपासिबल को अंजाम देने के लिए आयकर छूट की परिधि पांच लाख कर दें तो सारी सब्सिडी खत्म कर दिये जाने के बाद भी,सारे सरकारी विभागों, सेवाओं और उपक्रमों का विनिवेश कर देने के बाद भी,कर सुधार से आम जनता पर अर्थव्यवस्था का सारा बोझ लादकर पांच लाख छह लाख करोड़ के सालाना करराहत के बजाय एकमुश्त पूंजी को कर मुक्त कर देने,रोजगार और आजीविका प्रत्यक्ष विनिवेश हवाले करने और कृषि की शवयात्रा निकालने के बावजूद क्रिकेट फुटबाल से ग्लोबल हुई यह मलाईदार तबका आह तक नहीं करेगा।

जल जंगल जमान नदी समुंदर और अंतरिक्ष तक को आग के हवाले करने पर भी उसकी आंच मलाईदार गैंडा तबके की घनी गोरियायी फेयर एंड लवली हैंडसम डियोड्रेंट महकी खाल को किसी भी स्तर तक नहीं छुयेगी और विडंबना है कि हम इसी तबके की क्रांतिधर्मिता,मुक्ति कामना,गणतांत्रिक अस्मिता स्वतंत्रता पावक चेतना और प्रतिबद्धता पर इस ग्लोबल कयामत से आजादी के लिए दांव लगाये हुए हैं और आम जनता को बुरबकै मानकर उन्हें संबोधित करने का कोई प्रयास अब भी नहीं कर रहे हैं।

मनोरंजन मीडिया के वर्चुअल सेक्स की तो कहिये मत,बाकी कवायद भी आत्मरति तक सीमाबद्ध है।

एफडीआई और निजीकरण के मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए राहुल गांधी की खुमारी सेल पर है जैसे वे तरणहार हैं और जैसे वे दस साल क जैसे जनता का उद्धार कर रहे हैं,उसीतरह इस विपर्यय से भी बचा लेंगे उनके जैसे तमाम अवतार और फरिश्ते और बोधिसत्व।ईश्वर का कोई वरद पुत्र नहीं है और सरस्वती की सारी संतानें सारस्वत विशुद्ध वैदिकी है,जिनके लिए वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति।लेकिन मीडिया का फोकस देखें।

लोकसभा चुनाव में बुरी हार के बावजूद कांग्रेस इन नतीजों से कोई सबक सीखती नजर नहीं आ रही। आज लोकसभा में महंगाई के मुद्दे पर बहस के दौरान राहुल गांधी झपकी लेते नजर आए। महंगाई से पूरे देश की जनता परेशान है और इस अहम मुद्दे पर देश की जनता का ध्यान देने के लिए कांग्रेस इसे लगातार उठा रही है। लेकिन आज जब लोकसभा में इस मुद्दे पर चर्चा हो रही थी, तब राहुल गांधी सदन में झपकी लेते देखे गए।

पहले भी राहुल पर अहम मसलों पर बहस में हिस्सा नहीं लेने के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन इस बार सदन में सोने की तस्वीर कैद होने से उनके विरोधियों को आलोचना का मौका मिल गया है। राहुल को सदन में जम्हाई लेते भी देखा गया। बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन ने इसपर ट्वीट कर चुटकी ली।


अमेरिकी विध्वंस के इतिहास के संदर्भ में कई दिनों से धर्म राजनीति और पूंजी के संहारक त्रिभुज का चित्रायन कर रहा हूं।

उस त्रिभुज का वृत्त अब तीन सौ साठ है।बीच में नागपुर नई दिल्ली का घना आलंब है और बाकी बचा गुजरात माडल है।

ब्राजील का विलाप लेकिन विश्वकप फाइनल में सात सात गोल हजम करने का कतई नहीं है।

चमकदार वैश्विक बंदोबस्त का रंग रोगन धुल जाने के बाद बेपरदा नंगा टाट खुल जाने की रुदाली है वह,जिसके मुखातिब हम अब भी नहीं है।

अब भी महाद्वीपों के आर पार मध्ययुग के धर्मयुद्ध से अविराम जारी ग्लोबीकरण मार्फत विकास के अश्वमेधी विध्वंस के भूगोल इतिहास से हमारा वास्ता नहीं है।

तकनीक, शोध और अंतरिक्ष तलक आविस्कारों और अनुसंधान की धूम, इस ब्रह्मंड की रचना प्रक्रिया की पुनर्रचना के बिग बैंग के बावजूद वैज्ञानिक दृष्टि उपभोग उपकरण, तकनीक संचार माध्यम,कंप्यू रोबो वीडियो गेम गेजेट विजेट साप्टवेयर टेंप्लेट की आभासी दुनिया तक सीमाबद्ध है।विज्ञान और समाज वास्तव के सरोकार अब अलग थलग परस्परविरोधी हैं।डिग्रियां है लेकिन ज्ञान की तरफ पीठ है।ज्ञानपीठ है।अकादमी और संस्थान हैं वर्चस्व और एकाधिकार के, न विवेक है और न साहस।

केशरिया अश्वमेधी राजसूय के कर्म कांड के मध्य अपने देश का ब्राजील भी हार रहा है।

एकाधिकारी आक्रमण के मुकाबले ब्राजीली रक्षण है ही नहीं कहीं।

बंजरंगियों की अंधी दौड़ में पूंछ उठाने की कवायद में आत्मरक्षा और वजूद की फिक्र ब्राजीली उन्मुक्त सेक्स की कार्निवाली संस्कृति के विरुद्ध है।

हम उसी कार्निवाल के मध्य हैं।

ब्राजील का कार्निवाल तिलिस्म को बेनकाब भी करने लगा है।

लेकिन हमारे कार्निवाल में तिलिस्म अभी चक्रव्यूह है।

आखिर ब्राजीली कार्निवाल के लिए तीस करोड़ कंडोम भारत से ही भेजे गये थे।

कंडोम संस्कृति में अर्थशास्त्र की चर्चा निषिद्ध है।

वैदिकी मंत्र की तरह अबूझ हैं परिभाषाएं,आंकड़े,तत्व और तथ्य।

हम विकास कामसूत्र के अनंत आसन का अभ्यास करते रहेंगे बहरहाल।

दुल्हन की घुंघट उठाये बिना सुहागरात से पहले भागे दूल्हों के हवाले है राजकाज और दुल्हन अभी भी घुंघट में हैं सिर्फ हवाओं में कंडोम गुब्बारे हैं सुगंधित।

इसी के मध्य बजट और उससे पहले आर्थिक समीक्षा के कर्मकांड अबूझ।

आथिर्क सर्वे में बड़ी चुनौतियां सामने आई हैं। वित्त वर्ष 2015 में 5.4-5.9 फीसदी ग्रोथ का अनुमान है। वित्तीय घाटे को लेकर चिंता बरकरार है, महंगाई में कमी आई, लेकिन अब भी ज्यादा है। महंगाई की वजह से दरें घटाने की गुंजाइश कम है। इसके अलावा खराब मॉनसून दिक्कतें बढ़ा सकता है। इराक संकट से देश की इकोनॉमी में दबाव की आशंका है।

आथिर्क सर्वे में बड़ी चुनौतियों के रूप में सुस्त ग्रोथ, कमजोर मॉनसून, महंगाई, वित्तीय घाटा हैं। वहीं सब्सिडी घटाना, ऊंची ब्याज दरें और कमजोर मैन्यूफैक्चरिंग और इंडस्ट्रियल ग्रोथ के मुद्दे पर सरकार को कोशिश करनी है।

बजट में उम्मीद है कि आगे की अच्छी तस्वीर सामने आएगी। माना जा रहा है कि वित्त वर्ष 2015 में मैन्युफैक्चरिंग में सुधार की उम्मीद है और साथ ही करेंट अकाउंट घाटे में सुधार की उम्मीद है। वित्त वर्ष 2015 में करेंट अकाउंट घाटा जीडीपी का 2.1 फीसदी रहने का अनुमान है।

इंडस्ट्री जानकारों का मानना है कि बजट में सब्सिडी कम करने पर जोर होना चाहिए और वित्तीय घाटे के लिए एफआरबीएम कानूनों में बदलाव किया जाना चाहिए। वित्तीय घाटे पर लगाम के लिए कड़े फैसले लिए जाने चाहिए।

वहीं आर्थिक जानकारों का मानना है कि बजट में पीडीएस सिस्टम में सुधार होना चाहिए। डायरेक्ट कैश ट्रांसफर स्कीम के कारगर इस्तेमाल की कोशिश होनी चाहिए। सरकार को महंगाई कम करने पर जोर देना चाहिए और आय बढ़ाने के लिए टैक्स सिस्टम में सुधार करना चाहिए। बजट में विनिवेश का रोडमैप, जीएसटी का ठोस रोडमैप आना चाहिए। टैक्स नियमों की दुविधा खत्म की जानी चाहिए और पावर, माइनिंग, इंफ्रा सेक्टर के लिए बड़े ऐलान होने चाहिए। रोजगार बढ़ाने के लिए छोटे उद्योगों पर फोकस किया जाना चाहिए।


2014-15 में देश की विकास दर 5.4-5.9 फीसदी रहने की संभावना है।
विकास दर की यह भविष्यवाणी का खुलासा उसीतरह नहीं हुआ है जैसे कि 63 करोड़ की लागत से पूर देश को बुलेट हीरक चतुर्भुज बनाकर निजी और विदेशी निवेश,विनिवेश और बेसरकारी करणसे भारत के कायाकल्प का असली बनिया कार्यक्रम का खुलासा नहीं किया गया है।
इसी के साथ महंगाई चिंता का विषय बना रहेगा।रेलभाड़ा और तेल गैस बिजली की कीमतें विनियंत्रित करके बाजार और समाज को छुट्टा सांढ़ों के हवाला करके विकास दर,मुद्रा स्फीति,वित्तीय घाटा, भुगतान संतुलन पर नियंत्रण की अबाध पूंजी करिश्मा के मुखातिब होकर बाजारों में पल पल झुलस रही निनानब्वे फीसद के लिए इस रहस्य का खुलासा जाहिर है कभी होना नहीं है।
संसद में बुधवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा 2013-14 के लिए पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में यह भी कहा गया कि नकद सब्सिडी भुगतान उर्वरकों पर सब्सिडी देने का सही तरीका है और ईंधन की कीमतें बाजार पर आधारित होनी चाहिए। पहले आधार परियोजना थी तो अब सिटिजन कार्ड।मकसद एकमेव,सब्सिडी का खात्मा।
इस सर्वेक्षण में वित्तीय घाटा कम किए जाने के लिए सिर्फ खर्च-जीडीपी अनुपात घटाने की जगह अधिक कर-जीडीपी अनुपात का सुझाव दिया गया है। 2013-14 में वित्तीय घाटा जीडीपी का 4.5 फीसदी रहा तथा आक्रामक नीतिगत पहल ने 2013-14 में सरकार को वित्तीय घाटा कम करने में मदद की।परिभाषाओं और आंकड़ों की कलाबाजी का नायाब कर्मकांड है।
दावों पर यकीन करें तो वर्ष 2013-14 में देश के बकाया-भुगतान की स्थिति काफी सुधरी है। चालू खाता घाटा 32.4 अरब डॉलर, जीडीपी का 1.7 फीसदी रहा, जो 2012-13 में 88.2 अरब डॉलर, जीडीपी का 4.7 फीसदी था।
इस सर्वेक्षण में कहा गया है कि रुपये की वार्षिक औसत विनिमय दर 2013-14 में प्रति डॉलर 60.50 रुपये रही, जो 2012-13 में 54.41 रुपये थी और जो 2011-12 में 47.92 रुपये थी। देश का विदेशी पूंजी भंडार मार्च 2014 के आखिर में बढ़कर 304.2 अरब डॉलर हो गया, जो मार्च 2013 के आखिर में 292 अरब डॉलर था।
देश में योजना एवं पूंजी खर्च में कटौती के जरिए वित्त वर्ष 2013-14 में राजकोषीय घाटे को जीडीपी का 4.5 प्रतिशत पर किसी तरह रोका गया, जो कि अपने आप में अस्थिर है। यह बात सरकार द्वारा बुधवार को संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण 2013-14 में कही गई है. इसमें कहा गया है कि देश की राजकोषीय स्थिति जितनी बुरी दिख रही है, वाकई में उससे भी अधिक बुरी है।

अब इस अर्थ संकट और वित्तीय घाटा के अविरम अलाप के मध्य आर्थिक सुधारों के महायज्ञ में शामिल रंग बिरगे पुरोहितों के विरुद्ध जनमोरच पर खड़े होने की हिम्मत करें कौन।
इस वक्तव्य का आशय कल के बजट में स्पष्ट होने के आसार कतई नहीं है कि केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संसद में आर्थिक सर्वेक्षण पेश करते हुए कहा कि अर्थव्यवस्था के लिए आर्थिक मजबूती आवश्यक है, मौजूदा संदर्भ में और आगामी वर्षो के संदर्भ में भी।
वित्त मंत्रालय में वरिष्ठ सलाहकार इला पटनायक द्वारा तैयार वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि खाद्य, उर्वरक और पेट्रोलियम सब्सिडी के जोखिम से निपटना जरूरी है।
सर्वेक्षण में कहा गया है, “एक अन्य चुनौती कर आधिक्य को सुधारने की है, और गैर-डेट प्राप्तियां में गिरावट को धन उगाही और सुधारों में अधिक प्रयासों के जरिए रोका जा सकता है।”

अमेरिकी राष्ट्रपति के इस अमृत वचन को याद रखेंःलोग कम टैक्स नहीं चुकाते, दरअसल सरकारें खर्च बहुत करती हैं।


हमारे आदरणीय साहित्यकार उदय प्रकाश ने बेहतर लिखा है।पहले उनको पढ़ लें।


Status Update
By Uday Prakash
रेलवे बजट के बाद ।
अब यह स्पष्ट है कि देश के विकास का एक अकेला रास्ता है , एफडीआई (विदेशी पूँजी निवेश) और प्राइवेटाइजेशन (निजीकरण) ।
ब्रिटिश राज के दौर से यह विकास मार्ग किस रूप में भिन्न है ?

दूसरा, है 'पीपीपी' यानी पब्लिक सेक्टर और प्राइवेट सेक्टर की साझेदारी ।
(यह नेहरू युग के 'मिक्स्ड एकानमिक पॉलिसी ' (मिश्रित अर्थ व्यवस्था) से कैसे अलग है ? )

रहा 'भ्रष्टाचार', तो प्राइवेट या कार्पोरेट सेक्टर का भ्रष्टाचार रिश्वत या ग़बन से नहीं, जबरिया भूमि-अधिग्रहण, किसानों के विस्थापन और खनिज उत्कर्षण के लिए नदियों, जंगलों के विनाश, आदिवासियों के दमन के पैमाने से नापी जाती है ।
क्या यह रेलवे बजट जनता के लिए कम और उपभोक्ता वर्ग को ध्यान में रख कर बनाया नहीं गया है ?
फिर तेज़ रफ़्तार रेलगाड़ी को ' बुलेट ट्रेन' (गोली गाड़ी) ही क्यों कहा जा रहा है? 'भारतीय संस्कृति की परंपरानुसार' इन्हें 'पवन गाड़ी' क्यों नहीं कहा गया ? 'गोली-बारूद' तो विदेशी लेकर आये थे । अगर हमारे पास बुलेट- बंदूक़, तोप-तमंचे रहे होते, तो पानीपत की पहली लड़ाई हम क्यों हारते ?

फिर, रेल का विदेशीकरण क्या भारत के ' भारतीयकरण' का प्रतिलोम नहीं है ?
यही तो पहले संघ का नारा हुआ करता था ।

आगे हमारे युवा तुर्क अभिषेक को भी पढ़ लें।अभिषेक और रियाज को कई दिनों से रिंग कर रहा हूं और हमारे रिंगते रहने के जवाब में उनकी आवाज का इंतजार भी है।बहरहाल अभिषेक के ताजा अपडेट और उदयजी के कथन को आर्थिक समीक्षा के परिप्रेक्ष्य में संदर्भित कीजै तो बजट का आशय समझ में आवै।अभी दुल्हन घुंघट की ओट में है।


Abhishek Srivastava
5 hrs ·
देखिए भाई, कुछ बातें अभी समझ ली जाएं तो जीवन से तनाव कम किया जा सकेगा। पहली बात, भाजपा हमारी पार्टी नहीं है इसलिए उसका अध्‍यक्ष कोई हत्‍यारा हो, उठाईगीर हो, गुंडा हो या संत, यह हमारा मुद्दा नहीं है। दूसरी बात, चूंकि न हमने अच्‍छे दिन मांगे थे और न ही उसके लिए भाजपा को वोट दिया था, इसलिए केंद्र सरकार के कड़े या मुलायम फैसले पर कोई भी बहस हमारी अपनी बहस नहीं हो सकती। तीसरे, हम लोग सनातन स्‍लीपर क्‍लास से चलने वाले लोग रहे हैं इसलिए बुलेट ट्रेन आदि के रेटॉरिक पर हमारे भड़कने का कोई अर्थ नहीं है।
दरअसल, भाजपा का बहुमत आने पर हमें इसलिए सदमा लगा था क्‍योंकि पिछले साल भर से बिछाई जा रही चुनावी बिसात में हमें जबरन खींच लिया गया था। हम लोग एक ऐसी लड़ाई का हिस्‍सा चाहे-अनचाहे बना लिए गए थे जो हमारी थी ही नहीं। चूंकि नकली लड़ाई का नतीजा हमारी असली अपेक्षाओं से उलट रहा, तो तनाव होना ही था।
प्रचार के जाल से बचें, दोबारा वही गलती न दुहराएं। अपनी असली लड़ाई को पहचानें। अगर अपनी लड़ाई समाज में मौजूद न हो, यहां अपना स्‍टेक न दिखता हो तो चैन से बैठ कर पढ़ें-लिखें। टीवी मत देखें। अखबार एकाध दिन में देख लें। इस अनचाहे पांच साल की लंबी अवधि का इस्‍तेमाल बुरे दिनों से लड़ने की तैयारी में लगाएं।

बहरहाल वित्त मंत्री अरूण जेटली कल अपना पहला बजट पेश करेंगे। मध्यम वर्ग व उद्योग जगत को नई सरकार के इस पहले बजट से काफी उम्मीदें हैं। माना जा रहा है कि बजट में वेतनभोगी वर्ग के लिए कुछ रियायतों की घोषणा हो सकती है। इसके अलावा इसमें विवादास्पद पिछली तारीख से कर को समाप्त किया जा सकता है तथा वृद्धि के लिए निवेश व विनिर्माण में नई जान फूंकने के उपायों की घोषणा हो सकती है।
इसी बीच बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स आज 137 अंक की गिरावट के साथ बंद हुआ। आर्थिक समीक्षा में जतायी गयी चिंता तथा नरेंद्र मोदी सरकार के कल पेश होने वाले बजट से उम्मीद घटने से बाजार में गिरावट दर्ज की गयी। वैश्विक शेयर बाजारों में कमजोर रूख से भी धारणा प्रभावित हुई। शुरूआती कारोबार में सेंसेक्स मजबूती के साथ खुला और 25,683.97 अंक तक चला गया। हालांकि आईटी, वाहन, बिजली, रीयल्टी तथा पूंजीगत वस्तुओं में मुनाफावसूली से सूचकांक एक समय दिन के निम्नतम स्तर 25,364.77 अंक तक चला गया।
संसद में पेश किए जाने वाले 2014-15 के बजट को लेकर काफी उम्मीदें जताई जा रही हैं। हालांकि इसमें कर स्लैब या आयकर छूट की सीमा बढ़ने की संभावना नहीं है, लेकिन चर्चा है कि इसमें बचत को प्रोत्साहन के जरिये लोगों को राहत दी जा सकती है। निवेश को प्रोत्साहन को जेटली उद्योग के लिए कर राहत की घोषणा कर सकते हैं। इसी के तहत सरकार वाहन व टिकाउ उपभोक्ता उद्योग के लिए उत्पाद शुल्क रियायत की समयसीमा को पहले ही दिसंबर तक बढ़ा चुकी है।
इसके अलावा वित्त मंत्री सोने के आयात पर शुल्क घटाने का भी प्रस्ताव कर सकते हैं। पिछले साल बढ़त चालू खाते के घाटे पर अंकुश के लिए सरकार ने सोने पर आयात शुल्क बढ़ाया था।
इसके अलावा वित्त मंत्री मानसून की कमी के प्रभाव को कम करने के लिए किसानों को राहत प्रदान कर सकते हैं। भाजपा ने अपने चुनाव घोषणापत्र में मूल्य स्थिरीकरण कोष का वादा किया है। बजट में इसकी घोषणा हो सकती है। जारी भाषा अजय वित्त मंत्री वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के लिए रूपरेखा भी पेश कर सकते हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) पर उनका रख क्या रहेगा। आर्थिक समीक्षा में इसका उल्लेख है।
घरेलू व विदेशी निवेशकों का भरोसा बहाल करने के लिए जेटली कारपोरेट विलय व अधिग्रहण के लिए पिछली तारीख से कर के प्रावधान को समाप्त कर सकते हैं। आज प्रस्तुत 2013-14 की आर्थिक समीक्षा में मुद्रास्फीति पर अंकुश रखने और राजकोषीय स्थिति को मजबूत करने पर बल दिया गया है ताकि देश को उच्च आर्थिक वृद्धि की राह पर ले जाया जा सके।

फिर जानिए, किन पांच बड़े सुधारों पर है इकोनॉमी में अच्छे दिन लाने का दारोमदार


क्या होना चाहिए
  • जीएसटी लागू के लिए अंतिम तिथि निश्चित हो और जीएसटी को लागू करने का रोड़मैप।
बजट में संभावना
  • केंद्र सरकार सेंट्रल गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स को लागू करने की घोषणा कर  सकती है। जो जीएसटी की शुरुआत होगी।  
ये पड़ेगा असर
  • उत्पादन की लागत में कमी आएगी जिससे एक्सपोर्ट को बढ़ावा मिलेगा।
  • देश को सरल और पारदर्शी टैक्स ढांचा मिल सकेगा।
2.सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी की बिक्री
क्या होना चाहिए
  • अगले तीन सालों में सभी सरकारी कंपनियों में सरकारी की हिस्सेदारी 75 फीसदी करने का रोडमैप।
  • पिछले साल के मुकाबले विनिवेश लक्ष्य 36 हजार करोड़ से बढ़ाया जाए। पिछले साल कुल विनिवेश लक्ष्य 54000 करोड़ का था।
बजट से संभावना
  • सेबी के प्रस्ताव के मद्देनजर सरकार बड़े विनिवेश लक्ष्य कर सकती है और तकरीबन 2 दर्जन कंपनियों में हिस्सा बिक्री की घोषणा कर सकती है।
ये पड़ेगा असर
  • शेयर बाजार में निवेशकों को बेशकीमती सरकारी कंपनियों में निवेश का मौका मिलेगा।
  • वित्तीय घाटा कंट्रोल करने में सरकार को मदद मिलेगी।
  • शेयर बाजार में बड़ी मात्रा में पूंजी आ सकेगी जिससे बाजार में बड़ी तेजी की उम्मीद बनती है।
3.विदेशी निवेश बढ़ाने के नए प्रस्ताव
क्या होना चाहिए
  • देश में बड़ी मात्रा में निवेश लाने के लिए विभिनन क्षेत्रों में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाना और नए क्षेत्र खोलना।
बजट में संभावना
  • डिफेंस सेक्टर में एफडीआई सीमा 49 फीसदी हो सकती है।
  • बीमा और बैंकिंग में विदेशी निवेश का उदारीकरण
  • रेलवे, इंफ्रास्ट्रक्चर, रियल्टी, नगर विकास, तेल-गैस और पावर में विदेशी निवेश को प्रोत्साहन।
ये पड़ेगा असर
  • घरेलू मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को बढ़ावा मिलेगा
  • रुके हुए प्रोजेक्ट जल्द शुरू हो जाएंगे
  • इंपोर्ट कम हो जाएगा और ट्रेड बैलेंस बनेगा
  • नौकरियां बढ़ाने में मदद मिलेगी
4. सब्सिडी में कटौती
क्या होना चाहिए
  • एलपीजी और कैरोसिन सब्सिडी में कमी।
  • फर्टिलाइजर सब्सिडी को कम करने की कार्ययोजना
  • फूड सिक्योरिटी बिल पर संतुलित आवंटन
बजट में संभावना
  • फर्टीलाइजर सब्सिडी को कम करने की योजना लाई जा सकती है।
  • फ्यूल सब्सिडी कम करने के लक्ष्य तय किए जा सकते हैं।
ये होगा असर
  • सब्सिडी का बोझ कम होने से सरकार की वित्तीय सेहत में सुधार होगा।
  • वित्तीय घाटे में कमी आएगी।
5. टैक्स में बदलाव होना चाहिए
क्या होना चाहिए
  • 80 सी के तहत टैक्स छूट सीमा बढ़नी चाहिए
  • होम लोन, मेडिकल और बच्चों की पढ़ाई पर टैक्स छूट बढ़े
  • नया डायरेक्ट टैक्स कानून लागू करने का रोडमैप
बजट में संभावना
  • आयकर में छोटी रियायत संभव। बचत बढ़ाने को मिल सकता है प्रोत्साहन।
  • वेल्थ टैक्स की दर बढ़ सकती है।
क्या पड़ेगा असर
  • बड़ी संख्या में टैक्स देने वाले लोगों को राहत मिलेगी
  • खर्च को प्रोत्साहन मिलेगा।


Economic Survey: Inflation expected to moderate by end 2014


WPI inflation rose to a five-month high of 6.01 per cent in May due to higher prices of food items. (Reuters)WPI inflation rose to a five-month high of 6.01 per cent in May due to higher prices of food items. (Reuters)

As the new government battles stubbornly high food inflation, the pre-budget economic survey today predicted that the headline inflation would ease by year end, providing room to the RBI to cut interest rates.
“Headline WPI (wholesale price index) inflation is expected to moderate by the end of 2014. However, risks to the outlook stems from possible sub-normal monsoon and higher crude oil prices (on account of the crisis in Iraq),” the Economic Survey 2013-14 tabled in Parliament by Finance Minister Arun Jaitley said.
As inflation eases, it is expected that the RBI would adopt a more accommodative stance and bring down interest rate.
“The monetary management challenge will also be helped by fiscal consolidation and addressing of supply side constraints that exacerbate food inflation. All these factors, in tandem, are expected to create room for monetary easing later this fiscal year,” it said.
However, WPI inflation rose to a five-month high of 6.01 per cent in May from 5.20 per cent in the previous month mainly driven by higher prices of food items.
Talking about the challenges, the Survey said, the Meteorological Department has predicted below-normal rainfall at 93 per cent of the long period average with 70 per cent probability of an El Nino occurring.
The odds of a drought are 60 per cent now, compared with 25 per cent in April, Skymet, a private forecaster said.
Besides, the other most prominent risk (to price rise) is the impact on oil prices on account of the crisis in Iraq.
Crude oil prices are hovering around USD 110 per barrel. Two-thirds of India’s oil needs are met through imports. Iraq is the second-largest oil supplier after Saudi Arabia.
The survey said inflation showed signs of receding with average wholesale price index (WPI) inflation falling to a three-year low of 5.98 per cent during 2013-14 compared to 7 and 9 per cent over the previous two years.
Consumer price inflation, though higher than the WPI, has also exhibited signs of moderation with CPI (new-series) inflation declining from 10.21 per cent during 2013-14 to about 9.49 per cent in 2013-14, the survey said.
Food inflation, however, remained stubbornly high during 2013-14, reaching a peak of 11.95 per cent in third quarter.
Highlighting reasons, the survey said, high inflation, particularly food inflation, was the result of structural as well as seasonal factors.
Contribution of the commodity sub-groups, fruits and vegetables, as well as egg, meat and fish to the food inflation has been very high, it said.
However, inflation in Non Food Manufactured Product (WPI core) has remained benign throughout the year, with average inflation moderated to four year low of 2.9 per cent in 2013-14, which indicates that underlying pressures of broad-based inflation have somewhat eased, it said.
IMF has projected that most global commodity prices are expected to remain flat during 2014-15, which augurs well for inflation in emerging market, including India.
The survey noted that the course of gradual monetary easing that had started alongside some moderation of inflationary pressures at the beginning of the financial year 2013-14 was disrupted in May 2013, following indications of possible tapering of the US Fed’s quantitative easing.
Following the ebbing of volatility in the foreign exchange market, it said, RBI initiated normalisation of the exceptional measures in a calibrated manner since its mid-quarter review (MQR) of September 20, 2013.
The interest rate corridor was realigned to normal monetary policy operations with the MSF rate being reduced in three steps to 8.75 per cent between September 20, 2013 and October 29, 2013, it said.
RBI in its Third Quarter Review of Monetary Policy on January 28, 2014, hiked the repo rate by 25 basis points to 8 per cent on account of upside risks to inflation, to anchor inflation expectations and to contain second round effects, it said.
The move was intended to set the economy securely on the disinflationary path, it added.







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