Thursday, July 31, 2014

अलविदा फैक्टरी एक्ट!कामगारों के सारे हक हकूक अब खत्म,फिरभी खामोशी उनकी,जिनके हाथों में लाल झंडा!

अलविदा फैक्टरी एक्ट!कामगारों के सारे हक हकूक अब खत्म,फिरभी खामोशी उनकी,जिनके हाथों में लाल झंडा!

पलाश विश्वास

अलविदा फैक्टरी एक्ट!कामगारो के सारे हक हकूक अब खत्म,फिरभी खामोशी उनकी,जिनके हाथों में लाल झंडा!

कलम के सिपाही प्रेमचंद को नमन।
गोदान में खेत खाओ संस्कृति के पूंजी वर्चस्व का भी अच्छा खासा ब्यौरा है।

आज सुबह सुबह बसंतीपुर से पद्दो का  फोन आया।पहली बार तो लगा किसी कंपनी का होगा,इसलिए काट दिया।दोबारा उसके रिंगियाने पर मोबाइल से संपर्क साध लिया।

छूटते ही पद्दो ने कहा कि आज दिनेशपुर में तूझे प्रेमचंद सम्मान दिया जा रहा है।

मैंने कहा कि मैं कोई सम्मान लेता नहीं।पुरस्कार भी नहीं।मेरी ओर से माफी मांग लेना।

इस साल डायवर्सिटी मैन आफ दि ईअर के लिए प्रिय मित्र एचएल दुसाध का फोन आया तो मैंने तब भी मना कर दिया था कि पुरस्कार और सम्मान में मेरी दिलचस्पी है नहीं और इस भेड़ धंसान में मैं शामिल नहीं हूं।

विनम्रता पूर्वक सभी भद्रजनों से दरख्वास्त है कि भविष्य में अन्य योग्य लोगों को ही पुरस्कृत करें,सम्मानित करें।

मेरे नाम की सोचें ही नहीं।न मुझे कालजयी बनना है और न प्रतिष्ठित।मैं जिस सतह से उठते लोगों की संतान हूं,वहां मेरा जो वजूद है,वह उसी शक्ल में कायम रहे,इसीकी लेकिन मेरी जद्दोजहद है।

मैं एक कामगार का बेटा हूं।सफेद कालर से कोई भद्र नहीं हो गया और भद्र समाज के तामझाम से मुझे दूर रहने दें।

पहले तो सविता ने कहा कि अपने लोग हैं।वे सम्मानित करते हैं तो बुरा क्या है।यह उनका प्यार भी है।

मेरे लिए सबसे बड़ा पुरस्कार यह है कि जीआईसी के दिनों की तरह मेरे गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी अब भी मेरा लिखा पढ़ते जांचते हैं और खामियों के लिए अब भी कान उमेठ देते हैं।

मेरे लिए सबसे बड़ा पुरस्कार यह है कि बसंतीपुर,दिनेशपुर,तराई और पहाड़ में मेरे अपने लोग ,मेरे परिजन मेरा लिखा पढ़ते हैं।

इसके अलावा मुझे कुछ भी नहीं चाहिए।

सविता और मैंने तय किया है कि यह मामला हमेसा के लिए बंद कर दिया जाये और कोई सम्मान पुरस्कार हम स्वीकार नहीं करेंगे।

देश दुनिया का जब यह हाल,जब हमारे लोग बेमौत मारे जा रहे हैं,तो भद्र गतिविधियों में खपने का कोई औचित्य नहीं है।

इसके बाद हमेशा की तरह सबसे पहले इकोनामिक्स टाइम्स खोला तो पता चला कि श्रम कानूनों का बंटाधाऱ हो गया।संविदान की धारा 12 से लेकर मैटरनिटी लिव संबंधी धारा 42 तक के कायदे कानून खत्म करने में इस केसरिया कारपोरेट सरकार को कितना वक्त लगता है,इंतजार इसी का है।

मेरे लिए यह कालादिन है।

हमने किसी को ईद मुबारक कहा नहीं है।

पर्वों और त्योहारों पर शुभकामनाएं मैं टांगता नहीं।

गाजा में चल रहे नरसंहार के मध्य,यूपी में ऎजुलस रही इंसानियत के मध्य,पंजाब,गुजरात,कश्मीर,मध्य भारत पूर्वोत्तर में इंसानियत और कायनात पर कयामत बरपने के दिन किसी रब के आगे सिजदा करने की तमीज मेरी नहीं है।

बचपन में किसी के पांव न छूने के कारण घर में बेहद मार खायी है।मैराथन मार।ताउजी,पिताजी,चाचाजी मार मार कर थक गये,लेकिन मैं ने कभी किसी का चरण स्पर्श नहीं किया।

चरण स्पर्श न करने की बदतमीजी जारी रहने की वजह से लगातार मारें पड़ती रही हैं।

किसी धर्मस्थल पर सिजदा के लिए सर झुकाने की तहजीब मेरी है ही नहीं।

किसी देव देवी के दरवाजे नेरी न कोई मन्नत है और न ख्वाहिशें हजार।
आज जब खेत सिरे से तबाह हैं, कामगारों के हाथ पांव कटे हैं,प्रकृति और मनुष्यता का दसों दिशाओं में सर्वनाश ही सर्वनाश है,मेरे शब्दकोश में न कोई शुभकामना है, न कोई सम्मान है और न ही कोई पुरस्कार।

अलविदा फैक्टरी एक्ट!कामगारो के सारे हक हकूक अब खत्म,फिरभी खामोशी उनकी,जिनके हाथों में लाल झंडा!कैबिनेट ने अवैध माइनिंग पर शाह आयोग की रिपोर्ट को मंजूरी दे दी है। कल सीसीईए यानि कैबिनेट कमेटी ऑन इकोनॉमिक अफेयर्स की बैठक में ये फैसला हुआ। साथ ही कैबिनेट ने श्रम कानून और फैक्ट्री एक्ट में संशोधन को भी हरी झंडी दे दी है।

कारपरेट जनादेश से बनी कारपोरेट सरकार के सत्ता में आते न आते मुक्तबाजार अर्थव्यवस्था में आमूलचूल बदलाव के लिए भारत के नए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार श्रम कानूनों में बदलाव की तैयारी कर रही है। इसका मुख्य उद्देश्य देश में उत्पादन और रोजगार बढ़ाना हैबाबुलंद नगाड़े ऐसा प्रचार कर रहे हैं और अब भी ट्रेड यूनियनों की नींद टूटी नहीं है।इसको क्या कहा जाये,क्या यही विचारधारा है और क्या यही प्रतिबद्धता है,कोई बताये।

बाजार ने बिना शर्त नमो सुनामी पैदा करने के लिए लाखों करोड़ का न्वारा वारा कर दिया सिर्फ इसलिए कि कारोबारियों का मानना है कि नरेंद्र मोदी के तौर पर उन्हें नया प्रधानमंत्री मिलने को है, जो बिजनेस को लेकर काफी गंभीर है और उन्हें लगता है कि भारत में भी श्रम कानूनों में बड़े बदलाव हो सकते हैं। उनका दावा  है कि इसके बाद किसी भी व्यक्ति को आसानी से नौकरी से नहीं निकाला जा सकेगा.।दरअसल इनसंशोदनों के बाद न किसी का रोजगार सुरक्षित होगा और न रोटी की कोई गारंटी होगी।

जिन बाबासाहेब का करा धरा है श्रमिकों का यह कवच कुंडल,वे रामायण महाभारत में निष्णात हैं या धर्मस्थलों में दरबार लगाकर क्रमफल से मोक्ष प्रापित का योगाब्यास कर रहे हैं।हालांकि बाबा का नाम लिये बिना उनका हजमा खराब हो जाया करता है और बाबा की भले हत्या हो जाये इसकरह रोज रोज,लेकिन बाबा की बुराई सुन ही नहीं सकते।

आम लोग तो बुलेट चतुर्भुजी धारीदार कामसूत्र के मुक्तबाजारी  तिलिस्म में फंसे हैं कि छन छन कर विकास की बूंदों से उनका जीवन मरण सार्थक हो जायेगा।

लेकिन सबसे बड़े अपराधी तो लाल झंडों के धरक वाहक हैं।जो समूची उत्पादन प्रणाली के तहस नहस होने पर खामोश हैं।जो खेतों के मरघट में क्रांति का ख्वाब सजाते हैं।जो चायबागानों के मृत्युजुलूस में लाल सलाम लास सलाम कहते अघाते नहीं है।जो साम्राज्यवाद के विरुद्ध जुलूस निकालते हैं और साम्राज्यवादियों के सात गठबंधन करते हैं।जो ट्रेड यूनियनं पर एकादिकार होने के बावजूद तेईस रहे हैं।जो वेतन बढ़ाओ आंदोलन को करते रहे,तालाबंदी और छंटनी के किलाफ लड़े नहीं। जो विनिवेश और एफडीआई सत्तावर्ग के साथ जनता केखिलाफ मोर्चाबंद हैं।

बाबासाहेब के अनुयायी तो खैर बाबासाहेब के कृतित्व और विचारों के बजाये उनकी पूजा के लिए बनाये मदिकरों और मूर्तियों के शरणागत हैं।

नरेंद्र मोदी सरकार ने श्रम कानूनों में बदलाव पर बड़ा फैसला लिया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तीन अहम श्रम कानूनों में संशोधन के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है। यूनियन कैबिनेट ने इसके लिए फैक्टरी एक्ट, 1948 अप्रेंटिसशिप एक्ट, 1961 और लेबर लॉज एक्ट, 1988 में कुल 54 संशोधन किए हैं।

प्रधानमंत्री मोदी के कौशल विकास नजरिये को ध्यान में रखते हुए अप्रेंटिसशिप अधिनियम में 500 नए क्षेत्रों को शामिल किया जा सकता है। साथ ही कुछ क्षेत्रों के लिए केंद्र से मिने वाली अनुमति का इंतजार किए बिना ही कंपनियां इन क्षेत्रों में पहल कर सकती हैं।

श्रम मंत्रालय ने फैक्टरी अधिनियम में 54 संशोधनों का प्रस्ताव रखा है। इनमें कर्मचारियों के लिए एक तिमाही के दौरान ओवरटाइम की समय सीमा मौजूदा 50 घंटों से बढ़ाकर 100 घंटे करना, फैक्टरी में काम करने वाली महिला कर्मचारियों के लिए नाइट ड्यूटी केनियमों में छूट और स्वास्थ्य व सुरक्षा के नियमों को मजबूत बनाने जैसे प्रावधान शामिल हैं।

इस मामले में छोटी एवं मझोली औद्योगिक इकाइयों की राह सुगम की जा सकती है। इसके साथ ही छोटी इकाइयों की परिभाषा को भी बदले जाने की संभावना है जिसमें मौजूदा 10 केमुकाबले 40 कर्मचारियों की भर्तियों का नया पैमाना बनाया जाएगा।

वृद्घि के पटरी से उतरने को लेकर उद्योग जगत ने इसके लिए पुराने श्रम कानूनों को भी लगातार जिम्मेदार ठहराया है। उसका मानना है कि ये नियम वृद्धि में बाधक हैं। भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में वादा भी किया था कि प्रासंगिकता खो चुके श्रम कानूनों की समीक्षा के लिए वह उससे जुड़े सभी पक्षों को साथ लाकर, 'अपने उन श्रम कानूनों की समीक्षा करेगी, जो पुराने पड़ चुके हैं, जटिल हैं और यहां तक कि कई मामलों में विरोधाभासी भी हैं।Ó

श्रम कानूनों में प्रस्तावित संशोधनों पर पूर्व की संप्रग सरकार के समय से ही चर्चा हो रही है लेकिन यह मसला कभी मंत्रिमंडल के सामने ही नहीं पहुंचा।

जून में मंत्रालय ने संशोधन के लिए ताजा सुझाव आमंत्रित किए थे।

अधिकारियों ने बताया कि इस सबंध में त्रिपक्षीय चर्चा भी हुई और चर्चा में सामने आए सुझावों को संशोधनों में जगह दी गई है।


गौरतलब है कि बाबासाहेब अंबेडकर ने ही बरतानिया सरकार के श्रम मंत्री के तहत ट्रेड यूनियन अधिकार बहाल करने के बाद फैक्ट्री एक्ट समेत तमाम कायदे कानून लागू किये थे और जब उन्होने भारतीय संविधान का मसविदा तैयार किया तो धारा 12 से लेकर धारा 42 तक के प्रावधानों के तहत भारत में कामगारों के हक हकूक तयकर दिये थे।बाबासाहेब की इस विरासत के कात्मे के इस नरसंहारी अभियान के खिलाफ अंबे़करी खेमा में सन्नाटा टंगा हुआ है,जिसे अब सही सही मालूम भी नहीं है कि इस भारतीय लोकगणराज्य के गठन में उनके मसीहा की क्या भूमिका रही है।

पूंजी वर्चस्वी वर्णवर्चस्वी नस्ली केसरिया जायनी कारपोरेट अमेरिका परस्त सरकार विदेशी निवेशकों के हित में अबाध पूंजी प्रवाह और प्रत्यक्ष विदेशी विनिवेश के अवरोध कत्म करने के लिए दूसरे चरण के आर्थिक सुधारों के तहत श्रम कायदे कानून के सफाये की शुरुआत कर चुकी है।

ध्यान दें जैसे कि नागरिकता से लेकर भूमि अधिग्रहण,खनन,पर्यावरण कानूनों तक में संशोधन अटल शौरी आडवानी त्रिमूर्ति का रोड मैप रहा है,दससाली यूपीए राजम में केसरिया संघी से लेकर वाम दक्षिण लाल नीले हरे पीले संसदीय समर्थन के साथ अरबपतियों के संसद में उसी मंजिल की तलाश की जाती रही है,उसीतरह श्रम कानूनों में संसोधन के इस प्रकल्प को लागू करने का प्रयास यूपीए जमाने में भी होता रहा है और मनमोहनी जमाने में नीतिगत विकलांगकता और राजनीतिक बाध्यताओं की वजह से इस एजंडे को अमली जामा नहीं पहुंचाया जा सका।
जाहिर है कि कैबिनेट की मंजूरी के बाद बहुमती सरकार के लिए कांग्रेस समेत पक्ष विपक्ष की राजनीतिक सहमति से कामगारों के तमाम हकहकूक छीनने का उपक्रम है यह।

लेकिन इन कानूनों से सिर्फ कामगारों का सत्यानाश होगा ,ऐसा भी नहीं है।
मसलन मीडिया जो पेइड न्यूज से सर्वशक्तिमान जनमत निर्देशक बनकर बाजार का लाड़ला है ,इस वक्त इस सेक्टर में श्रमजीवी पत्रकारों के सारे हक हकूक फैक्ट्री एक्ट के ही मुताबिक हैं।फैक्ट्री एक्ट खत्म तो श्रमजीवी पत्रकारों की ऐसी तैसी तय है।

गौर करें कि पत्रकारों गैर पत्रकारों के लिए ममजीठिया वेतनमान लागू करने के आदेश पारित होने में तेरह साल लग गये।नये वितनमान की प्रोन्नत,लाभ और ब्याज तो सारे के सारे मालिकान के खाते में चले ही गये,लेकिन मीडिया का अंतिम यह वेतनमान सर्वत्र लागू भी नही हुआ है।कैटेगरी और ग्रेड मर्जीमाफिक सौदेबाजी सापेक्ष है तो बैकडेटेड प्रोमोशन का वेतनमान दिये जाने के बाद भी स्टेटस बदला नहीं है।और यह आखिरी वेतनमान है।

पांचवे और छठें वेतनमान से चर्बीदार हो गये लोगों को आस पड़ोस के मातम की खबर नहीं है।लेकिन इन संशोधनों के जरिये बाट उनको भी लगने वाली है।सातवें वेतनमान खी घोषणा हो चुकी है जो नये स्रमकानूनों के मुताबिक ही लागू होंगे।

खास ध्यान देने वाली बात यह है कि एफडीआई राज और सेज महासेज स्मार्ट सिटी सांढ़ संस्कृति के मद्देनजर ही श्रम कानून बदले जा रहे हैंं और खुदरा बाजार में विदेशी कंपनियों की बहार का इंतजाम है यह।

फ्लिपकार्ट अमोजेन वालमार्ट के खुदरा कारोबार में श्रम कानून बाधक न हों और जिंदल मित्तल टाटा रिलायंस अदाणी वगैरह वगैरह को परियोजनाओं को हरी झंडी मिलने के बाद गुजराती पीपीपी माडल के तहत मुनाफावसूली में किसी किस्म की दिक्कत न हो,इसीका यह इंतजाम है।

मतलब यह कि कृषि आजीविका और छोटी और मंझोली पूंजी के कारोबार को बाजार से बेदखल करने का भी इंतजाम है यह।

नए श्रम कानूनों के तहत उन कंपनियों को श्रम कानून की बंदिशों से छूट मिल जाएगी, जहां 40 से कम लोग काम करते हैं। अभी तक 10 से कम कर्मचारियों वाली कंपनी को ये छूट हासिल है।

इसके अलावा अप्रेंटिसशिप एक्ट के तहत कंपनी के मालिक को हिरासत में लेने का प्रावधान भी खत्म हो जाएगा। दलील है कि इससे ज्यादा से ज्यादा कंपनियों को अप्रेंटिशिप योजना में शामिल होने में मदद मिलेगी।

ओवर टाइम ड्यूटी की सीमा भी बढ़ाकर दोगुनी करने का प्रस्ताव है। फिलहाल एक तिमाही में अधिकतम 50 घंटों की ओवरटाइम लिमिट है, जो बढ़कर 100 घंटों की हो जाएगी।

यूनियन कैबिनेट ने इसके लिए फैक्टरी ऐक्ट, 1948 अप्रेंटिसशिप एक्ट, 1961 और लेबर लॉज एक्ट, 1988 में कुल 54 संशोधन किए हैं।

नए संशोधनों के तहत महिलाओं की नाइट ड्यूटी के लिए कंपनियों पर लागू शर्तों को भी और आसान बनाया जाएगा। कैबिनेट की मंजूरी के बाद ये संशोधन संसद में रखे जाएंगे, जहां पास होने के बाद ये कानूनी शक्ल ले लेंगे।

लगातार अल्पमती सुधारक सरकारें मानती रही हैं कि अगले दो दशक में भारत में करीब 20 करोड़ लोग रोजगार पाने की उम्र में पहुंच रहे हैं और इसलिए श्रम कानूनों में बदलाव जरूरी है। लेकिन कहा जाता है कि लेबर यूनियनों और राजनीतिक लाभ के मुद्दे की वजह से ये लटकते आए हैं।जो शायद हकीकत के उलट है।

बहरहाल अब भारत में लगभग तीन दशक के बाद एक पार्टी की बहुमत सरकार बनी है और ये उन कानूनों में बदलाव की कोशिश कर रही है, जो ब्रिटिश काल से चले आ रहे हैं।

श्रम मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि नई सरकार के शुरुआती 100 दिनों का यह प्रमुख कार्य होगा। भारत के श्रम कानून बेहद जटिल हैं और इसकी वजह से मजूदरों और उन्हें काम देने वालों दोनों को समस्या होती है।

यह काम इसलिए भी जरुरी है कि  वर्ल्ड बैंक ने 2014 की अपनी रिपोर्ट में फतवा दे दिया है कि भारत दुनिया के सर्वाधिक अलोचदार बाजारों में है।यानी कंपनियों के लिए सबसे ज्यादा बंदिशें यहीं हैं।श्रमकानूनों के खात्मे के बिना न विनिवेश संभव है,न एफडीआई और न ही खुदरा बाजार में विदेशी कंपनियों का वर्चस्व।


रब के बंदों,तनिक इस नियामत की खूबियों पर भी गौर करेंः


इन क़ानूनों की कृपा से यह हुआ कि निश्चित उम्र से कम उम्र के बालकों से कोई काम ।तई नहीं लिया जा सकता था। स्त्रियों को कुछ निश्चित काम ही करने हैं। गर्भवती स्त्री को या बच्चे की मां के लिए निर्धारित खुराक का प्रबंध अनिवार्य है। हर मज़दूर के काम करने के घंटे निश्चित कर दिए गए थे। कारखाना या फैक्टरी के चालू रहने का समय निर्धारित हो गया था। कारखाने या फैक्टरी में कोई भी मशीन या हथियार ऐसे हों, जिनसे मज़दूरों को चोट आने का ख़तरा हो तो उन्हें अच्छी तरह बचाव के साधन के साथ रखना अनिवार्य कर दिया गया। मज़दूरी के एवज में मालिक लोग पहले चाहे जैसा सड़ा-गला अनाज या कपड़ा दे दिया करते थे, अब नकद मज़दूरी की रकम देना अनिवार्य बना दिया गया। टट्टी-पेशाब आदि के लिए हर कारखाने में स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर समुचित व्यवस्था की गई। हर कारखाने या फैक्टरी की अमुक समय बाद सफेदी कराना या पुताई कराना, मरम्मत आदि कराना ज़रूरी हो गया। इन सब क़ानूनों को भंग करने की मनोवृत्ति को मिटाने के लिए कई फैक्टरी निरीक्षक नियुक्त कर दिए गए। ये सरकार की तऱफ से किसी भी समय किसी भी कारखाने या फैक्टरी में घुसकर इस बात का निरीक्षण करने का अधिकार रखते हैं कि फैक्टरी एक्ट पर उचित अमल हो रहा है या नहीं। अगर कहीं भी एक्ट भंग हो रहा होता तो उस मालिक पर मुक़दमा चलाया जा सकता है।




Jul 31 2014 : The Economic Times (Kolkata)
Cabinet Approves Proposed Changes in Three Labour Laws

NEW DELHI
OUR BUREAU


Amendments will help improve ease of doing biz by benefiting employers andemployees
The Narendra Modi government's vision for labor reforms in the country moved a step forward on Wednesday with the Union Cabinet approving amendments proposed to three key archaic labour laws of the country that will ensure that both employers and employees get a good deal.
These amendments are continuation of a series of measures taken by the government to improve ease of doing business, a matrix on which India scores very poorly.
"The Cabinet has cleared all the three amendments proposed by the labour ministry. These will now be tabled in the current session Parliament," a senior government official told ET.
The Narendra Singh Tomar-led ministry of labour and employment had proposed amend ments to the Apprenticeship Act of 1961, the Factories Act of 1948 and the Labour Laws (Exemption from furnishing returns and maintaining registers by certain establishments) Act, 1988 in the first series of longoverdue labour reforms in India, within two months of the new government taking office.
While the BJP-led NDA government enjoys majority in the Parliament, the amendments proposed to the above laws may not see any objection from Congress or its allies as well since
most of these amendments were taken up by the previous UPA government though none of these could be concluded.
Finance minister Arun Jaitley had in his budget speech hinted ta amendment of at least the Apprenticeship Act, which was in sync with the vision of Prime Minister Narendra Modi for skilling India. The key changes proposed in the Apprenticeship Act include dropping the clause that mandates imprisonment of company directors that fail to implement the Apprenticeship Act of 1961 and doing away with an amendment proposed by the UPA mandating employers to absorb at least half of its apprentices in regular jobs besides adding 500 new trades and vocations under the scheme, including skills for services sectors like IT-enabled services.
Proposed changes under the amendment to the Factories Act include improved safety of
workers; doubling the provision of overtime from 50 hours a quarter to 100 hours in some cases and from 75 hours to 125 hours in others involving work of public interest; increasing the penalty for violation of the Act; relaxing the norms of female participation in certain industry segments; and reducing to 90 from 240 the number of days that an employee needs to work before becoming eligible for benefits like leave with pay.
The amendments to Labour Laws Act, 1988 will allow companies to hire more employees without having to comply with cumbersome labour law requirements as the ministry has proposed that companies with 10-40 employees will now be exempt from provisions under various labour laws that mandate them to furnish and file returns on various aspects. The current threshold is up to 19 employees.


म कल्‍याण से संबंधित कानून
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श्रम कल्‍याण का अभिप्राय कर्मचारियों को दी जाने वाली ऐसी सभी सेवाओं, सुख साधनों और सुविधाओं से है जो उनकी कार्य परिस्थिति तथा जीवन स्‍तर में सुधार लाती हैं। श्रम कल्‍याण शब्‍द की व्‍याख्‍या देशनुदेश और समय समय पर अलग-अलग हैं और यहां तक कि एक ही देश में, इसकी मूल्‍य प्रणाली के अनुसार, सामाजिक संस्‍था, औद्योगिकीकरण की डिग्री और सामाजिक एवं आर्थिक विकास के सामान्‍य स्‍तर के अनुसार अलग-अलग है। सामान्‍यत: श्रम कल्‍याण सेवाएं दो समूहों में विभाजित हैं :-
  • प्रतिष्‍ठान के परिवेश के भीतर कल्‍याण - इसमें चिकित्‍सा सहायता, शिशु गृह, कैन्‍टीन, स्‍वच्‍छ पेय जल की आपूर्ति, चिकित्‍सा सेवाएं, वर्दी और रक्षात्‍मक परिधान, आराम करने की जगह आदि शामिल हैं। यह नियोक्‍ता की जिम्‍मेदारी है कि वह अपने कर्मचारियों को ये सुविधाएं मुहैया कराए और इन सुविधाओं की व्‍यवस्‍था करने के लिए न्‍यूनतम मानक निर्धारित करने हेतु अनेकानेक विधान अधिनियमित किए गए हैं।
  • प्रतिष्‍ठान के बाहर कल्‍याण - इसमें सामाजिक बीमा के उपाय शामिल हैं जैसे उपदान, पेंशन निधि, भविष्‍य निधि आदि; शैक्षिक सुविधाएं, आवास सुविधाएं, मनोरंजक सुविधाएं, कामगार सहकारिताएं, व्‍यावसायिक प्रशिक्षण आदि शामिल हैं।
असंगठित क्षेत्रक में कामगारों के लिए सामाजिक सहायता के उपायों का विस्‍तार करने के‍ लिए 'श्रम कल्‍याण निधि' की अभिकल्‍पना विकसित की गई। तदनुसार आवास, चिकित्‍सा देखभाल, शैक्षिक और मनोरंजक सुविधाएं, बी‍डी उद्योग, कुछ गैर कोयला खानों में नियुक्‍त कामगारों और सिनेमा कामगारों को मुहैया कराने के लिए श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के अधीन पांच कल्‍याण निधियां स्‍थापित की गई हैं। इन निधियों का वित्तपोषण संबंधित उपकर/निधि अधिनियमों के अधीन लगाए कर उपकर से प्राप्‍त लाभ में से किया जाता है। इस प्रकार अधिनियमित किए गए विभिन्‍न कानूनों में निम्‍नलिखित शामिल हैं :-
उपयुक्‍त अधिनियम यह व्‍यवस्‍था करते हैं कि संबंधित कामगारों के कल्‍याण की व्‍यवस्‍था करने के लिए अनिवार्य उपायों और सुविधाओं के संबंध में किए गए व्‍यय को पूरा करने के लिए निधि का प्रयोग केन्‍द्र सरकार द्वारा किया जाए।
श्रम कल्‍याण संगठन इन धनराशियों का प्रशासन करता है और महानिदेशक (श्रम कल्‍याण) / संयुक्‍त सचिव इनकी अध्‍यक्षता करते हैं। इनकी सहायता निदेशक स्‍तर के कल्‍याण आयुक्‍त करते हैं, जो राज्‍यों में इन धनराशियों के प्रशासन के लिए नौ क्षेत्रीय कल्‍याण आयुक्‍तों का पर्यवेक्षण करते हैं। इन कार्यालयों के क्षेत्रीय आयुक्‍त इलाहाबाद, बैंगलोर, भीलवाड़ा, भुवनेश्‍वर, कोलकाता, हैदराबाद, जबलपुर, करमा (झारखंड) और नागपुर में स्थित हैं। ये अभ्रक, चूना पत्‍थर और डोलोमाइट, लौह अयस्‍क, मैंगनीज़ और क्रोम अयस्‍क खान तथा बीड़ी और सिनेमा उद्योगों में कार्यरत कामगारों को कल्‍याण सुविधाएं प्रदान करने के लिए उत्‍तरदायी हैं।
मुख्‍य सलाहकार (श्रम कल्‍याण) सहायक श्रम कल्‍याण आयुक्‍तों (एएलडब्‍ल्‍यूसी) उप श्रम कल्‍याण आयुक्‍तों (डीएलडब्‍ल्‍यूसी) और श्रम कल्‍याण आयुक्‍तों (एलडब्‍ल्‍यूसी) के कार्यों का पर्यवेक्षण करता है। एएलडब्‍ल्‍यूसी और डीएलडब्‍ल्‍यूसी तैनाती रक्षा एवं अन्‍य प्रतिष्‍ठानों में की गई है जैसाकि सीपीडब्‍ल्‍यूडी, प्रतिभूति मुद्रणालयों, टकसालों, बारूद फैक्‍टरियों, दूरसंचार, फैक्‍टरियों और अस्‍पतालों आदि में, जो केन्‍द्रीय सरकार के नियंत्रणाधीन हैं। श्रम कल्‍याण आयुक्‍तों की तैनाती इन प्रतिष्‍ठानों के मुख्‍यालयों में की गई है। एक साथ मिलकर ये अधिकारी अपने संबंधित प्रतिष्‍ठानों में सदभाव पूर्ण संबंध सुनिश्चित करते हैं। वे कामगारों के कल्‍याण, उनकी शिकायतों का समाधान कल्‍याणकारी योजना के प्रशासन की भी देखरेख करते हैं और प्रबंधन को विभिन्‍न श्रम संबंधी मामलों पर सुझाव देते हैं जिसमें द्विपक्षीय समितियों का गठन शामिल है जैसे कि दुकान परिषद कार्य समितियां आदि।
कल्‍याण निधियों की योजना नियोक्‍ता और कर्मचारी संबंध के ढांचे के बाहर है, जहां तक संसाधन सरकार द्वारा जुटाए जाते हैं जो गैर अकादमी आधार पर होते हैं और कल्‍याणकारी सेवाओं का प्रदाय बिना व्‍यष्टि कामगार के अंशदान के ही प्रभावी होता है।
उपयुक्‍त निधियों के प्रशासन से संबंधित मामले संबधी केन्‍द्रीय सरकार को सुझाव देने के लिए त्रिपक्षीय केन्‍द्रीय सलाहकार समितियों का गठन संबंधित कल्‍याण का अध्‍यक्ष केन्‍द्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री है।




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